मंत्रों की अलौकिक शक्ति पोस्ट लिखने के पीछे मेरा आशय था लोगों को समाज में फैले हुए अंधविश्वास के बारे में सोचने के लिए विवश करना। यह प्रसन...
मंत्रों की अलौकिक शक्ति पोस्ट लिखने के पीछे मेरा आशय था लोगों को समाज में फैले हुए अंधविश्वास के बारे में सोचने के लिए विवश करना। यह प्रसन्नता का विषय है कि मेरा यह प्रयास काफी हद तक सफल रहा है।
पत्रिक्रियाओं की शुरूआत में ही डा0 अरविंद मिश्र जी पधारे और उन्होंने मंत्रों की प्रासंगिकता को रेखांकित करते हुए कहा- “कुछ लोग वैदिक ऋचाओं को चमत्कारी मन्त्र मानते हैं -ध्यान केन्द्रित करने के लिए ऐसे मंत्रों का उच्चारण किये जाने में कोई दोष नहीं है मगर इनसे बड़ी उम्मीद करना व्यर्थ ही है। हाँ इधर दवाओं के साथ दुआओं के असर पर भी कुछ शोध हुए हैं, आश्चर्यजनक तौर पर आस्थावान लोगों में मन्त्र -पूजा आदि का सकारात्मक प्रभाव पड़ता हुआ पाया गया है! मगर यह मनुष्य की जीने की अदम्य लालसा और किसी अलौकिक सत्ता में पूर्ण विश्वास से उपजे आत्मसंतोष का ही सकारात्मक पहलू है न की इन मंत्रों का प्रभाव!”
उसके तुरन्त बात बृजमोहन श्रीवास्तव जी पधारे। उन्होंने कहा… “विस्वासम फल दायकं- यह सिद्ध है की शारीरिक रोगों में ८५ प्रतिशत रोग मानसिकता के कारण होते है और मन्त्र सीधे मस्तिष्क को प्रभावित करते है। महात्मा धुल की पुडिया दे देते है और मरीज़ अच्छा हो जाता है बडे बडे डाक्टर फेल हो जाते हैं। दूसरे इन मंत्रों या आयतों के पठन पठान में बुरी ही क्या है यदि मरीज़ गोली भी खा रहा है और मन्त्र भी जप कर रहा है तो किसका कहां नुकसान हो रहा है? यह बात जुदागाना है की गंभीर बीमारी में भी लोग चबूतरों के चक्कर में बीमारी बड़ा लेते हैं।”
श्रीवास्तव जी भभूत से कोई भी रोग ठीक नहीं होता। यह सिर्फ लोगों का वहम है। मैं ऐसे दर्जनों केसों के बारे में जानता हूं, जहां इस तरह के दावे किये गये। लेकिन जब हकीकत पता की गयी, तो मामला उल्टा ही निकला। और जहां तक मंत्रों की अलौकिक शक्ति पर विश्वास की बात है, तो उससे नुकसान भी होता है। जब व्यक्ति यह मानता है कि मंत्रों के द्वारा सब कुछ सम्पन्न हो सकता है, तब वह यह भी मानने लगता है कि मंत्रों के द्वारा लडकी की शादी भी हो सकती है, लडके की नौकरी भी लग सकती है। पत्नि के बांझपन का इलाज भी किया जा सकता है। और बच्चों के न बच पाने की बाधा भी दूर की जा सकती है। ध्यान रहे ऐसा ही व्यक्ति धोखेबाज बाबाओं के चक्कर में अपने घर की जमा दौलत फूंक बैंठता है और लुट जाने पर पुलिस में ठगी की रिपोर्ट लिखाने जाता है। ऐसा ही व्यक्ति मेहनत मजदूरी को भूलकर निकम्मा और लम्पट बना घूमता रहता है। ऐसा ही व्यक्ति साधु सन्यासी के चक्कर में आकर अपनी पत्नी और बेटियों की इज्जत की नीलाम करवा बैठता है। और ऐसा ही व्यक्ति एक अदद पुत्र के लिए पडोस के बच्चों की बलि चढा देता है। अब आप बताइए कि नुकसान हो रहा है कि नहीं?
