तो मित्रों खूब पहचाना आप सभी ने पिछली पहेली के जानवर को ....मतलब प्रयास तो सभी ने किया ही .मगर जिनके जवाब अव्वल रहे उनमें डॉ अमर कुमार ,अनिल...
तो मित्रों खूब पहचाना आप सभी ने पिछली पहेली के जानवर को ....मतलब प्रयास तो सभी ने किया ही .मगर जिनके जवाब अव्वल रहे उनमें डॉ अमर कुमार ,अनिल पुसदकर ,ज्ञान जी ,मीत ,जाकिर हुसैन ,निशांत मिश्र ,सचिन रहे जिन्होंने इस जानवर को सांडा या स्पाइयिनी लिजार्ड बता कर यह साबित कर दिया कि उन्होंने भारत के जन जीवन -उसके कंट्री साईड की नब्ज को टटोली है -ज्ञान जी का जवाब उनके सूक्ष्म परिवेश पर्यवेक्षण की ओर इंगित करता है -"बहुत पहले साण्डे का तेल बेचने वालों को सड़क के किनारे ऐसे ही जन्तुओं को रीढ़ की हड्डी तोड कर रखे देखा था। बहुत बर्बर था वह।"
मुझे तो लगता था कि इस बार की पहेली को लोग चुटकियों में बूझ जायेंगे ,पर यहाँ भी तीर तुक्का लगा जिससे मुझे थोडा मायूसी भी हुयी कि लोग बाग़ अपने भारत को भी ठीक से देख जान नही पाये हैं .भारत और कम से कम उत्तर भारत का शायद ही कोई शहर हो ,चौक या कचहरी हो जहाँ सांडे यानी पहेली के हतभाग्य जानवर का तेल बेचने वाले घूमंतू नीम हकीम -लोक चिकित्सक न दिख जाएँ .सांडे के तेल को पुरुषों के लिए स्तम्भन शक्ति बढ़ाने वाला बता कर बेचने वाले सड़क छाप डाक्टर अपने इर्द गिर्द भीड़ जुटाए रहते हैं -शायद हमारे भद्र मित्र ऐसी जगहों से दूरी बनाए रहते हो -और इसलिए ही इस जानवर को नहीं पहचान पाये ! अब डॉ अमरकुमार जी ,अनिल पुसदकर और ज्ञान जी भी (भले ही थोडा दूर से ही सही) ऐसे तमाशों को देखते ही आयें हैं मेरी ही तरह .भले ही सांडे के तेल के कथित गुणों से प्रभावित होकर भी उसका इस्तेमाल न किए हों ,उसकी जरूरत ही नहीं रही हो ! मगर हर तमाशबीन खाली हाथ लौटता हो ऐसा नहीं -लोगों की आदिम इच्छा और अंधविश्वास की बलि चढ़ रहा बिचारा यह नन्हा सा सीधा साधा ,भोला भाला जीव लोगों से अपनी प्राण रक्षा का मूक आर्तनाद कर रहा है !
भारत में छिपकलियों के प्रमुख परिवारों -गेक्को ,अगामिड ,कैमेलियान ,स्किंक ,लासेर्तिड्स ,ग्लास लिज़र्ड्स ,मानीटर्स में से सांडा जिसका प्रानिशास्त्रीय नाम यूरोमैसटीकस हार्डविक्की है और अंगरेजी में जिसे स्पायिनी टेल्ड लिजार्ड बोलते हैं अगामिड परिवार के हैं .यह ३५०-४८९ मीलीमीटर का छोटा प्राणी है और इतना निरीह और सीधा साधा कि पकड़े जाने पर भी काटता नहीं .नर की पूंछ लम्बी होती है जिस पर कांटेदार स्केल होते है और यही थोडा बहुत इनकी दुश्मनों से रक्षा करते हैं -पर मनुष्य नाम के दुश्मन से कौन पार पाये !यह उत्तर प्रदेश ,राजस्थान ,मध्य प्रदेश के कुछ हिस्सों ,गुजरात के कच्छ क्षेत्र से पाकिस्तान तक मिलते है और सड़क के किनारे दवाईयां बेचने वालों के जरिये दूर दराज के भारत में भी दिख जाते हैं .यह अपने द्वारा खोदे गए सुरंग में प्रायः अकेला रहता है .प्रायः यह शाकाहारी है -फल फूल खाकर गुजर बसर करता है ,हाँ टिड्डियों की भरमार होने पर उसका भी भक्षण स्वाद के लिए कर लेता है ।
इसे लोग खाते भी हैं जो यह दावा करते हैं कि इसका मांस चिकेन जिसा होता है .इसकी चर्बी जो पीले द्रव सी होती है जाडे में भी नही जमती और एक मालिश द्रव( एम्ब्रोकाशन ) के रूप मे जानी मानी जाती रही है और इसी के चलते इस नन्हे से जीव की जान पर बन आयी है .घुम्मकड़ चिकित्सकों द्वारा बर्बरता से इनकी रीढ़ की हड्डी तोड़ कर अपने पास रखा जाता है और तेल में खौला कर इस स्तम्भन शक्ति को बढ़ाने वाला मालिश द्रव्य को लंबे चौडे दावों के साथ बेचा जाता है .मगर यह नृशंस खेल हर हाल में रुकना चाहिए -तस्लीम की यह अपील है !
