Influenza: Causes, Symptoms, Treatment and Prevention in Hindi
मुमकिन है इन्फ्लुएंजा ए (H3N2) के संक्रमण से निपटना
-डॉ कृष्णा नन्द पाण्डेय
आजकल भारत में इन्फ्लुएंजा ए (Influenza A) वायरस के सबटाइप H3N2 द्वारा उत्पन्न इन्फ्लुएंजा की घटनाएं प्रकाश में आ रही हैं, जो चिंता का विषय हैं। H3N2 वायरस पक्षियों और स्तनपायी प्राणियों यानी मैमल्स दोनों को संक्रमित कर सकते हैं। पक्षियों, मानवों और सूकरों में ये वायरस कई स्ट्रेंस यानी उपभेद में उत्परिवर्तित हो गए हैं। इनफ्लुएंजा ए (H3N2) स्ट्रेन की सर्वाधिक उपस्थिति के दौरान इन्फ्लुएंजा़ के संक्रमण और उसके कारण अस्पताल में भर्ती होने की घटनाओं की संभावना अधिक हो जाती है। विभिन्न मीडिया सूत्रों के अनुसार इस लेख को तैयार करने की तिथि यानी 14 मार्च, 2023 तक भारत में इन्फ्लुएंजा ए सबटाइप H3N2 संक्रमण के कुल 90 मामले प्रकाश में आए हैं जिनमें जिनमें दो व्यक्तियों की मृत्यु दर्ज़ की गई है, एक व्यक्ति कर्नाटक और एक हरियाणा से संबंधित था। केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के अनुसार हाल में भारत के अनेक क्षेत्रों में बुखार के साथ 1 सप्ताह से अधिक अवधि तक रहने वाली खांसी की संबद्धता इन्फ्लुएंजा़ ए सबटाइप H3N2 वायरस से हो सकती है।इन्फ्लुएंजा ए (H3N2) को समझने से पहले इनफ्लुएंजा A वायरस को समझना उचित होगा। इन्फ्लुएंजा़ वायरस A एक आर एन ए वायरस है, जिसके सबटाइप्स जंगली पक्षियों से पृथक किए गए हैं। कभी-कभी यह वायरस जंगली पक्षियों से घरेलू पक्षियों में संचरित हो जाता है, जिसके परिणामस्वरूप गंभीर रोग, प्रकोप अथवा मानव इन्फ्लुएंजा़ की महामारी जैसी स्थितियां पैदा हो जाती हैं। इन्फ्लुएंजा़ ए वायरस इसका वैज्ञानिक नाम है जो ऑर्डर :आर्टिकुलावाइरेल्स; किंगडम : ऑर्थोरनैविरी ; और कुल यानी फेमिली : ऑर्थोमिक्सीविरिडी से तालुक रखता है। इन्फ्लुएंजा ए वायरस के संक्रमण का इलाज नहीं किया गया तो जानलेवा जटिलताएं पैदा हो सकती हैं। जहां इसके संक्रमण के कुछ मामले निर्धारित दवाइयों के साथ इलाज के बिना ठीक हो सकते हैं, वहीं गंभीर मामलों में चिकित्सक की सलाह में इलाज करना ही बेहतर होता है।
