इस बार तो गजब हो गया। चित्र पहेली पूछने के अगले ही पल सही और सटीक उत्तर मीनू खरे जी ने दे दिया। पूरे आत्मविश्वास के साथ। फिर क्या था,...
इस बार तो गजब हो गया। चित्र पहेली पूछने के अगले ही पल सही और सटीक उत्तर मीनू खरे जी ने दे दिया। पूरे आत्मविश्वास के साथ। फिर क्या था, उनके फालोवर भी आ पहुंचे और फिर बधाईयों का दौर ऐसा शुरू हुआ कि अभी तक जारी है। शास्त्री जी ने जवाब को और वैज्ञानिक बनाया तो मीनू जी ने भी उसमें फिर इजाफा किया। सीमा जी ने साफगोई से बता दिया कि उन्हें उत्तर नही मालूम -ठीक बात! समीर जी ने शायद चुहल किया कि यह तो कोई खिलौना लगे है। उन्हें ऐबइनकानवेनटि और कुमार सम्भव ने इस खिलौने से ना खेलने के लिए आगाह भी किया। अनिल पुदस्कर जी ने उद्घोष किया -मीनू जी ही विजेता हैं। अल्पना वर्मा इस बार भी सही जवाब। पर देर से मिला। प्रवीण राठी जी ने तर्क ज्ञान से सही उत्तर की पुष्टि की -विश्व एड्स दिवस पर जो यह पहेली पोस्ट हुयी थी! ताऊ को मीनू खरे जी का अनुगमन करना था पर शायद जल्दी में या फिर साभिप्राय अल्पना जी का अनुसरण कर बैठे। पिछली विजेता तो आख़िर वही थी न। तो फिर रिस्क क्यों? अशोक पांडे जी भी अल्पना जी के ही भक्त निकले। महानुभाव मीनू जी पहले ही सही जवाब दे चुकी थीं। ज्ञान जी ने जावाब के बजाय एक प्रश्न ही पूंछ लिया- हमारी टिप्पणी मीनू खरे जी की ब्लॉग आई.डी. से कैसे पब्लिश हो गयी? पर यह मेरे भेजे में घुसा ही नहीं। रंजना [रंजू भाटिया], रंजन, मीत ने सही जवाब को तस्दीक़ किया। प्रवीण त्रिवेदी...प्राइमरी का मास्टर ने तो अति उत्साह में पहेलीकर्ता के अधिकार को ही अपने कब्जे में कर बाकायदा मीनू जी को तख्ते ताउस पर बिठा उनके विजेता होने की घोषणा ही कर दी। फिर तो बधाईयों का दौर ही चल पडा, सभी दिशाओं से। अभिषेक ओझा, नरेश सिंह राठौड़, जाकिर-अर्शिया, अभिषेक सभी बधाईयाँ देने को पंक्तिबद्ध हो गए। अब जनता रूकने वाली नहीं, फैसले अब ख़ुद ही कर लिया करेगी। कोई देर ही क्यों करे? पर भाई मैंने तो कोई देर नही किया। जवाब तो अपने समय पर ही दिया जाता है। मेरी भी बधाई मीनू जी को और आप सभी को जिन्होंने इस पहेली को अपनी उपस्थिति से जीवंत बनाया।
इस अवसर पर विजेता मीनू खरे जी का यह आलेख भी मिला है जो बिल्कुल सटीक और अवसर के अनुकूल है। आप भी पढ़ें और एच0आई0वी0/एडस के प्रति जागरूकता कैम्पेन को आगे बढायें।
जीना, इसी का नाम है
वो बहुत प्रखर था, बहुत मेधावी परिवार में छोटा होने के कारण सबका दुलारा था। माता-पिता उसे डॉक्टर-इंजीनियर या सरकारी अफसर बनाना चाहते थे पर उसे यह ज़िद्द थी कि वो कुछ करेगा, सबसे अलग हट कर। उसकी इस ज़िद्द के आगे माँ की ममता भी झुक गई और पिता का कठोर अनुशासन भी। भाई-बहनों का साथ भी उसे न रोक पाया और इलाहाबाद के एक मध्यमवर्गीय परिवार का नरेश नाम का यह होनहार लड्का इलाहाबाद से मायानगरी मुम्बई पहुँच गया। मुम्बई में उसे एक विदेशी कम्पनी के साथ काम करने का मौका मिला जो HIV/AIDS की जानकारी देने और इसके बचाव के लिए कन्डोम बेचने का भी कार्य करती थी।
नरेश यादव को यह काम पसन्द आया और इस मिशन के चलते उसे जाना पडा मुम्बई की बार-गर्ल्स के बीच। यहाँ का जीवन चकाचौंध से भरपूर था पर पर्दे के पीछे देह-व्यापार धड्ल्ले से चलता था। नरेश बार-गर्ल्स को HIV/AIDS के खतरों से आगाह करने के साथ सेक्स-सम्बन्धों में कन्डोम के प्रयोग की सलाह भी दिया करता था। उसे यह सामाजिक कार्य बहुत रास आ रहा था। लगता था किसी का जीवन बचाने का कार्य कर रहा है वो...
