मित्रों , आप सभी ने खूब पहचाना अपने नेशनल एनीमल बाघ को .....और यह तो आपको पहचानना ही था -रास्त्रीय अस्मिता का मामला जो ठहरा .आप सभी को शुक्र...
मित्रों ,
आप सभी ने खूब पहचाना अपने नेशनल एनीमल बाघ को .....और यह तो आपको पहचानना ही था -रास्त्रीय अस्मिता का मामला जो ठहरा .आप सभी को शुक्रिया ....मगर मैं सबसे ज्यादा शुक्रगुजार हूँ एनानीमस जी का जिन्होंने मुझे मेरे उस मकसद तक मुझे पहुंचा दिया जिस के लिए यह पहेली तैयार की गयी थी .
उन्होंने टाईगर को एक बार तो चीता बता दिया ..मगर उनका कांफिडेंस थोडा डिगा तो उन्होंने अंधेरे में एक निशाना और मारा -लकड़बघ्घा .ऐसा उन्होंने मजाक में नही किया है .और न ही उनका कोई दोष है .
यह सारी समस्या बाबा आदम के जमाने की पुरानी डिक्सनरी -भार्गवा डिक्सनरी में टाईगर माने चीता लिख देने से हुयी .अब नए संस्करण में यह भूल सुधार ली गयी है .
इस डिक्सनरी के चलते एक दो पीढियों की जुबान पर टाईगर माने चीता चढ़ गया .इसलिए ही जब तमिल टाईगर्स का जुमला अन्ग्रेजे पत्रकारिता में उछला तो हिन्दी के उसी पीढी के पत्रकार भाईयों ने झट से इसका हिन्दी तर्जुमाँ किया -तमिल चीते -जबकि सही अनुवाद था -तमिल व्याघ्र .
अरे भाई ,चीता जो अब भारतीय जंगलों से १९५० से ही लुप्त हो चुका है संस्कृत के शब्द चित्ताह से बना है -मतलब स्पोटेड .और पूरे दिनयां की हर भाषा में इस संस्कृत शब्द को ही अडाप्ट कर लिया गया है -चीते अब अफ्रीका में मिलते है पर नाम निरा हिन्दुस्तानी है ,
तो तय पाया कि चीते भारत से लुप्त हो चुके मगर आज भी गाहे बगाहे हिन्दी के अखबार यह उद्घोष कर देते हैं -स्मगलरों के पास से चीते की खाल बरामद -जबकि वह बाघ की खाल होती है -अंगरेजी के अखबार उसी ख़बर को इस शीर्षक से छापते हैं -स्मगलर्स काट विथ टाईगर स्किन .
बहरहाल ,बाघ को संस्कृत में व्याघ्र कहते हैं .१९७२ से यह हमारा नेशनल एनीमल है .इसके पहले हमारा नेशनल एनीमल सिंह या शेर हुआ करता था -जो आज भारत में ही एक अभिशप्त जीवन जी रहा है -वह एक अलग दारुण कथा है जो फिर कभी ........
आप सभी ने खूब पहचाना अपने नेशनल एनीमल बाघ को .....और यह तो आपको पहचानना ही था -रास्त्रीय अस्मिता का मामला जो ठहरा .आप सभी को शुक्रिया ....मगर मैं सबसे ज्यादा शुक्रगुजार हूँ एनानीमस जी का जिन्होंने मुझे मेरे उस मकसद तक मुझे पहुंचा दिया जिस के लिए यह पहेली तैयार की गयी थी .
उन्होंने टाईगर को एक बार तो चीता बता दिया ..मगर उनका कांफिडेंस थोडा डिगा तो उन्होंने अंधेरे में एक निशाना और मारा -लकड़बघ्घा .ऐसा उन्होंने मजाक में नही किया है .और न ही उनका कोई दोष है .
यह सारी समस्या बाबा आदम के जमाने की पुरानी डिक्सनरी -भार्गवा डिक्सनरी में टाईगर माने चीता लिख देने से हुयी .अब नए संस्करण में यह भूल सुधार ली गयी है .
इस डिक्सनरी के चलते एक दो पीढियों की जुबान पर टाईगर माने चीता चढ़ गया .इसलिए ही जब तमिल टाईगर्स का जुमला अन्ग्रेजे पत्रकारिता में उछला तो हिन्दी के उसी पीढी के पत्रकार भाईयों ने झट से इसका हिन्दी तर्जुमाँ किया -तमिल चीते -जबकि सही अनुवाद था -तमिल व्याघ्र .
अरे भाई ,चीता जो अब भारतीय जंगलों से १९५० से ही लुप्त हो चुका है संस्कृत के शब्द चित्ताह से बना है -मतलब स्पोटेड .और पूरे दिनयां की हर भाषा में इस संस्कृत शब्द को ही अडाप्ट कर लिया गया है -चीते अब अफ्रीका में मिलते है पर नाम निरा हिन्दुस्तानी है ,
तो तय पाया कि चीते भारत से लुप्त हो चुके मगर आज भी गाहे बगाहे हिन्दी के अखबार यह उद्घोष कर देते हैं -स्मगलरों के पास से चीते की खाल बरामद -जबकि वह बाघ की खाल होती है -अंगरेजी के अखबार उसी ख़बर को इस शीर्षक से छापते हैं -स्मगलर्स काट विथ टाईगर स्किन .
बहरहाल ,बाघ को संस्कृत में व्याघ्र कहते हैं .१९७२ से यह हमारा नेशनल एनीमल है .इसके पहले हमारा नेशनल एनीमल सिंह या शेर हुआ करता था -जो आज भारत में ही एक अभिशप्त जीवन जी रहा है -वह एक अलग दारुण कथा है जो फिर कभी ........
पहेली के बहाने बाघ पर अच्छी जानकारी दी है।
जवाब देंहटाएंआम बोलचाल में चीता-बाघ-बघेरा आदि को लोग पर्यायवाची मान लेते हैं। अच्छा बताया आपने धारीदार और चित्तीदार प्राणियों में अन्तर।
जवाब देंहटाएंBaagh aur chita ka soochhm antar pahli baar pataa chalaa.
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