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tasleemji aapakaa samaajik chetanaa ke liye ye prayaas bahut saarthak hai pooree jaankaree ke liye bahut bahut shanyavaad
जवाब देंहटाएंअच्छे प्रयास करते रहते हैं आप .. स्वाइन फ्लू महामारी बनकर न फैले .. इसके लिए हम सबको सतर्क रहना होगा।
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया और नेक सलाह के लिये धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंरामराम.
बहुत सुंदर सलाह.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
अब तक 56 की संख्या पार कर चुकी यह बीमारी अतिरिक्त जागरूकता की भी मांग करती है.
जवाब देंहटाएंbadhaai k patra hain aap
जवाब देंहटाएंatyant umda aur upyogi post....
waah
waah
काहे डरवा रहे हैं। आज तबियत वैसे ही ढीली है। :(
जवाब देंहटाएंवैसे स्वाइन-फ्लू के भय का अन्तरराष्ट्रीय बाजार कितना बड़ा है?
कहीं बरसों पुराने सैकणों पेड़ पागलपन से काट दिए जाएँ तो उसका पर्यावरण और प्राणियों के पर्यावास और लोगों की चेतना पर क्या प्रभाव पड़ेगा. तस्लीम ने तंत्र मंत्र, स्वईन् फ्लू, बंदरों, चिडियों पर बहुत चर्चा की है. लखनऊ में हुयी इस तबाही का नोटिस तस्लीम ने नहीं लिया.
जवाब देंहटाएंमेरा सवाल है, क्यों?
जैसे जैसे आपकी ये वैज्ञानिक चेतना जागृ्त हो रही है, वैसे ही नई नई बीमारियां भी इजाद होती जा रही हैं।
जवाब देंहटाएंसामयिक फोटो... सटीक चिंतन....
जवाब देंहटाएंबड़ी मुश्किल हो गयी है. अब साधारण जुखाम को भी सीरियसली लेना पड़ेगा. हमें तो लगता है की बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ जानबूझ कर ऐसे संक्रमण उत्पन्न कर रही हैं.
जवाब देंहटाएंबाहर तो मुझे भी जाना है कुछ दिन में :(
जवाब देंहटाएंक्या कहें..ईश्वर रक्षा करे सबकी.
जवाब देंहटाएंअभी तक शहर में किसी मरीज की खबर नहीं है।
जवाब देंहटाएंसही जानकारी दी है ..दिल्ली में रोज़ नए मरीज मिल रहे हैं ..
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंशमीम भाई, ऐसा नहीं है। शहर के बारे में हम भी बहुत कुछ सोचते हैं। पर पाठकों की रूचि के लिए विविधता जरूरी होती है। वैसे लखनउ से सम्बंधित पोस्ट आप यहॉं और यहॉं पढ सकते हैं। वैसे लखनउ के विकास के बहाने जीशान ने भी यहॉं पर काफी कुछ लिखा है।
जवाब देंहटाएंWelcome to the world of medical hoaxes.
जवाब देंहटाएंमैड काऊ, सार्स, बर्डफ्लू, चिकनगुनिया, अन्थ्रेक्स और अब स्वाइन फ्लू. ये सभी कभी पिछले दस सालों में आतंक फैला चुके है, और इनसे कितनी बर्बादी हुई या नहीं हुई यह सभी को पता है.
सच में दहशत का बाज़ार बहुत बड़ा है. वैसे 1918 में दस लाख के स्वाइन फ्लू से मरने की जानकारी का स्त्रोत क्या है? आपने जो विकिपीडिया की लिंक लगाई है उसमे स्पेनिश इन्फ़्लुएन्ज़ा के विषय में जानकारी है न की 'स्वाइन इन्फ़्लुएन्ज़ा' के बारे में. कृपया त्रुटी सुधार लें.
विकिपीडिया में 1918 में मरने वालों की संख्या का कोई उल्लेख नहीं है. पर इसमें 1976 में संभवतः स्वाइन फ्लू के कारण हुए 'गुलन-बैरी सिंड्रोम' से विश्व भर में मात्र 25 मौते हुई, उसके बारे में विकिपीडिया लिखता है:
Overall, there were about 500 cases of Guillain-Barré syndrome (GBS), resulting in death from severe pulmonary complications for 25 people, which, according to Dr. P. Haber, were probably caused by an immunopathological reaction to the 1976 vaccine.
किस आधार पर आप कह रहे हैं की 1918 में स्वाइन फ्लू ने दस लाख जानें ली?
यह संक्रामक बीमारियों की दहशत केवल पशु / मानव वैक्सीन बेचने के लिए समय समय पर फैलाई जाती है.
