बालसाहित्यकार जाकिर अली रजनीश की लोकप्रिय विज्ञान कथा 'मेरा क्लोन बना दो'
बाल विज्ञान कथा : मेरा क्लोन बना दो
लेखक-ज़ाकिर अली `रजनीश´
रवि हैरान था। यदि वह संसार का आठवां आश्चर्य भी देख लेता, तो शायद उसे इतनी हैरानी तब भी नहीं होती, जितनी सामने के दृश्य को देख कर हुयी थी। ये ... ये ... कहीं भूत तो नहीं?और रवि का सारा शरीर भय से कांप उठा। डर के कारण उसके शरीर के रोएं खड़े हो गये और आवाज जम गयी। लेकिन इससे पहले कि वह चीखता, उसके पापा सामने आ खड़े हुए।
``क्यों बेटे डर गये न?´´ पापा के चेहरे पर शरारत पूर्ण मुस्कान थी, ``यह कोई भूत-वूत नहीं, बल्कि तुम्हारा क्लोन है क्लोन।´´
``क्लोन?´´ रवि के मुंह से बड़ी मुश्किल से आवाज निकली।
``और तुमने समझा कि ये कोई भूत है, जो तुम्हारा रूप धरकर तुम्हारे सामने आ गया है?´´ पापा जोर से हंस रहे थे, ``अरे भई, तुम ही तो पिछले दो साल से पीछे पड़े थे कि पापा मेरा क्लोन बना दो। सो, मैंने सोचा कि इस जन्मदिन पर तुम्हारी इच्छा पूरी कर दी जाए। ...जन्मदिन मुबारक हो बेटे।´´
``ओह, थैंक्यू पापा।´´ कहते हुए रवि पापा से लिपट गया, कुछ तो डर के कारण ओर कुछ खुशी के कारण।
``क्यों बेटे, कैसा लगा मेरा उपहार?´´ पापा ने प्यार से रवि के सिर पर हाथ फेरते हुए पूछा।
``बहुत अच्छा!´´ कहते हुए रवि ने अपने क्लोन पर दृष्टि जमा दी।
क्लोन भी उसे ही देख रहा था। बिलकुल वैसा ही चेहरा। जैसे रवि शीशे के सामने खड़ा होकर अपना प्रतिबिम्ब देख रहा हो।
रवि के पापा एक वैज्ञानिक हैं। पिछले साल उन्होंने दो भेड़ों के शरीर की कोशिकाएं निकाल कर एक नई भेड़ बनाई थी। जीवों को पैदा करने की यह विधि `क्लोनिंग` कहलाती है। इस विधि का आविष्कार इसीलिए किया गया था, जिससे उन जीवों की नस्ल को बचा जा सके, जो संसार से लुप्त हो रहे हैं।
संसार के कई वैज्ञानिकों ने क्लोन विधि से अनेक जानवर पैदा किए थे। जबसे रवि ने यह समाचार सुना था, तब से वह पापा के पीछे पड़ा था कि वे भी उसका एक क्लोन बना दें।
``अच्छा बेटे, तुम अपने क्लोन का क्या करोगे?´´ पापा ने उससे पूछा था।
``मैं उससे मम्मी का सारा काम करवाऊंगा। वह बाजार से सब्जी लाएगा, खाना बनाने में मम्मी की हैल्प करेगा, कपड़े भी धुल दिया करेगा। और आपके जूते भी पालिश कर दिया करेगा।´´ रवि ने बड़ी मासूमियत से जवाब दिया, ``इस प्रकार मेरा समय बच जाएगा। मैं उसे अपनी पढाई में लगाऊंगा, जिससे मैं भी आपकी तरह एक महान साइंटिस्ट बन सकूं।´´
रवि की मासूमियत देख कर पापा मुस्करा पड़े।
``बनाएंगे न पापा?´´ रवि ने जिद की।
``हां भई, बनाऊंगा।´´ पापा ने पीछा छुड़ाने की गरज से कहा और अपने काम में लगे गये।
उसके बाद से रवि जब भी पापा के सामने जाता, उनसे क्लोन बनाने की बात जरूर करता। आखिर उसकी जिद के आगे पापा को झुकना ही पड़ा। आज रवि के सामने उसका क्लोन सचमुच में हाजिर था।
``पापा, यह मेरा कहना तो मानेगा न?´´ रवि ने पूछा। पर तब तक पापा कमरे से बाहर जा चुके थे। रवि वापस क्लोन की ओर पलटा, ``तुम्हारा नाम कया है?´´
क्लोन ने पलटकर रवि की ओर घूर कर देखा। उसने भी रवि से वही सवाल पूछ लिया, ``तुम्हारा नाम क्या है?´´
``अरे भई, मैं तुमसे पूछ रहा हूं कि तुम्हारा नाम क्या है?´´ रवि झुंझला उठा।
क्लोन भी कहां पीछे रहने वाला था। उसने भी उसी प्रकार पलट कर सवाल पूछ लिया, ``मैं भी तो तुमसे पूछ रहा हूं कि तुम्हारा नाम क्या है?´´