इन्फ्लुएंजा ए वायरस (Influenza A Virus) का संक्रमण एक सामान्य संक्रमण होता है जो व्यापक फ्लू का प्रकोप बन सकता है। इससे संक्रमित व्यक्तियों में बुखार, शरीर दर्द, कंपकंपी, थकान और अन्य लक्षण उभर सकते हैं। इन्फ्लुएंजा़, जिसे सामान्य भाषा में फ्लू कहा जाता है, श्वसन प्रणाली को प्रभावित करने वाला एक संक्रामक वाइरल रोग है। मानव को संक्रमित करने वाले इन्फ्लुएंजा़ वाइरसेज़ (विषाणुओं) को मुख्य रूप से चार वर्गों में वर्गीकृत किया जा सकता है : ए, बी, सी और डी। इनफ्लुएंजा ए और बी वायरस ज्यादातर सर्दी के महीनों में मौसमी महामारियों के रूप में प्रभावित करते हैं। इन्हें फ्लू का मौसम भी कहा जाता है। इनमें केवल इन्फ्लुएंजा ए वायरस वैश्विक महामारी का रूप धरने के लिए ज्ञात है। अर्थात टाइप ए इन्फ्लुएंजा़ का संक्रमण गंभीर होकर व्यापक प्रकोपों का रूप धारण कर सकता है।
इन्फ्लुएंजा ए वायरस की सतह पर उपस्थित हीमएग्लुटिनिन (H) और न्यूरामिनीडेज़ (N) नामक दो प्रोटीनों के आधार पर इनको सबटाइप्स में विभाजित किया गया है। हीमएग्लुटिनिन के 18 अलग-अलग सबटाइप्स (H1 से लेकर H18) और न्यूरामिनीडेज़ के अलग-अलग 11 सबटाइप्स (N1 से लेकर N11) ज्ञात हैं। वैसे प्रकृति में मुख्यतया वाइल्ड पक्षियों से इन्फ्लुएंजा़ ए सबटाइप वायरसेज़ के 130 से अधिक संयोजनों (कांबिनेशंस) की पहचान की गई है। वर्तमान में लोगों में इन्फ्लुएंजा ए वायरस के दो सबटाइप्स H1N1 और H3N2 संचरित हैं। टाइप ए इन्फ्लुएंजा के आम लक्षण अन्य संक्रमणों से मिलते जुलते हो सकते हैं। मंद फ्लू ग्रस्त रोगियों के लक्षण स्वत: दूर हो सकते हैं परंतु गंभीर ए इन्फ्लुएंजा़ से संक्रमित व्यक्तियों में यह जानलेवा भी साबित हो सकता है।
टाइप ए इन्फ्लुएंजा एक खतरनाक प्रकोप का रूप धारण कर सकता है तथा उससे व्यक्ति के रोगग्रस्त होने का खतरा बढ़ सकता है। इन्फ्लुएंजा बी वायरस की तुलना में इन्फ्लुएंजा़ ए वायरस में म्युटेशन यानी उत्परिवर्तन बड़ी तेजी से होता है परंतु इन दोनों विषाणुओं में हमेशा परिवर्तन होता है जिससे फ्लू के अगले सीजन में नए स्ट्रेंस बन जाते हैं। यही कारण है कि पिछले फ्लू के लिए किए गए टीकाकरण यानी वैक्सीनेशन से नए ट्रेन से उत्पन्न संक्रमण को रोक पाना कठिन होता है। टाइप ए वायरस के लिए जंगली पक्षी प्राकृतिक होस्ट (परपोषी) होते हैं, इसीलिए इससे उत्पन्न संक्रमण को एवियन फ्लू अथवा बर्ड फ्लू भी कहा जाता है।
इन्फ्लुएंजा ए के लक्षण (Influenza a symptoms)
सामान्य सर्दी यानी कॉमन कोल्ड के विपरीत फ्लू की शुरुआत अचानक हो सकती है। इन्फ्लुएंजा़ संक्रमण के सामान्य लक्षणों में खांसी आने, नाक से पानी बहने, छींक आने, गले में खराश, सिर दर्द, थकान, कंपकपी और शरीर में दर्द जैसी स्थितियां पैदा हो सकती हैं। इन्फ्लुएंजा ए वायरस से संक्रमित व्यक्ति में यदि इनमें से कुछ लक्षण एक सप्ताह से अधिक बन रहे तो चिकित्सक की परामर्श अवश्य लेनी चाहिए। इन्फ्लुएंजा़ ए का इलाज नहीं किया जाए तो कान में संक्रमण, डायरिया, मतली, उल्टी, चक्कर आने, पेट और सीने में दर्द, दमा उभरने, निमोनिया, ब्रोंकाइटिस यानी श्वसनीशोथ जैसी गंभीर समस्याएं उभर सकती हैं।इंफ्लुएंजा ए वायरस का निदान (Influenza a diagnosis)