नीलम जी ने कहा- “मुझे आपका गायत्री मंत्र का अर्थ अधूरा लगा।” नीलम जी, मैं आपसे एक बात ही पूछना चाहता हूं कि क्या आपने जो अर्थ बताना चाहा है उससे वे चमत्कार सम्भव हैं, जो इस तरह के मंत्रों के बारे में बताये जाते हैं? अगर हाँ, तो बताने की कृपा करें कि कैसे? और क्या आपने आजतक उन चमत्कारों का फायदा उठाया है?
दिनेशराय द्विवेदी जी ने कहा, “जाकिर भाई, आप ने सही कहा। कोई भी मंत्र दवा का काम नहीं करता। दवा का काम करता है, व्यक्ति का आत्मविश्वास। वह कैसे जाग्रत हो बात इतनी सी है।”
सरवत एम0 जी ने भी मंत्रों की चमत्कारिक शक्ति पर प्रश्नचिन्ह लगाते हुए कहा, “तस्लीम भाई, आपने वो मुद्दा उठा लिया जिस पर मैं न जाने कितनों की दुश्मनी मोल ले चुका हूँ. अगर मन्त्र, आयतें, जादू-टोने वगैरह इतने ही कारगर हैं तो अस्पताल, दवाखाने, डॉक्टर आदि की क्या जरूरत है?”
सरवत जी आपने सही कहा। मुझे तो आश्चर्य इस बात का भी होता है कि जो लोग इन चीजों पर विश्वास करते हैं, वे कभी मंत्र से मकान नहीं बनाते, यात्रा नहीं करते अथवा इलाज करते नहीं पाए जाते। अगर आपके संज्ञान में कोई ऐसा व्यक्ति हो तो हमें जरूर बताएं।
प्रकाश गोविन्द जी ने कहा “इंसान के पास सही ज्ञान होगा तो वह कर्म करेगा .. दिग्भ्रमित नहीं होगा... ”
काश, इसका जाप करने वालों को ज्ञान ही मिला होता। तब शायद वे इस तरह की बातों पर स्वयं ही यकीन करना छोड दें?
संजीव गौतम जी ने कहा, “समाधान इन्हीं प्रश्नों से निकलेंगे ये तय है. कोरी आस्था सिर्फ़ रूढियों का निर्माण करती है. आपने बिल्कुल सही कहा धर्म स्वयं को संस्कारित करने के लिये है. चमत्कारों के लिये नहीं.”
ए0एस0 पुण्डीर जी ने आपत्ति की है कि “१००० मन्त्र का जप करने पर आपने समाचार पत्र के हवाले से दिये गये समाचार पर भी आपत्ति उठाई है। क्या आपने यह करके देखा है, यदि नहीं तो आप इसको अन्ध-विश्वास का तमगा क्यों देना चाहते हैं? अन्ध-विश्वासी आप हुए या उक्त समाचार देने वाला? किसी तथ्य की वैज्ञानिकता उसको परखे बगैर कैसे प्रमाणित होगी? ”
और इसका जवाब योगेश जी ने ही दे दिया, “कल को कोई समाचार पत्र लिख देगा के कोई फ्लां फलां मंत्र को 1 लाख बार पढ़ने से कुछ भी चमत्कारिक रूप से घटित हो जायेगा, तो क्या हम मूर्खों की तरह इसको 1 लाख बार पढने बैठ जायेंगें। जब कि हमें पता है, ऐसा कुछ नहीं होने वाला। आप माने या ना माने, लेकिन इस दुनिया में कभी चमत्कार नहीं होते। हर चीज़ और event के पीछे एक कारण होता है, भले उसे विज्ञान साबित कर पाये या नहीं। अगर गायत्री मंत्र के पीछे भी ऐसा कोई वैज्ञानिक रहस्य छुपा है तो कृप्या उसे उजागर कीजिये।”
निशांत मिश्रा जी ने ऐसे मंत्रों की विश्वसनीयता पर परोक्ष रूप से सवाल उठाते हुए कहा है कि “सालों पहले मैंने श्रीमाली की पुस्तक में दिए गए ऐसे ढेरों मंत्रों के बारे में पढ़ा था जिक्सो सिद्ध करके व्यक्ति अजर-अमर हो जाता है. वे सभी मन्त्र हजारों साल पुराने बताये गए थे. क्या किसी ने कोई अजर-अमर व्यक्ति कभी देखा है?” हाँ, भई, अगर आपने देखे हों, तो जरूर बताएं। हमें भी जानकर प्रसन्नता होगी।
और हाँ, इधर यह सवाल जवाब चल रहा था, उधर हमारे एक रिश्तेदार महोदय ने स्वाइन फलू से बचने की दुआ इजाद कर दी और मुझे एस0एम0एस0 से भेज दी। प्रसंगवश उसे भी यहां प्रस्तुत कर रहा हूँ-
“अल्लाहुम्मा इन्नी आउजो बिका मिनल जुनूनी, वल जुजामी, वल बरासी, या सयियल अस्काम।”
जिन महोदय ने मुझे यह दुआ भेजी है, उनके पांच बच्चे हैं। अगर खुदा न करे उनके किसी बच्चे को यह रोग हो जाए, तो वे यकीनन दुआ नहीं पढने बैठेंगे, शहर के बडे से बडे डाक्टर के पास भागेंगे। अब आप ही बताएं इस सब ढोंग का मतलब क्या है?
