“यह एक ऐसा मंत्र है, जिसका जाप करते हुए कोई भी कर्म अथवा कुकर्म करें, एड्स का वायरस आप को छू भी नहीं पाएगा। जब तक आप इस मंत्र का जाप करे...
“यह एक ऐसा मंत्र है, जिसका जाप करते हुए कोई भी कर्म अथवा कुकर्म करें, एड्स का वायरस आप को छू भी नहीं पाएगा। जब तक आप इस मंत्र का जाप करेंगे, जैसे ही वह वायरस आपके सम्पर्क में आएगा, स्वाहा हो जाएगा। तो देर मत करिए, अभी फोन घुमाइए और हमें आर्डर कीजिए, इस मंत्र के साथ दूसरा एकदम लेटेस्ट मंत्र एकदम फ्री। यह एक्सक्लूसिव ऑफर सिर्फ और सिर्फ आपके लिए है।”
जी हाँ, शायद आने वाले दिनों में ऐसे ही विज्ञापन आने वाले हैं। क्योंकि जिस तेजी से हमारे समाज में अंधविश्वास बढ रहा है, उसमें वह दिन दूर नहीं जब कोई संस्थान अथवा प्रतिष्ठान किसी भगवान अथवा मंत्र / दुआ के द्वारा अभिमंत्रित किसी ताबीज, यंत्र अथवा गण्डा आदि को बेचता हुआ नजर आएगा।
सवाल यह नहीं है कि ऐसा करना सही है अथवा नहीं, क्योंकि यह कानून का काम है। सवाल यह है कि ऐसा हो सकता है कि नहीं। यदि हम पोंगा पंथियों की मानें तो ऐसा हो सकता है। वे सदियों से ऐसा मानते चले आ रहे हैं, भले ही वे किसी मंत्र के द्वारा कुबेर का खजाना न खोज पाए हों, पर लोगों को ऐसा लालच देकर अवश्य कुबेर का खजाना इकटठा करने में कामयाब रहे हैं। चूंकि भारत की अधिसंख्य जनता तार्किक स्तर पर इतनी सचेत नहीं है, इसलिए वह हमेशा से ऐसे प्रलोभनों में आकर स्वयं को ठगवाती रही है। सदियों से लोग ठगे जा रहे हैं, लोग ठग रहे हैं। यह सिलसिला चला आ रहा है और आगे भी चलता रहेगा।
“तस्लीम” कोई समाज का ठेकेदार नहीं हैं, सिर्फ सचेतक है, जो लोगों को बताता है कि तर्क और बुद्धि के आधार पर क्या सही और क्या गलत है। क्या तर्कपूर्ण है, सम्भव है और क्या असंभव है और अंधविश्वास है। हमारा प्रयास है कि समाज में जितने भी तरीके का अंधविश्वास प्रचलित है, उन सबकी असलियत लोगों को बताई जाए, ताकि लोगों को सच की जानकारी हो सके, वे सचेत हो सकें और अपने आप को ठगने से बचा सकें।
जाहिर सी बात है कि कुछ लोगों को यह सब अच्छा नहीं लगने वाला, इसलिए वे “ब्ला-ब्ला” का राग अलापते रहे हैं। हमें किसी से क्या, हम अपना काम कर रहे हैं और करते रहेंगे। हाँ, हम उन लोगों से इतना अवश्य कहना चाहते हैं कि आप जो कुछ दावे करते हैं, उसे प्रमाणित करिए। आप हमें बताइए तो सही कि फलां मंत्र से बुखार ठीक हो जाता है। यदि हमें बुखार ठीक करने का मुफत का तरीका मिल जाता है, तब हम क्रोसीन क्यों खाएंगे? अथवा डाक्टर के पास क्यों जाएंगे? आप प्रमाणित करके दिखाइए कि किसी मंत्र से यदि बिना पढे लिखे नौकरी मिल सकती है, तो हम महीनों सालों क्यों किताबों में अपना दिमाग खपाएंगे? बस एक लाख बार मंत्र का जाप करें और नौकरी में आ जाएं? और फिर नौकरी भी क्यों करें, बस मंत्र का जाप करें और कुबेर के खजाने के स्वामी बन जाएं।
