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बहुत मौजू मामला उठया है आपने शुक्रिया !
जवाब देंहटाएंतकनीकि तो नयी है लेकिन प्रश्न नया नही है और समाधान वही है जो पहले से अपनाया गया है
जवाब देंहटाएंजैसे महिलाओ और पुरूषो के लिये अलग जेल ,अलग अलग जांचकर्ता ( महिलाओ के लिये महिला और पुरूषो के लिये पुरूष ) , अब देख्नना यह है कि इन स्कैनर को मानीटर करने वाला ग्रुप अलग अलग होता है कि नही ,दो अलग अलग स्कैनर होने चाहिये और उनको मानीटर करने वाली टीम ( महिलाओ के लिये महिला और पुरूषो के लिये पुरूष )भी अलग अलग होनी चाहिये , वैसे पुरूषो के लिये कोइ भी टीम चलेगी.. बस मिसरा जी टीम मे नही होगे , क्या पता कोइ समळैगिक होने का आरोप लगा दे
पता नहीं क्यों महिलाएं फालतु में इसका विरोध कर रही हैं ।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी जानकारी दी आपने।
जवाब देंहटाएंकोई और तरीका सुझाये ? या फिर जिन के कारन ये सब करना पड़ रहा है उन्हें समझाएं ?
जवाब देंहटाएंये तो बड़ा ही संवेदनशील मामला है जाकिर भाई,
जवाब देंहटाएंएक तरफ तो देश की सुरक्षा है तो दूसरी तरफ निजता भंग होने का डर .
सत्येन्द्र कुमार से सहमत, इस मशीन को ऑपरेट करने वाली और निगाह रखने वाली कर्मचारी महिला ही हो तो भला क्या आपत्ति हो सकती है, और वैसे भी इस तस्वीर का कोई रिकॉर्ड अथवा इमेज सेव करके रखी नहीं जायेगी… यह तो सुरक्षा का एक तात्कालिक उपाय है इसे अपनाने में कोई हर्ज नहीं होना चाहिये…
जवाब देंहटाएंमहिलाओं की जाँच महिलाएं करे. बात खत्म.
जवाब देंहटाएंजांच और निजता भंग की नैतिकता के मुद्दे पर सत्येन्द्र कुमार ,सुरेश चिपलूनकर और संजय बेंगानी से सहमत !
जवाब देंहटाएंकिन्तु आपकी आशंका में भी दम है , विशेष कर स्त्रियों के मामले में इस तकनीक का दुरूपयोग किया जा सकता है !
उपयोगी जानकारी , परन्तु मैं यह जोड़ना चाहता हूँ की पशात्य देशो में जहाँ यह मशीन पहले से ही आ चुकी है वहां पर महिलाओं की स्कैनिंग महिलाएं करती हैं और पुरुषों की स्कैनिंग पुरुष|
जवाब देंहटाएं@ सत्येन्द्र जी , पुरुषों के लिए कोई भी टीम बिल्कुल नहीं चलेगी|
अब एक और बात जो शायद ध्यान में रखी जानी चाहिए, ये मशीन लगाई जा रही है ताकि आतंकवादी कोई घातक वास्तु ना ले जा सकीं अपने साथ और यह बात आतंकवादियों को भी पता रहती है तो वो इससे बचने का उपाय भी निकाल लेते हैं, और इस मशीने से बचने का उनका उपाय है घातक वस्तुओं के साथ कुछ और भी वस्तुएं रखना ताकि उसकी त्रि आयामी छवि में आया संयुक्त वास्तु किसी साधारण चीज़ का आभास दे और योरोप में आतंकियों ने इस तकनीकी का प्रयोग भी किया है तथा कोई मानव (महिला या पुरुष) छवि को देखकर कुछ पता नहीं लगा सकता है| तो मतलब यह की आतंकियों का तो कुछ नहीं बिगड़ेगा हाँ साधारण लोगों की निजता पर संकट जरूर आएगा |