क्या रहस्य था इन मंत्रो का .. ऋषि मुनियों ने क्यूं इजाद किया था इसे .. इस जमाने तक पहुंचते पहुंचते उनमें क्या खामियां आयीं .. कभी परखा नहीं तो चुप रहना बेहतर है .. ज्योतिष को परखा है .. इसलिए आपके ब्लागों पर जवाब देती आयी हूं .. मैं भी मानती हूं कि हर चीज़ और event के पीछे एक कारण होता है .. पर यत्र तत्र कुछ रहस्यमय बातें तो होती ही हैं .. जिनके कारण का कुछ पता नहीं चलता .. तो बिना परखे आप किसी बात के पक्ष या विपक्ष में नहीं हो सकते !!
जवाब देंहटाएंpadhkar ek bahut hi achchhi janakari mili mujhe .........isake liye aapako shukriyaa
जवाब देंहटाएंप्रिय रजनीश -एक प्रयोग छापा था मानसिकता के ऊपर |अस्पताल में एक मरीज़ को डिस्टिल्ड वाटर का इंजेक्शन लगाया और कहा गया नीद का इंजेक्शन दिया है गहरी नीद आयेगी |दुसरे को काम्पोज का इंजेक्शन देकर कहा दर्द का है नींद भी आ सकती है |डिस्टिल्ड वाटर वाला मरीज़ रातभर आराम से सोता रहा |महामारी फैली तो यमदूत चार हज़ार को लेकर पहुंचे यम् ने कहा हजार बुलवाए थे चार हज़ार क्यों _बोले तीन हज़ार तो बीमारी के डर से ही मर गए | एक की दाढ दुखी दुसरे ने मन्त्र पढ़ कर कील नीम के पेड़ में गाड दी उस दिन से उसे आराम है |बिच्छू काट ले जन्तेरी हाथ फेर कर आराम कर देता है |यह मैं अन्धविश्वास का पोषक नहीं हूँ |मेरा मतलब था ८५ प्रतिशत रोग मानसिकता के कारण होते है एका -एक कोई बुरी बहुत बुरी खवर सुनते ही हज़त हो जाती है या उबकाई आजाती है जबकि शारीरिक कोई बीमारी नहीं है |होमेओपेथी मर्ज़ का नहीं मरीज़ का इलाज करती है मैं फिर निवेदन करता हूँ कि मै इस विज्ञानं के युग में अन्धविश्वास का पोषण नहीं कर रहा फिर भी कोई जारहा हो और बिल्ली रास्ता काट जाये और जाने की बहुत जल्दी न हो अस्पताल दफ्तर रेल को विलंब न हो रहा हो तो एक मिनट रुक्जाने में हर्ज़ ही क्या है |जहाँ तक भबूत का प्रश्न है मानसिकता होती है कि फलां दरगाह की या फल मंदिर की भबूत ली है लाभ होगा ही और मन के सधे सब सधे तो आराम हो जाता है |मै कभी यह नहीं कहता के अस्पताल मत जाओ |पीलिया हो तो ग्लूकोस के इंजेक्शन लगबा;;लो और एक माला भी पहिन ली जाये तो क्या हर्ज़ है |बस जब डगमगाने लगती है तो लोग भगवन और शैतान दोनों को यद् करने लगते है न जाने किसके पल्ले पढेंगे
जवाब देंहटाएंmantro ki jankari kafi rochak lagi iske pehle kabhi itne detail se samajhne ki koshish ki nahi so badhiya laga
जवाब देंहटाएंरजनीस जी क्या विज्ञान सभी को मंत्रो पर विश्वास करने से मना करती है शाय्द नही यह केवल व्यकित्गत विचार हो सकते है जिस ध्वनी विज्ञान की बात की जाती है उसका सीधा सा स्म्बन्ध मंत्रो के उच्चारण से भी जुडा हुआ है । विज्ञान केवल वह नही है जो अंग्रेजी सभ्यता ने दिया विज्ञान उससे भी कही आगे है । मुझे तरस आता है उन लोगों पर जो विज्ञान को जाने बगैर हमेशा अन्धविश्वास अन्धविश्वास कहते रहते है ।
