सापों का प्रणय और प्रजनन काल करीब आ रहा है! और यही वह समय होता है जब सर्प दंश की घटनाओं में अचानक तेज इजाफा होता है! सर्प दंश की छिट फुट ...
सापों का प्रणय और प्रजनन काल करीब आ रहा है! और यही वह समय होता है जब सर्प दंश की घटनाओं में अचानक तेज इजाफा होता है! सर्प दंश की छिट फुट घटनाएं अब शुरू भी हो चुकी हैं! आकडे बताते हैं की भारत में जून से सितम्बर माह के बीच सर्प दंश के लगभग ढाई लाख मामलों में ५० हजार लोग असमय काल कवलित हो जाते हैं! विषैले सौंप से काटे आदमी की बड़ी त्रासद मौत होती है! वह तिल तिल कर मरता जाता है! पहले निचले अंग लकवा ग्रस्त होते हैं, धीरे धीरे लकवे का असर पूरे शरीर पर पड़ जाता है, जीभ भी अकड़ जाती है! मरीज चैतन्य होने के बावजूद अपनी व्यथा किसी से कह नही पाता और अंतत स्नायु तंत्र के काम करना बंद कर देने से मौत का वरण कर लेता है!
सर्प दंश की इतनी बड़ी संख्या इस देश में होने के बावजूद भी किसी भी वर्ष प्रदेश सरकारों द्वारा इस वार्षिक त्रासदी से जूझने की कोई रणनीति नही बनाई जाती! लोग असहाय से मरते जाते है-अखबारों की सुर्खियाँ हर साल इन खबरों को परोसती जाती हैं- जैसे यह एक नियति सी बन गयी है! हमें इस त्रासदी से जूझने के लिए आगे आना होगा! सरकारें बस प्राथमिक सेवा केन्द्रों पर सर्प दंश की औषधि अनीवेनाम को पहुँचा कर जैसे अपने दायित्व की इतिश्री कर लेती हैं और सर्प दंश की घटनाओं को कैसे कम किया जाय और सर्प दंश के रोगी को कैसे शर्तिया बचा लिया जाय इसके पूर्व प्रबंध की कोई व्यवस्था आम तौर पर देखने में नही आती ! बस सर्प दंश के रोगी को अपने मौत की बारी के लिए बीएस छोड़ दिया जाता है!
तो क्या किया जाना चाहिए जिससे एक तो सर्प दंश की घटनाओं में कमतरी हो सके और यदि जहरीले साँप ने कट लिया है तो कैसे उसकी जान गारंटी के साथ बचाई जा सके! यह एक छोटी सी श्रृंखला ब्लॉगर मित्रों के लिए इसलिए है जिससे वे कुछ मूलभूत बिन्दुओं से परिचित होकर इनका ख़ुद अपने स्तर पर भी जहाँ जरूरी समझें प्रचार प्रसार करें! क्योंकि आप में से काफी लोग ग्राम्य पृष्ठभूमि के हैं जहाँ हर वर्ष सर्प दंश से मृत्यु होती है! यहाँ दी जा रही जानकारियों को यदि अपने ग्रीष्मावकाश में ग्राम्य साथियों से बाँट लेगें तो समझें इस श्रृखला का उद्देश्य पूरा हो जायेगा!
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कोच्ची के अमृता इंस्टीच्यूट आफ मेडिकल साईंस के समन्वय से २००६ में सर्प दंश पर एक नेशनल कांफ्रेंस का आयोजन किया था .तभी भारत के लिए सर्प दंश के निवारण प्रबंध को लेकर एक नेशनल प्रोटोकोल का मसविदा तैयार किया गया था! सबसे आश्चर्य की बात तो यह है की भारत में विषैले साँपों की संख्या अधिक न होने के बावजूद भी यहाँ सर्प दंश से होने वाली मौतों की संख्या सबसे अधिक है! जबकि आस्ट्रेलिया जैसे देश जहाँ विषैले सांपों की संख्या काफी है हर वर्ष बस कोई एकाध मामलों में मौत की खबर आती है! दरअसल भारत में जून से सितम्बर मांह तक सर्प दंश के संदर्भ में आपात काल जैसी स्थिति होती है! पर इस आपात काल से निपटने की हमारी कोई तैयारी नही होती!
