हमारे देश में अंधविश्वास इतना ज्यादा प्रचलित है कि लोग किसी के मुँह से कुछ भी सुन लें, तो उस पर आँख मूँद कर विश्वास कर लेते हैं। फिर चाहे व...
हमारे देश में अंधविश्वास इतना ज्यादा प्रचलित है कि लोग किसी के मुँह से कुछ भी सुन लें, तो उस पर आँख मूँद कर विश्वास कर लेते हैं। फिर चाहे वह किसी चमत्कार के बारे में हो अथवा पुनर्जन्म जैसी एकदम फालतू कल्पनाओं के बारे में। पिछले दिनों एक ब्लॉगर बंधु ने अपने ब्लॉग पर लिखा कि "वैज्ञानिक और विशेष तौर से परावैज्ञानिक इस विषय में लगभग एकमत हैं कि पूर्वजन्म की घटनाओं का विवरण देने वाले तमाम उदाहरण सही ओर खरे हैं।" तो आइए हम अपनी मोटी बुद्धि के आधार पर विचार करते हैं कि क्या वास्तव में ऐसा सम्भव है?
सबसे पहले हम इस बात पर विचार करते हैं कि मनुष्य क्या है? लोग जवाब देते हैं कि मनुष्य एक माटी का पुतला है। उस पुतले में जब कोई आत्मा प्रवेश करती है, तो वह सजीव हो उठता है और जब आत्मा विदा हो जाती है, तो वह मृत हो जाता है।
अब आप तो जानते ही हैं कि मेरा नाम रजनीश है। अब इसका मतलब यह हुआ कि मेरे भीतर इस वक्त जो आत्मा है, वह पहले किसी राकेश, सुरेश सा प्रकाश के शरीर में रही होगी। या हो सकता है कि किसी गधे, शेर अथवा हाथी के शरीर में। यानी की यह आत्मा इस समय मेरे शरीर में अस्थायी तौर पर निवास कर रही है। यहाँ पर मुख्य सवाल यह कि मैं क्या हूँ? क्या मैं आत्मा हूँ? या फिर मैं शरीर हूँ? जाहिर सी बात है मेरी पहचान मेरे शरीर से ही है, इसलिए मैं का मतलब मेरा शरीर भर है। अब मान लीजिए मेरा देहान्त हो जाता है। इसका मतलब यह हुआ कि मेरा शरीर मर गया। क्योंकि आत्मा कभी मरती नहीं, वह अजर अमर है। मान लेते हैं कि मेरे मर जाने के बाद आत्मा जिस शरीर में प्रवेश पाती है, उस शरीर के माँ-बाप उसका नाम राजेश रखते हैं। तो अब यह बताइए कि क्या राजेश के रूप में वह रजनीश का पुनर्जन्म होगा?
यदि ऐसा है तब तो फिर प्रत्येक व्यक्ति किसी न किसी का पुनर्जन्म होता है। लेकिन अगर ऐसा होता, तब तो हर व्यक्ति अपने पिछले जन्म के बारे में दावा करता घूमता। जबकि ऐसा नहीं होता है। ऐसा दावा कभी साल दो साल में कहीं एक व्यक्ति कर देता है। अब आप ही सोचिए कि राजेश नामक व्यक्ति पुनर्जन्म का जो दावा कर रहा है, तो यह कैसे सम्भव है? वह तो पहले राजेश था ही नहीं, वह तो पिछले जन्म में रजनीश था। फिर रजनीश की बातें बताकर राजेश साबित क्या करना चाहता है?
इससे पहले कि आप पुनर्जन्म पर कोई फतवा दें, एक बात और। क्या आपको पता है कि आप कोई काम कैसे करते हैं? आप कहेंगे कि यह भी कोई पूछने की बात है? मैं अपने सारे काम अपने हाथ से करता हूँ। अच्छा आप चलते कैसे हैं? आप कहेंगे कि भई मैं अपने पैरों से चलता हूँ। एक मिनट, आप गुस्सा न हों बस इतना और बता दें कि आप देखते कैसे हैं? आप कहेंगे पूरे बुडबक हो क्या? अरे भई मैं अपनी आँखों से देखता हूँ और कैसे देखूंगा?
मैंने ठीक कहा न? यानी की आप अपने जीवन का प्रत्येक काम अपने शरीर के अंगों से करते हैं चाहे वह चलना हो, खाना हो, पीना हो, देखना हो अथवा मल त्याग करना। इन तमाम कामों में आपकी आत्मा का कोई हस्तक्षेप अथवा योगदान नहीं होता है। तो इतना और मान लीजिए कि जिस प्रकार आप अपने शरीर के अंगों द्वारा खाते-पीते और दैनिक कर्म करते हैं, उसी प्रकार अपनी जिंदगी की तमाम बातों को याद रखने का काम भी अपने शरीर के एक महत्वपूर्ण अंग दिमाग के द्वारा करते हैं। आपको पता ही होगा कि जो चीजें हम बार-बार देखते, सुनते अथवा पढते हैं, वह एक सूचना के रूप में हमारे अवचेतन मस्तिष्क में जमा हो जाती हैं और इस प्रकार हमारी स्मृति अथवा याददाश्त का निर्माण होता है।
यानी कि मैं क्या हूँ, मेरे माँ बाप कौन हैं, मेरी जाति क्या है जैसी असंख्य सूचनाएं मेरे शरीर के एक अंग मस्तिष्क में जमा होती रहती हैं। अब इतना तो आपको पता ही होगा कि जब कोई व्यक्ति मर जाता है, तो उसके साथ उसका मस्तिष्क भी मर जाता है। वह उसी शरीर के साथ जला दिया जाता है अथवा मिटटी में दफना दिया जाता है। फिर यह कैसे सम्भव है कि किसी एक के शरीर के दिमाग की कोई जानकारी दूसरे शरीर में चली जाए? अर्थात एक मोटी बुद्धि के अनुसार ऐसा होना असम्भव है। यानी की जब एक दिमाग की सूचना दूसरे दिमाग में जा ही नहीं सकती तो फिर कोई व्यक्ति किसी दूसरे शरीर के जीवन से सम्बंधित बातें कैसे जान सकता है? इससे यह साफ जाहिर है कि पुनर्जन्म जैसी परिघटना समभव ही नहीं है।
लेकिन इसके बावजूद समय समय पर हमारे देश में अक्सर ऐसा सुनने में आता रहता है। अक्सर लोग कहते हैं कि फलां जगह पर एक लडका पैदा हुआ है, जो अपने पिछले जन्म की सारी बातें एकदम सही सही बता देता है। लेकिन इस तरह के सभी केसों में एक बात यह देखने में आई कि ऐसा दावा करने वाले व्यक्ति सभी लोग पुनर्जन्म के रूप में जिस स्थान का दावा करते हैं, वह उनके आस पास का ही होता है, उनकी ही बोली बोलने वाले लोगों का होता है और वे लोग उसी धर्म के मानने वाले होते हैं। कभी ऐसा नहीं सुनने में आया कि पुनर्जन्म का दावा करने वाले किसी व्यक्ति ने अपने पूर्व जन्म के बारे में यह बताया हो कि वह पहले अमरीका में पैदा हुआ था, अंग्रेजी बोलता था और उसके पिता अमरीका के राष्ट्रपति थे। क्या यह संयोग अपने आप में तमाम सवाल नहीं पैदा करता?
