रक्त का रिश्ता दुनिया का सबसे पवित्र रिश्ता माना जाता है। इन रिश्तों की रक्षा के लिए खून-पसीना बहाने की असंख्य मिसालें हैं। रक्त की महत्त...
रक्त का रिश्ता दुनिया का सबसे पवित्र रिश्ता माना जाता है। इन रिश्तों की रक्षा के लिए खून-पसीना बहाने की असंख्य मिसालें हैं। रक्त की महत्ता इससे भी जाहिर होती है कि प्राचीन काल से खून का बदला खून से लिये जाने की परम्परा चली आ रही है।
ये तो रही कुछ पारम्परिक बातें, अब आते हैं रक्त से जुड़े नये गोरखधन्धे पर। जी हाँ, पिछले दिनों लखनऊ में रक्त में मिलावट का एक गिरोह पकड़ में आया है। पकड़े गये लोग पेशेवर रक्तदाताओं से एक यूनिट खून निकालकर उसमें सामान्य सलाइन (ग्लूकोज) मिला कर तीन यूनिट रक्त बना देते थे। सलाइन शरीर में पानी की कमी होने पर मरीज को चढ़ाया जाता है, जिसमें डिस्टल वॉटर और सोडियम क्लोराइड मिला होता है। सलाइन मिश्रित इस रक्त को ये मिलावटखोर 500 से लेकर 1500 रूपये प्रति यूनिट के हिसाब से बेचकर अपनी जेबें भर रहे थे।
एक यूनिट खून में 350 एमएल की मात्रा होती है। खून में चार कम्पोनेंट होते हैं- प्लाज्मा, प्लेटलेटस, रेड ब्लड सेल्स एवं व्हाइट ब्लड सेल्स। प्लाज्मा खून में थक्का जमाने का काम करता है, प्लेटलेटस से रक्तस्राव को नियंत्रित किया जाता है, रेड ब्लड सेल्स हीमोग्लोबिन को नियंत्रित करता है और व्हाइट ब्लड सेल्स शरीर के सुरक्षा तंत्र को नियंत्रित करती हैं। किसी भी रोगी के शरीर में खून चढ़ाने से पहले सात तरह की जाँच जरूरी होती है। इसमें ब्लड प्रेशर, हीमोग्लोबिन, हेपेटाइटिस बी एवं सी, मलेरिया, वीडीआरएल, एचआईवी एवं ब्लड ग्रुप की जांच शामिल है।
ज्ञातव्य है कि किसी भी व्यक्ति के शरीर में जिस ग्रुप का रक्त होता है, उसे उसी ग्रुप या उसके दाता ग्रुप का रक्त चढ़ाया जाता है। (इस सम्बंध में विस्तृत जानकारी आप यहाँ पढ़ सकते हैं।) यदि गल्ती में किसी व्यक्ति के शरीर में दूसरे ग्रुप का रक्त अथवा जानवर का खून चढ़ा दिया जाए, तो रोगी की तुरन्त मौत हो जाती है। इससे बचने के लिए ही धंधेबाजों ने सलाइन को मिलाने का रास्ता खोजा था। एक यूनिट रक्त में दो यूनिट सलाइन मिलाने के बाद भी यह आसानी से पहचान में नही आता है। केवल विशेषज्ञ डाक्टर ही उसे पहचान सकते हैं।
इसी बात का फायदा उठाकर ये धंधेबाज काफी दिनों से यह मिलावट का कारोबार चला रहे थे। शुरूआती जांच में पता चला है कि इस गोरखधंधे में डाक्टर और नर्स भी बड़े पैमाने पर शामिल रहे हैं, क्योंकि बिना उनकी मिलीभगत के न तो खून के सौदागरों को ब्लड बैग मिल सकते थे और न ही वे अपने इस मकड़जाल को इतने बड़े पैमाने पर फैला सकते थे।
फिलहाल शासन ने जांच के आदेश दे दिये हैं, जिसके पूरा होने में समय लगेगा। देखने वाली बात यह होगी कि इन मिलावटखोरों के खिलाफ कहां तक और कितनी कड़ी कार्यवाही होगी।
