इन दिनों बुद्धू बक्सा नये नये विषयों पर आधारित तरह तरह के धारावाहिक प्रस्तुत करने के लिए दर्शकों के बीच काफी सराहा जा रहा है। ‘आपकी अंतर...
इन दिनों बुद्धू बक्सा नये नये विषयों पर आधारित तरह तरह के धारावाहिक प्रस्तुत करने के लिए दर्शकों के बीच काफी सराहा जा रहा है। ‘आपकी अंतरा’ एक ऐसा ही टीवी सीरियल है, जिसकी म्रुख्य पात्र ‘अंतरा’ आटिज्म से पीडित है।
प्रत्येक व्यक्ति के दिमाग में लगभग 100 बिलियन न्यूरॉन कोशिकाएं होती हैं। इन कोशिकाओं में हजारों की संख्या में ऐसे सिरे होते हैं, जो दिमाग और शरीर की नर्व कोशिकाओं के बीच में संदेश का आदान प्रदान करते हैं। लेकिन कभी कभी ऐसा होता है कि ये कोशिकाएं और उन्हें जोड़ने वाले सिरे जब पूर्ण रूप से विकसित नहीं हो पाते। ऐसी दशा में बच्चों में कुछ असामान्य लक्षण विकसित हो जाते हैं जैसे शारीरिक जरूरतों को नहीं समझ पाना, अपनी भावनाओं को व्यक्त न कर पाना, अपनी ज्ञानेन्द्रियों का समुचित उपयोग न कर पाना।
यह बच्चों में होने वाला एक प्रकार का विकार है, जिसे ‘आटिज्म’ के नाम से जाना जाता है। जिन बच्चों में यह विकार पाया जाता है, उन्हें ‘ऑटिस्टिक’ कहा जाता है। इस मानसिक विसंगति को एएसडी के नाम से भी जाना जाता है। इससे पीडित बच्चे आमौर से ध्वनि, प्रकाश, तापमान, गंध, स्वाद, दर्द आदि के प्रति काफी संवेदनशील हो जाते हैं और इनके प्रति खास प्रकार की प्रतिक्रिया व्यक्त करते हैं। पर एक आश्चर्यजनक तथ्य यह देखने में भी आया है कि ऐसे बच्चों में कोई ऐसी विशेषता भी होती है, जो उस बच्चे को विशिष्ट बना देती है।
आटिज्म पीडित बच्चे आमतौर से आंख मिलाकर बात नहीं कर पाते हैं। वे बिना बात के लगातार हंसते या रोते हैं तथा एक ही बात को दोहराते रहते हैं। इस वजह से ऐसे बच्चे समाज से कट जाते हैं और एकांत में रहना पसंद करते हैं।
आटिज्म एक ऐसा विकार है, जिसका कोई निश्चित इलाज नहीं है। यदि मॉं बाप ऐसे लक्षणों के उभरते ही डॉक्टर से सम्पर्क कर लें और मनोवैज्ञानिकों तथा थेरेपिस्ट की भलीभांति सेवाएं लें, तो काफी हद इसे नियंत्रित किया जा सकता है। चूंकि ऐसे बच्चे बिलकुल अलग हटकर होते हैं, इसलिए उन्हें संभालने के लिए मां बाप को काफी मशक्कत करनी पड़ती है। ऐसे अभिभावक यदि उचित ट्रेनिंग ले लें, तो उन्हें अपने बच्चों को संभालने में काफी सहायता मिलती है।
लगभग 150 बच्चों में से एक को होने वाले इस विकार से देश में लगभग 1ण्5 मिलियन लोग प्रभावित हैं। आश्चर्य का विषय यह है कि इससे प्रभावित बच्चों में लड़कों की संख्या 80 फीसदी होती है। किन्तु जो लड़कियां इससे प्रभावित होती हैं, वे लड़कों की तुलना में ज्यादा गम्भीर होती हैं। किसी समय में बच्चों को पागल की श्रेणी में ला देने वाला यह रोग मनोवैज्ञानिक सलाहकारों और ऐसे बच्चों के लिए अलग से उपलब्ध स्कूलों के कारण अब काफी हद तक नियंत्रण में आ गया है। पर फिर भी यह एक कटु सत्य है के ऐसे बच्चों के लिए सामान्य जीवन जीना एक स्वप्न के ही समान होता है।
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aapka lekh gyan vardhak hai , ek prashn hai-
जवाब देंहटाएंkya aise bachhe bolne ya bhasha seekhne me bhi der karte hain?
