Lunar eclipse, Solar eclipse and Meteorite in Hindi.
चंद्रग्रहण, सूर्यग्रहण और उल्कापात ऐसी खगोलीय घटनाएं हैं, जो उत्सुकता का केंद्र होती हैं। आमतौर से ये घटनाएं अलग-अलग समय में घटती हैं। पर इस माह में ये तीन-तीन घटनाएं एक साथ घटनेवाली हैं। पढ़ें युवा विज्ञान संचारक नवनीत कुमार गुप्ता की रिपोर्ट।
अगस्त में लीजिए खगोलीय घटनाओं के आनंद
नवनीत कुमार गुप्ता
चंद्रग्रहण:
इस बार हम अगस्त, 2017 के महीने में अनेक खगोलीय घटनाओं का आनंद ले सकते हैं। इस महीने में दो चंद्रग्रहण_Lunar eclipse एक सूर्यग्रहण_Solar eclipse और उल्कापात_Meteorite shower की घटनाएं घटित होंगी।
पहला चंद्रग्रहण रक्षाबंधन यानी 7 अगस्त को होने वाला है और दूसरा चंद्रग्रहण 31 अगस्त, 2017 को होगा। 7 अगस्त को आंशिकी चंद्र ग्रहण होगा जिसे खग्रास_Partial eclipse भी कहते हैं। 31 अगस्त वाला चंद्रग्रहण पूर्ण चंद्र ग्रहण होगा।
चंद्रग्रहण उस खगोलीय स्थिति को कहते है जब चंद्रमा पृथ्वी के ठीक पीछे उसकी प्रच्छाया में आ जाता है। ऐसा तभी हो सकता है जब सूर्य, पृथ्वी और चन्द्रमा इस क्रम में लगभग एक सीधी रेखा में स्थित हों।
सावन मास के आखिर में यानी सोमवार (7 अगस्त) को खग्रास चंद्र ग्रहण की घटना घटित होगी। इसकी शुरुआत अफ्रीका के मध्य भाग से 7 अगस्त को रात में 10.52 बजे (भारतीय समयनुसार) होगी। यह घटना अगला दिन लग जाने के 49 मिनट तक चलेगी। इस प्रकार चंद्रग्रहण का कुल समय 1 घंटे 57 मिनट रहेगा।
इस खग्रास चंद्र ग्रहण को भारत, ऑस्ट्रेलिया, प्रशांत महासागर, यूरोप के कुछ भाग, अटलांटिक महासागर, हिंद महासागर, दक्षिण-पूर्व एशिया, ऑस्ट्रेलिया, अफ्रीका, दक्षिण अमेरिका के पश्चिमी भाग, प्रशान्त महासागर और अंटकार्टिका में देखा जाएगा।
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सूर्यग्रहण:
चंद्र ग्रहण की घटना के बाद 21-22 अगस्त को सूर्य ग्रहण होगा, हालांकि, यह भारत में दिखाई नहीं देगा। सूर्यग्रहण_Solar Eclipse तब होता है जब चंद्रमा अपनी परिक्रमा के दौरान पृथ्वी और सूर्य के बीच में आ जाता है जिसकी वजह से सूर्य का प्रकाश धरती तक नहीं पहुंच पाता और सूर्य की छाया बन जाती है। पूर्ण सूर्यग्रहण की स्थिति तब होती है जब चंद्रमा पूरी तरह सूरज को ढक लेता है और आंशिक सूर्यग्रहण तब होता है जब चंद्रमा पूरी तरह सूरज को नहीं ढक पाता। पूर्ण सूर्यग्रहण तभी संभव है जब चंद्रमा धरती के सबसे नजदीक हो। सूर्य ग्रहण की घटना पश्चिमी यूरोप, उत्तर पूर्वी एशिया, उत्तर पश्चिमी दक्षिणी अमेरिका तथा अटलांटिक तथा प्रशांत महासागर क्षेत्र में दिखाई देगी।
दूर स्याह गगन में झिलमिलाते तारों के बीच आसमानी आतिशबाजी का नजारा खगोल प्रेमियों के साथ—साथ आमजनता के लिए भी रोमांचक होता है। इस महीने हम आतिशी उल्का पिंडों का शानदार नजारा देख पाएंगे। ऐसा नजारा 12 अगस्त को पर्शीड मेटियोर शॉवर (उल्कावृष्टि) की आतिशबाजी की वजह से दिखेगा।
क्या है उल्काएं?
