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कहते हैं ज्ञान की कोई सीमा नहीं होती है। लेकिन होता यह है कि हम थोडा बहुत जो कुछ जान लेते हैं, उसी पर इतराने लगते हैं। जबकि सच्चाई यह है कि जितना हम जानते हैं, उससे कहीं-कहीं ज्यादा हमसे अनजाना होता है। हम अगर अपनी सारी उम्र भी इस ज्ञान की खोज में लगा दे , तो भी जितना कुछ अर्जित कर पाएंगे, वह कुल ज्ञान का एक छोटा सा भाग ही होगा। जैसे सागर की एक बूंद अथवा धरती की कुल मिटटी में एक मुठ्ठी बालू।
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किन्तु विज्ञान और विज्ञान कथा एक मूल फर्क है। इसी फर्क को समझने का एक प्रयास राष्ट्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संचार परिषद, नई दिल्ली द्वारा समर्थित कार्यशाला में देखने को मिला।
समकालीन समस्याओं को जो साहित्यिक कृतियाँ उजागर करती हैं, उनमें सामाजिक कहानी प्रमुख हैं लेकिन जब भविष्य की समस्याओं, मानवीय त्रासदियों को वैज्ञानिक ढंग से अभिव्यक्त किया जाता है, तो वे विज्ञान कथाओं का रूप ले लेती हैं। भदोही (उत्तर प्रदेश) स्थित होटल मेघदूत में आयोजित चार दिवसीय (06 से 09 सितम्बर 2008) कार्यशाला (बाल एवं किशोरों के लिए विज्ञान कथा लेखन) में सर्वमान्य रूप से विज्ञान कथा की यह परिभाषा उभर कर सामने आई।
यह कार्याशाला आचार्य केशव चंद्र मिश्र विचार मंच, देवरिया के तत्वाधान में आयोजित की गयी। देश के जाने माने विज्ञान कथाकारों और विज्ञान संचारकों ने इस कार्यशाला में काशीनरेश स्नातकोत्तर महाविद्यालय, ज्ञानपुर के विज्ञान के विद्यार्थियों के साथ विज्ञान कथा की मीमांसा की और उसकी लेखन प्रक्रिया पर प्रकाश डाला। कार्यक्रम में भाग लेने वाले प्रमुख विज्ञान संचारकों में डा0 अरविंद मिश्र, जाकिर अली "रजनीश", मनीष मोहन गोरे, जीशान हैदर जैदी, विजय चितौरी और डा0 मधु पंत के नाम शामिल हैं।
कार्यशाला के उदघाटन और तकनीकी सत्रों के बाद चार विज्ञान कथाकारों (जाकिर अली "रजनीश", मनीष मोहन गोरे, जीशान हैदर जैदी और विजय चितौरी) के नेतृत्व में चार समूहों का गठन किया गया, जिसमें विद्यार्थियों ने विज्ञान गल्प का सृजन किया। इन समूहों का मार्गदर्शन डा0 अरविंद मिश्र और डा0 मधु पंत के द्वारा किया गया। अपने गाइड के निर्देशन में कार्यशाला के प्रतिभागियों में से अनेक ने सुंदर रचनाओं का प्रणयन किया। उनमें से आठ श्रेष्ठ कहानियों का चयन करके उन्हें विज्ञान कथाकार मनीष मोहन गोरे का विज्ञान कथा संग्रह "325 साल का आदमी" पुरस्कार स्वरूप भेंट किया गया।
कार्यशाला के उदघाटन और तकनीकी सत्रों के बाद चार विज्ञान कथाकारों (जाकिर अली "रजनीश", मनीष मोहन गोरे, जीशान हैदर जैदी और विजय चितौरी) के नेतृत्व में चार समूहों का गठन किया गया, जिसमें विद्यार्थियों ने विज्ञान गल्प का सृजन किया। इन समूहों का मार्गदर्शन डा0 अरविंद मिश्र और डा0 मधु पंत के द्वारा किया गया। अपने गाइड के निर्देशन में कार्यशाला के प्रतिभागियों में से अनेक ने सुंदर रचनाओं का प्रणयन किया। उनमें से आठ श्रेष्ठ कहानियों का चयन करके उन्हें विज्ञान कथाकार मनीष मोहन गोरे का विज्ञान कथा संग्रह "325 साल का आदमी" पुरस्कार स्वरूप भेंट किया गया।
कार्यशाला के दौरान काशीनरेश स्नातकोत्तर महाविद्यालय, ज्ञानपुर के प्राचार्य डा0 आर0के0 तिवारी, लेक्चरर डा0 अश्विनी कुमार मिश्र, डा0 रमापति शुक्ल, डा0 कमाल अहमद सिददीकी, डा0 राजकुमार पाठक, डा0 पी0एन0 डोगरे आदि ने भी संबोधित किया। कार्यक्रम के संयोजक एवं संचालक श्री अनिल कुमार त्रिपाठी ने अंत में सभी प्रतिभागियों को शुभमानाएँ दीं एवं सभी विषय विशेषज्ञों के प्रति आभार ज्ञापित किया।
हमारी संस्था ने ग्रहों के मनुष्य के उपर पड़नेवाले प्रभाव के अध्ययन के क्रम में कुछ वैज्ञानिक तथ्य ढूंढ़े हैं। हम इससे संबंधित कुछ बातें कहीं पर रख सकते हैं ? हमलोगोa ने कई जगहों पर संपर्क किया , पर सफलता नहीं मिल पायी है।
जवाब देंहटाएंacha hai...