अब आईये ज़रा ग़लत जवाबों की भी तो खैर ख़बर ले ली जाय मगर सभी को पहले तो तहे दिल से आभार कि उन्होंने इस पहेली में भाग लिया पर थोड़ी सी मित्रवत खिंचाई भी !पारुल जी को तो इन जीवों से डर लगता है तो सीधी आंखों से इन्हे अपने बगीचे में भीनहीं देख पातीं तो अब बताएं भी कैसे ?जितेन्द्र जी गिरगिट और अजगर में उलझ कर रह गए .संजय बेंगाणी जी ने प्रयास तो किया पर दीवार की छिपकली तक ही सीमित रह गए .सीमा गुप्ता जी लगता है चाय की ज्यादा शौकीन हैं इसलिए उनके लिए यह कमेलियान बन कर दिखा .मित्र भूत भंजक ने छूटते ही हारी मान ली .रंजना जी भीजानवरों के मामले में कम छुई मुई तो हैं नहीं इन्होने भी डरकर ग़लत जवाब दे दिया .वाह एडवोकेट रश्मि सौराना जी वाह आपने इसे गिरगिट ही कह डाला ताकि आगे कह सकें कि हुजूर यह रंग बदल कर अब सांडा हो गया है -यहाँ भी वकालत !भैया अभिषेक काहें का बलियाटिक जवान हो यार ,ज़रा अपने गाँव गिराव के दोस्तों से फोनवा लगा कर पूछना तो कि सांडा किस मर्ज की दवा है और हमें ईमेल करना भाई !जब खुद्दे सड़क के यायावारों को इन्हे बेचता देखे तो एक बार तो जांचना पूछना था भाई !ममता जी ने बड़ा सा विवरण तो इसका दिया पर नाम नहीं बताया -ममता जी, कई छिपकलियों के तेल बेंचे जाते हैं !सुयिअतर ने इसे गोह बताया -पहली बार आयें हैं अतः अभयदान !और अपने महेन्दर मिशिर जी तो हर दैय्यें लाल बुझक्कड़औ का नंबर काट देते हैं -उनके मुताबिक अगर कौनो चीज पहिचान में ना आवे तो फौरन ओके पहाडी बतावै के बा ! त ई पहाडी छिपकली है उनके मुताबिक .राज भाटिया जी को छोडिये विदेश में बैठे हैं अपने अशोक पांडे जी कैसे चूक गए उनको तो इसे आँख मूद कर बताना था .अब लवली जी को फोटू ही छोटा लगा और तड से एक बार फिर नाईंसाफी का इल्जाम मेरे सर पर -लवली जी जान का अमान पाऊँ तो हजूर से इक विनती करुँ -कुछ न जानने परकिसी और पर दोष मढ़ने पर एक मुंहावारा लोगों के जुबान पर रहता है ( प्लीज गुस्सा नहीं !).अर्शिया और ज़ाकिर भी नावाबों के शहर में हैं भद्र जन हैं ,इन क्षुद्र जीवों पर उनकी नज़र कहाँ ?
और देर से आए पर फिर भी दुरुस्त नही आए हमारे चहेते समीर जी, इन दिनों वे कहां खोये हुए हैं यह शोध का विषय है .रविकांत पांडे जी भी गोह तक ही सीमित रह गए !मीनूखरे जी ने तस्लीम पर इस पहेली घटक की बडाई तो की पर पहेली बूझने से दूर रहीं -मैं आपको अपनी बढिया वाली शुक्रिया तो तब देता जब आपने कुछ तो अटकल लगाई होती पर चलिए एक औपचारिक धन्यवाद की हकदार तो आप हैं हीं.अंततः स्मार्ट इन्डियन ने भी थोड़ी स्मार्टनेस दिखाई और छिपकली कहकर अपनी भागीदारी की इतिश्री कर ली !