फ्लू का इलाज करने से पहले इन्फ्लुएंजा़ वायरस की जांच की जरूरत होती है। रैपिड मॉलीक्युलर एस्से यानी त्वरित आण्विक आमापन इसकी उत्तम जांच विधि है। इसमें नाक अथवा गले से स्वैब के नमूने लिए जाते हैं और इस परीक्षण में 30 मिनट अथवा इससे कम अवधि में इन्फ्लुएंजा़ वायरल आर एन ए की पहचान कर ली जाती है। हालांकि, इन्फ्लुएंजा़ ए संक्रमण की पुष्टि रोगी के अन्य लक्षणों अथवा फ्लू के अन्य परीक्षणों द्वारा की जाती है।इन्फ्लुएंजा ए संक्रमण का इलाज (Influenza A treatment)
जांच द्वारा हुई पुष्टि के आधार पर चिकित्सक सामान्य तौर पर ज़नामिविर, ओसेल्टामिविर, पेरामिविर नामक एंटीवायरल दवाइयां सेवन करने की सलाह देते हैं। ये दवाइयां न्यूरामिनीडेज़ इन्हीबिटर्स के नाम से जानी जाती है, जो इन्फ्लुएंजा वायरस को एक कोशिका से दूसरी कोशिका में फैलने की क्षमता को घटाकर संक्रमण की प्रक्रिया को धीमी कर देती हैं। ये दवाइयां प्रभावी होने के साथ-साथ मतली अथवा उल्टी आने जैसे कुछ साइड इफेक्ट्स भी पैदा कर सकती हैं। किसी भी साइड इफेक्ट के उभरने अथवा उसके गंभीर होने पर दवाइयों का सेवन बंद करके तत्काल चिकित्सक के पास जाना चाहिए। सीने में म्युकस को कमजोर बनाने के लिए पानी अथवा पेय पदार्थों का भरपूर सेवन करते हुए प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत बनाना जरूरी होता है।क्या है इन्फ्लुएंजा ए H3N2 वायरस? (Influenza A virus sub type H3N2)
आमतौर पर इन्फ्लुएंजा वायरस सूकरों में संचारित होते हैं परंतु लोगों में इनकी उपस्थिति "वैरिएंट" के नाम से जानी जाती है। वर्ष 2009 में हुई H1N1 वैश्विक स्वाइन फ्लू महामारी के विषाणु में मैट्रिक्स (M) जीन की उपस्थिति सहित इन्फ्लुएंजा़ ए H3N2 वैरिएंट वायरस की पहचान सबसे पहले जुलाई, 2011 में संयुक्त राज्य अमेरिका के इंडियाना, आयोवा, माइने, पेंसिलवानिया और वेस्ट वर्जीनिया में 12 रोगियों में की गई थी (सीडीसी 2009 H1N1 फ्लू वेबसाइट)। इनफ्लुएंजा ए के H3N2 वैरिएंट के संक्रमण ज्यादातर उन लोगों में पाए गए जो लंबी अवधि से सूकरों अथवा उससे जुड़े उद्योगों के संपर्क में रहे थे। इन्फ्लुएंजा ए H3N2 वायरसेज़ में आनुवंशिक यानी जेनेटिक और एंटीजन दोनों