हर वस्तु का एक दूसरा पहलू होता है। ऐसा ही एचआईवी-एड्स के साथ भी है। एड्स के इसी दूसरे पहलू को रेखाकित करते हुए उसके नाम पर चलने वाले ...
हर वस्तु का एक दूसरा पहलू होता है। ऐसा ही एचआईवी-एड्स के साथ भी है। एड्स के इसी दूसरे पहलू को रेखाकित करते हुए उसके नाम पर चलने वाले कारोबार के बारे में बता रहे हैं शशाँक द्विवेदी।
कुछ लोगों के लिए एड्स जानलेवा बीमारी हो सकती है, लेकिन ज्यादातर लोग इसके नाम पर अपनी जेबें भर रहे हैं। नेता और अधिकारियों को एड्स के नाम पर विदेशों में घूमने से फुर्सत नहीं है। वहीं ज्यादातर गैर सरकारी संगठन चाँदी काट रहे हैं।
कुछ वर्ष पूर्व भाजपा नेता मुरली मनोहर जोशी ने संसद में बयान दिया था- ‘इन अवर कंट्री पीपल आर नॉट लिविंग विद एड्स, दे आर लिविंग ऑन एड्स’ अर्थात हमारे देश में लोग एड्स के साथ नहीं जी रहे हैं, बल्कि एड्स से अपनी रोजी-रोटी कमा रहे हैं। वाकई आज देश एड्स माफियाके चंगुल में है। एड्स के नाम पर पैसे की बरसात हो रही है। विभिन्न इंटरनेशनल एजेंसीज एड्स के नाम पर अपनी सोच भी हम पर थोप रही हैं।
दरअसल एचआईवी-एड्स के क्षेत्र में मिल रही विदेशी सहायता ने तमाम गैर सरकारी संगठनों को इस ओर आकर्षित किया है। नतीजतन जो एनजीओ पहले से समाज सेवा के लिए काम करते थे, वे अब खुद अपनीसेवा के लिए एनजीओ खोल रहे हैं। एड्स प्रोजेक्टस की बंदरबाट ने एचआईवी एड्स का जमकर दुष्प्रचार किया है। एड्स के उपचार के लिए दवाओं और कंडोम के इस्तेमाल पर भी वैज्ञानिक एकमत नहीं हैं। सारे प्रयोग यहां होने से भारत दुनिया की लेबोरेटरी बन रहा है। देश में एड्स विशेषज्ञों का अभाव है, साथ ही डॉक्टरऔर पैरा मेडिकल स्टॉफ भी इसको लेकर कई भ्रांतियाँ पाले हुए हैं।
आज पूरी दुनिया में एचआईवी और एड्स को लेकर जिस तरह का भय व्याप्त है और इसकी रोकथाम व उन्मूलन के लिए जिस तरह से जोरदार अभियान चलाए जा रहे हैं, उससे कैंसर, हार्ट डिजीज, टीवी और डॉयबिटीज जैसी खतरनाक बीमारियाँ लगातार उपेक्षित हो रही हैं। पूरी दुनिया के आँकड़ों की मानें तो हर साल एड्स से मरने वालों की संख्या हजारों में होती है, वहीं दूसरी घातक बीमारियों की चपेट में आकर लाखों लोग अकाल ही मौत के मुँह में समा जाते हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक ताजा रिपोर्ट के अनुसार अगर हृदय रोग, कैंसर, मधुमेह और क्षय रोग से बचने के लिए लोगों को जागरूक नहीं किया गया, तो अगले दस वर्ष में इनसे चार करोड़ लोगों की मौत हो सकती है। परंतु सरकारी और गैर सरकारी पर सिर्फ एचआईवी और एड्स की रोकथाम के लिए गंभीरता है। उदाहरण के लिए वर्ष 2010-11 में एड्स नियंत्रण पर जहां 800 करोड़ खर्च किए गये, वहीं टीवी उन्मूलन पर सिर्फ 205 करोड़ और कैंसर नियंत्रण पर 89 करोड़ रूपये खर्च किये गये।
एड्स को लेकर पूरी दुनिया में जितना शोर मचाया जा रहा है, उतने तो इसके मरीज भी नहीं हैं। फिर भी आज दुनिया भर के स्वास्थ्य एजेंडे में एड्स मुख्य मुद्दा बना हुआ है। इसकी रोकथाम के लिए करोड़ों डॉलर की धनराशि को पानी की तरह बहाया जा रहा है। यही नहीं, अब तो अधिकाँश गैर सरकारी संगठन भी जन सेवा के अन्य कार्यक्रमों को छोड़कर एड्स नियंत्रण अभियानों को चलाने में रूचि दिखा रहे हैं। क्योंकि इसके लिए आसानी से अनुदान मिल जाता है और इससे नाम और पैसा आराम से कमाया जा सकता है।

भारत में एचआईवी एड्स के क्षेत्र में काम कर रही बिल गेट्स की संस्था ‘दि इंडिया एड्स इनीशिएटिव ऑफ बिल एंड मेलिंडा गेटस फाउंडेशन’ के अनुसार अभी भी भारत में विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में सेक्स, कंडोम, एड्स के बारे में बात करने पर लोग काफी हिचकिचाहट महसूस करते हैं। यहाँ तक कि इस सम्बंध में टेलीविजन पर अगर कोई विज्ञापन भी प्रसारित होता है,तो देखने वाले चैनल बदल देते हैं। फिर प्रश्न उठता है कि एड्स निवारण के नाम पर जो करोड़ों का फंड आता है, वो जाता कहाँ है। क्योंकि न तो इसके ज्यादा मरीज हैं और जो मरीज हैं भी, उन्हें भी सुनिश्चित दवा और सहायता उपलब्ध नहीं कराई जाती। वित्तीय अनियमितता अपने चरम पर है। एड्स नियंत्रण कार्यक्रम सिर्फ नोट कमाने का जरिया बनकर रहे गये हैं, वहीं एड्स की कीमत पर अन्य बीमारियों के लिए सरकार समुचित फंड और सुविधाएँ उपलब्ध नहीं करा पा रही है। (साभार- जनसंदेश टाइम्स)
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ये पूंजीवाद हर चीज को मुनाफा कमाने के लिए इस्तेमाल कर लेता है।
जवाब देंहटाएंबिना ठोस तथ्यों के आधी अधूरी जानकारी वाला लेख... वैजानिक लेख मान्याताओं से नहीं लिखे जाते...