पुनर्जन्म के तमाम दावों का परीक्षण करने पर यह पता चलता है कि वे सभी फर्जी केस थे और सस्ती लोकप्रियता हासिल करने के लिए इस तरह की हरकत कर रहे थे। ऐसा मेरा कहना नहीं है, यह दावा है अल्बैर टी कोवूर, देश भर में फैली ज्ञान विज्ञान समितियों और ब्लॉग जगत के सक्रिय ब्लॉगर श्री प्रकाश गोविंद जी का, जिन्होंने ऐसे तमाम केसों का विश्लेषण करने के बाद यह प्रमाणित किया है।
तो अब आप बताइए, क्या सोचते हैं आप पुनर्जन्म के बारे में? और हाँ, चलते चलते एक सवाल दिमाग में गूँज रहा है कि क्या आपने किसी ऐसी घटना के बारे में सुना है जिसमें किसी व्यक्ति ने दावा किया हो कि वह पूर्व जन्म में बंदर, गधा, कुता अथवा सुअर रहा हो? आखिर आत्मा तो उनमें भी होती है भाई। और उनकी आत्मा भी कभी न कभी 84 लाख योनियों में भटकते हुए मनुष्य के शरीर में तो आती ही होगी?
सबसे पहले हम इस बात पर विचार करते हैं कि मनुष्य क्या है? लोग जवाब देते हैं कि मनुष्य एक माटी का पुतला है। उस पुतले में जब कोई आत्मा प्रवेश करती है, तो वह सजीव हो उठता है और जब आत्मा विदा हो जाती है, तो वह मृत हो जाता है।
अब आप तो जानते ही हैं कि मेरा नाम रजनीश है। अब इसका मतलब यह हुआ कि मेरे भीतर इस वक्त जो आत्मा है, वह पहले किसी राकेश, सुरेश सा प्रकाश के शरीर में रही होगी। या हो सकता है कि किसी गधे, शेर अथवा हाथी के शरीर में। यानी की यह आत्मा इस समय मेरे शरीर में अस्थायी तौर पर निवास कर रही है। यहाँ पर मुख्य सवाल यह कि मैं क्या हूँ? क्या मैं आत्मा हूँ? या फिर मैं शरीर हूँ? जाहिर सी बात है मेरी पहचान मेरे शरीर से ही है, इसलिए मैं का मतलब मेरा शरीर भर है। अब मान लीजिए मेरा देहान्त हो जाता है। इसका मतलब यह हुआ कि मेरा शरीर मर गया। क्योंकि आत्मा कभी मरती नहीं, वह अजर अमर है। मान लेते हैं कि मेरे मर जाने के बाद आत्मा जिस शरीर में प्रवेश पाती है, उस शरीर के माँ-बाप उसका नाम राजेश रखते हैं। तो अब यह बताइए कि क्या राजेश के रूप में वह रजनीश का पुनर्जन्म होगा?
यदि ऐसा है तब तो फिर प्रत्येक व्यक्ति किसी न किसी का पुनर्जन्म होता है। लेकिन अगर ऐसा होता, तब तो हर व्यक्ति अपने पिछले जन्म के बारे में दावा करता घूमता। जबकि ऐसा नहीं होता है। ऐसा दावा कभी साल दो साल में कहीं एक व्यक्ति कर देता है। अब आप ही सोचिए कि राजेश नामक व्यक्ति पुनर्जन्म का जो दावा कर रहा है, तो यह कैसे सम्भव है? वह तो पहले राजेश था ही नहीं, वह तो पिछले जन्म में रजनीश था। फिर रजनीश की बातें बताकर राजेश साबित क्या करना चाहता है?
इससे पहले कि आप पुनर्जन्म पर कोई फतवा दें, एक बात और। क्या आपको पता है कि आप कोई काम कैसे करते हैं? आप कहेंगे कि यह भी कोई पूछने की बात है? मैं अपने सारे काम अपने हाथ से करता हूँ। अच्छा आप चलते कैसे हैं? आप कहेंगे कि भई मैं अपने पैरों से चलता हूँ। एक मिनट, आप गुस्सा न हों बस इतना और बता दें कि आप देखते कैसे हैं? आप कहेंगे पूरे बुडबक हो क्या? अरे भई मैं अपनी आँखों से देखता हूँ और कैसे देखूंगा?
मैंने ठीक कहा न? यानी की आप अपने जीवन का प्रत्येक काम अपने शरीर के अंगों से करते हैं चाहे वह चलना हो, खाना हो, पीना हो, देखना हो अथवा मल त्याग करना। इन तमाम कामों में आपकी आत्मा का कोई हस्तक्षेप अथवा योगदान नहीं होता है। तो इतना और मान लीजिए कि जिस प्रकार आप अपने शरीर के अंगों द्वारा खाते-पीते और दैनिक कर्म करते हैं, उसी प्रकार अपनी जिंदगी की तमाम बातों को याद रखने का काम भी अपने शरीर के एक महत्वपूर्ण अंग दिमाग के द्वारा करते हैं। आपको पता ही होगा कि जो चीजें हम बार-बार देखते, सुनते अथवा पढते हैं, वह एक सूचना के रूप में हमारे अवचेतन मस्तिष्क में जमा हो जाती हैं और इस प्रकार हमारी स्मृति अथवा याददाश्त का निर्माण होता है।
यानी कि मैं क्या हूँ, मेरे माँ बाप कौन हैं, मेरी जाति क्या है जैसी असंख्य सूचनाएं मेरे शरीर के एक अंग मस्तिष्क में जमा होती रहती हैं। अब इतना तो आपको पता ही होगा कि जब कोई व्यक्ति मर जाता है, तो उसके साथ उसका मस्तिष्क भी मर जाता है। वह उसी शरीर के साथ जला दिया जाता है अथवा मिटटी में दफना दिया जाता है। फिर यह कैसे सम्भव है कि किसी एक के शरीर के दिमाग की कोई जानकारी दूसरे शरीर में चली जाए? अर्थात एक मोटी बुद्धि के अनुसार ऐसा होना असम्भव है। यानी की जब एक दिमाग की सूचना दूसरे दिमाग में जा ही नहीं सकती तो फिर कोई व्यक्ति किसी दूसरे शरीर के जीवन से सम्बंधित बातें कैसे जान सकता है? इससे यह साफ जाहिर है कि पुनर्जन्म जैसी परिघटना समभव ही नहीं है।
लेकिन इसके बावजूद समय समय पर हमारे देश में अक्सर ऐसा सुनने में आता रहता है। अक्सर लोग कहते हैं कि फलां जगह पर एक लडका पैदा हुआ है, जो अपने पिछले जन्म की सारी बातें एकदम सही सही बता देता है। लेकिन इस तरह के सभी केसों में एक बात यह देखने में आई कि ऐसा दावा करने वाले व्यक्ति सभी लोग पुनर्जन्म के रूप में जिस स्थान का दावा करते हैं, वह उनके आस पास का ही होता है, उनकी ही बोली बोलने वाले लोगों का होता है और वे लोग उसी धर्म के मानने वाले होते हैं। कभी ऐसा नहीं सुनने में आया कि पुनर्जन्म का दावा करने वाले किसी व्यक्ति ने अपने पूर्व जन्म के बारे में यह बताया हो कि वह पहले अमरीका में पैदा हुआ था, अंग्रेजी बोलता था और उसके पिता अमरीका के राष्ट्रपति थे। क्या यह संयोग अपने आप में तमाम सवाल नहीं पैदा करता?