ही आधार पर परिवर्तन होते हैं। अभी तक H3N2 वैरिएंट संक्रमण के लक्षण ज्यादातर मौसमी फ्लू के समान ही मंद रहे हैं। हालांकि, गंभीर संक्रमण की स्थिति में अस्पताल में भर्ती होने की जरूरत पड़ सकती है और यहां तक कि मौत भी संभव है। उदाहरण के तौर पर संयुक्त राज्य अमेरिका में वर्ष 2012 में H3N2 वैरिएंट से संक्रमित 309 व्यक्तियों में 16 को अस्पताल में भर्ती कराया गया था जिनमें एक की मौत दर्ज की गई। मौसमी फ्लू की ही तरह H3N2 वैरिएंट से संक्रमित होने का ज्यादा खतरा 5 साल से कम आयु के बच्चों, 65 वर्ष से अधिक आयु के बुजुर्गों तथा अस्थमा, डायबिटीज, हृदय रोग ग्रस्त एवं कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली सहित व्यक्तियों और गर्भवती महिलाओं को अधिक होता है। संयुक्त राज्य अमेरिका स्थित सेंटर फॉर डिज़ीज़ कंट्रोल यानी सीडीसी के मूल्यांकन के अनुसार H3N2 वैरिएंट से अधिकांशतः वे बच्चे संक्रमित हुए थे, जिनमें इस वायरस के विरुद्ध प्रतिरक्षा क्षमता कमजोर थी।इन्फ्लुएंजा बी (Influenza B)
टाइप ए और बी इन्फ्लुएंजा के संक्रमण में काफी समानता होती है, जिनके प्रकोप आमतौर पर मौसमी होते हैं। टाइप सी इन्फ्लुएंजा में सामान्य तौर पर मंद स्वसनी संक्रमण उभरते हैं। टाइप बी इन्फ्लुएंजा टाइप ए इन्फ्लुएंजा़ के समान ही गंभीर हो सकता है परंतु फ्लू सीजन की शुरूआत में टाइप ए इनफ्लुएंजा की तुलना में टाइप बी इन्फ्लुएंजा की उपस्थिति बहुत कम पाई जाती है। टाइप बी संक्रमण के लिए मानव प्राकृतिक होस्ट होते हैं। और टाइप बी विषाणु में उत्परिवर्तन यानी म्यूटेशन की प्रक्रिया टाइप ए विषाणुओं की तुलना में बहुत धीमी होती है। जहां टाइप ए वायरस सबटाइप्स में वर्गीकृत होते हैं, वहीं इन्फ्लुएंजा़ बी (B) वायरसेज़ को आगे दो लिनिएजेज़ (B/यामागाटा और B/विक्टोरिया) में वर्गीकृत किया गया है। इन्फ्लुएंजा़ ए विषाणु की तुलना में इन्फ्लुएंजा बी वायरस के स्ट्रेंस में आनुवंशिक एवं प्रतिजन संबंधी परिवर्तनों में अधिक समय लगता है, यही कारण है कि टाइप बी इन्फ्लुएंजा महामारी का रूप धारण नहीं कर पाता।किसे होता है फ्लू का ज्यादा खतरा?
आमतौर पर 5 वर्ष से कम आयु के बच्चों, 65 वर्ष या इससे अधिक आयु के बुजुर्गों, कमजोर प्रतिरक्षा क्षमता वाले व्यक्तियों तथा गर्भवती महिलाओं को इन्फ्लुएंजा ए के संक्रमण और उसकी जटिलताओं का खतरा अधिक होता है। उससे संबंधित लक्षणों के उभरने पर तत्काल चिकित्सक की परामर्श लेनी चाहिए वरना जानलेवा भी साबित हो सकता है।कब तक होती है फ्लू की संक्रामकता?