जवाब देंहटाएंबहुत रोचक चर्चा चल पड़ी है। जाकिर जी की बात सोलह आने सच है। विज्ञान में जो कार्य कारण सिद्धान्त है वह अकाट्य है। दर्शनशास्त्र भी इसे शत प्रतिशत मानता है। लेकिन बृजमोहन जी जो बात कह रहे हैं वह मनोविज्ञान से सम्बन्धित है।
जवाब देंहटाएंहमारे मन-मस्तिष्क की रचना इतनी गू्ढ़ और अबूझ है कि खरबो न्यूरॉन कोशिकाओं व अन्य सूक्ष्म संरचनाओं की कार्यशैली के बारे में अभी सबकुछ जाना नहीं जा सका है। महज अनुमान ही लगाया जा सका है। ट्रायल एण्ड एरर का सहारा ही हमारे हाथ में है।
मानव शरीर की अनेक महत्वपूर्ण कार्यप्रणालियाँ हार्मोन्स से संचालित होती हैं और हार्मोन्स का स्राव और प्रभाव मनुष्य की मानसिक अवस्था के अनुसार घटता- बढ़ता है। हमारी मानसिक अवस्था हमारे ज्ञान-विज्ञान के अतिरिक्त सांस्कृतिक विरासत, धार्मिक आस्था, परम्परा और अनेक सामाजिक मान्यताओं से भी निर्धारित होती है। इन सभी अवयवों के प्रभाव के बारे में विज्ञान अभी सब कुछ ठीक-ठीक बताने की स्थिति में नहीं है। मेरा अनुमान है कि इनका हमारे मस्तिष्क की जटिल संरचना में इनपुट, प्रोसेसिंग और आउटपुट का स्वरूप कैसा होता है इसे अभी codefy नहीं किया जा सका है। अभी महज मोटा-मोटा अनुमान ही लगाया जा सकता है।
एक ही देश काल और परिस्थिति में अलह अलग व्यक्ति बिल्कुल अलग-अलग तरीके से रिएक्ट करते हैं। चिकित्सक भी बताते हैं कि एक ही दवा एक ही प्रकार के रोग पर अलग-अलग रोगियों के साथ अलग-अलग परिणाम देती है। वहाँ भी ‘ट्रायल एण्ड एरर’ चलता रहता है। ऐसा क्यों है यह विज्ञान ठीक-ठीक नहीं बता सकता। यह तो अन्तर्यामी ही जानता है। वही जिसकी अलौकिक शक्तियों पर विश्वास करके एक सिद्धहस्त सर्जन भी बड़े से बड़ा ऑपरेशन शुरू करता है और एक यज्ञकर्ता अपना अनुष्ठान करता है। परिणाम दोनो को मिलता है और दोनो का विश्वास उसपर बढ़ता जाता है।
मुझे लगता है कि अधिकांश मानसिक बीमारियों की दवाएं नींद लाने वाली होती हैं। अर्थात् मस्तिष्क को थोड़ा शिथिल करके आराम देने की कोशिश की जाती है। बाकी सुधार मस्तिष्क के भीतरी अवयवों के भरोसे छोड़ दिया जाता है। मन्त्र की शक्ति में जिन्हें भरोसा है वे भी मस्तिष्क को ही एक खास दिशा में मोड़ने की कोशिश करते हैं। कदाचित्त् एक आस्था और विश्वास जगाकर मस्तिष्क की उस खास प्रणाली को जाग्रत करने की कोशिश होती होगी जो किसी कारण से नकारात्मक आउटपुट दे रही हो। वस्तुतः विज्ञान और पराविज्ञान या आध्यात्म या जादू-टोना या टोटका मानव के मन को नियन्त्रित करने के अपने उपायों में अनुमान का ही सहारा ले रहे हैं। यह अनुमान वैज्ञानिक आधार पर किया गया हो या मनोवैज्ञानिक आधार पर यह उसके प्रयोक्ता पर निर्भर करता है।
अफ़्रीका की एक आदिवासी प्रजाति ग्रहण लगने पर जोर-जोर से ढोल नगाड़े पीटकर उस दानव के मुँह से सूरज या चाँद को छुड़ा लेती है। यह उपक्रम तब तक चलता है जब तक अन्तरिक्ष के ये प्रत्यक्ष देवता मुक्त नहीं हो जाते। उनका यह प्रयास अबतक शत-प्रतिशत सफल हुआ है। रजनीश भाई उनके विश्वास को कैसे तोड़ेंगे? :)
Mantra mansik shanti to dete hi hain, baki inki shaktiyon par imaandaar shodh bhi aavashyak hai.