अगर देखें तो महज पाँच साँप प्रजातियाँ ही बड़े पैमाने पर लोगों की जान की दुश्मन बनी हुयी हैं-कोबरा, करैत, रसेल वाइपर,सा स्केलेड वाईपर और हंप नोज पिट वाईपर! सर्प दंश से सबसे बुरी तरह प्रभावित राज्यों में केरल, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, उडीसा, आसाम, पश्चिम बंगाल, बिहार और उत्तरप्रदेश हैं और ज्यादा पीड़ित होने वाले गरीब ग्रामीण हैं! जो सबसे पहले झाड़ फूक वालों के पास जाकर अपना समय बर्बाद करते हैं और एंटी वेनम के शर्तिया कारगर इलाज के मुहैया होने तक जान गँवा बैठते हैं! बहुत से तो विषहीन साँपों के काटने मात्र से दहशत के कारण वे मौत को गले लगा लेते हैं! जाहिर है सर्प दंश के अनेक मुद्दों पर लोगों में आज भी सही जानकारी का व्यापक अभाव है! इस दिशा में जन जागरूकता की दरकार है!
सर्प दंश की घटना के आरम्भ के ही कुछ लम्हे बहुत हड़कंप की सी स्थिति वाले होते हैं! लोगों की भीड़ आ जुटती है और फिर शुरू हो जाता है जितने मुंह उतनी बातों का सिलसिला! जिससे सर्प दंश पीड़ित और भी घबरा उठता है! तरह तरह के उपायों और चिकित्सा विधियों की नीम हकीमीं पेशकश होने लगती है -कोई नीम की पत्ती खाने पर जोर देने लगता है तो कोई शुद्ध देशी घी पिलाने की हिमायत करता है! कोई घडों पानी से नहलाने की पुरजोर वकालत! कोई कानों में कथित जडी डाल सर्प को "कबूलवाने" ( एक मान्यता कि सर्प दंश पीड़ित के मुंह से साँप बोलता है और सर्प दंश की घटना और अपनी प्रजाति आदि के बारे में जानकारी देता है जो एक अंध विश्वास से अधिक कुछ नही है) ! सर्प दंश के पीड़ित की हालत निरंतर पतली होती जाती है!
प्राथमिक चिकित्सालयों और हास्पिटल की कहानी भी कम अफसोसनाक नही है -वहां सर्प दंश के मामलों से निपटने की अमूमन कोई तैयारी ही नही होती है -ज्ञात रहे कोई जरूरी नही है कि हर चिकित्सक सर्प दंश के मामलों को हैंडिल करने में निपुण हो! सर्प दंश एक ऐसी आपात स्थिति है -इमरजेंसी है जिससे निपटने के लिए प्रशिक्षित कुशल डाक्टर और स्टाफ की जरूरत होती है! यह कितने आश्चर्य और दुःख की बात है है कि ऐसी कोई ट्रेनिंग चिकित्सकों को मुहैया नही कराई जाती! यह मान लिया गया/जाता है कि प्रत्येक योग्य डाक्टर तो सर्प दंश की चिकित्सा कर ही लेगा -यह बहुत बड़ी ग़लत फहमी है! सच तो यह है कि नब्बे फीसदी चिकित्सक सर्प दंश के मामलों को देखकर ख़ुद नर्वस हो जाते हैं! उनके पास कोई समान गाईड लाईन नही होती और वे तरह तरह के चिकित्सा रेजीमेन को अपनाते हैं! कोई बस एंटी वेनम का बड़ा डोज देकर अपनी कर्मठता की इति श्री मान बैठता है ,भले ही रोगी एंटी वेनम के रिएक्शन से ही काल कवलित क्यों न हो जाय! कोई साँप की प्रजाति को तय करने में समय गवाने लगता है! तो कोई चिकित्सा के अनिवार्य दायित्व से ही मुंह मोड़ कर रोगी को "जवाब" दे देता है और उसे अगले स्तर पर रेफर कर देता है! (अगले अंक में जारी)