पर कहते हैं न कि कभी-कभी साँप का खेल दिखाने वाले को भी साँप काट लेता है। किसी दिन, बीमारी के चलते नरेश को अपना ब्लड-टेस्ट करवाना पडा और ब्लड-टेस्ट की रिपोर्ट ने स्वयँ उसे ही HIV Positive घोषित कर दिया....नरेश को यकीन नहीं आया पर सच फिर भी सच ही था।
वह बहुत परेशान था, इतना कि बार-बार जाकर शमशान में बैठ जाया करता था...क्या कहूँगा सबसे? घरवालों को क्या जवाब दूँगा? क्या आत्महत्या कर लूँ? जीवन बहुत अन्धेरा था, जहाँ रौशनी केवल चिता की लकडियों से आती प्रतीत होती थी... उसने एक दिन अपनी पत्नी को अपना राज़दार बना लिया, जी कडा करके सब कुछ कह डाला। जीवन के अन्धेरे शायद इसी बिन्दु से छँटने लगे। पत्नी ने नरेश को हौसला दिया। जीवन हारने से नही जीतने से चलता है। मगर यह जंग HIV जैसे लाइलाज इन्फेक्शन के साथ लडी जानी थी। कहाँ से आएगा इतना हौसला, इतनी हिम्मत? तभी नरेश को मौक़ा मिला वकीलों के एक समुदाय की एक मींटिग में जाने का, जो HIV पॉज़िटव लोगों के अधिकारों के लिए काम करते थे। वहाँ उसकी मुलाक़ात हुई अपने जैसे बहुत सारे HIV पॉज़िटव लोगों से। नरेश को सहसा लगा सारी धुन्ध छँट गई है और एक नया सूरज क्षितिज पर उग रहा है। क्यों न वह भी HIV पॉज़िटव लोगों के अधिकारों के लिए काम करे? और यहीं से सूत्रपात हुआ UPNPP (Uttar Pradesh Network of Positive People living with HIV/AIDS) का। नरेश ने उ.प्र.के पॉज़िटव लोगों का एक सँगठन बना डाला जो HIV/AIDS के प्रति जन-जागरण का काम करता है और HIV पॉज़िटव लोगों की मदद भी।
नरेश इस सँगठन के प्रेसीडेन्ट हैं और पॉज़िटिव लोगों के लिए एक रोल-मॉडल भी। उनका संकल्प है कि वो पॉज़िटिव लोगों को समाज में यथोचित स्थान दिला कर रहेंगे। उन्हे यह सन्तोष भी है कि वो सचमुच जो काम कर रहे हैं वो अलग हट कर है। जो व्यक्ति कभी खुद आत्महत्या की सोच रहा था आज वो लोगों के जीने की प्रेरणा है। सचमुच जीना इसी का नाम है। नरेश यादव (labmart@rediffmail.com) के इस जज़्बे को TSALIIM का सलाम।
नोट- और हॉं, इस पोस्ट में मेरा योगदान सिर्फ इतना ही कि मैंने अरविंद जी और मीनू जी (जिनसे मैं तस्लीम से जुड़ने का आग्रह पिछली काफी समय से कर रहा हूं) द्वारा भेजी सामग्री को सिर्फ पब्लिश भर किया है। मेरी ओर से मीनू जी को पहेली का विजेता बनने पर हार्दिक बधाई और इस प्रेरक आलेख को 'तस्लीम' हेतु भेजने के लिए आभार। -जाकिर अली ‘रजनीश’
मीनू जी को बधाई.