आप सभी को एक बार फिर शुक्रिया -फिर मिलेंगे जल्दी ही एक और जोरदार पहेली के साथ .विदा !
मुझे तो लगता था कि इस बार की पहेली को लोग चुटकियों में बूझ जायेंगे ,पर यहाँ भी तीर तुक्का लगा जिससे मुझे थोडा मायूसी भी हुयी कि लोग बाग़ अपने भारत को भी ठीक से देख जान नही पाये हैं .भारत और कम से कम उत्तर भारत का शायद ही कोई शहर हो ,चौक या कचहरी हो जहाँ सांडे यानी पहेली के हतभाग्य जानवर का तेल बेचने वाले घूमंतू नीम हकीम -लोक चिकित्सक न दिख जाएँ .सांडे के तेल को पुरुषों के लिए स्तम्भन शक्ति बढ़ाने वाला बता कर बेचने वाले सड़क छाप डाक्टर अपने इर्द गिर्द भीड़ जुटाए रहते हैं -शायद हमारे भद्र मित्र ऐसी जगहों से दूरी बनाए रहते हो -और इसलिए ही इस जानवर को नहीं पहचान पाये ! अब डॉ अमरकुमार जी ,अनिल पुसदकर और ज्ञान जी भी (भले ही थोडा दूर से ही सही) ऐसे तमाशों को देखते ही आयें हैं मेरी ही तरह .भले ही सांडे के तेल के कथित गुणों से प्रभावित होकर भी उसका इस्तेमाल न किए हों ,उसकी जरूरत ही नहीं रही हो ! मगर हर तमाशबीन खाली हाथ लौटता हो ऐसा नहीं -लोगों की आदिम इच्छा और अंधविश्वास की बलि चढ़ रहा बिचारा यह नन्हा सा सीधा साधा ,भोला भाला जीव लोगों से अपनी प्राण रक्षा का मूक आर्तनाद कर रहा है !
भारत में छिपकलियों के प्रमुख परिवारों -गेक्को ,अगामिड ,कैमेलियान ,स्किंक ,लासेर्तिड्स ,ग्लास लिज़र्ड्स ,मानीटर्स में से सांडा जिसका प्रानिशास्त्रीय नाम यूरोमैसटीकस हार्डविक्की है और अंगरेजी में जिसे स्पायिनी टेल्ड लिजार्ड बोलते हैं अगामिड परिवार के हैं .यह ३५०-४८९ मीलीमीटर का छोटा प्राणी है और इतना निरीह और सीधा साधा कि पकड़े जाने पर भी काटता नहीं .नर की पूंछ लम्बी होती है जिस पर कांटेदार स्केल होते है और यही थोडा बहुत इनकी दुश्मनों से रक्षा करते हैं -पर मनुष्य नाम के दुश्मन से कौन पार पाये !यह उत्तर प्रदेश ,राजस्थान ,मध्य प्रदेश के कुछ हिस्सों ,गुजरात के कच्छ क्षेत्र से पाकिस्तान तक मिलते है और सड़क के किनारे दवाईयां बेचने वालों के जरिये दूर दराज के भारत में भी दिख जाते हैं .यह अपने द्वारा खोदे गए सुरंग में प्रायः अकेला रहता है .प्रायः यह शाकाहारी है -फल फूल खाकर गुजर बसर करता है ,हाँ टिड्डियों की भरमार होने पर उसका भी भक्षण स्वाद के लिए कर लेता है ।
इसे लोग खाते भी हैं जो यह दावा करते हैं कि इसका मांस चिकेन जिसा होता है .इसकी चर्बी जो पीले द्रव सी होती है जाडे में भी नही जमती और एक मालिश द्रव( एम्ब्रोकाशन ) के रूप मे जानी मानी जाती रही है और इसी के चलते इस नन्हे से जीव की जान पर बन आयी है .घुम्मकड़ चिकित्सकों द्वारा बर्बरता से इनकी रीढ़ की हड्डी तोड़ कर अपने पास रखा जाता है और तेल में खौला कर इस स्तम्भन शक्ति को बढ़ाने वाला मालिश द्रव्य को लंबे चौडे दावों के साथ बेचा जाता है .मगर यह नृशंस खेल हर हाल में रुकना चाहिए -तस्लीम की यह अपील है !