अब समस्या है तो समाधान भी है , और समाधान जो की कुछ स्थानों पर प्रयोग में लाया गया है वह अहि स्कैनिंग भी एक संगणक (कंप्यूटर) के द्वारा किया जाना जिसकी गणना करने की क्षमता मानव से कहीं ज्यादा होती है| यह कुछ ही समय में छवियों का पूर्ण निरिक्षण कर सकता है तथा परिणाम दे सकता है था इस प्रक्रिया में प्रत्येक मानव की स्कैनिंग में कोई मानव नहीं रहता है तो साधारण लोगों के लिए
डिटेक्टर्स जहां लगे हैं, वहां सुरक्षा है? यदि हां, तो यह होना चाहिये। निजता से जानों की कीमत ज्यादा है।
जवाब देंहटाएंकिस देश मै महि्लाओ ने इस पर एतराज किया है? शायद किसी भी देश की महिल्य्यो ने नही किया, क्योकि यह हम सब की सुरक्षा का सवाल है ओर इस पर कोई भी शर्त नही, जिन्हे दिक्कत है वो ऎसी जगह जाने से बचे, मेरी मां बहन बीबी भी निकलती है यहां से कोई दिक्कत नही, बेकार की बात है यह सब
जवाब देंहटाएंसमस्या है तो समाधान भी खोजे जाकते हैं। जैसे
जवाब देंहटाएं१ स्त्रियों के चित्र स्त्रियाँ ही देखें। उससे भी बेहतर कम्प्यूटर या रोबॉट देखें।
२ चेहरे को अलग स्कैन किया जाए, शरीर को अलग, या टुकड़ों में। इन्हें साथ न जोड़ा जाए।
३ चित्र तुरन्त मिटा दिए जाएँ।
मैं तो कहती हूँ कि यात्रा के लिए कपड़े भी सुरक्षा जाँच किए हुए पहने जाएँ जैसे हॉस्पिटल के कपड़े पहने जाते हैं।
याद कीजिए कंधार वाली घटना को, कैसे परिवारजनों की भावनाओं को टी वी पर दिखा दिखाकर एक सरकार को घुटने टेकने को बाध्य किया गया था। हम भूल जाते हैं कि हमारे सिपाही भी किसी के स्वजन होते हैं। वे बिन प्रसवपीड़ा जन्म नहीं लेते। वे जान हथेली पर रख आतन्कवादियों को पकड़ते हैं और हम टसुए बहा बहाकर उन्हें रिहा करवा देते हैं। जानती हूँ कि मुझ पर गुजरती तो मैं भी यूँ ही करती। किन्तु चाहती कि सरकार मेरे रोने पर न झुकती।
और भी बहुत से समाधान हो सकते हैं। आतंकवाद से निपटने के लिए हमें बहुत से बदलाव करने ही होंगे। लज्जा और निजता की बातें यहाँ बेमानी हो जाती हैं।
यह एक नया युग है, जहाँ आम मनुष्य को लगातार निशाने पर रखा जा रहा है। मैं कभी नहीं चाहूँगी कि मेरी मेल कोई अन्य पढ़े। किन्तु जब आतंकवादी हम जैसी आइ डी बनाकर हमलों की योजना बनाते हैं तो क्या कोई और रास्ता बचता है? शायद यही कि हम उनके सामने आत्मसमर्पण कर दें। फिर देखिएगा कितनी निजता बचेगी। कश्मीर और अफगानिस्तान का हाल हम देख चुके हैं। ईरान का देख रहे हैं। यदि इनसे निपटे नहीं तो यही हाल देर सबेर सारे विश्व का होगा। फिर हम अपने पैदा होने को ही अपना दुर्भाग्य मानेंगे।
यदि ऐसे सुरक्षा चैक बड़े पैमाने पर होंगे तो लोग इसके आदी हो जाएँगे। यदि यह सब पसन्द नहीं तो आतन्कवादियों को रोकने का कोई अन्य तरीका बताइए। ये सारे संसार को अपनी बेड़ियों में जकड़ने से पहले अपने आप तो नहीं रुकने वाले!
घुघूती बासूती
सुरक्षा सर्वोपरि है और होना चाहिये एसे भी चेहेरा तो ठीक से दिखता भी नही तो क्या पर्क पडता है । डॉक्टर के पास भी तो जांच के लिये जाते ही हैं ।
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