पर अफसोस कि ऐसा कुछ होता नहीं है। ऐसा करने वाले सैकडों लोगों की पोल पटटी खोली जा चुकी है। और अगर ऐसा सचमुच हो जाता, तो क्या उन मंत्रों का पेटेन्ट न हो चुका होता और भारत अमरीका जैसे “अधर्मी” राष्ट्र को अपने पैरों की जूती बना चुका होता? ये बात तो एक छोटा सा बच्चा भी जानता है कि जो कुछ होता है वह सिर्फ विज्ञान और वैज्ञानिक तरीके से ही होता है। लेकिन कुछ लोगों की नियति ही होती है कि जिस थाली में खाओ उसी में छेद करो।
वे भले ही वैज्ञानिक तरीके से बने मकान में रहते हैं, वैज्ञानिक तरीके से आविष्कृत कपडे पहनते हैं, वैज्ञानिक तरीके से ईजाद की गयी गैस में बना खाना खाते हैं, वैज्ञानिकों द्वारा बनायी गयी गाडी के बिना एक पल नहीं चल पाते हैं, विज्ञान की देन मोबाइल से अपना धन्धा चलाते हैं और विज्ञान की देन कम्प्यूटर पर अपने ब्लॉग चलाते हैं पर महिमा गाते हैं मंत्रों की दुआओं की चमत्कारों की।
अरे भइया एक उदाहरण तो अपनी जिंदगी का दो। एक उपलब्धि तो दिखाओ, जो इससे हासिल की हो? एक मक्खी भी अगर मंत्र से मारी हो, तो बताओ।
जाहिर सी बात है, चमत्कार जैसा कुछ भी नहीं होता और न ही हो सकता है फिर भी संस्कृति के ये झंडाबरदार “ब्ला ब्ला” करते हैं और थक हार जाने पर अंधविश्वास के विरूद्ध चेताने वाले को पश्चिम का बिका हुआ एजेंट बताने लगते हैं। यह सब देखकर मुझे तो लगता है कि संसार में कहीं ईश्वर है भी अथवा नहीं। वर्ना क्या वह अपने नाम पर मचाये जा रहे इतने बडे पाखण्ड को देखकर भी चुप रह पाता?
ऐसे ही जानकारी की इच्छा हो गयी .. 'TASLIM' का फुल फार्म तो ब्लाग पर देख रही हूं .. पर उर्दू में “तस्लीम” का शाब्दिक अर्थ भी कुछ है क्या ?
जवाब देंहटाएंबिलकुल सही है, मै भी महावीर शर्मा जी की बात से पूर्णतया सहमत हूँ...
जवाब देंहटाएंI am totally agree with you.
जवाब देंहटाएंमैं आपसे पूरा इत्तफाक रखता हूँ |
आपकी इस पोस्ट में बहुत कुछ है जिससे सीधे सीधे सहमत हुआ जा सकता है,पर कुछ बातें हैं,जिनसे मैं सहमत नहीं....
जवाब देंहटाएंआपने सही कहा कि आज शार्ट कट रास्ते पर चल बिना मेहनत किये तंत्र मंत्र यन्त्र के सहारे अभीष्ट पाने में लोग प्रयत्नशील रहते हैं और यही कारण है कि इस मानसिकता का फायदा उठा अपने प्रोडक्ट बेचने को बहुत से दुकान खुले हुए हैं....खुले ही नहीं हैं,बल्कि खूब कमाई भी कर रहे हैं....निश्चित ही यह सही नहीं.लोगों को इसके लिए जागरूक रहना चाहिए .
मेरी असहमति इस बात में है कि, मैं नहीं मानती कि मंत्र - शक्तिहीन, व्यर्थ की बकवास है...