पुनर्जन्म के तमाम दावों का परीक्षण करने पर यह पता चलता है कि वे सभी फर्जी केस थे और सस्ती लोकप्रियता हासिल करने के लिए इस तरह की हरकत कर रहे थे। ऐसा मेरा कहना नहीं है, यह दावा है अल्बैर टी कोवूर, देश भर में फैली ज्ञान विज्ञान समितियों और ब्लॉग जगत के सक्रिय ब्लॉगर श्री प्रकाश गोविंद जी का, जिन्होंने ऐसे तमाम केसों का विश्लेषण करने के बाद यह प्रमाणित किया है।
तो अब आप बताइए, क्या सोचते हैं आप पुनर्जन्म के बारे में? और हाँ, चलते चलते एक सवाल दिमाग में गूँज रहा है कि क्या आपने किसी ऐसी घटना के बारे में सुना है जिसमें किसी व्यक्ति ने दावा किया हो कि वह पूर्व जन्म में बंदर, गधा, कुता अथवा सुअर रहा हो? आखिर आत्मा तो उनमें भी होती है भाई। और उनकी आत्मा भी कभी न कभी 84 लाख योनियों में भटकते हुए मनुष्य के शरीर में तो आती ही होगी?
अन्धविश्वासो को नकारती वैज्ञानिक सोच लिये हुए बेहतरीन आलेख.
जवाब देंहटाएंपुनर्जन्म का दावा भी लोकप्रियता (आज के सन्दर्भ मे TRP के लिये) के लिये ही है.
विषय का निर्वाह बड़े हल्के फुल्के तरीके से किया गया है जबकि इस विषय का गंभीर विवेचन ही अपेक्षित था ! मगर आम पाठकों के लिए संभवतः यही स्टाईल ज्यादा ग्राह्य हो ! हिन्दू चिंतन में पूर्वजन्म की अच्छी खासी दखल है -बुद्ध अनीश्वरवादी होने के बावजूद पुनर्जन्म की सम्भावना से इनकार नहीं कर पाए ! पर चूंकि अभी तक यह अवधारणा वैज्ञानिक पद्धति पर असंदिग्ध रूप से खरी नहीं उतर सकी है इसलिए मैं भी इसे स्वीकार नहीं कर पाता ! ऋषी चार्वाक का ही समर्थन करता हूँ जिन्होंने पुरजोर तरीके से पुनर्जन्म की मान्यता को नकारा था -भ्स्माविभूतस्य शरीरस्य पुनरागमनं कुतः ? जब देह भस्माभूत हो ही गयी तो फिर कैसा पुनर्जन्म ?
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंआप सही कहते हैं, जिस प्रकार के पुनर्जन्म की बात की गई है वह संभव नहीं है। छान्दोग्य उपनिषद में एक स्थान पर संतान को ही पुनर्जन्म कहा गया है। अन्य किसी प्रकार का पुनर्जन्म संभव नहीं है।
जवाब देंहटाएंयोनियों में आत्मा का भटकना भी जैविक विकास से संबद्ध रूपक है जिस की विचित्र अविश्वसनीय व्याख्याएं की गई हैं। गीता में आत्मा के लिए शरीरिणः शब्द का प्रयोग है। जिस का एक अर्थ शरीर जिस पदार्थ से बना है उस के मूल कण हैं। पदार्थ के मूल कण ही आत्मा हैं वे ही एक निश्चित संयोग से जीवित शरीर का निर्माण करते हैं। लाखों योनियों में भटकने के उपरांत मनुष्य जीवन प्राप्त करना वास्तव में पदार्थ में जीवनोत्पत्ति के उपरांत जैविक विकास और उस के सर्वाधिक विकसित रूप ग्रहण करने की यात्रा को इंगित करता है। "पदार्थ (आत्मा) को प्रथम जीव का रूप ग्रहण करने के उपरांत मनुष्य रूप तक विकसित होने में लाखों योनियों के रूप से गुजरना पड़ा है, यह सही है।"
ना तो पुनर्जन्म का अस्तित्व साबित किया जा सकता है और ना ही अनस्तित्व.
जवाब देंहटाएंमैं स्वयं संशयवादी हूं, सिर्फ़ उसी को तथ्य मानता हूं जो वैज्ञानिक पद्धति से दर्शाया जा सके.
मुद्दा सही उठाया है, पर अफ़सोस है कि आपके तर्क ज्यादा प्रभावित नहीं करते. हिंदू दर्शन में इनकी आसानी से काट उपलब्ध है.
अंधविश्वास पर कम पढे-लिखे या अनपढ लोगो का ही एकाधिकार नही है,यंहा एक कलेक्टर हुये हैं जिनकी पत्नी ने पुनर्जन्म का दावा किया था।इसे छोटे-मोटे नही बडे-बडे अख़बारो और बडे-बडे न्यूज़ चैनल ने भी दिखाया था।
जवाब देंहटाएंरजनीश जी,
जवाब देंहटाएंक्षमासहित कहना चाहूंगा कि पोस्ट ने प्रभावित नहीं किया। एक तो ठोस वैज्ञानिक आधार पर ये निष्कर्ष नहीं निकाला गया है दूसरे, आपने पुनर्जन्म की बात की तो past life therapy का जिक्र भी आवश्यक हो जाता है जो psychologist अपनाते हैं (ये गलत है तो कैसे गलत है?)