सर्प दंश की इतनी बड़ी संख्या इस देश में होने के बावजूद भी किसी भी वर्ष प्रदेश सरकारों द्वारा इस वार्षिक त्रासदी से जूझने की कोई रणनीति नही बनाई जाती! लोग असहाय से मरते जाते है-अखबारों की सुर्खियाँ हर साल इन खबरों को परोसती जाती हैं- जैसे यह एक नियति सी बन गयी है! हमें इस त्रासदी से जूझने के लिए आगे आना होगा! सरकारें बस प्राथमिक सेवा केन्द्रों पर सर्प दंश की औषधि अनीवेनाम को पहुँचा कर जैसे अपने दायित्व की इतिश्री कर लेती हैं और सर्प दंश की घटनाओं को कैसे कम किया जाय और सर्प दंश के रोगी को कैसे शर्तिया बचा लिया जाय इसके पूर्व प्रबंध की कोई व्यवस्था आम तौर पर देखने में नही आती ! बस सर्प दंश के रोगी को अपने मौत की बारी के लिए बीएस छोड़ दिया जाता है!
तो क्या किया जाना चाहिए जिससे एक तो सर्प दंश की घटनाओं में कमतरी हो सके और यदि जहरीले साँप ने कट लिया है तो कैसे उसकी जान गारंटी के साथ बचाई जा सके! यह एक छोटी सी श्रृंखला ब्लॉगर मित्रों के लिए इसलिए है जिससे वे कुछ मूलभूत बिन्दुओं से परिचित होकर इनका ख़ुद अपने स्तर पर भी जहाँ जरूरी समझें प्रचार प्रसार करें! क्योंकि आप में से काफी लोग ग्राम्य पृष्ठभूमि के हैं जहाँ हर वर्ष सर्प दंश से मृत्यु होती है! यहाँ दी जा रही जानकारियों को यदि अपने ग्रीष्मावकाश में ग्राम्य साथियों से बाँट लेगें तो समझें इस श्रृखला का उद्देश्य पूरा हो जायेगा!
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कोच्ची के अमृता इंस्टीच्यूट आफ मेडिकल साईंस के समन्वय से २००६ में सर्प दंश पर एक नेशनल कांफ्रेंस का आयोजन किया था .तभी भारत के लिए सर्प दंश के निवारण प्रबंध को लेकर एक नेशनल प्रोटोकोल का मसविदा तैयार किया गया था! सबसे आश्चर्य की बात तो यह है की भारत में विषैले साँपों की संख्या अधिक न होने के बावजूद भी यहाँ सर्प दंश से होने वाली मौतों की संख्या सबसे अधिक है! जबकि आस्ट्रेलिया जैसे देश जहाँ विषैले सांपों की संख्या काफी है हर वर्ष बस कोई एकाध मामलों में मौत की खबर आती है! दरअसल भारत में जून से सितम्बर मांह तक सर्प दंश के संदर्भ में आपात काल जैसी स्थिति होती है! पर इस आपात काल से निपटने की हमारी कोई तैयारी नही होती!
अगर देखें तो महज पाँच साँप प्रजातियाँ ही बड़े पैमाने पर लोगों की जान की दुश्मन बनी हुयी हैं-कोबरा, करैत, रसेल वाइपर,सा स्केलेड वाईपर और हंप नोज पिट वाईपर! सर्प दंश से सबसे बुरी तरह प्रभावित राज्यों में केरल, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, उडीसा, आसाम, पश्चिम बंगाल, बिहार और उत्तरप्रदेश हैं और ज्यादा पीड़ित होने वाले गरीब ग्रामीण हैं! जो सबसे पहले झाड़ फूक वालों के पास जाकर अपना समय बर्बाद करते हैं और एंटी वेनम के शर्तिया कारगर इलाज के मुहैया होने तक जान गँवा बैठते हैं! बहुत से तो विषहीन साँपों के काटने मात्र से दहशत के कारण वे मौत को गले लगा लेते हैं! जाहिर है सर्प दंश के अनेक मुद्दों पर लोगों में आज भी सही जानकारी का व्यापक अभाव है! इस दिशा में जन जागरूकता की दरकार है!