वर्ना यह बताइए वह जो सन 2000 के आसपास हैपेटाईटस-बी और सी की प्रायोजित दहशत फैलाई गयी थी, उसमे कितने मरे. कहा जा रहा था की इसका संक्रमण पामेला एंडरसन को भी हो गया है, इस लाइलाज संक्रमण से उनकी जिंदगी दो साल से भी कम की बची है. और भी कई तरह की प्रायोजित अफवाहें मीडिया में थीं. इस होक्स के दम पर दवा उद्योग ने इम्म्युनाइज़ेशन अभियान द्वारा अरबों पीटे. पर क्या आपको एक भी ऐसा केस पता है जिसमे मरीज की मौत निश्चित रूप से हैपेटाईटस-बी या सी द्वारा हुई हो?
कृपया प्रायोजित अफवाहें फैलाने से बाज़ आएं. और जो भी आंकड़े दे उनके स्त्रोत और सन्दर्भ अवश्य दें. बिना विश्वसनीय सन्दर्भ के दी गयी जानकारी विज्ञान की नज़रों में मजाक से अधिक और कुछ नहीं है.
वैश्विक दवा कंपनियों को तो दहशत के इस व्यापार से कमाई होगी, पर आपको क्या मिल रहा है उनकी बकवास को और ज्यादा प्रसारित और प्रमाणित करने में?
ab inconvenienti जी, आपकी बातें अपनी जगह सही हैं। हमारा उददेश्य है बीमारी के प्रति लोगों को सचेत करना। और हम सिर्फ अपना काम कर रहे हैं। वैसे सिक्के के दो पहलू हैं, आपका नजरिया जैसा हो, वह पहलू आप देख लें।
जवाब देंहटाएंहॉं, लिंक गलत लग गया था, उसे सुधार दिया गया है। गल्ती की ओर ध्यान दिलाने के लिए शुक्रिया।
तस्लीम पर प्रकाशित जिन पोस्ट का लिंक आपने दिया है, उनमें भी लखनऊ की मॉडल जेल में बरसों पुराने सैकडो पेड़ों को प्रशासन द्वारा काटे जाने का कोई ज़िक्र नहीं है. यह हरे भरे पेड़ वन विभाग के आला अधिकारियों ने सारे नियम कानून को ताक पर रखकर कटवाए थे. अब मामला कोर्ट में है. सारे आदेश मौखिक रूप से दिए गए थे, सो अब हर कोई अपनी खाल बचाता फिर रहा है.
जवाब देंहटाएंअगर तस्लीम मुझ नाचीज़ को भी पाठक की इज्जत बख्शे, तो मुझे कहना है की यह विविधता नहीं, चुनी हुयी चुप्पी है, तस्लीम की सीमा है, उसका खुद को एक टाइमपास ब्लॉग में reduce करते जाना है.
शमीम भाई, हर व्यक्ति की अपनी समझ होती है, अपनी विचारधारा और अपनी प्राथमिकताएं। एक व्यक्ति जो मुददा मरने मारने वाला लगता है, दूसरा उसे फालतू चीज समझता है। आपका यह कहना जायज है कि लखनउ में पिछले कुछ सालों में अंधा धुंध पेड काते गये हैं। पर फिर वही बात, लेखक वही बात लिखता है, जो बात उसे बहुत ज्यादा जरूरी लगती है। मैं तो फिर यही कहूंगा कि इस विषय पर आप ही लिखो, तस्लीम का वादा रहा वह उसे प्रकाशित करेगा।
जवाब देंहटाएंअब आप, यह कह कर पीछे मत हट जाना, कि मैं लेखक नहीं। समझे। आपके लेख का इंतजार रहेगा। वैसे मैं भी कोशिश करूंगा कि इसपर जल्दी ही कोई पोस्ट लिखूं।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
जाकिर साहेब,
जवाब देंहटाएंबहुत ही सार्थक अभियान है।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
सही जानकारी दी है.बहुत सुंदर सलाह.
जवाब देंहटाएंhindikunj
बहुत सामयिक जानकारी दी है आपनें .
जवाब देंहटाएंआंकडें दुरुस्त कीजिये जाकिर ,१० लाख नहीं १० करोड़ लोग मरे थे १९१८ में -आश्चर्य की बात है की लोग इसे अभी भी हलके में ले रहे हैं !और यह आफत अब हमारे सर पर है !
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िया और नेक सलाह दिया है आपने! जिस तरह से स्वीन फ्लू फ़ैल रहा है हर किसीको सावधानी बरखनी होगी!
जवाब देंहटाएंLucknow ke blogger ka itna actively participation dekh kar man khush hota hain..... mahatvpoorn jankaari dene ka shukriya
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