आपने लिखा: जाहिर सी बात है मेरी पहचान मेरे शरीर से ही है, इसलिए मैं का मतलब मेरा शरीर भर है।
गौर करें: मैं और शरीर दोनों अलग चीज हैं। देखें एक विक्षिप्त/पागल को, वो नहीं बता पाता कि वो कौन है? उसके पास कोई मैं नहीं है, पर ध्यान दें, उसके पास शरीर है। अतः मैं शरीर कैसे हो सकता है?
आपने लिखा: पुनर्जन्म के तमाम दावों का परीक्षण करने पर यह पता चलता है कि वे सभी फर्जी केस थे और सस्ती लोकप्रियता हासिल करने के लिए इस तरह की हरकत कर रहे थे।
गौर करें: ये तर्क बेहद कमजोर है और वैज्ञानिक सोच के विपरीत भी। ये तो यही बात हुई कि अगर किसी से पूछें दो और दो का जोड़ कितना हुआ? और वो उत्तर दे उन्नीस, इससे आप ये निष्कर्श निकालें कि गणित एक गलत विषय है क्योंकि दो और दो उन्नीस नहीं होते। किन्ही एक दो की गणना गलत हो सकती है पर पूरे विषय को ही गलत कह देना उचित नहीं है। अगर हम unbiased scientific approach करें इस समस्या पर तो ये बिन्दु उभरकर सामने आते हैं-
१. sample size कितने लोगों का अध्ययन किया गया?
२. method of study, क्या जो कदम उठाया गया वे right set of experiments थे? यह बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। मान लीजिये आप कान से फूल देखने की कोशिश करते हैं। अब फूल देखने के लिये तो आंख चाहिये, कान नहीं इसलिये आप फूल नहीं देख पायेंगे और फ़िर ये निष्कर्ष निकालेंगे कि फूल होता ही नहीं क्योंकि फूल के तमाम दावों के बावजूद वो नहीं दिखा। सारे फ़र्जी केस थे!! इसलिये पुनः कहता हूं,right set of experiments बेहद जरूरी हैं।
३. what is the control in your experiment? ध्यान दें, कंट्रोल के बिना विज्ञान में किसी प्रयोग का कोई भी मतलब नह्जीं होता।
४. आपने लिखा: चलते चलते एक सवाल दिमाग में गूँज रहा है कि क्या आपने किसी ऐसी घटना के बारे में सुना है जिसमें किसी व्यक्ति ने दावा किया हो कि वह पूर्व जन्म में बंदर, गधा, कुता अथवा सुअर रहा हो?
गौर करें: ऐसे दावे भी किये गये हैं (सही, गलत होना बाद की बात है)कृपया literature देखें। महावीर जैन धर्म के तीर्थंकर थे उन्होने इस दिशा में सबसे ज्यादा कहा है।
रजनीश भाई कहने या मानने से कुछ नही होता, अंधविशवास मैभी नही करता, लेकिन जो लेख आप ने लिखा पुर्व्जनम पर लिखा , क्या इसे सिर्फ़ हिन्दू ही मानते है? अरे भाई अगर आप नही मानते तो आप के यहां मरने पर किस लिये दफ़नाते है? वो कयामत कया है? ... हिन्दुयो से ज्यादा अन्ध विशवासआप के धर्म मै है, पहले उसे सुधारो फ़िर दुसरी तरफ़ सुधारने का ठेका लो. इस लिये आप ऎसी बाते ज्यादा मत लिखे, विग्याण क्या है उसे वेसा ही रहने दे.. ओर धर्म की बातो मै मत उलझे,
जवाब देंहटाएंमेरी टिपण्णी आप को कडबी जरुर लगेगी, लेकिन मै आप को समझा रहा हु , अपना समझ कर क्योकि ब्लांग जगत मै ऎसी बातो से हमे ही झगडा हुआ है, इस लिये ऎसी बातो को बार बार मत उछालो, मुसलिम ओर बाकी को मिल कर रहने दो, वो ग्याण किस काम का जिस से लोगो के मन मै दुशमनी पेदा हो.
ओर अगर लिखना ही है तो सब से पहले अपने समाज की बुराईयो के बारे लिखॊ...उसे सुधारो फ़िर हम मानते है आप को.धन्यवाद
पुनर्जन्म की कहानी तो हमने भी बहुत सुनी पर सच कुछ यकीन नही होता ..कही कही सब बेकार की बातें लगती है.
जवाब देंहटाएंआपका यह पोस्ट बहुत ही बढ़िया है जो एक वैज्ञानिक सोच पैदा करता है इस अंधविश्वास की कहानी पर..
धन्यवाद
"आप अपने जीवन का प्रत्येक काम अपने शरीर के अंगों से करते हैं चाहे वह चलना हो, खाना हो, पीना हो, देखना हो अथवा मल त्याग करना। इन तमाम कामों में आपकी आत्मा का कोई हस्तक्षेप अथवा योगदान नहीं होता है।"
जवाब देंहटाएंजाकिर जी, किसी आत्माहीन अर्थात मृ्तक व्यक्ति के द्वारा ये समस्त शारीरिक क्रियाएँ यदि आप करवा सकें तो मैं आज ही आपका शिष्यत्व स्वीकार करने को तैयार हूँ:))
बिल्कुल ईमानदारी से कहना चाहूँगा कि मुझे तो आपका ये आलेख एक बचकाने प्रयास से अधिक नहीं लगा.....
आप जो अपने हरेक लेख में अल्बैर टी कोवूर नाम के जिस शख्स का जिक्र करते रहते हैं---बताईये क्या वो कोई भगवान है? या फिर कोई महान वैज्ञानिक है? क्या वो इस दुनिया के समस्त ज्ञात-अज्ञात विषयों का जानकार है? क्या ईश्वर ने उसे कोई दूत अथवा पैगम्बर बना कर भेजा है कि वो संसार से अज्ञान को मिटाकर ज्ञान का प्रकाश फैला सके?
जाकिर जी, किसी के विचारों से प्रभावित होना एक अलग बात है, लेकिन ये नहीं कि हम अपनी स्वयं की सोच को खत्म करके उसी की बुद्धि से सोचने का काम लेने लगे.......आप अंध श्रद्धा उन्मूलन की बात करते हैं,मैं तो कहता हूँ कि आप खुद सबसे बडे अंधभक्त हैं अल्बैर टी कूवर के। समाज से अन्धश्रद्धा का उन्मूलन करने की बजाय आपको सबसे पहले खुद की अन्धश्रद्धा का उन्मूलन करना होगा.....