शब्द/ध्वनि तरंगो की शक्ति अपार होती है...यह भी अपने आप में एक विज्ञान है....इसका गहन विवेचन करेंगे तो आपको इसके अपरिमित सामर्थ्य का आभास होगा..मेरे कहने से आप इसे मन से संभवतः नहीं स्वीकृत कर पाएंगे...
वैसे लोगों को जागरूक करने का जो महत अभियान आपने छेड़ा है,वह प्रशंशनीय है...
लोक जागरण के लिए आपका प्रयास सराहनीय है।
जवाब देंहटाएंसादर
श्यामल सुमन
sahi kaha aapne kainsar ka ilaaj karate karate ye aids kaa ilaaj bhi mantra shakti se karenge hi
जवाब देंहटाएंwaise abhi tak to aise baba ji ke vigyapan par najar nahi padi sivay vardhak yantron ke....
ha ha ha
badhya post jagriti failane ke liye shukriya
@ जाकिर भाई,
जवाब देंहटाएंकोई भी विवेकसम्पन व्यक्ति ऎसा नहीं होगा जो कि ये न चाहता हो कि समाज से ढोंग,पाखंड को समाप्त किया जाए। और यदि कोई ढोंग का पक्षधर है भी तो समझिए उससे बडा ठग कोई नहीं। लेकिन मुद्दा सिर्फ ये है कि आप लोग जो कर रहे हैं, वो अन्धविश्वास समाप्ति नहीं बल्कि विश्वास और ग्यान को समाप्त करने के बराबर है। आप किसी व्यक्ति विशेष के पाखंड पर चोट करने की बजाय इन विधाओं के औचित्य पर ही सवाल खडे कर रहे हैं।
यदि आप सचमुच इस विषय में समाज को जागरूक करना चाहते हैं तो सबसे पहले स्वयं इन विषयों के बारे में पूर्ण जानकारी हासिल करें। फिर तय कीजिए कि सही क्या है और गलत क्या है।
मैं पुन: आपसे निवेदन करता हूँ कि अन्धविश्वास को समाप्त कीजिए लेकिन ये भी ध्यान रखा जाए कि कहीं विश्वासों को ठेस न लगे। ये सृ्ष्टि किसी विश्वास पर ही टिकी हुई है, अगर विश्वास ही खत्म हो गये तो शायद इस दुनिया में जीना भी दुश्वार हो जाये।।
आशा करता हूँ कि आप मेरे मंतव्य को समझेंगे।
चलते चलते एक बात ओर कि संस्कृ्त भाषा बहुत ही विकट भाषा है,किसी वैदिक मन्त्र का सही अर्थ करने में बडे बडे महापंडितों के भी पसीने छूट जाते हैं। ओर आप हैं कि नैट से किसी मन्त्र को पढकर उसकी व्याख्या को सही मान बैठे।
जाकिर भाई, ये विवाद सिर्फ विचारों का है,सोच का है और तरीके का है। चाहे ये विवाद कभी समाप्त हो या न हो लेकिन आपसे हमारा स्नेह पूर्ववत बना रहेगा। बस विचारों की लडाई को विचारों तक ही सीमित रखें।
जिस तेजी से हमारे समाज में अंधविश्वास बढ रहा है, उसमें वह दिन दूर नहीं जब कोई संस्थान अथवा प्रतिष्ठान किसी भगवान अथवा मंत्र / दुआ के द्वारा अभिमंत्रित किसी ताबीज, यंत्र अथवा गण्डा आदि को बेचता हुआ नजर आएगा।
जवाब देंहटाएंआपकी इस बात से सौ प्रतिशत से भी अधिक सहमत हूं .. अब रही बात समाज से अंधविश्वास दूर करने कि तो .. पं डी के शर्मा वत्स जी ने सही कहा कि 'यदि आप सचमुच इस विषय में समाज को जागरूक करना चाहते हैं तो सबसे पहले स्वयं इन विषयों के बारे में पूर्ण जानकारी हासिल करें। फिर तय कीजिए कि सही क्या है और गलत क्या है।' यानि विश्वास क्या है और अंधविश्वास क्या है ?