भावना जी, ऐसे बच्चे को सिखाने के लिए एक अलग पद्धति होती है, जिसमें चित्रों की सहायता ली जाती है। इसीलिए उन्हें सीखने में समय लगता है। जहां तक बोलने की बात है, तो ऐसे बच्चे सामान्य बच्चों की तुलना में से स्पष्ट नहीं बोल पाते हैं। यदि उन्हें समय से स्पीच थेरेपी दी जाए और मनोचिकित्सक का सहारा लिया जाए, तो काफी कुछ हो सकता है।
जवाब देंहटाएंआटिज्म पर परिचयात्मक जानकारी के लिए shukriyaa !
जवाब देंहटाएंसमझा जा सकता है...... मैं भी आटिज्म के साथ साथ डिस्लेक्सिक डिसआर्डर से ग्रसित हूँ. दूसरो के मुकाबले औटीस्टिक लोगों के लिए सामान्य जीवन कितना कठिन हो सकता है यह वही बता सकता है जो इसे झेल चुका हो. हर कदम पर आपको पागल, 'क्रेक माइंड' और अजीब ठहराया जाता है, अभिव्यक्ति कौशल की कमी के चलते सामाजिक जीवन और मित्र बनाना लगभग असम्भव सा हो जाता है. दूसरो के साथ साथ इनके शिक्षक और परिवार के लोग भी अक्सर अज्ञानता के कारण इनकी विशेष ज़रूरतों के प्रति असंवेदनशील रहते है. ऐसे व्यक्तियों का आत्मसम्मान बुरी तरह आहत हो जाता है, और उनके क्रोनिक डिप्रेशन में जाने की काफी सम्भावना होती है. मैं खुद भी इन सभी कारणों से दस साल लगातार अवसाद से ग्रसित रहा, विकसित देशों में ऐसे बच्चों की स्क्रीनिंग कर इनके लिए अलग शिक्षण सुविधाएँ मुहैया जाती हैं, सभी विश्वविद्यालयों में इनकी विशेष जरूरतों का ख्याल रखा जाता है. पर भारत में तो कोई भी कानून, लोगों या सरकार की तरफ से पहल ही नहीं है.
जवाब देंहटाएंकुछ समय पहले खबर पढ़ी थी की गुजरात लर्निग डिसआर्डर से ग्रसित छात्रों के लिए एक विशेष विश्वविद्यालय स्थापित किये जाने पर काम चल रहा है.
aapake dawra di gayi jankari ..... bahut hi badhiya hoti hai.isase hame bahut sari samasyao ke baare me sahajata se jankari mil rahi hai .kyoki aapake prastut karane ka jo dang hai wah bahut hi unda hai jisase uab nahi hoti hai .asaani se out ruchi se padhate chale jate hai
जवाब देंहटाएंaabhar
om arya
Rajnish ji, that's such an informative post.....thanks for sharing with us!!!
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी और नयी जानकारी मिली। ऑटिज़्म से ग्रसित व्यक्तियों की पहचान हो जाय तो समाज को उसके साथ अपना बर्ताव अधिक संवेदनापूर्ण और सहयोगात्मक रखना चाहिए।
जवाब देंहटाएंइस रोग से परिचित कराने का शुक्रिया।
इस जानकारी के लिए आपका धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छी जानकारी दी है आपने। कुछ दिन पहले जब मैं और मेरी पत्नी ये सीरियल देख रहे थे तो इस बारे में जानकारी नहीं होने का अभाव दिल में आया था। आज जानकारी होगई।
जवाब देंहटाएंमुझे लगता है इस प्रकार के बच्चों को स्कूल से कहीं ज्यादा जरूरत होती है मां-बाप के सहयोग और प्यार की।
जवाब देंहटाएंaapk antara mein is bimari ke baare mein kafi kuch pata chal gaya thaa..dua yahi hai yeh bachhe samaj mein upekshit nahi rahen.