(अभी थोडा समय कम है,इसलिए टिप्पणी अधूरी छोड कर जा रहा हूँ)
बहुत रोचक तरीके से आपने इस विषय को लिखा है .सच झूठ का तो समझ नहीं आता ..पर यह जानने की उत्सुकता हमेशा बनी रहती है की आखिर मरने के बाद इंसान के अन्दर जो आत्मा कही जाती है वह कहाँ जाती है ..अब गीता में तो यही पढ़ा है
जवाब देंहटाएंबहुत बेहतरीन लेख है...काफी कुछ साफ़ कर दिया है आपने
जवाब देंहटाएंअगर विज्ञान की बात करें तो आप को भी पता ही होगा कि समस्त जड़ और चेतन का निर्माण ' पदार्थ ' से हुआ है , जो कि कभी ख़त्म नहीं होता सिर्फ रूपांतरित होता है ऐसे में आप ये दावा कैसे कह सकते हैं कि मृत शरीर के ' पदार्थ ' से एक दूसरे शरीर का पुनर्निमाण संभव नहीं है |
जवाब देंहटाएंबाकि आपके तर्क अभी भोथरे ही हैं |
पंडित जी की बात से पूर्णतया सहमत
""आप अपने जीवन का प्रत्येक काम अपने शरीर के अंगों से करते हैं चाहे वह चलना हो, खाना हो, पीना हो, देखना हो अथवा मल त्याग करना। इन तमाम कामों में आपकी आत्मा का कोई हस्तक्षेप अथवा योगदान नहीं होता है।"
|| " सत्यमेव जयते " ||
:) :( :P :D :$ ;)
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंJakir jee aapne ye to padha hoga ki energy hamesha constant rehatee hai chahe uska form badalta rahe isee adhar par punarjanm ko aap explain kar sakte hain jarooree nahee ki aap wapis manushy hee hon aap bijali panee hawa ped paudha janwar kuch bhee ho sakte hain ya wapas us sampoorn shakti ka hissa ban sakte hain. aisee meri astha hai.
जवाब देंहटाएंयदी आत्मा नही है तो कब्रों में पडे हड्डियों के ढाँचे भी कयामत आने पर पुनर्जीवीत होने का इंतजार ना करे। एक अवैज्ञानिक , कुतर्क युक्त , विद्वेशपुर्ण ,घटिया लेख।
जवाब देंहटाएंGhost Buster ji,
जवाब देंहटाएंPresence of something can be proved, Absence of something need not be proved. :)
Like, we prove that air is present. We do not prove that vacuum is present, rather we prove where there is nothing, we call it vacuum.
Am i right?
कोई बात नहीं, एक न एक दिन तो सबको मरना ही है। पता लग ही जायेगा, तो आ कर बता देना अगर सम्भव हो। वैसे अगर किसी दिन इंसान अगर मृत्यु पर विजय पा सका तो इस तरह से सारे तर्क जो पुनर्जन्म की बातों में यकीन रखते हैं, चुप हो जायेंगे।
जवाब देंहटाएंA Question to believers
मैने बहुत सुना है, कि आत्मा ना पैदा होती है, और ना मरती है। सही?
अगर हां, तो the total number of souls (consisting of all species of the world) in 1900 should be same as in year 2000.
परन्तु ये सब जानते हैं कि इंसानों कि जनसंख्या तेज़ी से बढ़ रही है। इसका मतलब, बाकी जीव जन्तुओं की संख्या घटनी चाहिये? या फिर हर रोज़ इश्वर नई नई आत्मायें पैदा कर रहे होगें?
जब कि मुझे नहीं लगता कि दोनो ही cases सही हैं !! तो फिर सच्चाई है क्या?
पंडित वत्स जी,
आप तो गुस्सा हो रहे हो, उन्होंने यहां इस लिये पोस्ट किया था, कि इस पर बहस हो सके, कि आखिर लोग कैसे दावा करते हैं पुनर्जन्म का।
प्रकाश गोविन्द जी,
आपका नाम देख कर अच्छा लगा, कि किसी ने तो इस पर रिसर्च कर के किसी बेस पर कुछ बोला है। वरना मेरे जैसे बहुत से लोग, सिर्फ़ अपनी सोच समझ के अनुसार ही बोलते हैं। बिना किसी data, information and figures के।
Keep this discussion alive !! I really lyk discussing on such topics
प्रिय योगेश जी शास्त्र भी उठा कर देख लीजिए
हटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंवtत ज्ी से सहमत हूँ । अमरत्व की अवधारना भी हिन्गुत्व की है जिसे वैग्यानिक सिद्ध करने जा रहे हैं तो जब इस पर खोज होगी तब ये भी सिद्ध हो जायेगी जब इस पर अभी कोई काम ही नहीं हुया तो नकारा भी नहीं जा सकता आपका आलेख भी अधिक प्रभावित नहीं कर सका किसी एक बाहर के आदमी के कहने से कैसे मान लें जब कि उनसे भी बडे दृ्श्टा योगी बहुत कुछ कह गये ह। धन्यवाद अन्यथा ना लें इसे अभार्
जवाब देंहटाएंज़ाकिर साहब ज़रा इस्लाम के कयामत वाले कंसेप्ट की भी वैज्ञानिक समीक्षा करें तो रंग जमे.
जवाब देंहटाएंवैज्ञानिक तौर पर तो अभी ईश्वर की भी व्याख्या भी नही हो पाई है तो क्या आप ईश्वर( अल्लाह, God) के अस्तित्व को भी नकारते है ज़ाकिर ?
जवाब देंहटाएंनहले पे दहला
हटाएंबहुत बढ़िया लिखा है आपने! आपकी लेखनी को सलाम! पुनर्जन्म की बात मैंने बहुत सुनी हैं पर इस बात पर विश्वास नहीं होता ! विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनायें!