जवाब देंहटाएंlogo ko vigyan ke kshetra mein age badhne mein sahayta hogi...
संगीता जी, आप अपने तथ्य हमें मेल ( zakirlko@gmail.com ) कर दें। उनका परीक्षण करने के बाद यदि हमारी संस्था उनसे सहमत हुई, तो आपको ऐसे किसी कार्यक्रम में आमंत्रित किया जा सकता है।
जवाब देंहटाएंहमारी सरकार विज्ञान को ज़्यादा प्रोत्साहित नहीं करती...जबकि ऐसा होना चाहिए...स्वयंसेवी संस्थाएं बच्चों को प्रोत्साहित करने के साथ ही सरकार का ध्यान भी इस तरफ़ दिला सकती हैं...
जवाब देंहटाएंमैं यह जानने की उत्सुकता से यहाँ आया था कि आम जनता में वैज्ञानिक सोच विकसित करने के कुछ व्यावहारिक मन्त्र मिलेंगे किन्तु यहां कुछ और ही मिला। फ़िर भी कहना चाहूँगा कि आप लोगों का यह कार्य बहुत महत्व का है और चुनौतीपूर्ण भी है।
जवाब देंहटाएंकभी अगली पोस्टों में इस पर प्रकाश डालिये कि इस तरह की गोष्टियों या कार्यशालाओं की विषय-सूची क्या और कैसी होनी चाहिये?
Vigyan katha ka hindi men bura hal hal. shayad aise aayojnon se use kuchh disha mile.
जवाब देंहटाएंबिल्कुल सही कहा है आपने.
जवाब देंहटाएंतस्लीम की समीक्षा यहाँ आ गई है . इस पर आपके विचार जान कर मुझे बहुत खुशी होगी ..
जवाब देंहटाएंhttp://www.hindimedia.in/content/view/3472/168/
जमाये रहिये जी विज्ञान का काम।
जवाब देंहटाएं.
जवाब देंहटाएंजानकारी देने हेतु धन्यवाद,
क्या पुरस्कृत रचनाओं का प्रकाशन यहाँ पर निकट भविष्य
में संभावित होगा । इनके सोचने की दिशा से परिचित होने की
उत्सुकता है ।
बहुत ही अच्छी जानकारी, धन्यवाद
जवाब देंहटाएंज़ाकिर ,कृपया डॉ अमर जी के अनुरोध को चरितार्थ करें !
जवाब देंहटाएंहमें, हमारे समाज को वैज्ञानिक सोच की बहुत जरूरत है, जो अब भी तर्कहीन बातों के ही तर्क फेंकता-लपेटता है। विज्ञान ही तो ज़िंदगी की गुत्थियों को समझाता है। अच्छा लिखा।
जवाब देंहटाएंजानकारी देने हेतु धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंथोड़ा और विस्तार देते तो अच्छा होता.
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा काम कर रहे हैं आप लोग, बधाई!
जवाब देंहटाएंअमर जी, आपका सुझाव काबिले गौर है। हमारा प्रयास रहेगा कि उक्त कार्यशाला में लिखी गयी चुनिंदा रचनाओं को यहाँ पर शीघ्रातिशीघ्र प्रकाशित किया जाए। इस उपयोगी सुझाव के लिए आभार।
जवाब देंहटाएंAise karyakram hote rahne chahiye.
जवाब देंहटाएंविज्ञान कथाओं के सफर को युवा रचनाकारों से जोड़ने का यह काफी उत्कृष्ट प्रयास था, जिसका मैं भी साक्षी रहा. B H U जैसे संस्थानों में भी जहाँ संचार के विभिन्न संसाधन भी सुलभ हैं ऐसे प्रयास हों तो वे और भी प्रभावी होंगे.
जवाब देंहटाएंAbhishek Mishra
karyshala ki posting achchhi rahi mujhe apne purane din yaad aa gaye
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