जवाब देंहटाएंइस जानकारी के लिए शुक्रिया
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छी पोस्ट की है भाई आपने...
जवाब देंहटाएंमीत
यह ऐसी समस्या है जिस पर ध्यान देना बहुत जरुरी है.
जवाब देंहटाएंबच्चों में इस समस्या की पहचान कैसे हो और पहचान के बाद क्या किया जाये..इन सब पहलुओं पर स्वास्थ्य केन्द्रों में समय समय पर संभावित parents और parents को lecture दिए जाने चाहिये.
स्कूलों के ऊपर जिम्मेदारी देने से पहले इन बच्चों को उनके घर में पूरा ध्यान,acceptance की और देख भाल की जरुरत है.
और उस के बाद इन्हें ख़ास trained teachers और स्कूलों की जरुरत तो है ही.
नै और महत्वपूर्ण जानकारी दी आपने.
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंअभिवावकों की अज्ञानता और समाज का असँक्तृप्त व्यवहार बच्चे के इस पक्ष को और गँभीर बना देता है ।
शिक्षकों को बाल मनोविज्ञान एवँ डेवलपमेंटल साइकोलोज़ी का प्रशिक्षण लेना अनिवार्य कर दिया जाय तो, इस बच्चों की प्रतिभा समाजोपयोगी हो सकती है, पर..
बस आवश्यकता इस ’पर’ से आगे बढ़ने की है !
आटिज्म से प्रभावित बच्चों में प्रत्यक्षतौर पर शारीरिक विकलांगता के कोई लक्षण दिखाई नहीं देते हैं । ऐसे बच्चों की शारीरिक बनावट सामान्य बच्चों जैसी होती है , फिर भी हम उनके व्यवहार के आधार पर उन्हें पहचान सकते हैं ।
जवाब देंहटाएंपहचाने आटिस्टिक व्यक्ति को
* भाषा के आधार पर :
1 - भाषा को समझ्ना व उनका प्रयोग करने में
नाकाम भाषा अस्पष्ट ।
2 - शब्दों, गानों या कविताओं को बार-बार दोहराना ।
3 - संवादहीनता की कमी ।
सामाजिक आधार पर :
1 - ऑंख से ऑंख मिलाकर बात नहीं करते ।
2 - दोस्त बनाने में उदासीन
3 - अकेले खेलना पसंद । अपनी उम्र के बच्चों के साथ खेलने के बजाय अपने से बड़े या अपने से छोटों के साथ खेलना पसंद करते हैं ।
असामान्य व्यवहार के आधार पर :
1 - कोई बदलाव पसंद नहीं करते , मसलन यदि टीवी या उसकी कोई वस्तु निर्धारित जगह से हटाकर दूसरी जगह रख दें तो उत्तेजित हो जाते हैं ।
2 - तेज आवाज जैसे कुकर की सीटी की आवाज, जेट या हवई जहाज की आवाज पर अपने कान बंद कर लेते हैं या चिल्लाने लगते हैं ।
3 - अकारण उत्तेजित हो जाते हैं ।
4 - गर्म , सर्द या दर्द के एहसास की कमी होती है ।
5 - घूमती वस्तु जैसे लट्टू , पंखा, पहिया के प्रति आकर्षित होते हैं ।
6 - अकारण हंसना, ताली बजाना या कूदना ।
(अंतरजाल से साभार)
आटिज्म पर जानकारी के लिए बहुत आभार!