सर्प दंश की घटना के आरम्भ के ही कुछ लम्हे बहुत हड़कंप की सी स्थिति वाले होते हैं! लोगों की भीड़ आ जुटती है और फिर शुरू हो जाता है जितने मुंह उतनी बातों का सिलसिला! जिससे सर्प दंश पीड़ित और भी घबरा उठता है! तरह तरह के उपायों और चिकित्सा विधियों की नीम हकीमीं पेशकश होने लगती है -कोई नीम की पत्ती खाने पर जोर देने लगता है तो कोई शुद्ध देशी घी पिलाने की हिमायत करता है! कोई घडों पानी से नहलाने की पुरजोर वकालत! कोई कानों में कथित जडी डाल सर्प को "कबूलवाने" ( एक मान्यता कि सर्प दंश पीड़ित के मुंह से साँप बोलता है और सर्प दंश की घटना और अपनी प्रजाति आदि के बारे में जानकारी देता है जो एक अंध विश्वास से अधिक कुछ नही है) ! सर्प दंश के पीड़ित की हालत निरंतर पतली होती जाती है!
प्राथमिक चिकित्सालयों और हास्पिटल की कहानी भी कम अफसोसनाक नही है -वहां सर्प दंश के मामलों से निपटने की अमूमन कोई तैयारी ही नही होती है -ज्ञात रहे कोई जरूरी नही है कि हर चिकित्सक सर्प दंश के मामलों को हैंडिल करने में निपुण हो! सर्प दंश एक ऐसी आपात स्थिति है -इमरजेंसी है जिससे निपटने के लिए प्रशिक्षित कुशल डाक्टर और स्टाफ की जरूरत होती है! यह कितने आश्चर्य और दुःख की बात है है कि ऐसी कोई ट्रेनिंग चिकित्सकों को मुहैया नही कराई जाती! यह मान लिया गया/जाता है कि प्रत्येक योग्य डाक्टर तो सर्प दंश की चिकित्सा कर ही लेगा -यह बहुत बड़ी ग़लत फहमी है! सच तो यह है कि नब्बे फीसदी चिकित्सक सर्प दंश के मामलों को देखकर ख़ुद नर्वस हो जाते हैं! उनके पास कोई समान गाईड लाईन नही होती और वे तरह तरह के चिकित्सा रेजीमेन को अपनाते हैं! कोई बस एंटी वेनम का बड़ा डोज देकर अपनी कर्मठता की इति श्री मान बैठता है ,भले ही रोगी एंटी वेनम के रिएक्शन से ही काल कवलित क्यों न हो जाय! कोई साँप की प्रजाति को तय करने में समय गवाने लगता है! तो कोई चिकित्सा के अनिवार्य दायित्व से ही मुंह मोड़ कर रोगी को "जवाब" दे देता है और उसे अगले स्तर पर रेफर कर देता है! (अगले अंक में जारी)
-डा0 अरविंद मिश्र
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सर्प दंश और उससे संबंधित सावधानियों के बारे मे बेहद उम्दा जानकारी..
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!!!