अब आईये ज़रा ग़लत जवाबों की भी तो खैर ख़बर ले ली जाय मगर सभी को पहले तो तहे दिल से आभार कि उन्होंने इस पहेली में भाग लिया पर थोड़ी सी मित्रवत खिंचाई भी !पारुल जी को तो इन जीवों से डर लगता है तो सीधी आंखों से इन्हे अपने बगीचे में भीनहीं देख पातीं तो अब बताएं भी कैसे ?जितेन्द्र जी गिरगिट और अजगर में उलझ कर रह गए .संजय बेंगाणी जी ने प्रयास तो किया पर दीवार की छिपकली तक ही सीमित रह गए .सीमा गुप्ता जी लगता है चाय की ज्यादा शौकीन हैं इसलिए उनके लिए यह कमेलियान बन कर दिखा .मित्र भूत भंजक ने छूटते ही हारी मान ली .रंजना जी भीजानवरों के मामले में कम छुई मुई तो हैं नहीं इन्होने भी डरकर ग़लत जवाब दे दिया .वाह एडवोकेट रश्मि सौराना जी वाह आपने इसे गिरगिट ही कह डाला ताकि आगे कह सकें कि हुजूर यह रंग बदल कर अब सांडा हो गया है -यहाँ भी वकालत !भैया अभिषेक काहें का बलियाटिक जवान हो यार ,ज़रा अपने गाँव गिराव के दोस्तों से फोनवा लगा कर पूछना तो कि सांडा किस मर्ज की दवा है और हमें ईमेल करना भाई !जब खुद्दे सड़क के यायावारों को इन्हे बेचता देखे तो एक बार तो जांचना पूछना था भाई !ममता जी ने बड़ा सा विवरण तो इसका दिया पर नाम नहीं बताया -ममता जी, कई छिपकलियों के तेल बेंचे जाते हैं !सुयिअतर ने इसे गोह बताया -पहली बार आयें हैं अतः अभयदान !और अपने महेन्दर मिशिर जी तो हर दैय्यें लाल बुझक्कड़औ का नंबर काट देते हैं -उनके मुताबिक अगर कौनो चीज पहिचान में ना आवे तो फौरन ओके पहाडी बतावै के बा ! त ई पहाडी छिपकली है उनके मुताबिक .राज भाटिया जी को छोडिये विदेश में बैठे हैं अपने अशोक पांडे जी कैसे चूक गए उनको तो इसे आँख मूद कर बताना था .अब लवली जी को फोटू ही छोटा लगा और तड से एक बार फिर नाईंसाफी का इल्जाम मेरे सर पर -लवली जी जान का अमान पाऊँ तो हजूर से इक विनती करुँ -कुछ न जानने परकिसी और पर दोष मढ़ने पर एक मुंहावारा लोगों के जुबान पर रहता है ( प्लीज गुस्सा नहीं !).अर्शिया और ज़ाकिर भी नावाबों के शहर में हैं भद्र जन हैं ,इन क्षुद्र जीवों पर उनकी नज़र कहाँ ?
और देर से आए पर फिर भी दुरुस्त नही आए हमारे चहेते समीर जी, इन दिनों वे कहां खोये हुए हैं यह शोध का विषय है .रविकांत पांडे जी भी गोह तक ही सीमित रह गए !मीनूखरे जी ने तस्लीम पर इस पहेली घटक की बडाई तो की पर पहेली बूझने से दूर रहीं -मैं आपको अपनी बढिया वाली शुक्रिया तो तब देता जब आपने कुछ तो अटकल लगाई होती पर चलिए एक औपचारिक धन्यवाद की हकदार तो आप हैं हीं.अंततः स्मार्ट इन्डियन ने भी थोड़ी स्मार्टनेस दिखाई और छिपकली कहकर अपनी भागीदारी की इतिश्री कर ली !
आप सभी को एक बार फिर शुक्रिया -फिर मिलेंगे जल्दी ही एक और जोरदार पहेली के साथ .विदा !
