Importance of Science Communication in developing countries.
विज्ञान संचार पर विशेष श्रृंखला- कड़ी 2
अभय एसडी राजपूत विज्ञान संचारक हैं। पिछले कई सालों से विभिन्न मीडिया माध्यमों से विज्ञान संचार के कार्य में संलग्न हैं। आपको रजत जयंती विज्ञान संचार अवार्ड-2008 और एस. रामासेशन विज्ञान लेखन फैलोशिप-2008 के प्राप्त हो चुके हैं। आप विज्ञान लेखन के साथ-साथ, विज्ञान संचार में शोधकार्य में भी रूचि रखते हैं।
नवनीत कुमार गुप्ता पिछले दस वर्षों से विभिन्न माध्यमों द्वारा विज्ञान संचार के कार्य में संलग्न हैं। आपकी विज्ञान संचार विषयक लगभग एक दर्जन पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं तथा इन पर गृह मंत्रालय के ‘राजीव गांधी ज्ञान विज्ञान मौलिक पुस्तक लेखन पुरस्कार' सहित अनेक पुरस्कार एवं सम्मान प्राप्त हो चुके हैं। आप विज्ञान संचार के क्षेत्र में कार्यरत संस्था ‘विज्ञान प्रसार’ से सम्बंद्ध हैं।
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विकासशील देशों में विज्ञान संचार की भूमिका
Importance of Science Communication in developing countries
-अभय एस डी राजपूत एवं नवनीत कुमार गुप्ता
आज भारत एक विकसित राष्ट्र और ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था की राह में अग्रसर है। लेकिन इस राह में विज्ञान से अज्ञानता एक बाधा बन सकती है। इस तरह की अज्ञानता विभिन्न मिथकों, अंधविश्वासों और अंधश्रद्धा जैसे अवैज्ञानिक कारकों को उत्पन्न करती हैं जो किसी भी विकासशील देश के विकास के एजेंडे में बाधक साबित हो सकते हैं।
आम तौर पर विज्ञान प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से समाज की उन्नति और कल्याण के लिए कार्यरत रहता है, लेकिन विज्ञान और समाज के मध्य संचार की कमी के कारण, जनता वैज्ञानिक विकास से शायद ही पूरी तरह अवगत होती है। विज्ञान के क्षेत्र में निरंतर विकास होता जा रहा है। और वैज्ञानिक ज्ञान वृद्धि भी हो रही है, जिससे विज्ञान और समाज के बीच का अंतर और भी अधिक चौड़ा होता जा रहा है। विज्ञान की अधिक समझ वाला समाज वैज्ञानिक रूप से अधिक जागरूक हो जाता है। वैज्ञानिक रूप से जागरूक समाज विज्ञान और प्रगति की ओर अग्रसर होता जाता है। इस प्रकार वैज्ञानिक प्रगति समाज के विकास में योगदान देती है और यह चक्र आगे बढ़ता जाता है।
समाज में व्याप्त वैज्ञानिक अज्ञानता को संभावित रूप से विज्ञान संचार (Science Communication) के माध्यम से मिटाया जा सकता है। विज्ञान संचार दुनिया भर में अकादमिक और पेशेवर दोनों क्षेत्रों में तेज गति से अपना स्थान स्थापित कर रहा है। दुनिया भर के कई विश्वविद्यालयों और संस्थानों ने विज्ञान संचार में अकादमिक और अनुसंधान कार्यक्रम शुरू किए हैं। इस प्रकार, विज्ञान संचार एक शैक्षिक अनुशासन के रूप में स्थापित हो रही विधा भी है। विज्ञान संचार के माध्यम से प्रयास किए जा रहे हैं कि किस प्रकार विज्ञान और समाज के बीच की खाई को भरा जाए और वैज्ञानिक ज्ञान, वैज्ञानिक स्वभाव, वैज्ञानिक पद्धति और वैज्ञानिक संस्कृति को जनता के बीच कैसे लोकप्रिय बनाया जाए।