रवि को गुस्सा आ गया, ``बड़ा हेकड़ीबाज है। मैं तुझसे तेरा नाम पूछ रहा हूं और तू है कि अपना नाम बताने के बजाए उल्टा मुझसे प्रश्न कर रहा है।´´
``हेकड़ीबाज तो तुम भी कम नहीं हो। तुम क्यों नहीं अपना नाम बता देते?´´ क्लोन के पास उसका उत्तर पहले से ही हाजिर था।
क्लोन की बात सुनकर रवि का पारा सातवें आसमान पर जा पहुंचा। उसका मन हुआ कि उसे एक झापड़ रसीद कर दे। दोनों लोगों की बातें सुनकर पापा वहां आ गये। वे बोले, ``क्या बात है बेटे? तुम इतना चीख क्यों रहे हो?´´
``पापा, मैं इससे नाम पूछ...।´´ रवि ने सफाई देनी चाही, लेकिन तब तक क्लोन भी बीच में बोल पडा, ``मैं भी तो तुमसे तुम्हारा नाम ही पूछ रहा था।´´
``ओफ-फो! चुप करो तुम लोग। चलो, अपना-अपना काम करो।´´ पापा ने डांट पिलाई, ``रवि, परसों तुम्हारा टैस्ट है, चलो अपनी पढाई करो।´´ कहते हुए पापा वहां से चले गये।
रवि ने अपनी एक किताब उठाई और पढ़ने बैठ गया। क्लोन ने भी पास में रख अखबार उठा लिया और उसके पन्ने पलटने लगा।
रवि को क्लोन पर बहुत गुस्सा आ रहा था। उसका मन पढ़ने में लगा ही नहीं। उसने गुस्से में क्लोन की ओर देखा। वह अखबार के पन्ने पलटने में व्यस्त था। ``बड़ा आया पढ़ने वाला!´´ कहते हुए उसने बुरा सा मुंह बनाया।
क्लोन ने उसे मुंह बनाते हुए देख दिया। जवाब में उसने भी वैसा ही मुंह बना दिया। अब तो रवि एकदम से जलभुन गया। लेकिन तभी उसे पापा का ध्यान आया और वह चुप रह गया। दोनों लोग पुन: अपने कामों में व्यस्त हो गये।
``राजा बेटे, जरा यहां आना।´´ तभी मां की आवाज सुनाई पड़ी।
जाहिर सी बात है कि मां रवि को ही बुला रही थीं। लेकिन न तो रवि अपनी जगह से हिला और न ही क्लोन। रवि ने सोचा कि वह तो पढ़ाई कर रहा है, इसलिए क्लोन को जाना चाहिए। लेकिन क्लोन ने उस पर ध्यान ही नहीं दिया। क्योंकि बुलाया तो रवि को जा रहा था। फिर भला वह फालतू में वहां क्या करने जाए?
``राजा बेटे?´´ मां ने दुबारा आवाज दी।
लेकिन जब इस बार भी क्लोन अपनी जगह से न हिला, तो रवि बोल पड़ा, ``तुझे सुनाई नहीं पड़ता क्या कि मां बुला रही है?´´
``मुझे तो सुनाई पड़ रहा है, लेकिन शायद तुझे नहीं सुनाई पड़ता।´´ क्लोन ने जवाब दिया, ``क्योंकि मां तुम्हें बुला रही हैं।´´
``तुझे दिखाई नहीं देता क्या कि मैं पढ़ाई कर रहा हूं?´´ रवि को तैश आ गया।
``तो क्या मैं गुल्ली-डंडा खेल रहा हूं?´´ क्लोन ने भी उसी टोन में जवाब दिया।
उसी समय मम्मी वहां आ गयीं। उन्होंने दोनों को जोर से डांट लगाई, ``क्या बात है भई, तुम लोग शान्त नहीं रह सकते क्या? बस लड़ना ही रह गया है तुम लोगों के पास? रवि, तू यहीं बैठ, और तू मेरे साथ चल।´´ कहती हुई वे क्लोन को अपने साथ ले गयीं।
रवि अपनी कुर्सी पर बैठा कुनमुनाता रहा- ``हिम्मत तो देखो इसकी? मेरा ही क्लोन और मुझी से चूं? अगर इसने अगली बार मुझसे ज्यादा चूं-चपड़ की, तो मैं.....´´
अचानक लाइट चली गयी। गर्मी का मौसम था। कुछ ही पलों में रवि के माथे पर पसीना चुहचुहा आया। उसने सोचा चलो छत पर टहल आते हैं। ताजी हवा भी मिलेगी अैर टेंशन भी दूर हो जाएगा। यही सोचकर उसने किताब मेज पर रखी और बाहर निकल गया।
छत पर क्लोन पहले से ही मौजूद था। दोनों ने एक दूसरे की ओर देखा, जैसे वे जनम-जनम के बैरी हों। रवि ने मन ही मन न जाने क्या कहा। क्लोन ने गुस्से में अपने दांत किटकिटाए। वह सोच रहा था कि रवि यहां क्यों आया? और रवि सोच रहा था कि यह क्लोन की दुम यहां क्या कर रहा है?