महावीर जी .. धर्म और ज्योतिष के क्षेत्र में सिर्फ आडम्बर का आवरण ओढे हुए धोखेबाज ही नहीं .. बहुत सारे ईमादार लोगों ने अपना पूरा पूरा जीवन व्यतीत कर दिया है .. वैसे संतों को तस्लीम सामने क्यूं नहीं लाता .. माना विज्ञान ने बहुत तरक्की की है .. प्रकृति को विनाश के कगार पर छोडकर .. 90 प्रतिशत लोगों को भाग्य भरोसे छोडकर .. हमें हर प्रकार की सुख सुविधा प्रदान की है .. 10 प्रतिशत लोग सुख सुविधाओं को हासिल करने के लिए अंधाधुध दौड रहे हैं .. उल्टे सीधे रास्ते अपनाते हुए .. और इन्हीं 10 प्रतिशत जनसंख्या में अपने को पहुंचाने के लिए सारे अंधविश्वासी भी होते जा रहे हैं .. यदि प्राथमिकता के हिसाब से देखा जाए तो .. मेरे ख्याल से समाज से भ्रष्टाचार दूर करना अंधविश्वास दूर करने से अधिक आवश्यक है .. ईमानदारी से और मेहनत के सिवा किसी चीज से लोगों को सफलता ही न मिले .. तो मेहनत और ईमानदारी के सिवा शायद किसी बात पर उनका अंधविश्वास न हो .. जैसा पहले होता था .. हां पहले अंधविश्वास नहीं था .. दो तीन दिनों में सर्दी अपने आप ठीक हो जाती है .. जिसके पास इलाज के पैसे हैं .. वो इलाज करवाता है .. और 90 प्रतिशत लोगों के पास पैसे नहीं .. वो ओझा से सर पर हाथ रखवा लेता है .. अब वह विश्वास है या अंधविश्वास .. जो कह दें .. पर उसके पास पैसे नहीं .. हमलोग दवा खिलाकर जितने निश्चिंत रहते हैं .. वह सर पर हाथ फिरवाकर उतना ही निश्चिंत रहता है .. उसमें अधिक माथापच्ची क्या करनी .. जबतक हमारे अस्पतालों की हालत नहीं सुधर जाती .. इसलिए समाज सेवा का काम करना है .. तो छोटे ही स्तर से सही .. भ्रष्टाचार को दूर करने के लिए प्रयास कर सकें .. तो बाकी समस्या अपने आप दूर हो जाएगी !!
कई बाबा, फ़कीर लोग दुकान खोल कर बैठ गए हैं | उनकी पोल खुलनी ही चाहिए |
जवाब देंहटाएंपर आप मन्त्र की शक्ती को नकार नहीं सकते | हिन्दू अध्यात्म को समझने के लिए पहले आपको पूर्वाग्रह छोड़ने होगे | पूर्वाग्रही हो कर आप कुछ भी नहीं सिख सकते |
मैं Pt.डी.के.शर्मा"वत्स" से अक्षरसः सहमत हूँ | किसी भी विधा को गलत ठहराने से पहले उसका सही ज्ञान होना चाहिए |
जवाब देंहटाएंब्लॉग पे ऐसे सैकडों लेखक है जिन्हें संस्कृत की ABC नहीं आती है और भगवद गीता, वेद, और पुरे हिन्दू धर्म का विवेचन कर सर्र प्रस्तुत कर रहे हैं | हम हिन्दू भी मुर्ख बन कर उनके साईट पे टिपण्णी करने चले जाते हैं | इस टिपण्णी से उनका हौसला ही बढ़ता है | ऐसे लेखकों मैं ही सलीम खान (स्वच्छ सन्देश: हिन्दोस्तान की आवाज़) |
बिलकुल सच कहा आपने अंधविश्वास बहुत परेशानियों की जड़ है
जवाब देंहटाएंsmaj me sachetako ka hona jaroori hai..andwishwash me to nahi padna chihye par chamtkaar to hote hai.....
