नदियों के सांस्कृतिक महत्व एवं उनके प्राकृतिक स्वरूप की आवश्यकता से परिचित कराता आलेख।
कौन करेगा गंगा का उद्धार ?
-नवनीत कुमार गुप्ता
शायद यह पहली बार होगा कि गंगा नदी की शुचिता को बरकरार रखने के लिए मुहिम तेज होती दिख रही है। लेकिन क्या अकेली गंगा नदी ही प्रदूशण के दानव से भयग्रस्त हैं? नहीं, आज भारत की लगभग हर नदी प्रदूषण का शिकार है। इस चुनावी मौसम के बहाने पूरे देश में जीवनदायी नदियां की दयनीय हालत पर विचार किया जाना चाहिए। असल में हमें समझने की आवश्यकता है कि नदियां केवल जलधाराएं ही नहीं अपितु जनजीवन और लोक-संस्कृति का अभिन्न अंग हैं। नदियां सभ्यताओं एवं संस्कृतियों के साथ-साथ विकास की भी जननी रही हैं। सभी प्राचीन सभ्यताओं का विकास नदी तटों के समीप ही हुआ है।
करीब साढे़ चार हजार वर्ष पूर्व मिस्र में नील नदी के किनारे मिस्र की महान सभ्यता विकसित हुई। नदियों के किनारे कृषि के लिए आवश्यक जल और उर्वर मिट्टी भी पर्याप्त होती है, इसीलिए सभी प्रमुख सभ्यताओं का उत्थान जल क्षेत्रों के आस-पास ही होता रहा है। मेसोपोटामिया की सभ्यता का विकास ईसा से पैंतीस सौ वर्ष पूर्व टिगरिस नदी के तट पर और भारत की प्राचीन मोहनजोदड़ो और हड़प्पा सभ्यता का विकास सिंधु नदी घाटी के किनारे हुआ। नदी तटों के समीप विकसित होने के कारण ही इन प्राचीन सभ्यताओं का नामकरण नदी सभ्यताओं के रूप में किया गया है।
भारत में आदिकाल से ही नदियों के महत्व को समझ लिया गया था। जिसके कारण इन्हें धर्म और जीवन से जोड़ा गया। भारत सहित विश्व भर में नदियां सामाजिक व सांस्कृतिक रचनात्मक कार्यों का केन्द्र स्थल रही हैं। भारत में विशेष अवसरों एवं त्योहारों के समय करोड़ों लोग नदियों में स्नान करते हैं। यहां समय-समय पर नदियों के किनारे विशेष मेलों का आयोजन किया जाता है जिनमें विभिन्न वर्गों के लोग बिना किसी भेदभाव के हिस्सा लेते हैं। नदियों के तट पर कुंभ, सिंहस्थ जैसे विशाल मेले दुनिया में केवल भारत में ही देखने में आते हैं, जहां करोड़ों लोग एकत्र होते हैं। इन अवसरों पर विभिन्न स्थानों से आने वाले व्यक्ति अपने विचारों व संस्कृति का आदान-प्रदान करते हैं।
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नदियां जीवन की गतिशीलता का प्रतीक हैं। अनवरत प्रवाहित रहने वाली नदियां मानव को निरन्तर कार्य करने का संदेश देती हैं। सभ्यता के विकास के साथ नदी और नदी जल के विभिन्न उपयोगों का सिलसिला निरन्तर जारी है। नदियों द्वारा न केवल हम पेयजल प्राप्त करते हैं वरन् सिंचाई के लिए भी नदी जल का उपयोग करते हैं।
नदियां आवागमन का माध्यम भी हैं। गंगा, ब्रह्मपुत्र जैसी नदियों में नौकायन की सुविधा उपलब्ध होने से परिवहन में भी आसानी होती है। नावों द्वारा एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंचा जाता है। नाव का उपयोग वस्तुओं के स्थानांतरण के लिए भी किया जाता है। नदियों के किनारे करोड़ों लोग निवास करते हैं, इनमें मछली उद्योग के लिए नदियों पर निर्भर रहने वाले लोग भी शामिल हैं। नदियों द्वारा मिलने वाली मछलियां, केंकड़े और रेत अनेक लोगों के जीविकोपार्जन का साधन भी हैं। इस प्रकार करोड़ों लोगों के लिए नदी की परिभाषा ‘जीवन रेखा’ के रूप में है।
नदियां भारतीय जनजीवन और लोकसंस्कृति से अभिन्न रूप से जुड़ी हुई हैं। भारत में नदियों के तटों पर विभिन्न सांस्कृतिक उत्सवों का आयोजन किया जाता है। नर्मदा नदी के किनारे किए जाने वाला निमाड़ महोत्सव ऐसा ही एक उत्सव है जो पूरे देश में प्रसिद्ध है। इस अवसर पर विभिन्न क्षेत्रों के रचनाकर्मी व कलाकार अपनी रचनाओं व कलाओं का प्रदर्शन करते हैं।
