World Ocean Day Article in Hindi
जैवविविधता से संपन्न होने के साथ ही महासागर धरती के मौसम को निर्धारित करने वाले प्रमुख कारक हैं। अपनी अधिक विशिष्ट ऊष्मा के कारण समुद्र ऊष्मा का भण्डारक बन जाता है जिसके कारण विश्व भर में मौसम संतुलित बना रहता है या कहें कि जीवन के लिए औसत तापमान बना रहता है।
विश्व महासागर दिवस 8 जून, 2016 के अवसर पर विशेष लेख
महासागरों से है जीवनमयी धरती
-नवनीत कुमार गुप्ता
पृथ्वी पर जीवन का आरंभ महासागरों से माना जाता है। महासागरीय जल में ही पहली बार जीवन का अंकुर फूटा था। आज महासागर असीम जैवविविधता का भंडार हैं। हमारी पृथ्वी का लगभग 70 प्रतिशत भाग महासागरों से घिरा है। महासागरों में पृथ्वी पर उपलब्ध समस्त जल का लगभग 97 प्रतिशत जल समाया है। महासागरों की विशालता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि यदि पृथ्वी के सभी महासागरों को एक विशाल महासागर मान लिया जाए तो उसकी तुलना में पृथ्वी के सभी महाद्वीप एक छोटे द्वीप से प्रतीत होंगे।
मुख्यतया पृथ्वी पर पाँच महासागर हैं जिनके नाम इस प्रकार हैं- प्रशांत महासागर, हिन्द महासागर, अटलांटिक महासागर, उत्तरी ध्रुव महासागर और दक्षिणी ध्रुव महासागर। महासागरों का सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक रूप से महत्व मानव के लिए इन्हें अति महत्वपूर्ण बनाता है। इसलिए महासागरों के प्रति जागरूकता के उद्देश्य से सन् 2002 से प्रतिवर्ष 8 जून को विश्व महासागर दिवस (World Ocean Day) के रूप में मनाया जाता है। इस वर्ष की थीम ‘स्वस्थ महासागर, स्वस्थ पृथ्वी’ है। जनमानस को पृथ्वी ग्रह के जीवनदायी स्वरूप में महासागरों के महत्व से अवगत कराने के लिए इस विषय को चुना गया है ताकि लोग स्वयं को महासागरों से जोड़ सकें और उन्हें समझ सके।
पृथ्वी पर जीवन का अस्तित्व यहां उपस्थित वायुमंडल और महासागरों जैसे कुछ विशेष कारकों के कारण है। अपने आरंभिक काल से आज तक महासागर जीवन के विविध रूपों को संजोए हुए हैं। पृथ्वी के विशाल क्षेत्र में फैले अथाह जल का भंडार होने के साथ महासागर अपने अंदर व आसपास अनेक छोटे-छोटे नाजुक पारितंत्रो को पनाह देते हैं जिससे उन स्थानों पर विभिन्न प्रकार के जीव व वनस्पतियाँ पनपती हैं। समुद्र में प्रवाल भित्ति क्षेत्र ऐसे ही एक पारितंत्र का उदाहरण है जो असीम जैवविविधता का प्रतीक है। इसी प्रकार तटीय क्षेत्रों में स्थित मैन्ग्रोव जैसी वनस्पतियों से संपन्न वन समुद्र के अनेक जीवों के लिए नर्सरी का काम करते हुए विभिन्न जीवों को आश्रय प्रदान करते हैं। अपने आरंभिक काल से आज तक महासागर जीवन के विविध रूपों को संजोए हुए हैं। महासागरों में पृथ्वी का सबसे विशालकाय जीव व्हेल से लेकर सूक्ष्म जीव भी मिलते हैं। एक अनुमान के अनुसार समुद्रों में करीब जीवों की दस लाख प्रजातियां उपस्थित हो सकती हैं।