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विज्ञान संचार, वैज्ञानिक रूप से सूचित और जागरूक नागरिकों में वैज्ञानिक समझ को विकसित करने में मदद कर सकता है, जिससे वो वैज्ञानिक प्रगति से परिचित हो सकेंगे। नागरिकों को विज्ञान और विज्ञान से संबंधित नीतियों के विकास से संबंधित जानकारी होना आवश्यक है। विज्ञान संचार, वास्तव में विज्ञान की प्रासंगिकता से समाज को अवगत कराने का एक प्रयास है। इस तरह की प्रासंगिकता विज्ञान पर सार्वजनिक आत्मविश्वास की वृद्धि में सहायक होती है। इससे विज्ञान को भी जनमानस का समर्थन मिलता है।
विज्ञान और प्रौद्योगिकी से संबंधित कई मुद्दे हैं जो समाज के लिए बहुत प्रासंगिक हैं, लेकिन दूसरी ओर ऐसे विषय कर्इ विवादों से भी घिरे रहते हैं। उदाहरण के लिए, ग्लोबल वार्मिंग, जलवायु परिवर्तन, परमाणु ऊर्जा, आनुवंशिक रूप से संशोधित फसलें, भ्रूण अनुसंधान, डिजाइनर शिशु, टीकाकरण आदि कई ऐसे मुद्दे हैं जिनसे संबंधित वैज्ञानिक प्रगति और नीतियों के सार्वजनिक विरोध का सबसे आम कारण प्राय:, कई अन्य कारकों के बीच, वैज्ञानिक अज्ञानता ही होती है। भारत ने बीटी बैंगन, बीटी कॉटन, कुडनकुलम परमाणु ऊर्जा संयंत्र आदि मुद्दों में इस तरह के सार्वजनिक विरोध को देखा गया है।
असल में, वैज्ञानिक विकास और नीतियों से जुड़े जोखिमों और लाभों का अंतिम गंतव्य आम जनता है इसलिए उसे इनसे संबंधित सभी तथ्यों से परिचित कराया जाना चाहिए। ऐसे विवादास्पद मुद्दों के बारे में जागरूकता फैलाने से उन्हें उचित निर्णय लेने में मदद मिल सकती है।
इसीलिए विज्ञान के संचार और लोकप्रियकरण (popularization) एवं विज्ञान विधि (Scientific Method) के अभ्यास से विज्ञान की दृष्टि से लोगों की समझ और व्यवहार को बेहतर बनाने में मदद मिलेगी और उनके मन में विज्ञान की एक सकारात्मक छवि का निर्माण भी होगा। विज्ञान की बेहतर समझ प्रदान करके, ऐसी विज्ञान-विरोधी भावनाओं को कम करने के साथ ही, इन्हें विज्ञान विरोधी आंदोलनों में बदलने से भी रोक जा सकता है। विज्ञान संचार अंधविश्वासों, मिथकों और अंधविश्वासों से छुटकारा पाने में मदद करते हुए, हमारे समाज को सुरक्षित रखते हुए, प्रकृति के रहस्यों को सुलझाने में मददगार साबित होता है। इसलिए विज्ञान संचार संभावित रूप से समाज को एक प्रगतिशील रास्ते की ओर ले जाने की संभावना रखता है।
-लेखक परिचय-
अभय एसडी राजपूत विज्ञान संचारक हैं। पिछले कई सालों से विभिन्न मीडिया माध्यमों से विज्ञान संचार के कार्य में संलग्न हैं। आपको रजत जयंती विज्ञान संचार अवार्ड-2008 और एस. रामासेशन विज्ञान लेखन फैलोशिप-2008 के प्राप्त हो चुके हैं। आप विज्ञान लेखन के साथ-साथ, विज्ञान संचार में शोधकार्य में भी रूचि रखते हैं।
नवनीत कुमार गुप्ता पिछले दस वर्षों से विभिन्न माध्यमों द्वारा विज्ञान संचार के कार्य में संलग्न हैं। आपकी विज्ञान संचार विषयक लगभग एक दर्जन पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं तथा इन पर गृह मंत्रालय के ‘राजीव गांधी ज्ञान विज्ञान मौलिक पुस्तक लेखन पुरस्कार' सहित अनेक पुरस्कार एवं सम्मान प्राप्त हो चुके हैं। आप विज्ञान संचार के क्षेत्र में कार्यरत संस्था ‘विज्ञान प्रसार’ से सम्बंद्ध हैं।
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