नदियों के नाम से त्यौहारों को भारत में ही मनाया जाता है। ‘गंगादशमी’ गंगा नदी को समर्पित ऐसा ही एक त्योहार है। भारत में नदियों की परिक्रमा की प्रथा भी लोगों को एक दूसरे की संस्कृति व रचनात्मकता से अवगत कराती है। भारत में नदियां साहित्य में भी विशिष्ट स्थान रखती हैं। भारत में नदियों पर चालीसा, आरती, भजन लिखे गए हैं।
यमुना नदी पर लिखी गई ‘यमुनाष्टक’ वंदना प्रसिद्ध रचना है। लेकिन पिछली शताब्दी से अविवेकपूर्ण विकास और लालची प्रवृत्ति के चलते मानव ने नदियों को केवल स्वार्थ सिद्धि का माध्यम मान लिया। पश्चिम की पूंजीवादी सोच प्रकृति के संसाधनों का भरपूर दोहन कर उस पर एकाधिकार का दावा करती रही है।
सदियों से जिस समाज में प्यासे को पानी पिलाना पुण्य और समाज सेवा का कार्य समझा जाता था आज उसी देश में बोतलबंद पेयजल का व्यापार फल-फूल रहा है। पिछले कुछ वर्षों में हमारे देश में विकास के नाम पर जिन प्राकृतिक संसाधनों का अन्धाधुन्ध दोहन किया गया है, उनमें नदी-जल के साथ भू-जल संसाधन भी शामिल है। अविवेकपूर्ण भूजल दोहन से भूजलस्तर में तेजी से कमी आई है, जिससे देश के अधिकांश हिस्सों में पेयजल की समस्या दिनोंदिन गहराती जा रही है।
अच्छा हो, हमारे सभी प्रदेशों के जिम्मेदार लोग अपने इलाके के पानी को अपने-अपने ढंग से रोकने के तौर-तरीकों को फिर से याद करें। इन तरीकों से बनने वाले तालाब पुराने ढर्रे के न माने जाएं। वे इन इलाकों में लगे आधुनिक ट्यूबवेल को भी जीवन दे सकेंगे। इन सभी इलाकों में भू-जल बहुत तेजी से नीचे गिरा है। लेकिन यदि लोग तय कर लें तो पानी रोकने के ऐसे प्रबंध हजारों-लाखों ट्यूबवेलों को फिर से जिंदा कर सकेंगे और तब हर खेत को कहीं दूर बहने वाली कावेरी या किसी अन्य नदी के पानी की जरूरत नहीं होगी।
असल में मानव की स्वार्थी प्रवृत्ति इस कदर बढ़ रही है कि वह गंगा समेत अन्य जीवनदायी नदियों के मूल स्वरूप से भी खिलवाड़ करने से नहीं चूकता। यदि यही हाल रहा तो नदियों के प्रवाह के अनियमित होने का परिणाम मानव के साथ-साथ अन्य जीव प्रजातियों को भी भोगना होगा जिससे पारिस्थितिकी तंत्र में असंतुलन उत्पन्न होगा। ऐसी स्थिति से बचने के लिए समाज को चाहिए कि नदियों की महत्ता को समझे और उनके मूल स्वरूप को बनाए रखने का प्रयत्न करे ताकि धरती पर जीवन अपने विविध रूपों में खिलखिलाता रहे। आज हम सभी को संकल्प लेना होगा कि हम नदियों के जीवनदायी रूपरूप को बनाए रखें और उनको स्वच्छ व प्रवाहमान रखें।
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नवनीत कुमार गुप्ता विज्ञान संचार के क्षेत्र में कार्यरत राष्ट्रीय संस्था ‘विज्ञान प्रसार’ से संबंद्ध होकर पिछले दस वर्षों से पत्र-पत्रिकाओं, आकाशवाणी एवं दूरदर्शन आदि जनसंचार के विभिन्न माध्यमों द्वारा वैज्ञानिक दृष्टिकोण और पर्यावरण संरक्षण जागरूकता के लिए प्रयासरत हैं। विज्ञान संचार विषयक आपकी लगभग एक दर्जन पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं तथा गृह मंत्रालय के ‘राजीव गांधी ज्ञान विज्ञान मौलिक पुस्तक लेखन पुरस्कार' सहित अनेक पुरस्कारों एवं सम्मानों से समादृत हैं। आपसे ngupta@vigyanprasar.gov.in पर संपर्क किया जा सकता है।
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बहुत अच्छा
जवाब देंहटाएंनदियों का संरक्षण एक व्यापक मुद्दा है, यह सिर्फ सरकार भरोसे रहकर नहीं होने वाला। इसके लिए हम सबको सचेत होना होगा।
जवाब देंहटाएंइस महत्वपूर्ण आलेख के लिए बधाई।
बढ़िया निबंधात्मक आलेख।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंआज हम सभी को संकल्प लेना ही होगा कि हम नदियों के जीवनदायी रूपरूप को बनाए रखें और उनको स्वच्छ व प्रवाहमान रखें।
जवाब देंहटाएंNADIYON KO BACHANE PAR ANUCHED
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