जवाब देंहटाएंअब आते हैं अन्य टिप्पणियों पर। अरविंद जी, आपका कहना सही है, इस पोस्ट को जानबूझकर हल्के फुल्के ढंग से प्रस्तुत किया गया है। क्योंकि मेरा मानना है कि आम आदमी तक अपनी बात पहुंचाने का यही सबसे उचित तरीका है।
जवाब देंहटाएंराकेश कोशी जी, आपके लिए सिर्फ इतना ही कहना चाहूंगा कि आप शायद पहली बार “तस्लीम” पर आए है, इसकी पिछली दो चार पोस्टों का पढ लें, आपको समझ में आ जाएगा कि इस पोस्ट का उददेश्य क्या है।
अनिल पुसदकर जी, आपकी बात सही है, अंधविश्वास गरीबों या वंचितों की बपौती नहीं रहा, वह आज धनिकों में ज्यादा पाया जाता है।
रविकांत पाण्डेय जी, यहां पर सामान्य एवं स्वस्थ व्यक्ति की बात की जा रही है, पागलों की नहीं। रही बात आंकणों की तो आप ही एक भी ऐसे व्यक्ति का उदाहरण दें, जहां पर यह प्रमाणित हो कि वह पुनर्जन्म का सटीक केस है। सिर्फ किताबों का हवाला देकर किसी बात को सही नहीं कहा जा सकता।
पंडित वस्त जी, आप मुददे की बात करें, तो मुझे प्रसन्नता होगी। आपकी जानकारी के लिए मैं बताना चाहूंगा कि मैं कोवूर की विचारधारा का समर्थक हूं, क्योंकि मुझे ये बातें तर्कपूर्ण लगती हैं। आप अपनी बात तर्कपूर्ण ढंग से प्रमाणित कर दीजिए, मैं आपका भी समर्थक हो जाउंगा।
रंजना जी, आत्मा के विषय में अभी खोज जारी है, इसलिए जब तक वह प्रमाणित नहीं हो जाता, उस बारे में कुछ भी दावे के साथ कहना सम्भव नहीं है।
केएसपी जी, कयामत का विचार भी एक धार्मिक परिकल्पना है, जो अन्य तमाम धार्मिक विचारों की तरह कतई प्रमाणिक नहीं है, लेकिन इससे उस विषय का क्या लेना देना? एक बार मैं आप सबसे पुन कहना चाहूंगा कि हम यहां पर धार्मिक विश्वासों की सत्यता परखने नहीं बैठे हैं, हम उन मुददों और अंधविश्वासों की बात करते हैं जो हमारे समाज को कहीं न कहीं प्रभावित करती हैं। इसलिए आप सबसे निवेदन है कि विषय को भटकाएं नहीं और मुददो पर आधारित बात करें।
और अंत में योगेश भाई। प्रकाश गोविन्द जी तो कभी कभी अन्तर्धान हो जाते हैं, पर आप हमेशा सत्य के संधान में हमारे साथ रहते हैं, यह देख कर सुकून होता है। आभार।
बढ़िया श्रीमान जी,
जवाब देंहटाएंयहां संवाद-प्रतिवाद देखने को मिलता रहता है, अच्छा लगता है।
लोकप्रिय मामलों में ऐसा होता ही है। आखिर अधिकतर लोग अपने सामान्य सूचनापरक ज्ञान के ही आधार पर ही, उपलब्ध हो पाए ज्ञान के आधार पर ही जीवन के भवसागर में उतरे हुए हैं।
बाकी सब तो है जैसा ही है।
आपकी लिखी एक बात ने चौंकाया। ‘आत्मा की खोज अभी जारी है।’
क्या खूब!
समस्या यहीं से तो शुरू होती है, और वहीं आप संशय छोड़ देते हैं।
अगर आत्मा की खोज अभी जारी है, यानि कि आत्मा के बारे में अभी कुछ खास नहीं कहा जा सकता। आत्मा की उपस्थिति के विचार का ही विस्तार हैं ये सभी मामले, जो आपस में गुंथे हुए हैं।
आत्मा का विचार सबसे प्राचीन है, आदिमकालीन। इसी से हर भौतिक वस्तुओं में आत्मा, देवत्वरोपण, ईश्वर, परमआत्मा आदि-आदि की संकल्पनाएं पैदा हुईं। पुनर्जन्म की अवधारणा का अविष्कार तो इनके सापेक्ष काफ़ी आधुनिक है। हमारे यहां वेदों के समय तक यह पैदा नहीं हुई थी।
अगर आप ऐतिहासिक पृष्ठभूमि के साथ इसे देखेंगे तब पता पड़ेगा कि इस अवधारणा की उत्पत्ति, लगभग राज्यों और उनके शोषण की उत्पत्ति के साथ-साथ हुई।
यदि आत्मा है, तो ईश्वर है, चेतना से पदार्थ की उत्पत्ति है, भूत-प्रेत हैं, जादू-चमत्कार हैं, पुनर्जन्म है, सारी भूल-भुलैयाएं हैं।
इसलिए आत्मा के प्रश्न से जूझना सबसे प्राथमिक है। आप आत्मा के अस्तित्व के सवाल को स्थगित रखकर या अभी संदेह में रखकर, बाकी की बातों के लिए तर्कों के जरिए पुरजोर लड़ाई नहीं लड़ सकते।
विज्ञान की उत्पत्ति के समय ही सर्वप्रथम उसकी उर्जा इन्हीं सब के अस्तित्व को टटोलने में ज्यादा खर्च हुई थी, इसे ऐसे भी कह सकते है पदार्थ और चेतना के संबंधों को समझने के इन प्रयासों से ही विज्ञान की उत्पत्ति हुई थी।
असल विज्ञान जितनी उर्जा खर्च कर सकता था, कर ली गई, और अब उसके पास इन फ़ालतू की चीज़ों के लिए समय नहीं है। अब केवल सूडोसाईंस की कुछ धाराएं ही इस सब पर अभी भी साधनों और उर्जा का अपव्यय करने में लगी हुई हैं, और यह यथास्थिति बनाए रखने की, आम जनमानस को उलझाए रखने की कवायदें वर्तमान व्यवस्था के हितों के अनुकूल हैं, अतः वह इन्हें प्रश्रय और प्रचार उपलब्ध कराता रहता है।
सारी स्थिति विज्ञान और अद्यतन दर्शन के सामने बिल्कुल साफ़ है, यह बात अलग है कि वह आपकी कितनी पहुंच में हैं।
आप पंडित वत्स जी और उन्हीं के जैसे और महानुभावों से संवाद-प्रतिवाद कीजिए, समय का संवाद तो आपसे है।
शुक्रिया।
जाकिर भाई बात अंतर्ध्यान होने की नहीं है ! लेकिन यहाँ हमेशा ऐसे मुद्दों पर बातें करते हुए निराशा होती है ! कुछ लोग यहाँ हैं जो आपकी किसी भी बात का जवाब नहीं देंगे ..... आपके किसी तर्क को नहीं सुनेंगे ... बस हवा में लाठी घुमाने लगेंगे !
जवाब देंहटाएंआपने तो अपने मेल में देखा ही होगा कि मैंने बहुत ही विस्तृत प्रतिक्रिया दी थी, लेकिन थोड़े ही समय बाद मैंने उसे डिलीट कर दिया ! आप ही बताईये कि उस प्रतिक्रिया से क्या होता ? सिवाय आपस में कटुता और वैमनस्य बढ़ने के ! जब परस्पर 'मैच्योर' लोग सार्थक संवाद करें तभी बात बनती है ! यह नहीं कि आपने कोई तर्कपूर्ण विचार सामने रखे ....और हम छूटते ही बोल दें कि तुम उल्लू हो ...तुम लल्लू हो या बचकाना लिखते हो !
कहते हैं कि जो तर्क कर न सके वो गुलाम है / जो तर्क सुने ही नहीं वो कट्टर है ! यहाँ कुछ लोग गुलाम और कट्टर दोनों ही हैं !