किसी व्यक्ति में फ्लू के लक्षणों की शुरुआत होने से कम से कम 1 दिन पहले वह संक्रामक हो जाता है। कुछ गंभीर मामलों में लक्षणों की शुरुआत के बाद व्यक्ति 5 से 7 दिनों की लंबी अवधि तक संक्रामक बना रह सकता है। बच्चों और प्रौढ़ अथवा वृद्ध व्यक्तियों में प्रतिरक्षा प्रणाली कमजोर होने अथवा पूर्ण विकसित नहीं होने के कारण वे इससे भी अधिक अवधि तक संक्रामक बने रह सकते हैं।कैसे करें फ्लू की रोकथाम? (Flu prevention tips)
फ्लू से बचने के लिए प्रतिवर्ष फ्लू का टीकाकरण यानी वैक्सीनेशन सबसे बढ़िया उपाय है। आमतौर पर फ्लू अक्टूबर से मई महीनों के बीच फैलता है, जिनमें जनवरी से मार्च के बीच इसकी उपस्थिति शीर्ष पर होती है। फ्लू वैक्सीन का प्रत्येक शॉट यानी खुराक उस वर्ष फ्लू के मौसम में 3 से 4 अलग-अलग इन्फ्लुएंजा़ वायरसेज़ के प्रति सुरक्षा प्रदान करता है। फ्लू के टीकाकरण के लिए अक्टूबर माह के अंत तक की अवधि बेहतर होती है। हालांकि, फ्लू के संचरण के दौरान किसी भी समय टीकाकरण किया जा सकता है। इस रोग को फैलने से रोकने के लिए अन्य उपायों में शामिल हैं:● हाथों को नियमित रूप से धोना
● भीड़ वाले इलाकों में खासकर फ्लू के प्रकोप के दौरान जाने से बचना
● खांसी आने अथवा छींकने के दौरान मुंह और नाक को ढकना
● बुखार आने पर घर में रहना, खासकर बुखार दूर होने के बाद कम से कम 24 घंटे तक घर में रहना
● घर से बाहर मास्क लगाकर निकलना
कॉमन कोल्ड और इनफ्लुएंजा के बीच अंतर (Difference Between Common Cold and Influenza)
आमतौर पर फ्लू के सीज़न में सामान्य सर्दी यानी कॉमन कोल्ड और इन्फ्लुएंजा यानी फ्लू के बीच एक भ्रामक स्थिति बनी रहती है। जबकि इन दोनों स्थितियों में लक्षण अलग-अलग दिखाई देते हैं। कॉमन कोल्ड और इन्फ्लुएंजा के लक्षणों के आधार पर इन दोनों के बीच अंतर स्पष्ट किया जा सकता है।
कॉमन कोल्ड यानी सामान्य सर्दी और फ्लू (इन्फ्लुएंजा़) में अंतर
स्रोत: फाइट फ्लू, सेंटर फॉर डिज़ीज़ कंट्रोल यानी सीडीसी, सं रा अ.
भारत सरकार विशेषतया केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने देश के कुछ राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में इन्फ्लुएंजा़ और सीवियर एक्यूट रेस्पिरेट्री इलनिसेज़ यानी गंभीर तीव्र श्वसनी बीमारियों के बढ़ते मामलों को देखते हुए इन्फ्लुएंजा़ ए सब टाइप H3N2 वायरस के संक्रमण से निपटने के लिए एक एडवाइज़री यानी निर्देशिका जारी की है। इसके अंतर्गत, उन सभी सुरक्षात्मक उपायों को अपनाने की सलाह दी गई है जिन्हें कोविड 19 वैश्विक महामारी के दौरान अपनाया गया था। परंतु किसी भी स्थिति में एंटीवायरल दवाइयां अपने आप नहीं ली जानी चाहिए क्योंकि कौन सी दवा, कितनी मात्रा में और कितने अंतराल में दिया जाए, इसका निर्णय संक्रमण की गंभीरता के आधार पर चिकित्सक द्वारा ही लिया जाता है। भारत सरकार इस संक्रमण का भी मुकाबला करने के लिए मुस्तैद है, पर सुरक्षात्मक उपायों के अनुपालन में भारतीय नागरिकों का योगदान भी उतना ही महत्वपूर्ण है।
-लेखक परिचय-

डॉ. कृष्णा नन्द पाण्डेय वरिष्ठ विज्ञान लेखक और 'आईसीएमआर पत्रिका' के पूर्व सम्पादक हैं। आपके वैज्ञानिक आलेख नियमित रूप से पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहते हैं। आपको डॉ गोरख प्रसाद विज्ञान पुरस्कार सहित अनेक पुरस्कार/सम्मान प्राप्त हो चुके हैं। डॉ. कृष्णा नन्द पाण्डेय से निम्न मेल आईडी पर संपर्क किया जा सकता है: knpandey@gmail.com
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