जवाब देंहटाएंसन्गीता जी,
जवाब देंहटाएंसुनने में तो बहुत आता है कि, फलां बाबा अथवा तान्त्रिक, बहुत सी शक्तियों का मालिक है, वगैरा वगैरा, पर कोई सामने आ कर प्रमाणित करने को तैयार नहीं है।
और जब लोगों से उनके सामने न आने का कारण पूछा जाता है, तो वे विश्वास/अंधविश्वास में कह उठते हैं, कि वो बाबा जी बहुत पहुंचे हुए है, वो दिखावे में यकीन नहीं रखते या, वो पैसे के लिये काम नहीं करते।
तसलीम पर कितनी बार लाखों रुपये की राशी इनाम के लिये घोषित की जा चुकी है, पर किसी ने आज तक इनका चेलेंज स्वीकार इसी लिये नहीं किया, क्यों कि वो उनकी असलीयत जानते हैं
अगर आपकी नज़र में कोई ऐसा बाबा है जो इनका चेलेंज स्वीकार कर सकता है तो आप ले कर आइये, हम भी उन से मिलने के इच्छुक हैं
5 लाख का इनाम है, 1 लाख आप रखियेगा, 4 लाख बाबा जी को दीजियेगा, फिर देर किस बात की।
signing myself for comments.
जवाब देंहटाएंबहस चालू आहे ......
जवाब देंहटाएंसुनने में तो बहुत आता है कि, फलां बाबा अथवा तान्त्रिक, बहुत सी शक्तियों का मालिक है, वगैरा वगैरा,इन सब बातों को मैने कभी परखा नहीं .. मै नहीं कह रही कि वे सही है या गलत .. पर मेरा कहना है कि सभी क्षेत्रों में आज भ्रष्टाचार फैला है .. राजनीति बुरी होती है क्या .. पर आज राजनीतिज्ञ अच्छे नहीं हैं .. शिक्षण बुरा होता है क्या .. पर आज शिक्षक अच्छे नहीं है .. इलाज करना बुरा होता है क्या .. पर आज डाक्टर अच्छे नहीं है .. पत्रकारिता बुरा होता है क्या .. आज पत्रकार अच्छे नहीं है .. जहां भौतिक लालच के कारण मनुष्यता समाप्त हो रही हो .. हर क्षेत्र में इसका प्रभाव देखा जा सकता है .. इसलिए मैने पहले भ्रष्टाचार को समाप्त करने की बात की है .. क्यूंकि भ्रष्टाचार से लिप्त लोग किसी भी क्षेत्र को अच्छा नहीं रहने दे रहे हैं .. और आप किसी एक क्षेत्र को ही गडबड साबित करना चाहते हैं ।
जवाब देंहटाएंविज्ञान को मान्यता देते ही धंधा-डेरा उखड़ नहीं जायेगा? मन्त्र अगर वास्तव में शक्ति रखते हैं तो भारत को महाशक्ति क्यों नहीं बना देते? इतने सारे लोगों की पी.एम.-सी.एम. बनने की इच्छाएं पूरी क्यों नहीं हो रहीं हैं? खरीफ को सूखे से क्यों नहीं बचा लिया और अब बाढ़ से छुटकारा क्यों नहीं दिला देते? तस्लीम जी, अर्शिया जी! मेरे ब्लॉग पर आने, हौसला बढाने का शुक्रिया.
जवाब देंहटाएंमित्र, आज मुझे आप का ब्लॉग देखने का सुअवसर मिला।
जवाब देंहटाएंसचमुच में बहुत ही प्रभावशाली लेखन है... वाह…!!! वाकई आपने बहुत अच्छा लिखा है। आशा है आपकी कलम इसी तरह चलती रहेगी, बधाई स्वीकारें।
आप के द्वारा दी गई प्रतिक्रियाएं मेरा मार्गदर्शन एवं प्रोत्साहन करती हैं।
आप के अमूल्य सुझावों का 'मेरी पत्रिका' में स्वागत है...