जवाब देंहटाएंउत्तर बताने में भले ही पीछे रह गए हों, हम बधाई देने में पीछे नहीं रहने वाले!
जवाब देंहटाएंबधाई मीनू जी ..प्रेरक लेख
जवाब देंहटाएंखरे जी का लेख ब्लॉग सिनर्जी का उत्तम उदाहरण है। बधाई।
जवाब देंहटाएंमीनु जी को बधाई..
जवाब देंहटाएंनरेश यादव जैसे वयक्ति ही सही मायने में एच आइ वी के खतरे से प्रभावी रुप से सामना करने में मददगार होगें
Meenu ji ko badhayee.
जवाब देंहटाएंis baar mujhey thodi der ho gayee jawab dene mein.
koi baat nahin--lekin jawab to sahi hi tha is liye taau ji aur Ashok ji ko bhi mere jawab ke saath hone mein afsos nahin hua hoga :)-
Naresh Yadav ji ke hausla aur himmat ki prashnsha karte hain .
ishwar unhen un ke maqsad mein kamyaabi dilaaye.
ShubhkamnaOn sahit-
" meenu jee ko hardik bdhaee.."
जवाब देंहटाएंRegards
मीनू जी को हार्दिक बधाईया! उनके आने से तस्लीम काफी जीवंत हो गया है.
जवाब देंहटाएंउम्मीद है कि वे तस्लीम से जुड जायेंगी जिस से हम आम चिट्ठाकारों अधिक से अधिक वैज्ञानिक जानकारी पा सकें.
मीनू जी के लेख के लिये भी आभार.
मैं सारे पाठकों को एक बार और याद दिला देना चाहता हूँ कि यह सिर्फ एक कृत्रिम चित्र है जो हजारों चित्र एवं अनुसंधानों के आधार पर आणुविक स्तर की वास्वविकता को विभिन्न रंगों की मदद से "सिखाने" के लिये बनाया गया है.
सस्नेह -- शास्त्री
कृपया "वास्वविकता" को वास्तविकता पढें!!
जवाब देंहटाएंप्रेरक लेख, बधाई मीनू जी को..
जवाब देंहटाएंमीनुजी को बधाई !
जवाब देंहटाएंअरे बाप रे!!!
जवाब देंहटाएंये तो क्या निकला और हम समझ रहे थे खिलौना!!
मीनू जी को हार्दिक बधाई.
विश्व एडस दिवस के उपलक्ष्य में पूछी गयी इस पहेली और मीनू जी के जवाब ने उसके संदेश को तस्लीम के पाठकों तक भलीभांति पहुंचाया है। उत्तर के साथ मीनू जी का आया आलेख रोचक एवं प्रांसगिक है। इस महत्वपूर्ण आलेख को पढवाने का शुक्रिया।
जवाब देंहटाएंजवाब तो हमें भी आता था लेकिन अब क्या करें एक नियत समय पर ही ब्लॉग-भ्रमण होता है और तब तक अक्सर जवाब आ गया होता है :-) बधाई मीनू जी को !
जवाब देंहटाएंcongrates meenu ji.very inspiring story of naresh ji. can i have his ph.no ?