गौरतलब बात यह है कि यदि आपके परिवार में कभी भी रक्त की आवश्यकता पड़े तो अच्छा हो कि आप अपने परिचितों अथवा रिश्तेदारों से रक्तदान का आग्रह करके काम चलाएं। यदि फिर भी काम न चले तो प्राइवेट ब्लड बैंक से रक्त लेने से परहेज करें, क्योंकि ज्यादातर मिलावट के मामले वहीं पर सामने आए हैं। इसलिए यदि अपरिहार्य स्थिति हो तो भी सरकारी ब्लड बैंक का ही रूख करें। नहीं तो आपके हाथ रक्त के नाम पर सिर्फ ग्लूकोज ही लगेगा। और नकली रक्त चढ़ाने पर रोगी को और कुछ हो न हो संक्रमण जरूर हो सकता है। ऐसे में रोगी की जान भी जा सकती है।
ये तो रही कुछ पारम्परिक बातें, अब आते हैं रक्त से जुड़े नये गोरखधन्धे पर। जी हाँ, पिछले दिनों लखनऊ में रक्त में मिलावट का एक गिरोह पकड़ में आया है। पकड़े गये लोग पेशेवर रक्तदाताओं से एक यूनिट खून निकालकर उसमें सामान्य सलाइन (ग्लूकोज) मिला कर तीन यूनिट रक्त बना देते थे। सलाइन शरीर में पानी की कमी होने पर मरीज को चढ़ाया जाता है, जिसमें डिस्टल वॉटर और सोडियम क्लोराइड मिला होता है। सलाइन मिश्रित इस रक्त को ये मिलावटखोर 500 से लेकर 1500 रूपये प्रति यूनिट के हिसाब से बेचकर अपनी जेबें भर रहे थे।
एक यूनिट खून में 350 एमएल की मात्रा होती है। खून में चार कम्पोनेंट होते हैं- प्लाज्मा, प्लेटलेटस, रेड ब्लड सेल्स एवं व्हाइट ब्लड सेल्स। प्लाज्मा खून में थक्का जमाने का काम करता है, प्लेटलेटस से रक्तस्राव को नियंत्रित किया जाता है, रेड ब्लड सेल्स हीमोग्लोबिन को नियंत्रित करता है और व्हाइट ब्लड सेल्स शरीर के सुरक्षा तंत्र को नियंत्रित करती हैं। किसी भी रोगी के शरीर में खून चढ़ाने से पहले सात तरह की जाँच जरूरी होती है। इसमें ब्लड प्रेशर, हीमोग्लोबिन, हेपेटाइटिस बी एवं सी, मलेरिया, वीडीआरएल, एचआईवी एवं ब्लड ग्रुप की जांच शामिल है।
ज्ञातव्य है कि किसी भी व्यक्ति के शरीर में जिस ग्रुप का रक्त होता है, उसे उसी ग्रुप या उसके दाता ग्रुप का रक्त चढ़ाया जाता है। (इस सम्बंध में विस्तृत जानकारी आप यहाँ पढ़ सकते हैं।) यदि गल्ती में किसी व्यक्ति के शरीर में दूसरे ग्रुप का रक्त अथवा जानवर का खून चढ़ा दिया जाए, तो रोगी की तुरन्त मौत हो जाती है। इससे बचने के लिए ही धंधेबाजों ने सलाइन को मिलाने का रास्ता खोजा था। एक यूनिट रक्त में दो यूनिट सलाइन मिलाने के बाद भी यह आसानी से पहचान में नही आता है। केवल विशेषज्ञ डाक्टर ही उसे पहचान सकते हैं।
इसी बात का फायदा उठाकर ये धंधेबाज काफी दिनों से यह मिलावट का कारोबार चला रहे थे। शुरूआती जांच में पता चला है कि इस गोरखधंधे में डाक्टर और नर्स भी बड़े पैमाने पर शामिल रहे हैं, क्योंकि बिना उनकी मिलीभगत के न तो खून के सौदागरों को ब्लड बैग मिल सकते थे और न ही वे अपने इस मकड़जाल को इतने बड़े पैमाने पर फैला सकते थे।
फिलहाल शासन ने जांच के आदेश दे दिये हैं, जिसके पूरा होने में समय लगेगा। देखने वाली बात यह होगी कि इन मिलावटखोरों के खिलाफ कहां तक और कितनी कड़ी कार्यवाही होगी।
गौरतलब बात यह है कि यदि आपके परिवार में कभी भी रक्त की आवश्यकता पड़े तो अच्छा हो कि आप अपने परिचितों अथवा रिश्तेदारों से रक्तदान का आग्रह करके काम चलाएं। यदि फिर भी काम न चले तो प्राइवेट ब्लड बैंक से रक्त लेने से परहेज करें, क्योंकि ज्यादातर मिलावट के मामले वहीं पर सामने आए हैं। इसलिए यदि अपरिहार्य स्थिति हो तो भी सरकारी ब्लड बैंक का ही रूख करें। नहीं तो आपके हाथ रक्त के नाम पर सिर्फ ग्लूकोज ही लगेगा। और नकली रक्त चढ़ाने पर रोगी को और कुछ हो न हो संक्रमण जरूर हो सकता है। ऐसे में रोगी की जान भी जा सकती है।