और इस बार तो जिस तरह बात को खतरनाक तरह से दूसरी एंगल की तरफ "डायवर्ट" किया गया वो बेहद अफसोसनाक है !
अरे प्रभु !! अगर पुनर्जन्म होता है तो सम्पूर्ण मानवजाति का होता होगा ! यहाँ पर मजहब कहाँ से आ गया ???
आपको बात हलकी या मजाक की लग सकती है लेकिन मेरी निगाह में अत्यंत संगीन मामला है ! कल को मेरे ऊपर भी आरोप लगाया जा सकता है कि बाहरी मुल्कों का एजेंट हूँ मैं ...बाहर से पैसा मिलता है !
खैर चैप्टर क्लोज करिए !
आप भी जाकिर भाई कहाँ चक्कर में पड़े हैं !
तुकबंदी या नौटंकी वगैरह लिखिए .... वही ठीक है !
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जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंमैं पहले भी आप लोगों के आग्रह कर चुका हूं कि विषय पर बात करें, मुददे को धार्मिक रंग देने का कुत्सित प्रयास न करें। ऐसी टिप्पणियों को प्रकाशित नहीं किया जाएगा।
जवाब देंहटाएंवत्स जी, आप इतने अधीर क्यों हो रहे हैं। सिर्फ 10 दिन और प्रतीक्षा करें। कोशिश रहेगी कि उससे पहले ही मैं वह लेख प्रकाशित कर सकूं। और जहां तक अंधविश्वास की बात है मेरी समझ से वे बातें जो तर्क और परीक्षण की कसौटी पर न कसी जा सकें अंधविश्वास है। हमारे समाज में ऐसे तमाम अंधविश्वास प्रचलित हैं। पर जो विश्वास हमारे समाज को सीधे सीधे प्रभावित करते हैं और जिसके दुष्परिणाम हम सबको भुगतने पडते हैं, हमारी कोशिश रहती है कि तस्लीम पर उनकी चर्चा की जाए।
समय जी, "आत्मा" के सम्बंध में मैंने वह बात विज्ञान के नजरिए से कही थी। वैसे आपकी बातें तर्कपूर्ण और प्रभावित करने वाली हैं। आप जैसे लोगों की प्रतिक्रिया देखकर उत्साह बढता है।
गोविंद जी, ऐसे ही कभी-कभी दर्शन देते रहा करें, छोटे भाइयों का हौसला बरकरार रखने के लिए भी यह जरूरी है।
अरविन्द जी से सहमत हलके में निबाह किया गया. मुझे यह अंदाज पसंद नही आया इस बारे में अपने तरीके से लिखूंगी .
जवाब देंहटाएंसमय की टिप्पणी को मेरी टिप्पणी समझा जाये.
आत्मा का विचार सबसे प्राचीन है, आदिमकालीन। इसी से हर भौतिक वस्तुओं में आत्मा, देवत्वरोपण, ईश्वर, परमआत्मा आदि-आदि की संकल्पनाएं पैदा हुईं। पुनर्जन्म की अवधारणा का अविष्कार तो इनके सापेक्ष काफ़ी आधुनिक है। हमारे यहां वेदों के समय तक यह पैदा नहीं हुई थी।
जवाब देंहटाएंअगर आप ऐतिहासिक पृष्ठभूमि के साथ इसे देखेंगे तब पता पड़ेगा कि इस अवधारणा की उत्पत्ति, लगभग राज्यों और उनके शोषण की उत्पत्ति के साथ-साथ हुई।
यदि आत्मा है, तो ईश्वर है, चेतना से पदार्थ की उत्पत्ति है, भूत-प्रेत हैं, जादू-चमत्कार हैं, पुनर्जन्म है, सारी भूल-भुलैयाएं हैं।
इसलिए आत्मा के प्रश्न से जूझना सबसे प्राथमिक है। आप आत्मा के अस्तित्व के सवाल को स्थगित रखकर या अभी संदेह में रखकर, बाकी की बातों के लिए तर्कों के जरिए पुरजोर लड़ाई नहीं लड़ सकते।
विज्ञान की उत्पत्ति के समय ही सर्वप्रथम उसकी उर्जा इन्हीं सब के अस्तित्व को टटोलने में ज्यादा खर्च हुई थी, इसे ऐसे भी कह सकते है पदार्थ और चेतना के संबंधों को समझने के इन प्रयासों से ही विज्ञान की उत्पत्ति हुई थी।
- एक- एक शब्द से सहमत हूँ. और जवाब आपेक्षित है की क्यों विज्ञान के मंच पर आदिमकनिल बातों को सही (मान लिया जाये ) कह कर बात आगे बढ़ाई जा रही है ? अब वक्त है इनपर सीधा प्रहार किया जाए ..न जाने कब भारतीय जनमानष इन बेकार की बातों में उलझा रहेगा.
आदिमकनिल = आदिमकालीन
जवाब देंहटाएंगीता में श्री कृष्ण ने कहा है-
जवाब देंहटाएंनैनं छिदंति शस्त्राणि,नैनं दहति पावकः ,
न चैनं क्लेदयांत्यापोह,न शोशियती मारुतः ......................
यानि आत्मा अमर है।
तो प्रश्न उठता है कि इन आत्माओं का स्वरुप क्या होता है, क्या यह फिर किसी नए शरीर में आती है, कर्म का हिसाब चुकाने के लिए क्या आत्मा नए-नए रूपों में जन्म लेती रहती है? हाँ- तो यही है पुनर्जन्म!
जितने लोग उतने विचार...
सामान्य धरातल पर मुझे विश्वास है, आत्मा नए शारीरिक परिधान में पुनः हमारे बीच आती है। अगर सतयुग, द्वापरयुग सत्य है तो यह भी सत्य है कि आत्मा का नाश नही, वह जन्म लेती है। राम ने कृष्ण के रूप में, कौशल्या ने यशोदा, कैकेयी ने देवकी, सीता ने राधा के रूप में क्रमशः जन्म लिया...कहानी यही दर्शाती है, तो इन तथ्यों के
आधार पर मेरा भी विश्वास इसी में है।
@समय के तात्विक विवेचन पर लवली की मुहर और फिर मेरी भी ! वास्तव में आत्मा ,पुनर्जन्म अज्ञानता के शब्दकोश के शब्द हैं !
जवाब देंहटाएं@समय,
जवाब देंहटाएंमुझे आपका अन्दाज़ पसन्द आया। बिल्कुल सटीक और सही उत्तर दिया आपने।
एक एक शब्द काफी प्रभावशाली, और जानकारी से सम्पूर्ण था, जैसे कि हमारे विज्ञान की पैदाइश कैसे हुई। और आत्मा का जन्म कब और कैसे हुआ
बहुत खूब भाई,
समय,
जवाब देंहटाएंमुझे आपका जवाब बहुत पसन्द आया। बिल्कुल सही, सटीक और जानकारी से भरा हुआ उत्तर
हर शब्द जानकारी से भरपूर !!!