जवाब देंहटाएंरजनीश भाई;
जवाब देंहटाएंमुझे आत्मा प्रशंसा की न तो आवश्यकता हैं न ही अपेक्षा. लेकिन मेरा विश्वास हैं की यहाँ छदम नाम से लिख कर मैं आत्मा प्रशंसा के दोष से मुक्त रहूँगा.
मैंने इस मंत्र से लाभ ही लाभ उठाया हैं. मैंने शुरुवात की थी देहात के हिन्दी भाषी सरकारी स्कूल, नगर पालिका स्कूल, आदि से पड़ कर, पर आज मई एक साइंटिस्ट हूँ(उन बच्चो को पड़ता हूँ जहाँ तक पहुचने की देहात के बच्चे सोचते भी नही हैं). इश्वर की कितनी कृपा रही हैं मुझे पर यहाँ तक पहुचाने में मैं अच्छी तरह जानता हूँ. गायत्री मंत्र का जो थोड़ा बहुत अर्थ मैं अपने जीवन मैं उतार पाया हूँ ये उसी का चमत्कार हैं. मेरे आसपास रहने वाले लोग ये भी जानते है की मैं अपने लिए बहुत कम जीता हूँ, और मेरा अधिकतर समय दूसरो को आगे बढ़ने मैं वय्तित होता हैं. मेरी चेस्था यही रहती हैं की यथाशक्ति इश्वर को अन्तर आत्मा में धारण कर वैसा ही व्यवहार करू जैसा दूसरो को इश्वर से अपेक्षित हैं.
मेरे विचार से मंत्र उच्चार तो सिर्फ़ आपको आपका कर्तव्य और मार्ग याद दिलाने के लिए हैं. जब भी मैं मार्ग से भटक जाता हूँ गायत्री मंत्र और माता का ध्यान करता हूँ ये मुझे तुंरत सही रास्ता दिखा देते हैं।
नीलम
ज़ाकिर भाई,
जवाब देंहटाएंआपको एक ई-मेल किया था, जवाब नहीं आया। उस ई-मेल को मैं आपके ब्लाग पर discuss करना चाहता था, मगर लगा कि लोग उसे चमत्कार का नाम दे देंगे। और कोई सही तर्क नहीं मिलेगा, इस लिये आपको personal e-mail किया। आपके जवाब का इंतज़ार है।
संगीता पुरी,
अगर हर चीज़ के पीछे एक कारण होता है, तो हमें उस कारण को तलाश करना चाहिये, न कि उसे चमत्कार समझ कर छोड़ देना चाहिये
चमत्कार नहीं होते, अभी कल ही पढ़ रहा था, के जादूगर जादू में लड़की के कपड़े, सफेद से लाल कैसे कर देता है। तो समझ में आता है कि जादूगर हमारे दिमाग को neuro scientists से ज़्यादा अच्छी तरह समझते हैं
बस, बात सिर्फ समझने की है। आप समझना चाहते हैं या फिर उसे चमत्कार मान कर छोड़ देना चाहते हैं
सटीक चिंतन..
जवाब देंहटाएंांअज इस बहस मे नहीं पडूँगी समय कम है फिर कभी सही शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंAap logon dwara andvishwaas ke viruddh kiya ja rahaa prayas sarahneey hai. Kya main bhi aapka group join kar saktee hoon?