जवाब देंहटाएंमहत्वपूर्ण जानकारी दी आपने। धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंbahut hi achhi jankari di hai aapne autism par,shayad is shketra mein bahut karya karne ki jaruratabhi baki hai.
जवाब देंहटाएंजानकारी के लिए आपका धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंMujhe is baare mai aaj hi itne vistaar se pata chala...bahut jankari bhari post...
जवाब देंहटाएंआटिज्म जैसे सम्वेदन शील विषय पर जानकारी के लिए आभार...Regards
जवाब देंहटाएंIndeed a very good article. But u want to say that its very difficult for the people to accept the truth of autizm. I request agr apke as paas bhi aisey bachchey hain to plz unkey parents k sath milkar un bachchon ko help karein. So that they can also live happily.
जवाब देंहटाएंbahut hi achhi jaankari dene ke liyee aapkaa dhanwaad !! chaliye ab kuchh mada hame bhi aise rogi ko smajhane me milegi!!
जवाब देंहटाएंयह बात नितांत सत्य है की यदि प्रारंभ में ही मनोचिकित्सक की सलाह ले ली जाये तो बहुत कुछ सुधार संभावित है =किन्तु पहली मानसिकता तो यह है की यह किसी देवी देवता का प्रकोप है ,फिर चबूतरों पर जाना -जन्मपत्री दिखला कर ब्रत वगैरा करना | दूसरी बात ऐसी स्थिति को भगवान की देन मान लिया जाता है =कुछ ऐसी सलाहें मिलती है की "बड़े होने पर सब कुछ ठीक हो जायेगा | डिप्रेशन या अनिद्रा के रोगी भी मनोचिकित्सक के यहाँ जाने में हिचकिचाते हैं -कोई पागल न समझ बैठे | फिर मनो चिकित्सकों की कमी और जानकारी का आभाव | ब्लोगर के अलावा आम जन को ऐसी जानकारियां कैसे उपलब्ध हों कृपया इस बात पर भी विचार करें
जवाब देंहटाएंसर्वमनोकामना पूर्ति मंत्र के 11 दिन तो मेरे पूरे हो गये ,मंत्र तो मैने सही पढा हाँ थोडा उर्दू कम आती है हिन्दी मे, "गड़े हुए धन की तलाश से बेहतर विकल्प मेरे पास नही था " प्रभाव तो हुआ है भाइ ........मेरा धन गड़ गया , जबसे मंत्र पढ रहा हू रोज़ रु 5000 जा रहे है अब तक 60,000 गड़ चुका है । दरअसल पहले दिन जैसे ही मंत्र पढा इक सज्जन ने दस्तक दी ये महोदय वैसे तो अच्छे व्यक्ति है पर उधार कभी नही चुकाते और मेरे 5000 गये पानी मे .... तीसरे दिन तो कमाल हो गया मंत्र पढते ही इक रिश्तेदार जो ससुराल तरफ से है को गाडी लेने की सुझ आ गयी अब मरता क्या न करता 40,000 की जैसे तैसे व्यवस्था की अब होम मिनिस्ट्री का फरमान कैसे टाल सकते है और वापस मांगने की हिम्मत किसमे है , वैसे पता चला है कि वापस होगा पर कब कुछ पता नही । आठ्वे दिन भी जैसे ही मंत्र पढ्कर उठा मोबाइल पर मैसेज आया ... credit card bill unpaid amount 4800+1267 ... बडी पड्ताल के बाद पता चला कि यह विभिन्न टैक्स का योग है और इसके बारे मे पैसा जमा करने के बाद पुछे ... बहुत हाथ पाव पट्का तब जाके कही settlement हो पाया उसमे भी 4000 जमा करने पडे खैर credit card बन्द करा दिया ।
जवाब देंहटाएंलो भाइ अब अपना मंतर आप सम्हालो मेरा तो धन गड़ गया
भोपाल में एक ऐसी बच्ची संगीत के क्षेत्र में उभर रही है जो की ऑटिज्म से पीड़ित है. इसका वर्णन मैं पहले यहाँ कर चुका हूँ.
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