रवि को टेस्ट की तैयारी करनी थी। अत: उसने अपना दिमाग शान्त करने के लिए अपना ध्यान आसमान में उड़ रही पतंगों पर लगा दिया। ऊपर हरी और पीली रंग की दो पतंगों के बीच पेंच चल रहे थे। अचानक हरी पतंग कट गयी और लहराती हुई नीचे की ओर आने लगी।
हवा का रूख रवि की छत की ओर था। अत: रवि उसे पाने के लिए लालायित हो उठा। जैसे ही पतंग छत पर गिरी, वह उस पर जोर से झपट पड़ा। लेकिन क्लोन वहां पर पहले से मौजूद था। दोनों लोगों ने पतंग पर एक साथ हाथ मारे और देखते ही देखते पतंग के टुकडे़-टुकडे़ हो गये।
``तूने मेरी पतंग को क्यों फाड़ा?´´ रवि क्लोन पर बरस पड़ा।
``पतंग को पहले मैंने पकड़ा था।´´ क्लोन भी उसी टोन में बोला, ``उसे तुमने फाड़ा है।´´
रवि बहुत देर से अपने को संभाले हुए था। लेकिन अब वह अपने को रोक न पाया और क्लोन पर उसने अपना हाथ छोड़ दिया। क्लोन भी भला कहां पीछे रहने वाला था, उसने भी ईंट का जवाब पत्थर से देने की ठान रखी थी। अत: दोनों लोगों में घमासान लड़ाई होने लगी।
लड़ते-लड़ते वे लोग एकदम छत के किनारे जा पहुंचे। छत पर रेलिंग की दीवार ज्यादा ऊंची न थी। जैसे ही क्लोन ने रवि को जोर से धक्का दिया, रवि क्लोन को लिए हुए छत से नीचे लुढ़क पड़ा।
छत के नीचे लुढ़कते ही रवि के होश ठिकाने आ गये। उसे हकीकत का एहसास हुआ और डर के मारे वह चिल्ला पड़ा, ``बचाओ...!´´
``क्या बात है बेटे? चारपाई से कैसे गिर पड़े?´´ रवि के पापा उससे पूछ रहे थे।
रवि हैरान रह गया। सचमुच वह चारपाई के नीचे जमीन पर पड़ा हुआ था। जल्दी से वह उठ खड़ा हुआ। उसने अपना सपना पापा को सुना दिया।
``मैं तुमसे पहले भी कहता था बेटे कि आदमी का क्लोन उसके लिए फायदेमंद नहीं हो सकता।´´ पापा उसे समझाने लगे, ``बोलो, क्या अब भी तुम चाहोगे कि मैं...?´´
``नहीं पापा, मुझे अपना क्लोन नहीं चाहिए।´´ कहते हुए रवि पापा के सीने से लिपट गया।
पापा हौले से मुस्कराए और फिर प्यार से रवि के सिर पर हाथ फेरने लगे।
संपर्क सूत्र: zakirlko AT gmail DOT com
keywords: bal vigyan kathayen, science fiction in hindi, science fiction short stories in hindi, children's science fiction in hindi, children's science fiction short stories in hindi, children's science fiction hindi, interesting science fiction stories in hindi, interesting science fiction short stories in hindi, motivational stories in hindi, inspirational stories in hindi, student motivational stories in hindi, student success stories in hindi, bachchon ki kahaniyan
रोचक । इस कहानी का लिंक पाँच लिंक के आनंद पर सोमवार को लगाऊँगी ।
जवाब देंहटाएंअच्छी कहानी
जवाब देंहटाएंव्वाहहहहहहहहह
जवाब देंहटाएंदिलचस्प...
आभार....
सादर,,
विज्ञान के अन्वेषण आकर्षक दिखते हैं पर सदा सुखद ही हो जरूरी नहीं दुखदाई भी हो सकते हैं।
जवाब देंहटाएंप्रेरक कथा।
सचमुच सपने और हक़ीक़त में फर्क होता है पर यह फर्क समझना आसान नहीं होता।
जवाब देंहटाएंसंदेशात्मक कहानी।
सादर।
बहुत ही सुंदर... तो यह सपना था..
जवाब देंहटाएंलाजवाब कहानी।
बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंअच्छी और रोचक कथा
जवाब देंहटाएंवाह…रोचक सपना😊
जवाब देंहटाएं