Link : www.meripatrika.co.cc
@ मि.योगेश जी,
जवाब देंहटाएंआपसे मैं सिर्फ एक बहुत ही आसान सा प्रश्न पूछना चाहता हूँ। आशा करता हूँ कि आप मुझे इसका उत्तर अवश्य देंगे।
मैं आपसे सिर्फ यही जानना चाहता हूँ कि क्या आप मुझे बता सकते हैं कि पानी(जल) और शक्कर का अलग अलग स्वाद कैसा होता है?
बस इस निहायत ही आसान से सवाल का जवाब दे दें तो मैं मान लूँगा कि आप जो कह रहे है, बिल्कुल सही कह रहे है ओर तुरन्त ज्योतिष छोडकर आप लोगों के साथ मिलकर विग्यान लेखन आरंभ कर दूँगा।
उत्तर जरा शीघ्र दीजिए.........
होगा होगा !
जवाब देंहटाएंमानो तो भगवान, ना मानो तो पत्थर
जवाब देंहटाएंवैसे मैं भी अर्से तक इस ब्लॉग पर नहीं आया 'तस्लीम' पढ़ कर! इसे सांप्रदायिक ब्लॉग समझ बैठा था।
जागरुकता की अलख जलाये रखिये...एक न एक शम्मा..अंधेरे में...जलाये रखिये.
जवाब देंहटाएंब्लॉग की दुनिया में नया दाखिला लिया है. अपने ब्लॉग deshnama.blogspot.com के ज़रिये आपका ब्लॉग हमसफ़र बनना चाहता हूँ, आपके comments के इंतजार में...
जवाब देंहटाएंवत्स जी, आपका कथन है कि "आप किसी व्यक्ति विशेष के पाखंड पर चोट करने की बजाय इन विधाओं के औचित्य पर ही सवाल खडे कर रहे हैं।"
जवाब देंहटाएंवत्स जी, दुनिया के अधिकांश लोगों का मानना है कि संस्कृत साहित्य, विशेषकर वेद आदि उस समय के विद्वानों के अपने अनुभव हैं, उनकी सोच है। आप भी उसे उसी रूप में क्यों नहीं लेते? दुनिया में एक भी ऐसा उदाहरण नहीं मौजूद है जब कि मंत्र आदि के आधार पर चमत्कार करके दिखाया गया है। सिर्फ आप जैसे कुछ लोग ही हैं उसमें इस तरह की चीजें होने का दावा कर रहे हैं, जबकि प्रमाण एक भी नहीं हैं। फिर आप ही बताएं कि उसके औचित्य पर सवाल कौन उठा रहा है? हम तो उसे प्राचीन साहित्य मान रहे हैं, दुनिया मानती है। अब आप ही बताइए कि इसमें अस्तित्व का संकट कहां से आया?
आपका कथन है कि "यदि आप सचमुच इस विषय में समाज को जागरूक करना चाहते हैं तो सबसे पहले स्वयं इन विषयों के बारे में पूर्ण जानकारी हासिल करें। फिर तय कीजिए कि सही क्या है और गलत क्या है।"
भइया एक बात बताइए कि अगर मैं उनका अध्ययन न करता, तो फिर आपको उदाहरण देकर बताता कैसे? बिना पढे तो उदाहरण दिया नहीं जा सकता। यदि आपने अलौकिक चमत्कारिक शक्ति वाला कोई श्लोक पढा हो और आजमाया हो, तो मुझे बताएं और मैं भी उसे आजमा लूं, ताकि मेरी सोच भी परिवर्तित हो सके।
आपका कथन है कि "मैं पुन: आपसे निवेदन करता हूँ कि अन्धविश्वास को समाप्त कीजिए लेकिन ये भी ध्यान रखा जाए कि कहीं विश्वासों को ठेस न लगे।"
मैं आपसे पूछता हूं कि विश्वास और अंधविश्वास में क्या फर्क है? अंधविश्वास वह होता है जो बिना देखे परखे जांचे मान लिया जाता है। आप मंत्रों आदि की शक्ति को बिना देखे परखे जांचे मान रहे हैं, फिर बताइए कि यह विश्वास है या अंधविश्वास। मैं उस चीज को जांचना चाहता हूं, परखना चाहता हूं ताकि उसकी सत्यता सामने आ सके। इसलिए मैं आपसे बार बार आग्रह कर रहा हूं कि कृपया मुझे उस चमत्कारिक स्वरूप के दर्शन कराएं और मुझे विश्वास दिलाएं। पर अभी किसी ने मुझपर यह कृपा नहीं की है। अब आप ही बताइए कि मैं क्या करूं?