जैवविविधता से संपन्न होने के साथ ही महासागर धरती के मौसम को निर्धारित करने वाले प्रमुख कारक हैं। समुद्री जल की लवणता और विशिष्ट ऊष्माधारिता का गुण पृथ्वी के मौसम को प्रभावित करता है। यह तो हम जानते ही हैं कि पृथ्वी की समस्त ऊष्मा में जल की ऊष्मा का विशेष महत्व है। जितनी ऊष्मा एक ग्राम जल के तापमान में एक डिग्री सेल्सियस की वृद्धि करेगी, उससे एक ग्राम लोहे का तापमान दस डिग्री बढ़ाया जा सकता है। अधिक विशिष्ट ऊष्मा के कारण समुद्री जल दिन में सूर्य की ऊर्जा का बहुत बड़ा भाग अपने में समा लेता है। इस प्रकार अधिक विशिष्ट ऊष्मा के कारण समुद्र ऊष्मा का भण्डारक बन जाता है जिसके कारण विश्व भर में मौसम संतुलित बना रहता है या कहें कि जीवन के लिए औसत तापमान बना रहता है। मौसम के संतुलन में समुद्री जल की लवणता जीवन के लिए एक वरदान है।
पृथ्वी पर जलवायु के बदलने की घटना और समुद्री जल का खारापन आपस में अन्तःसंबंधित हैं। यह तो हम जानते ही हैं कि ठंडा जल, गर्म जल की तुलना में अधिक घनत्व वाला होता है। समुद्र में किसी स्थान पर सूर्य के ताप के कारण जल के वाष्पित होने से उस क्षेत्र के जल के तापमान में परिवर्तन होने के साथ वहां के समुद्री जल की लवणता और आसपास के क्षेत्र की लवणता में अंतर उत्पन्न हो जाता है जिसके कारण गर्म जल की धाराएं ठंडे क्षेत्रों की ओर चल देती हैं और ठंडा जल उष्ण और कम उष्ण प्रदेशों में आता है।
समुद्र में ये धाराएं केवल इस कारण उत्पन्न होती हैं कि समुद्र का जल खारा है। क्योंकि यदि सारे समुद्रों का जल मीठा होता तो लवणता का क्रम कभी न बनता और जल को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने वाली धाराएं सक्रिय न होतीं। परिणामस्वरूप ठंडे प्रदेश बहुत ठंडे रहते और गर्म प्रदेश बहुत गर्म। तब पृथ्वी पर जीवन के इतने रंग न बिखरे होते। क्योंकि पृथ्वी की असीम जैवविविधता का एक प्रमुख कारण यह है कि यहां अनेक प्रकार की जलवायु मौजूद हैं और जलवायु के निर्धारण में महासागरों का महत्वपूर्ण योगदान नकारा नहीं जा सकता है।
वर्तमान में मानवीय गतिविधियों का प्रभाव समुद्रों पर भी दिखाई देने लगा है। महासागरों के तटीय क्षेत्रों में दिनोंदिन प्रदूषण का स्तर बढ़ रहा है। जहां तटीय क्षेत्र विशेष कर नदियों के मुहानों पर सूर्य के प्रकाश की पर्याप्ता के कारण अधिक जैवविविधता वाले क्षेत्रों के रूप में पहचाने जाते थे, वहीं अब इन क्षेत्रों के समुद्री जल में भारी मात्रा में प्रदूषणकारी तत्वों के मिलने से वहाँ जीवन संकट में हैं। तेलवाहक जहाजों से तेल के रिसाव के कारण एवं समुद्री जल के मटमैला होने पर उसमें सूर्य का प्रकाश गहराई तक नहीं पहुँच पाता, जिससे वहाँ जीवन को पनपने में परेशानी होती है और उन स्थानों पर जैवविविधता भी प्रभावित होती है।
यदि किसी कारणवश पृथ्वी का तापमान बढ़ता है तो महासागरों की कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करने की क्षमता में कमी आएगी जिससे वायुमण्डल में गैसों की आनुपातिक मात्रा में परिवर्तन होगा और तब जीवन के लिए आवश्यक परिस्थितियों में असंतुलन होने से पृथ्वी पर जीवन संकट में पड़ सकता है। समुद्रों से तेल व खनिज के अनियंत्रित व अव्यवस्थित खनन एवं अन्य औद्योगिक कार्यों से समुद्री पारितंत्र पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। पर्यावरण सरंक्षण के लिए प्रतिबद्ध संस्था अंतर-सरकारी पैनल की रिपोर्ट के अनुसार मानवीय गतिविधियों से ग्लोबल वार्मिंग के कारण समुद्री जल स्तर में वृद्धि हो रही है और जिसके परिणामस्वरूप विश्व भर के मौसम में बदलाव हो सकते हैं।
पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति महासागरों में ही हुई और आज भी महासागर जीवन के लिए आवश्यक परिस्थितियों को बनाए रखने में सहायक हैं। महासागर पृथ्वी के तिहाई से अधिक क्षेत्र में फैले हैं इसलिए महासागरीय पारितंत्र में थोड़ा सा परिवर्तन पृथ्वी के समूचे तंत्र को अव्यवस्थित करने की सामर्थ्य रखता है। हमें यह भी ध्यान रखना चाहिए कि विश्व की लगभग 21 प्रतिशत आबादी महासागरों से लगे 30 किलोमीटर तटीय क्षेत्र में निवास करती है इसलिए अन्य जीवों के साथ-साथ मानव समाज के लिए भी प्रदूषण मुक्त महासागर कल्याणकारी साबित होंगे।
आज मानव विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की मदद से महासागरों से पेट्रोलियम सहित अनेक महत्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधनों को प्राप्त कर रहा है। आज हमारे देश में भी वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद् के अंतर्गत गोवा में राष्ट्रीय समुद्र विज्ञान संस्थान (National Institute Of Oceanography, Goa) कार्यरत है। राष्ट्रीय समुद्र विज्ञान संस्थान महासागरों से संबंधित विभिन्न प्रकार के अनुसंधान कार्यों के द्वारा महासागरों की उपयोगिता के महत्व को दर्शाता है।
विश्व महासागर दिवस के अवसर पर भारत में रामेश्वरम में तटीय क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के मध्य एक विशेष कार्यक्रम आयोजित किया जा रहा है। जिसकी थीम ‘हमारे महासागरः हमारी जिम्मेदारी’ है। इस कार्यक्रम के माध्यम से तटीय क्षेत्रों के निवासियों के लिए महसागर के महत्व को प्रसारित करने के साथ ही वैष्विक महासागरों के धारणीय प्रबंधन के प्रति जागरूकता का प्रयास किया जाएगा।
असल में पृथ्वी पर जीवन को बनाए रखने वाले पारितंत्रों में समुद्र की उपयोगिता को देखते हुए यह आवश्यक है कि हम समुद्री पारितंत्र के संतुलन को बनाए रखें। इसके लिए युवाओं को विशेष कार्य करना होगा। समाज में महासागरों के प्रति जागरूकता का प्रसार करते हुए इनकी सुरक्षा और संरक्षण के प्रति प्रतिबद्धता को व्यक्त करना होगा।
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नवनीत कुमार गुप्ता पिछले दस वर्षों से पत्र-पत्रिकाओं, आकाशवाणी एवं दूरदर्शन आदि जनसंचार के विभिन्न माध्यमों द्वारा वैज्ञानिक दृष्टिकोण और पर्यावरण संरक्षण जागरूकता के लिए प्रयासरत हैं। आपकी विज्ञान संचार विषयक लगभग एक दर्जन पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं तथा इन पर गृह मंत्रालय के ‘राजीव गांधी ज्ञान विज्ञान मौलिक पुस्तक लेखन पुरस्कार' सहित अनेक पुरस्कार एवं सम्मान प्राप्त हो चुके हैं। आप विज्ञान संचार के क्षेत्र में कार्यरत संस्था ‘विज्ञान प्रसार’ से सम्बंद्ध हैं। आपसे निम्न मेल आईडी पर संपर्क किया जा सकता है:

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बहुत अच्छी जानकारी।
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