Science Communication bridging Science and Society.
विज्ञान संचार पर विशेष श्रृंखला- कड़ी 1
समाज और विज्ञान का गठजोड़ कराता विज्ञान संचार
Science Communication bridging Science and Society
-अभय एस डी राजपूत एवं नवनीत कुमार गुप्ता
मानव एक सामाजिक प्राणी है। वह समाज में रह कर अपना विकास करता है। समाज का अर्थ संकुचित परिभाषा में न लेकर हर जाति एवं धर्म के लोगों का समूह है जो एक भौगोलिक परिस्थिति में विभिन्न सांस्कृतिक अवधारणों के साथ रहते हैं। ऐसे समाज का व्यापक स्वरूप एक राष्ट्र की धारणा में परिवर्तित होता है। इस प्रकार हर व्यक्ति अपना तथा अपने समाज के साथ राष्ट्र के विकास में भागीदार बनता है।
विकास के पथ पर बढ़ता समाज विभिन्न विषयों की जानकारी रखने के लिए प्रयासरत रहता है ताकि देशदुनिया में क्या हो रहा है और किस प्रकार ऐसी घटनाएं उसके जीवन को प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करती हैं। ऐसे विषयों की जानकारी समाज को निरंतर मिलती रहे, इसके लिए अतीत से ही विभिन्न जनसंचार माध्यमों को विकास हुआ। भित्तिचित्रों से लेकर ताड़पत्रों और आधुनिक जनसंचार माध्यमों के विकास की कहानी सदियों पुरानी है।
विभिन्न प्रकार के माध्यमों के द्वारा मानव एक-दूसरे से एवं समाज से सूचनाओं का आदान-प्रदान करता रहा है। आज के जनसंचार (Mass media) माध्यमों में से प्रत्येक माध्यम की अपनी विशिष्टताएं एवं सीमाएं हैं। आज ज्ञान का उत्पादन एवं भंडारण पहले की तुलना में कहीं अधिक तेजी से हो रहा है। विज्ञान के क्षेत्र में तो यह बात ओर अधिक जटिल हो जाती है। इसलिए विज्ञान संबंधी बातों का संप्रेषण या संचार आज एक विधा के रूप में स्थापित हो चुका है। इसे हम विज्ञान संचार (Science Communication) के नाम से जानते हैं।
[post_ads]
विज्ञान संचार से अभिप्राय जनसंचार-माध्यमों के द्वारा समाज को विज्ञान के विविध पहलुओं एवं विषयों के बारे में सूचित करना और विज्ञान एवं समाज के बीच एक निरंतर संवाद को स्थापित करना है। विज्ञान के संचार का कार्य व्यावसायिक वैज्ञानिकों द्वारा भी किया जाता है। ऐसी स्थिति में इसे हम '’विज्ञान का लोकीकरण' भी कह सकते है। आज विज्ञान संचार एक पेशेवर क्षेत्र बन चुका है। इसे विज्ञान लोकप्रियकरण के नाम से भी जाना जाता है।
विज्ञान संचार के कार्य में संलग्न व्यक्तियों को विज्ञान संचारक (Science Communicator) कहा जाता है। विज्ञान संचारक शौकिया भी हो सकते हैं या पेशेवर भी। कुशल विज्ञान संचारक को विज्ञान और जनसंचार दोनों का अच्छा ज्ञान होना आवश्यक है। अधिकांश वैज्ञानिक कुशल संचारक नहीं होते क्योंकि उन्हें जनसंचार माध्यम या पत्रकारिता (Journalism) का ज्ञान नहीं होता। या फिर यह भी हो सकता है की विज्ञान के पाठ्यक्रम में संचार या सम्प्रेषण को उतना महत्व नहीं दिया जाता। यही बात सामान्य पत्रकार या लेखक पर निर्भर होती है यदि उसे विज्ञान की जानकारी नहीं हो। क्योंकि विज्ञान विषय ऐसा है जिसमें जानकारी की सत्यता और सटिकता अत्यंत आवश्यक है। इसलिए विज्ञान संचारक को दोनों क्षेत्रों में पारंगत होना होता है तभी वह विज्ञान संचार के क्षेत्र में अपनी छाप छोड़ सकता है।
