Learn Science through Home Experiments in Hindi
एक बार नोबेल पुरस्कार विजेता भौतिक विज्ञानी आई.आई. राबी से उनके एक दोस्त ने पूछा- ‘‘आप अपने आस-पड़ोस के अन्य प्रवासी बच्चों की तरह डॉक्टर, वकील या व्यापानी बनने के बजाय वैज्ञानिक क्यों बने?’’ इस पर राबी ने बड़ा ही रोचक जवाब दिया। उन्होंने कहा- ‘‘मेरी मां ने अनजाने में ही मुझे वैज्ञानिक बना दिया। ब्रूकाइलिन में रहने वाली हर यहूदी मां स्कूल से लौटने वाले अपने बच्चे से पूछती थी, ‘तो स्कूल में तुमने आज कुछ सीखा कि नहीं।’ लेकिन मेरी मां ऐसा नहीं करती थी। वह हमेशा एक अलग तरह का सवाल मुझसे पूछती थी- ‘इज्जी, क्या आज तुमने अपनी कक्षा में कोई अच्छा सवाल पूछा?’ दूसरी माताओं से उनके इस फर्क यानी अच्छे सवाल को महत्व देना, उनकी इस खूबी ने मुझे वैज्ञानिक बना दिया।’’
इस छोटे से उद्धरण का आशय यह बिलकुल नहीं कि जिन बच्चों को बचपन में सवाल पूछने की आजादी होती है, वे आगे चलकर वैज्ञानिक ही बनते हैं। किन्तु इतना तय है कि जिन बच्चों को बचपन में सवाल पूछने की आजादी होती है, वे बड़ी आसानी से संकोच और झिझक जैसे भावों से उबर जाते हैं और विचार प्रकट करने का आत्मविश्वास उनमें सहज ही विकसित हो जाता है।
यह एक अत्यंत आवश्यक प्रक्रिया है, क्योंकि इसी के द्वारा हमें यह भी पता चलता है कि बच्चों को क्या पसंद है और क्या नहीं, उनकी किन चीजों में रूचि है और किनमें नहीं और सबसे बड़ी बात यह भी कि वे अपनी आयु के अनुसार अब तक क्या जान पाए हैं और क्या-क्या नहीं। और सवाल-जवाब कि यह प्रक्रिया धीरे-धीरे उनके व्यक्तित्व में वैज्ञानिक चिंतन की धारा का विकास भी करती है, जो किसी भी सफल व्यक्ति के लिए बेहद आवश्यक होता है।
हालांकि हमारे देश में ज्यादातर लोगों के लिए बच्चों के सवाल खीझ का कारक होते हैं। वे जब यह पूछते हैं कि चिडिया कैसे उड़ती है, पेड़ कैसे उगते हैं, आसमान नीला क्यों है और कोई भी चीज हाथ से छूटने पर नीचे क्यों गिरती है, तो उन्हें असहजता महसूस होती है। ऐसे में या तो वे उसे किसी दूसरे पर टाल देते हैं या फिर उसे ‘ऊट-पटांग’ सवालों के लिए डांट-डपट कर चुप करा देते हैं। लेकिन ऐसे अभिभावकों को यह समझ लेना चाहिए कि बच्चों के सवाल पूछने की यह प्रक्रिया उनके विकास का अहम हिस्सा है। और यदि आप चाहते हैं कि आपका बच्चा आगे चलकर एक सफल व्यक्ति बन सके, तो आपको उसके इन सवालों का सम्मान करते हुए उसकी जिज्ञासाओं को शमन करने के रास्ते खोजने ही होंगे। और यदि आप इस कार्य हेतु वास्तव में पूरी तरह से गम्भीर हैं, तो ‘अपने बच्चे को दें विज्ञान दृष्टि’ पुस्तक इसमें आपकी काफी मददगार हो सकती है।
यह पुस्तक नैन्सी पाउलू और मार्गेरी मार्टिन ने अमेरिकी शिक्षा विभाग के शिक्षा, शोध एवं सुधार कार्यालय के सहयोग से तैयार की है और इसका उद्देश्य है बच्चों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास। हिन्दी में इस पुस्तक का अनुवाद आशुतोष उपाध्याय के द्वारा सम्पन्न हुआ है और इसे लेखक मंच प्रकाशन, गाजियाबाद के द्वारा पाठकों के लिए उपलब्ध कराया गया है।
हम सभी लोग यह जानते हैं कि बच्चे स्वभाव से ही बहुत खोजी और जिज्ञासु होते हैं। वे अपने आसपास की सभी चीजों के भीतर छिपे हुए रहस्यों को जाननने के लिए पल-प्रतिपल तत्पर रहते हैं। उनकी इसी खोजी वृत्ति को ध्यान में रखते हुए पुस्तक में बहुत आसान से प्रयोग दर्शाए गये हैं, जिन्हें करके बच्चे प्रकृति एवं अपने आसपास के माहौल को समझ सकते हैं। इसके साथ ही यह पुस्तक बच्चों को समझने, उनके सीखने में मदद करने, और इस प्रक्रिया के प्रति अभिभावकों में एक जरूरी समझ पैदा करने का भी कार्य करती है। इसलिए मेरे विचार मे यह एक जरूरी पुस्तक है, जिसे हर अभिभावक/शिक्षक को अवश्य पढ़नी चाहिए।
पुस्तक- अपने बच्चे को दें विज्ञान दृष्टि
लेखक- नैन्सी पाउलू और मार्गेरी मार्टिन
अनुवादक- आशुतोष उपाध्याय
प्रकाशक- लेखक मंच प्रकाशन, 433, नीतिखंड-3, इंदिरापुरम, गाजियाबाद-201014, ईमेल- lekhakmanchprakashan@gmail.com, मोबाइल- 09871344533
मूल्य- 40 रू0
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