जवाब देंहटाएंतस्लीम से जुड़े सभी लोगो को मेरा धन्यवाद. इतना अच्छा रेसपोंस मिला, बिलकुल वैसा ही जैसे मेरे श्रोता रेडियो पर मुझसे बात करते हैं. मुझे तस्लीम से जुड कर बहुत अच्छा लगा. आगे भी इसके लिए काम करने का वायदा करती हूँ.
जवाब देंहटाएंमैंने नरेश जी से भी तस्लीम पर आने को कहा है और उन तक आप सबका सन्देश भी पंहुचा दिया है. डा. भारती जी नरेश जी का मोबाइल नो नोट कर लें -----09415324329
धन्यवाद अरविन्द जी और जाकिर ....
मीनू खरे
वाकई पऱेरणादायी लेख है। एचअाईवी से लड़ाई को िसफॆ उत्तर पऱदेश से जोड़ने की नहीं बिल्क इसका दायरा और अागे बढ़ाने की भी जरूरत है।
जवाब देंहटाएंमीनु खरे जी को मेरी तरफ़ से भी बहुत बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंबधाई मीनू जी! दहलीज़ ने ठीक कहा. इस तरह के और भी प्रेरक लेख आल इंडिया से आने चाहिए. धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंMeenu ji ko Hardik Badhayi.
जवाब देंहटाएंमीनू खरे जी द्वारा आए पहेली के पहले सही उत्तर के रूप में बधाईयों का सिलसिला जारी है। उनका लेख पाठकों द्वारा सराहा गया, यह देखकर 'तस्लीम' परिवार को अतीव प्रसन्नता हो रही है।
जवाब देंहटाएंशास्त्री जी ने मीनू जी के सम्बंध में लिखा है- उम्मीद है कि वे "तस्लीम" से जुड जाएंगी, जिससे हम आम चिटठाकार अधिक से अधिक वैज्ञानिक जानकारी पा सकें।
शास्त्री जी, आपकी उम्मीद रंग ले आई है। मीनू जी ने आप सबका उत्साह देखकर खुद ही घोषणा कर दी है- मुझे "तस्लीम" से जुड कर बहुत अच्छा लगा। आगे भी इसके लिए काम करने का वायदा करती हूं। ..मैंने नरेश जी से भी "तस्लीम" पर आने को कहा है। मीनू जी आपका बहुत-बहुत शुक्रिया तस्लीम से जुडने का। निसंदेह इससे "तस्लीम" को और बल मिलेगा। अगर नरेश जी भी हमसे जुडते हैं, तो ये हमारे लिए और प्रसन्नता का विषय होगा। इसके लिए भी आपका अग्रिम आभार।
दहलीज की ओर से सुझाव आया है- एचआईवी से लडाई को सिर्फ उत्तर प्रदेश से जोडने की नहीं, बल्कि इसका दायरा और आगे बढाने की भी जरूरत है। इस सम्बंध में मैं कहना चहूंगा कि "तस्लीम" भले ही उ0प्र0 में एक प्रादेशिक संस्था में रूप में रजिस्टर्ड है, पर इसके पाठक पूरी दुनिया में फैले हैं। हाँ, इसके लेखक अभी जरूर उ0प्र0 के हैं। लेकिन हम इस मंच से बराबर यह आग्रह करते हैं कि यदि प्रदेश के बाहर का भी कोई व्यक्ति इससे जुडना चाहता है, तो "तस्लीम" में उसका स्वागत है।
प्रवीण त्रिवेदी जीकह रहे हैं- ..और अति उत्साह के लिए अरविंद जी ने माफी मांग ली थी। लेकन मुझे यह जाकिर जी से मांगनी चाहिए थी, सो जाकिर जी करें मास्टर को मुआफ। मास्टर साहब, इसमें माफी की क्या बात है? यह तो 'तस्लीम' के प्रति आपका अपनापन है जो आपने इतने अधिकार से मीनू जी को तख्तेताउस पर बैठा दिया। और फिर इससे आपका सही उत्तर के प्रति कांफिडेंस भी तो झलकता है। मैं आपके इस कांफिडेंस को सलाम करता हूं। और वैसे भी मास्टर साहब में इतना कांफिडेंस तो होना भी चाहिए।
सुमन जी कह रही हैं- दहलीज ने ठीक कहा, इस तरह के और भी प्रेरक लेख ऑल इंडिया से आने चाहिए। सुमन जी हम आपकी राय से पूरी तरह से इत्तेफाक रखते हैं। "तस्लीम" को जहाँ से भी इस तरह के प्रेरक आलेख मिलेंगे, उन्हें पाठकों की सेवा में प्रस्तुत करके हमें प्रसन्नता होगी।
Meenu ji, aapka preenaprad lekh padh kar achchha laga. is jyoti ko jalaaye rakhiye.