संगीता जी, आपका कथन है कि समाज में अंधविश्वास से ज्यादा गम्भीर स्थिति भ्रष्टाचार की है, उसे दूर करने का प्रयास करें।
अब अगर मैं आपसे कहूं कि भारत की आधी से ज्यादा महिला शक्ति सिर्फ घर की चहारदीवारी में कैद रहती है, आप उसे जागरूक क्यों नहीं करतीं, क्यों आप ज्योतिष के चक्कर में पडी हुई हैं, तो आपको कैसा लगेगा। संगीता जी, हर व्यक्ति का एक नेचर होता है, पसंदीदा क्षेत्र होता है, वह उसी फील्ड में अच्छा काम कर सकता है, जो उसकी पसंद का हो। और वैसे भी "तस्लीम" एक सामाजिक संगठन है, जो सामाजिक और वैज्ञानिक चेतना जागृत करने के उददेश्य से ही गठित किया गया है और वह अपना तयशुदा काम ही कर रहा है।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
मुझे लगता है की रजनीश जी के इस जवाब से इस चर्चा का उपसंहार हो गया है !
जवाब देंहटाएंतो अब चर्चा को समाप्त ही मानें!
जवाब देंहटाएंPandit ji,
जवाब देंहटाएंमैं chemistry का वैज्ञानिक नहीं हूँ, फिर भी आपके सवाल का जवाब देता हूँ
वैसे ये सवाल तो बहुत ही आसान है, मुझे आपका ये सवाल पूछने का मकसद समझ नहीं आया। कि आप ये सवाल पूछ कर क्या साबित करना चाहते हैं?
Sugar is sweet because the sugar molecules bind to specific receptors on the membranes of cells on your tongue and trigger a signal transduction pathway that creates the sweet taste in your brain.
In case of water O, H can not bind to that receptor, so they do not taste sweet.
As simple as that !!
अब कहिये क्या कहना चाहते थे आप?
जाकिर जी ,
जवाब देंहटाएंआपका जबाब सही है .. आप अपना काम करें .. मेरी रूचि ज्योतिष में है .. इसलिए मैं ज्योतिष का अध्ययन जरूर कर रही हूं .. जिसे मैं अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियों के साथ पूरी कर पा रही हूं .. पर इसके बाद सामाजिक क्षेत्र में थोडा भी काम करने का मौका मिला .. तो मेरी प्राथमिकता सबसे पहले भ्रष्टाचार को ही समाप्त करने की होगी .. क्यूंकि आज सभी समस्याओं की जड यही है .. यदि पैसों और ताकत के बल पर समाज में काम होना बंद हो जाए .. तो किसी पर भी अन्याय नहीं होगा .. इसे दूर करना सबसे आवश्यक है।
अन्धविश्वासों से निपटने का बढिया अभियान छेड रखा है ज़ाकिर. लगे रहिए. मेहनर रंग लाएगी.
जवाब देंहटाएंमैं सिर्फ़ एक उदाहरण दूंगा. "ओम" का. भारतीयों द्वारा ही नहीं, अमेरिका समेत तमाम पश्चिमी दुनिया में समय समय पर हुई सैकडों स्टडी और अनुसंधान से बार-बार साबित हो चुका है कि "ओम" शब्द में अद्भुत-चमत्कारिक शक्ति है. आप तनाव के पलों में या सामान्य समय में भी खुद भी इसके असर की अनुभूति कर सकते हैं. फ़िर भी यकीन न आए तो इंटरनेट पर ऐसे संस्थानों या शोध के नतीजों तक आसानी से पहुंच सकते हैं.
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