लाजवाब !!
वैसे वो सारे खेल भी इस के साथ खत्म हो जयेंगे, कि आत्मा को बुलाना, और वो सब जो तरह तरह के जादू किये जाते हैं। कुछ लोग दावा करते हैं कि वो आत्मा को बुलाते हैं।
A question to all, I expect there will be a post on this soon as well.
What is telepathy? is it a science or another superstition?
If yes, then it can help students a lot in exams..:)
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंYE CHARCHA ITNI GARMAGARAM HAI KI PADH KAR AANAND AUR GYAAN VARDHAN BHI HO RAHA HAI .......
जवाब देंहटाएंA very scientific article....
जवाब देंहटाएंkeep it up.
jakir ji namsate ,
जवाब देंहटाएंaapko mera dhanyabad .jo aapne mere NGO ko prashnsa kiye,,,
aapka articale padi bahut achhi hai ...
aapke is blog pe nayi nayi jaankaariyan milti hai hame .gyan se bhara hua .ati sundar lekh .
जवाब देंहटाएंयदि ज्ञानार्जन ही उद्देश्य हो तो कसौटी सीमित नहीं करनी चाहिए..तर्क बहुत सीमा तक संतुष्ट कर देते हैं पर ऐसा जान पड़ता है कि तर्क स्वयं में सम्पूर्ण नहीं है,,,एक तर्क की उम्र अगले अच्छे तर्क के आ जाने तक होती है,,,जिस महात्मा बुद्ध के बारे में कहा गया कि उन्होंने आत्मा के अस्तित्व पर सवाल उठाया था उन्होंने ही आनंद से कहा था कि 'जहाँ तर्क है, वहां ज्ञान नहीं है'.. (संभव है मुझसे अर्थान्वयन में चूक हो रही हो.) जातक कथाएँ भी महात्मा बुद्ध की बड़ी लोकप्रिय रहीं हैं..बिना आत्मा जैसी किसी चीज के ये संभव कैसे होगा..महाभारत में योगेश्वर श्रीकृष्ण परम ज्ञानी व तर्कशास्त्र में निपुण माने जाते हैं उन्होंने गीता में आत्मा के अस्तित्व को स्वीकार किया..मै मानता हूँ यह कोई प्रमाण नहीं पर ; एक जिज्ञासु की भांती मै किसी एक मत को पूरी तरह खारिज करने का साहस नहीं जुटा पा रहा हूँ. .ज्ञान का केवल एक आधार 'तर्क' नहीं हो सकता. कुछ एहसासों को आप कैसे तौलेंगे..क्या तर्कों से..दरअसल मुझे लगता है कुछ विषय ऐसे हैं जहाँ आप सिर्फ तर्कों से उत्तर कभी नहीं पा सकते, ना ही अब तक पाया जा सका है. मै स्वयं अज्ञानी हूँ, खोज में ही हूँ....पर मुझे लगता है सहिष्णु होकर सभी संभावनाओं पर विचार करना चाहिए,,,मै जो कहना चाहता हूँ, शायद 'शब्द' काफी नहीं..मै कैसे भूला दूं, मेरे गांव में ही ऐसी घटना हुई थी, एक सायकोलोजी के प्रोफ़ेसर ने उसकी ताकीद की थी. उस ११ साल की बच्ची ने अपना पुराना ठिकाना खोज लिया , अपने बच्चों से मिल आयी, पुराने छप्पर से ५ रुपये का नोट निकाल दिखाया भी....अब वो बड़ी हो चुकी है, उसकी शादी भी हो चुकी है..और हाँ अब उसे कुछ याद नहीं...मै स्वयं उलझन में हूँ, मै कुछ स्थापित नहीं करना चाहता...मुझे जो पता था ईमानदारी से रख दिया है...सच तो मै भी जानना चाहता हूँ,,,किसी पक्ष के भी तर्क मुझे आसानी से पचते नहीं....विज्ञान का विद्यार्थी रहा हूँ, (मान लेता हूँ, महज विद्यार्थी होने से सब कुछ नहीं हो जाता.)..पर आप सभी महानुभावों से एक अनुरोध है....आप शोध करें,,अनुभव लिखें....पर कृपा करके....कोई value-judgement नहीं दें......मुझे जो समझ आया मैंने लिखा है,,,माफ़ करेंगे यदि ठीक ना लगा हो....लिखने के पीछे मंसा आप लोगों से मार्गदर्शन की ही है.....
जवाब देंहटाएंZakirji,
जवाब देंहटाएंaap ne apni samaz se jo samja ya apne shri kovoor ji ki samaz se jo samza wo likh diya. Aap kehta hai ki keval sharir hi hota hai aur aatma kuch nahi hoti hai. sharir hi sab kaam karta hai, jaise khana, chalna, likhna. thik hai.
Mein aapse poochta hoon yadi koi aadmi heart failure ke karan mar jata ya ye kahe ki uske sharir ne kaam karna band kar diya to kya uske sharir mein aapka science heart or mind transplant kar ke use dobara jivit kar sakta hai kyonki sharir hi sab kuch hota hai to phir to parts badal dene par sharir phir se kaam karne lag jana chaaiye. Lekin nahin sirji, aisa nahin hota.
Ye aatma hi hai jo iss sharir ko urjavan banati hai aur chalne ya kuch karne ki shakti deti hai varna to sharir bhi ek machine ki tarah hi hona chaiye, part kharab ho gaya badlo aur chalo kaam par.
jyada advance hona aur baat hai aur dikhana aur baat.
Thank you
मै आपकी बात से पूरी तरह से सहमत नहीं हूं। लेकिन आप सत्य की खोज कर रहे है। तो बहुत सरहनीय है। मेरा मानना है कि यदि पुनर्जन्म नहीं होता तो हमारे अस्तित्व का क्या होता है।
जवाब देंहटाएंGalat baat hai ek ladki Jo america me rahati hai vo kahati hai ki uska janam Gujarat me hua tha uski baat bhi sach nikali uske mutabik vah km si shah parvaar me janmi thi to kya vah ladki Gujarat akar uski jaan kari lake hai hogi lakin usne to kabhi dekha hi nahi tha ab aap bataye
जवाब देंहटाएंऔर आगे चलियें अपनी भौतिकवादी सोच से ,शायद पुनर्जन्म का जवाब मिल जाय |क्वांटम फिजिक्स पढिये ,आइंस्टीन की थ्योरी पढिये |मेरे पास जवाब है ,पर मैं उसका ज्ञान सार्वजानिक नही करना चाहता
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