जवाब देंहटाएंप्रवीण त्रिवेदी...प्राइमरी का मास्टर
जवाब देंहटाएंअपने सही व्यक्ति से ही माफी माँगी थी -जवाब मेरा ही था जाकिर ने इसे केवल पोस्ट किया था -मैं आपको माफ़ कर बहुत आनंदित हूँ और आपकी विनम्रता पर ख़ुद भी और विनम्र ! ऐसी और भी खूबसूरत गलतियों का आपको मौका मिलता रहे !
I talked to Mr.Naresh Yadav yesterday and conveyed my good wishes for his campaign against HIV. Thanx meenu ji for his mob. number...
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा प्रेरणादायक लेख, और बहुत अच्छी लेखन-शैली. बधाई मीनू जी! नरेश जी और हम सब एचअाईवी से लड़ाई में विजयी हो ऐसी कामना है.
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंपहले तो मीनू जी को समाज के इस पहलू को छूने की बधाई। पर मीनू जी, आपने भी रास्ता दिखाने का नहीं, रास्ते पर चलने का ही कार्य किया, आपने उस पहलू को शब्दों के प्रयोग से दबा दिया। तीसरे और चौथे पैराग्राफ में आपको यह स्पष्ट लिखना चाहिये था कि नरेश जी को एडस किस वजह से हुआ। वह कहॉ पर कमजोर हुये जो उन्हे नहीं होना चाहिये था। यही मुददा मुख्य है। इस पर स्पष्टता जरूरी है। जागरूकता के लिये दिया जाना वाला संदेश यहीं पर दिया जाना चाहिये था एवं लेख भी यहीं पर स्टांग करना चाहिये था। खैर, प्रयास सराहनीय है।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद संत जी. इतने पाठको में केवल आपने इस बिंदु पर ध्यान दिया. किसी HIV + व्यक्ति से मिल कर यह जिज्ञासा तो होती ही है की इसे HIV किस वजह से हुआ. संत जी, HIV एक संवेदनशील मुद्दा है, उसके लिए भी जिसे HIV है और उसके लिए भी जो इसकी reporting कर रहा है. Reporter का एक-एक शब्द दूर तक प्रभाव छोड़ता है शायद वहां तक जहाँ तक हम सामान्य लोग सोच भी नहीं पाते. इसी लिए HIV reporting के लिए विशिष्ठ ट्रेनिंग पत्रकारों को दी जाती है. जब तक कोई स्वेच्छा से न बताये एक HIV + व्यक्ति से उसके इन्फेक्शन का कारण पूछना पत्रकारिता के शिष्टाचार और मर्यादा के विपरीत माना जाता है. नरेश जी ने इन्फेक्शन का कारण स्वेच्छा से नहीं बताया, इसी कारण मैंने ना ही पूछा और ना ही इस पर कुछ लिखा. HIV 4 कारणों से फैलता है---असुरक्षित यौन सम्बन्ध, संक्रमित रक्त, संक्रमित सुईयां या माँ से बच्चे में. इनमे से ही कोई कारण नरेश जी का भी होगा.हमें इन सभी कारणों से बचने की कोशिश करनी चाहिए. मुद्दा यह नहीं की नरेश जी को HIV किस वजह से हुआ, मुददा यह है कि HIV की जंग वो किस दिलेरी से लड़ रहे हैं. उनकी इस जंग मे आप समेत हम सभी उनके साथ हैं और उनकी जीत के प्रति आश्वस्त भी ... और हाँ नरेश जी HIV + ज़रूर हैं पर उन्हें AIDS नहीं है और ना ही कभी होगा ....ऐसा हम सबका विश्वास है.