अगली पहेली की प्रतीक्षा है। इस में जाने कैसे चूक गए हम।
जवाब देंहटाएंजितनी खुशी विजेताओं की सूची मे नाम पढ कर आया उससे ज्यादा पूरी पोस्ट पढ कर आया। समाचार संकलन के लिये अक्सर कचहरी जाना हुआ करता था,वहां मैने उन तेल बेचने वालों से बात की थी।एक तेल बेचने वाले का अन्दाज़ बेहद निराला था,जो मुझे याद रहा और सालों बाद पिछले वर्ष होली पर प्रेस क्लब मे मैने वो सुनाया था।मुख्यमंत्री रमण सिंह मुख्य अतिथि थे और दर्जनो मन्त्री,विधायक,और विशिष्ठ लोग उपस्थित थे। वो लाइने पेश कर रहा हुं,विश्वास है आप अन्यथा नहि लेंगे,वैसे आपकी आशा के अनुरुप मै इस तेल से दूर हि रहा।वो लाइने बोल तो नही सकत इसलिये लिख कर पेश कर रहा
जवाब देंहटाएंलकडी मे मारो खट-खट, लोहे मे मारो टन-टन, बच्चा लोग सोचेगा स्कूल क च्छुट्टी हो गया, लेकिन,नई बाबू, ये सान्डे के तेल का कमाल है॥ विश्वास है आप अन्यथा नही लेंगे,आपकी पोस्ट पढ कर वो किस्सा याद आ गया,सो लिख दिया,यदि गलत लगा हो तो अग्रिम क्षमा चाहूंगा
जवाब देंहटाएंपहेली के विजेताओ को मेरी शुभकामनाये . मै अपनी गलती स्वीकार करता हूँ . ठहरा विशुद्ध भारतीय पंडित और ठेट शहरी . मैंने सड़क किनारे इसका तेल बेचते देखा है . पर घिनापन लगने के कारण इन मजमो वालो के कभी समीप नही गया हूँ . दूर से देखा है इस तरह का प्राणी और भी मरे सांप आदि ये मजमे वाले रखते है .
जवाब देंहटाएं.
जवाब देंहटाएंक्यों दुखती रग छेड़ रहे हो, अरविन्द भाई ?
इस तेल के गुणों से अपरिचित होना ही तो हमारी त्रासदी है !
दरअसल, इस समय पूरे देश को ही साँडे के तेल की ज़रूरत है !
जानकारी बहुत अच्छी दी है .अब इस को कभी भूल नही पायेंगे ..पर अब आपकी जिम्मेवारी बढ़ गई है ..आगे से इसी तरह आपको हर पहेली का उत्तर देना होगा :) रोचक लगी आपकी यह पोस्ट ...रूचि बदती जा रही है इस तरह से अपने आस पास के परिवेश को जानने की ...विशेष कर शहर में रहने वाले हम जैसे लोगों के लिए जो बिल्कुल ही नही जानते हैं इस तरह के जीव जंतु के बारे में ...शुक्रिया अरविन्द जी
जवाब देंहटाएं:)
जवाब देंहटाएंक्या बात हे साँडे के तेल की, भाई जो खुद ही मरा पडा हे उस के तेल मे कोन सी ऎसी कमाल हो सकती हे,
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
डा अमर जी
जवाब देंहटाएंदेश के कर्णधारों को ज्यादा जरूरत है
इनको तो लगाना ही नहीं सांडे का तेल पिलाना भी पड़ेगा
जाकिर भाई
अच्छी प्रस्तुति के लिये आपका व अरविन्द जी का अभिनन्दन करता हूं
" congratulations to all the winners, ab yhan pr aaker lgta hai vakeey mey hum to bhut hee nalayk hain, fir bhee josh ke kamee nahee hai, kum se kum yha pr seekhne ka mauka to mil rha hai na. so waiting for next puzzle with full spirit..ha ha "
जवाब देंहटाएंRegards
अरविन्द जी नही माने ,सब लेखकों की उतार दी , साहित्य का यही तो आनंद है
जवाब देंहटाएंअरविंद जी, उत्तर देने का आपका यह तरीका, बधाई और खिंचाई दोनो, बहुत सुन्दर है। इसमें अपनापन झलकता है। आपको भी इस आयोजन के लिए बहुत बधाई। और हॉं, विजेता तो बधाई के हकदार हैं ही।
जवाब देंहटाएंसभी विजेताओं को बधाई !
जवाब देंहटाएंवैसे अरविन्द जी हमने इसे पहली बार अंडमान मे ही देखा था जहाँ इसे गोई या साल्ट वाटर क्रोकोडाईल कहा जाता है ।
ऊँ.ऊँ.ऊँ.हमने तो उत्तर दिया था । :)