जवाब देंहटाएंबृजमोहन जी, आस्था का अपना महत्व है, उससे इनकार नहीं किया जा सकता है। वह ज्यादातर मामलों में मनुष्य की सहायक ही होती है। लेकिन दिक्कत तब होती है जब हम अपनी आस्था के नाम पर दूसरों को परेशान करने लगते हैं और उसके द्वारा उल जलूल कार्य सिद्ध करने का दावा करते हैं। इसे ही अंधविश्वास कहते हैं, क्योंकि जो चीज है ही नहीं, उसका दावा किया जा रहा है। कुछ लोग अंधविश्वास से फायदा उठाने के लिए ही इसका प्रचार प्रसार करते हैं। ऐसा करने में धम्र का प्रचार करने वाले तमाम बाबा और धम्र के नाम पर अपनी दुकान चलाने वाली संस्थाएं शामिल होती हैं।
जवाब देंहटाएंसिद्धार्थ जी, आपका विवेचन सराहनीय है, सब कुछ मानसिक शक्तियों पर ही निर्भर करता है। हाँ, आपका आदिवासियों सम्बंधी उदाहरण समझ में नहीं आया।
नीलम जी, मंत्रों से प्रेरणा लेने मे किसे दिक्कत है। दिक्कत तब होती है, जब उसको लेकर तमाम तरह के चमत्कारिक दावे किये जाते हैं। ऐसे दावे हमेशा खोखले साबित होते हैं और ये हमेशा अपने छुद्र स्वार्थों की पूर्ति के लिए किये जाते हैं।
योगेश जी, आप स्वयं कहते हैं कि चमत्कार कुछ नहीं होता। फिर आप इस तरह की घटनाओं के चक्कर में कैसे पड गये। आपकी मेल का जवाब दिया जा चुका है। आशा है आप उससे संतुष्ट होंगे। औ हाँ, इस दुनिया में तमाम तरह की घटनाएं होती रहती हैं, कुछ अनोखा कुछ नया हो जाने पर जब तक उसकी विवेचना, विश्लेषण नहीं हो पाता, अंधविश्वासी लोग उस तिल का ताड बना देते हैं। आशा है आप मेरे जवाब से संतुष्ट होंगे।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
Aapse asahmati ka koi matlab hi nahee.
जवाब देंहटाएंसच में एक रोचक चर्चा चल पड़ी है ............ विशवास अंध विशवास नहीं होना चाहिए ......... पर संस्कृति धरोहर को बचा कर रखने में कोई हर्ज नहीं है ......... और कुछ नहीं तो मन्त्र संस्कृत में रची अनुपम रचना तो है ही ............
जवाब देंहटाएंअगर संगीत में दम है तो मंत्रों में भी कुछ हो सकता है...बाकी राम जाने
जवाब देंहटाएंsundar charch ,ek aur naye tathya mubark ho
जवाब देंहटाएंandhvishwas ko door karna bahut jaroori hai ,baki baate sabne kah di .
जवाब देंहटाएंवास्तव में मंत्र का अर्थ होता है--सलाह, परामर्श,आदि, तभी तो राजाओं के मन्त्री होते थे सलाह के लिये ,नकि सिर्फ़ मंत्र पढने-सुनाने के लिये। वेदों के मन्त्र समाजिक,नैतिक, परामर्ष ही हैं । किसी मन्त्र को १००० या १००००० बार रट कर बोलने से कुछ नहीं होता।--अहर्व वेद का मन्त्र है--
जवाब देंहटाएं"रिचो अक्षरे परमे व्योमन्यस्मिन्देवा,अधिविश्वेनिषेदु,
यस्तन्न वेद किम्रिचा करिष्यति,य इत्तद्विदुस्त इमे समासते।"-९/१५/११---अर्थात---अविनाशी रिचाएं परम व्योम में भरी हुईं हैं(विश्व में बहुत सा ग्यान मौज़ूद है),जो इस तथ्य को नहीं जानता,उसके लिये रिचा(मंत्र) क्या करेगी।जो इस ग्यान का उपयोग कर लेते हैंवे इन का सदुपयोग कर्लेते हैं।मूर्खों के लिये ग्यान रूपी रिचायें व्यर्थ ही हैं।
जप का अर्थ है, उस को जान कर प्रयोग में लाना। बार-बार जपना -अर्थात्ग्यान को फ़ेरते
रहना चाहिये--रो्टी क्यों जली,फ़ेरी न थी;विध्या क्यों भूल्री,फ़ेरी न थी।