आकाश में कभी-कभी एक ओर से दूसरी ओर अत्यंत वेग से जाते हुए अथवा पृथ्वी पर गिरते हुए जो पिंड दिखाई देते हैं उन्हें उल्का_Meteor और साधारण बोलचाल में 'टूटते हुए तारे कहते हैं। उल्काओं का जो अंश वायुमंडल में जलने से बचकर पृथ्वी तक पहुँचता है वह उल्कापिंड_Meteorite कहलाता हैं। प्रायः प्रत्येक रात्रि को उल्काएँ अनगिनत संख्या में देखी जा सकती हैं, किंतु इनमें से पृथ्वी पर गिरनेवाले पिंडों की संख्या अत्यंत कम अल्प होती है। वैज्ञानिक दृष्टि से इनका महत्व बहुत अधिक है क्योंकि एक तो ये अति दुर्लभ होते हैं, दूसरे इनकी सहायता से आकाश में विचरते हुए अनेक खगोलीय पिंड़ों की संरचना का अध्ययन किया जा सकता है।
वैज्ञानिकों के आकलन के अनुसार 12 अगस्त की रात यह अनोखी खगोलीय घटना चरम पर होगी। जिसमें प्रति घंटे 100 से 200 तक उल्काएं पृथ्वी की वातावरण से टकराने वाली हैं। परंतु चंद्रमा की रोशनी होने के कारण इन्हें प्रति घंटे 50 से 60 की संख्या में ही देखा जा सकेगा। उस समय एक साथ कई-कई उल्का पिंड झिलमिलाते तारों के बीच धरती की ओर गिरते नजर आएंगे। यह आकर्षक आतिशबाजी जैसा नजारा होगा, जिसका भरपूर लुत्फ उठाने के लिए शहर से दूर सुनसान और अंधेरे वाली जगहों पर जाना अधिक सही होगा। क्योंकि शहर में लाईटों की चकाचौंध में उल्कापात की घटना उतने अच्छे से नहीं दिखती। पर्वतीय, रेगिस्तानी व समुद्र से इसका बेहतरीन नजारा देखा जा सकता है। माना जा रहा है कि इतनी बड़ी संख्या में गिरती उल्काओं की घटना अगली बार 96 वर्ष बाद देखने को मिलेगी।
जब पृथ्वी किसी धूमकेतु द्वारा छोड़े गए अवशेषों से होकर गुजरती है तब ऐसा नजारा देखने को मिलता है। यह घटना पूरे साल भर होती रहती है, लेकिन चरम पर रहने के कुछ ही दिन होते हैं। इस बार की घटना पर्शी तारा समूह से नजर आएगी। इसीलिए इसे पर्शीड उल्कापात भी नाम दिया गया है। पर्शीड उल्कावृष्टि का जन्मदाता 109 पी स्पिफ्ट टटल नामक धूमकेतु है। पिछली बार यह धूमकेतु 1992 में सौरमंडल के दायरे में आया था और उल्काओं के रूप में ढेर सारा मलबा पृथ्वी के मार्ग में छोड़ गया था। इस धूमकेतु का भ्रमण काल 133 साल है।
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लेखक परिचय:
नवनीत कुमार गुप्ता पिछले दस वर्षों से पत्र-पत्रिकाओं, आकाशवाणी एवं दूरदर्शन आदि जनसंचार के विभिन्न माध्यमों द्वारा वैज्ञानिक दृष्टिकोण और पर्यावरण संरक्षण जागरूकता के लिए प्रयासरत हैं। आपकी विज्ञान संचार विषयक लगभग एक दर्जन पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं तथा इन पर गृह मंत्रालय के ‘राजीव गांधी ज्ञान विज्ञान मौलिक पुस्तक लेखन पुरस्कार' सहित अनेक पुरस्कार एवं सम्मान प्राप्त हो चुके हैं। आप विज्ञान संचार के क्षेत्र में कार्यरत संस्था ‘विज्ञान प्रसार’ से सम्बंद्ध हैं। आपसे निम्न मेल आईडी पर संपर्क किया जा सकता है:
नवनीत कुमार गुप्ता पिछले दस वर्षों से पत्र-पत्रिकाओं, आकाशवाणी एवं दूरदर्शन आदि जनसंचार के विभिन्न माध्यमों द्वारा वैज्ञानिक दृष्टिकोण और पर्यावरण संरक्षण जागरूकता के लिए प्रयासरत हैं। आपकी विज्ञान संचार विषयक लगभग एक दर्जन पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं तथा इन पर गृह मंत्रालय के ‘राजीव गांधी ज्ञान विज्ञान मौलिक पुस्तक लेखन पुरस्कार' सहित अनेक पुरस्कार एवं सम्मान प्राप्त हो चुके हैं। आप विज्ञान संचार के क्षेत्र में कार्यरत संस्था ‘विज्ञान प्रसार’ से सम्बंद्ध हैं। आपसे निम्न मेल आईडी पर संपर्क किया जा सकता है:
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