जवाब देंहटाएंपढ़ कर लगता है लेखक को 'एड्स' के बारें में बेसिक जानकारी भी नहीं है...
दिनेशजी की टिप्पणी से हम भी सहमत|
जवाब देंहटाएंऐसा भी हो सकता है ...
जवाब देंहटाएंकई साल पहले हमे ५००/- रूपये का फंड मिला था जिस का एक फ्लेक्स बोर्ड बनवाया गया था और स्कूल मे लगाया गया था
विज्ञान की कापी जांचने पर हर साल एड्स के प्रश्न के उत्तर मे शब्द-बा-शब्द वो बोर्ड का मेटीरियल ही लिखते हैं मतलब बच्चे आते जाते वो बोर्ड पढते हैं निसंदेह यह सन्देश जीवन मे भी काफी लोग उतारते होंगे.
ये तो खर्च करने वाले की नीयत पर निर्भर है क्यूंकि जागरूकता ही इसका उत्तम इलाज़ है
इसलिए इस के प्रचार पर तो सालाना २००००/- करोड़ रूपये भी कम हैं.
एड्स पर जागरूकता का सरकारी प्रचार भी मजेदार है| सरकार ने हर बोर्ड लगा रखें है कि "असुरक्षित यौन संबंधों से बचने को कंडोम का इस्तेमाल करें"|
जवाब देंहटाएंइन विज्ञापन होर्डिंग्स को देखकर लगता है कि सरकार कंडोम बनाने वाली कंपनियां का प्रचार कर रही है जबकि इन होर्डिंग्स पर संयम बरतने की शिक्षा भी दी जा सकती थी|
# एड्स मे जो मदद [Aid] छिपी दिखती,
जवाब देंहटाएंउससे कुछ फायदा तो मिलता है,
उसको condemn क्यों करे भाई?
जिसकी खातिर condom बिकता है!
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# एसी बीमारियाँ* तो अच्छी है ! *[मधुमेह , टी.बी. वगेरह]
जिससे आबादी अपनी घट्ती है !!
योजनाएं* करोड़ो-खरबों की, [*family Planning]
फिर भी जनसंख्या अपनी बढ्ती है!!!
http://aatm-manthan.com
इसकी रोकथाम के लिए करोड़ों डॉलर की धनराशि को पानी की तरह बहाया जा रहा है। यही नहीं, अब तो अधिकाँश गैर सरकारी संगठन भी जन सेवा के अन्य कार्यक्रमों को छोड़कर एड्स नियंत्रण अभियानों को चलाने में रूचि दिखा रहे हैं। क्योंकि इसके लिए आसानी से अनुदान मिल जाता है और इससे नाम और पैसा आराम से कमाया जा सकता है।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति ||
बधाई स्वीकार करें ||
kahaa nahi hai ye sab... sensitive se sensitive topic bhi bas paisa banane ka medium ho gaya hai... :(
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर. हम तो हमेशा कमाने की जरियों की तलाश में रहते हैं. बाकी तो ओपचारिक ही है.
जवाब देंहटाएंConference Announcement / Call for papers
जवाब देंहटाएंnational seminar on hindi blogging
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The deadline for abstracts/proposals is 30
September 2011.
Enquiries: manishmuntazir@gmail.com -9324790726
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Sponsored by: k.m.agrawal college of arts,commerce
& science
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जवाब देंहटाएंयहाँ हिव-एड्स एच आई वी एड्स का मतलब राज्य सहायता लगा लिया गया है .भारत देश इसी सब्सिडी पर चल रहा है जो भ्रष्टाचार की मामी है . मम्मीजी इसकी हामी हैं .यकीन न हो तो सत्यवादी दिग्विजय सिंह जी से पूछ लो .