जवाब देंहटाएंतथास्तु !!!!
पुन मैं आपके इस कार्य की मुक्त कंठ से प्रशन्सा करता हूँ पर मैं भविष्य में किसी की सहायता करने के लिये यह समझना चाहता हूँ कि असंक्रमित लोगों का बचाना ज्यादा जरूरी है या संक्रमित लोगों की दिलेरी को हौसला देना। अगर जवाब देंगी तो सिर्फ हां या ना। दोनों जरूरी हैं, नहीं। क्योंकि मुझे लगता है कि कोई भी जंग को जीतने के लिये उसके ‘’कैसे जीत सकते हैं’’ से ज्यादा ‘’कैसे हार जायेगें’’ पर ध्यान देना महत्वपूर्ण होता है। तो जहॉं जहॉं कमजोर कडिया हैं उन पर नहीं, सिर्फ उन्हीं पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है। जैसे दो और दो पांच होता है। अब जब दो और दो के बाद कुछ लिखा ही नहीं है तो हम गलत क्या है, कैसे दूसरों को समझायेगें। कमजोरी का कारण जाने बिना उसे कैसे दूर करें। क्योंकि दूसरों को बता कर वहीं सचेत करना होगा कि जहां पर वह गलती कर सकते हैं। रही बात नरेश जी की। तो हम इससे सिर्फ यह कह के नहीं भाग सकते कि उन्होने बताया नहीं। पूछने वाले की यही काबिलियत है कि वह नरेश जी से मरहम लेकर उसी मरहम से समाज को स्वस्थ करें। उनमें जब सामने लाने का हौसला जगाया है तो गांधी जी के चोरी की आदत स्वीकारने का उदाहरण देकर यहॉं तक भी लाना ही होगा। जिसे आप बखूबी निभा सकती हैं। इसका दूसरा उदाहरण यौन शिक्षा है, जिस पर स्पष्ट चर्चा करने से पहले हमें खुद को तैयार करना होता है कि हम उस विषय पर चर्चा करने जा रहे हैं जिस पर सामान्यत मां बेटा या बाप बेटी आपस में ताउम्र बात नहीं करते।
जवाब देंहटाएंमैम् पता है कभी कभी हम अपनी महत्वूपूर्ण चीजें इतनी ज्यादा हिफाजत से रख देते हैं कि सही वक्त पर भी उसे ढूढ नहीं पाते और उसका उपयोग नहीं हो पाता, वह बेकार हो जाती हैं। कुछ ऐसा ही मुझे प्रतीत हो रहा है।
आप ब्राहमण जाति से विशेष लगाव रखती हैं। आपने सुधी पाठकों की राय मांगी हैं। क्या गुप्ता, श्रीवास्तव, सिंह या अन्य अच्छी राय नहीं दे सकते। भविष्य में गुप्ताओं, श्रीवास्तवों और सिहों आदि सबकी राय मांगियेगा। सबसे अच्छी राय तो राय साहब दे सकते हैं। वैसे मैं बता दूँ कि मैं गुप्ता हूँ। कमरे का माहौल ज्यादा गम्भीर हो रहा था इसलिये खिडकी से बाहर झांकने की कोशिश की। माफ कीजिऐगा।
आपका समय कीमती है कहीं मैं इसे बेवजह बर्बाद तो नहीं कर रहा हूँ। अगर न हो तो फिर कभी बात करियेगा।
बड़ी रोचक टिप्पणी है आपकी संत जी! आगे भी आपसे बातें होती रहेंगी तस्लीम के माध्यम से. धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंनरेश यादव को उनके साहस के लिये सलाम । मीनू जी को धन्यवाद कि वो इनको हमारे सामने लाये ।
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