ज़बरदस्त
जवाब देंहटाएं----------
· चाँद, बादल और शाम
mujhe lagataa hai ki aisee hi post main pahale bhi padh chuki hoon सर्प दंश से अधिक मौतों का कारण एक तो ये बहुत बडा है कि लोग मरीज को लाने मे देर करते है पहले वो ओझओं के पास जा कर वक्त खराब करते हैं क्यों कि टीके लगने के बाद ओझा उन्हें मना कर देे हैं इस लिये बाकी तो अस्पतालों मे आपको पता ही है क्या हाल है वो इस लिये कि उन्हें कभी रिफरेशर कोर्स नहीं कर्वाये जाते और भी बहुत से कारण है ं पोस्ट बहुत बडिया है आभार्
जवाब देंहटाएं@ आपकी स्मरण शक्ति बिलकुल दुरुस्त है निर्मला जी ,भारतीय भुजंग पर पहले ही प्रकाशित चिट्ठियों की यह समेकित पुनर्प्रस्तुति है ! क्योंकि यह समय सर्पदंश के लिए विशेष रूप से ध्यान दिए जाने का है !
जवाब देंहटाएंइस लेख की नए कलेवर में पुनर्प्रस्तुति के लिए तस्लीम का आभार !
अच्छी जानकारी ,इधर बीच रोज ही सांप से पाला पड़ रहा है.
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति के साथ अच्छी जानकारी. बधाई स्वीकारेँ.
जवाब देंहटाएंshukria.
जवाब देंहटाएंfitrat hai jiski kaatna kaatega yqinan,
kya saanp se bose ki raza maang rahe ho.
intresting blog.
बहुत ही अच्छी पोस्ट है, साथ ही जानकारी से भरा हुआ। बधाई
जवाब देंहटाएंसर्प दंश, चिकित्सकीय विवशता एवं एनी देशों की तुलना में हमारे यहाँ हो जाने वाली मौतें, ये जानकारियां जितनी ज्ञानवर्धक हैं उतनी ही भयावह भी. आजादी के ६२ वर्षों बाद भी हम कहाँ खड़े हैं?
जवाब देंहटाएंoh my god..! i can't understand though 1word..! hahaha.. mybe i can understand if u speek to me in your language with english or malay subtitle.. hehe
जवाब देंहटाएंanyway, thanks for visit my blog.. keep in touch..!
muje dhosti karega? err am i right? hehe
बहुत अच्छी जानकारी दी है आपने. हमारे घर के पीछे भी प्यारे-प्यारे से सांपों के चार-पांच जोडे रहते है. हमें उनसे कोई खतरा नहीं वो अपने में मस्त हम अपने में मस्त बीच में दीवार. हां कभी-कभी सिंक आदि मॆं उनके छोटे-छोटे बच्चे ज़रूर मिल जाते हैं जिन्हें दीवार के दूसरी ओर छोड देते हैं.
जवाब देंहटाएंBahut hi mahatwapurn shrinkhala hai yeh.
जवाब देंहटाएंMujhe to Snakes se bahut dar lagta hai.
जवाब देंहटाएंHappy Friendship day.....!! !!!!
पाखी के ब्लॉग पर इस बार देखें महाकालेश्वर, उज्जैन में पाखी !!
बहुत अच्छी जानकारी दी है आपने सर्प दंश और उससे संबंधित सावधानियों के बारे मे...
जवाब देंहटाएंबहुत ही ज्ञानवर्धक एवं रोचक पोस्ट्!!!!
जवाब देंहटाएंआभार्!!
बहुत सुंदर लिखा है आपने और अच्छी जानकारी प्राप्त हुई! तस्वीर तो बहुत ही डरावनी है पर अच्छी भी है!
जवाब देंहटाएंज़ाकिर अली जी,
जवाब देंहटाएंजन्मदिन बहुत बहुत मुबारक हो...
मेरा भी आज ही है...
i'm here fren, aku seneng blogmu meskipun aku tidak tahu arti tulisannya..he..he
जवाब देंहटाएंbahut achhi aur kaam ki jankari...
जवाब देंहटाएंJaankaaree ke liye aabhaar.
जवाब देंहटाएंबेहद उम्दा जानकारी......... हमें तो पता ही नहीं था की इतने बड़े पैमाने पर सर्प दंश होता है हमारे देश में............ लाजवाब और जानकारी भरी पोस्ट
जवाब देंहटाएं