भारत में, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में विभिन्न अनुसंधान संस्थान एवं प्रयोगशालाएं कार्य कर रही हैं। भारतीय अनुसंधान एवं विकास संस्थानों (इसरो, सीएसआईआर, आईसीएआर, डीआरडीओ, आईसीएमआर या अन्य संस्थान) द्वारा विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में निरंतर कार्य कर रहे हैं। इन संस्थानों के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में योगदान के प्रति कोई संदेह नहीं है । परंतु दुखद बात यह है की इन संस्थानों के कार्यों की पूरी जानकारी आम जनता तक नहीं पहुंच पाती। ऐसी स्थिति में विज्ञान संचारक की भूमिका महत्वपूर्ण है कि वह समाज को वैज्ञानिक संस्थानों के कार्यों की जानकारी से अवगत कराए। विज्ञान संचारक का यह भी कर्तव्य है कि वह समाज को विज्ञान के विभिन्न समसामायिक विषयों से अवगत कराएं। जीएम फसलों, नाभिकीय ऊर्जा जैसे जटिल विषयों की बारिकियों से समाज को अवगत करें ताकि वैज्ञानिक जानकारी पे आधारित समाज स्वयं निर्णय ले सके की क्या गलत है और क्या सही।
विज्ञान के इस युग में बिना वैज्ञानिक जानकारी के समाज का विकास पथ पर अग्रसर होना बहुत मुश्किल हो सकता है। इसलिए विज्ञान संबंधी जानकारियों के लिए विज्ञान संचार आवश्यक क्षेत्र हो गया है जो समाज और विज्ञान के मध्य एक सेतु का कार्य कर सकता है।
- लेखक परिचय -
अभय एसडी राजपूत विज्ञान संचारक हैं। पिछले कई सालों से विभिन्न मीडिया माध्यमों से विज्ञान संचार के कार्य में संलग्न हैं। आपको रजत जयंती विज्ञान संचार अवार्ड-2008 और एस. रामासेशन विज्ञान लेखन फैलोशिप-2008 के प्राप्त हो चुके हैं। आप विज्ञान लेखन के साथ-साथ, विज्ञान संचार में शोधकार्य में भी रूचि रखते हैं।
नवनीत कुमार गुप्ता पिछले दस वर्षों से विभिन्न माध्यमों द्वारा विज्ञान संचार के कार्य में संलग्न हैं। आपकी विज्ञान संचार विषयक लगभग एक दर्जन पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं तथा इन पर गृह मंत्रालय के ‘राजीव गांधी ज्ञान विज्ञान मौलिक पुस्तक लेखन पुरस्कार' सहित अनेक पुरस्कार एवं सम्मान प्राप्त हो चुके हैं। आप विज्ञान संचार के क्षेत्र में कार्यरत संस्था ‘विज्ञान प्रसार’ से सम्बंद्ध हैं।
keywords: हिंदी में विज्ञान संचार, विज्ञान संचार का इतिहास, विज्ञान संचार, विज्ञान और प्रौद्योगिकी, संचार के प्रकार, विज्ञान और प्रौद्योगिकी pdf, संचार की परिभाषा, कम्युनिकेशन क्या है, विज्ञान के प्रकार, संचार के सिद्धांत, संप्रेषण के प्रकार

नवनीत कुमार गुप्ता पिछले दस वर्षों से विभिन्न माध्यमों द्वारा विज्ञान संचार के कार्य में संलग्न हैं। आपकी विज्ञान संचार विषयक लगभग एक दर्जन पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं तथा इन पर गृह मंत्रालय के ‘राजीव गांधी ज्ञान विज्ञान मौलिक पुस्तक लेखन पुरस्कार' सहित अनेक पुरस्कार एवं सम्मान प्राप्त हो चुके हैं। आप विज्ञान संचार के क्षेत्र में कार्यरत संस्था ‘विज्ञान प्रसार’ से सम्बंद्ध हैं।
COMMENTS