इन्सानियत इस कदर मर रही है कि अब खुद से ही भय आने लगा है बदिया पोस्ट आभार्
जवाब देंहटाएंज्यादा बड़ा प्रश्न है कि इन गुनाहगार नौजवानों ने ये गलत रास्ता क्यों चुना. क्यों नहीं उनके हाथों को रोज़गार मिला. एक अच्छे मुस्तकबिल की गारंटी राज्य उन्हें क्यों नहीं दे सका. वजह है कि उ.प्र. की अयोग्य मुखिया ने उसे आज एक lawless State बना दिया है. वह 25,000 करोड़ रुपये जो बुतों, पार्कों पर बर्बाद किये गए, उनसे प्रदेश में हर हाथ को काम मिल जाता, हर सर पर छत होती, कोई लड़की दहेज़ न दे पाने से बिनब्याही न होती, पैसों की कमी से किसी की पढाई न छूटती.
जवाब देंहटाएंलोगों की ज़िन्दगी से खेलने वालों के लिए मौत की सजा से कम सजा नहीं होनी चाहिए...ये भी तो हत्या ही है...बहुत ज्ञानवर्धक पोस्ट...
जवाब देंहटाएंनीरज
इस जागरूक लेखन के लिए बधाई।
जवाब देंहटाएंye to apne bahut hi achhi baat batayi hai...aur is jankari ko anya logo tak bhi pahuchaya jana chahiye...
जवाब देंहटाएंइंसानियत सिर्फ नाम की रह गयी लगती है.......कुछ रुपयों की खातिर ना जाने कितने घर उजाड़ रहे होंगे....बेहद दुखद और दिल दहला देने वाला सच.....
जवाब देंहटाएंregards
ना जाने आगे अब और क्या क्या देखने को रह गया है...
जवाब देंहटाएंमीत
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंBehad sharmnaak hai, ismen logon ko kadee sajaa dee jaaye.
जवाब देंहटाएंकविता जी, कमीने लोगो की भरमार है इस देश में !
जवाब देंहटाएंओह भयानक !
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया पोस्ट...मन में डर सा लगने लगा है.
जवाब देंहटाएंक्या कहें? रक्त पिशाच?
जवाब देंहटाएंजागरुक व लाभदायक जानकारी के लिए आभार।
जवाब देंहटाएंइंसान के पतन का सिलसिला शायद उसे शैतान से भी नीच बना देगा।
जवाब देंहटाएंइसे तो शायद मानवीयता के पतन की पराकाष्टा ही कहा जाएगा !
जवाब देंहटाएंलाहनत है ऐसे लोगों पर............
जवाब देंहटाएंbehtarin rachna hai,
जवाब देंहटाएंbehtarin rachna hai,
जवाब देंहटाएंऐसे लोगों के लिए फांसी की सजा भी कम है।
जवाब देंहटाएंऔर कहाँ तक गिरेंगे लोग पैसों के लिए !
जवाब देंहटाएंयह जीवन के हर क्षेत्र में पतन का एक और उदाहरण है. इस पतन से उबरने के लिए फिलहाल विज्ञान कुछ करने में समर्थ नहीं है. इस के लिए हमें आध्यात्म का ही रुख करना पडेगा.
जवाब देंहटाएंखून पानी हो गया है
जवाब देंहटाएंwaaqai mein khoon paani ho gaya hai............hamaare lucknow ki yeh sabse sharmnaak ghatna hai..... pata nahin in logon ka zameer mar gaya hai...... ya phir...... dimaag?????
मामला काफी चिंतनीय है......
जवाब देंहटाएंकुछ पहल तो सरकार के द्वारा शुरू हुई है इस पर की अब जल्दी ब्लड खरीदा नही जा सकता सिर्फ ब्लड देने के बदले ही मिल रहा है.....
लेकिन अभी पूर्ण हल नही हो सका है.....