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अच्छा है.. और शोध होगा तो प्यार का विरोध करने वाले तंतु भी पकड़ आ जायेगें..
जवाब देंहटाएंहा हा हा विग्यान अब दिल के मामले भी सुलझाने के प्रयास मे है रंजन जी सही कह रहे हैं रोचक पोस्ट आभार्
जवाब देंहटाएंतो बिना देखे प्यार नहीं हो सकता -फिर अंधे बिचारे कैसे प्यार करते होगें -जाकिर जी बताएं ?
जवाब देंहटाएंsahi me rochak post......aabhar
जवाब देंहटाएंक्या खबर है ?
जवाब देंहटाएंइश्क के पहलु हैं यह कैसे कोई इनके राज को समझे जाने :) रोचक पोस्ट.......... देखने से अधिक शायद कुछ विचार दिल की घंटी को बजा देते होंगे .आखिर बिना आँखों वाले भी तो प्यार का एहसास करते ही हैं
जवाब देंहटाएं'लव एट फर्स्ट साईट' सुनने में बड़ा बढ़िया लगता है लेकिन 'इमोशनल कम्पैटिबिलिटी' कैसे जांचा जाए एक नज़र के बाद ?
जवाब देंहटाएंनुसरत साहब का गाया एक गीत है -
तेरे लारेयां ते उमर गंवाई, वे माहिया लारे लान वालेया
आक्ख लाई ना, जदों दी अक्ख लाई, वे माहिया लारे लान वालेया
(अनुवाद : तेरी टाल-मटोल पे उम्र गंवाई ओ झूठे वादे करने वाले / आंख लगाई [नींद] ना जबसे आंख लगाई [प्रेम] ओ झूठे वादे करने वाले)
प्यार एक ऐसा खूबसूरत एहसास है, जो हर इंसान के दिल के किसी न किसी कोने में बसा होता है। इस एहसास के जागते ही कायनात में जैसे चारों ओर हजारों फूल खिल उठते हैं जिंदगी को जीने का नया बहाना मिल जाता है ।
प्रेम एक ऐसी अबूझ पहेली है, जिसके रहस्य को जानने की कोशिश में जाने कितने प्रेमी दार्शनिक, कवि और कलाकार हो गए और कितने बटुक नाथ बन गए ।
बस एक बार मिली थी नज़र, देखो अब आया होश हमें
कुछ और जी लेते खवाबों में, यूँ बेसबब आया होश हमें
लगा संवर गया है घर, लुटा पाया जब आया होश हमें
सुना था मोहब्बत है बला, सुनके कब आया होश हमें
अब भी तो वो ही दिखता है, अजब ये आया होश हमें
लाख चाहा भूल जायें उसे, कहाँ कब आया होश हमें
रोचक पोस्ट Interesting...
जवाब देंहटाएंachha laga padh kar...
जवाब देंहटाएंApne dosto ke saath share karoonga ye post...
Your blog is nice to read...
Keep posting, interesting material..
जाकिर भाई
जवाब देंहटाएंहमारा ख्याल है कि हम हिन्दोस्तानी लोग 'दिल' और प्यार के दरम्यान 'दिमाग' नहीं घुसाते ! मगर यावेल और कैनविरान ने इस रिसर्च में दिल को घास तलक नहीं डाली !... क्या कहें ये गोरे लोग जो भी करते हैं दिमाग से ही करते हैं ? इनकी करनी से हमारा बल्लियों उछलने वाला दिल बेहद पशेमान हो गया है ! दिक्कत ये है कि महबूबा को लिखी चिट्ठियां , उनमें दिल से फिट किये गए अशार , सब कुछ तहस नहस हो गया है !
चलो थोडी देर को हम सब्र भी कर लें तो उनका क्या होगा ,जो कई कई जगह पहली नजर में पहली पहली बार दिल दे बैठते थे ? ? ?
मेरे भाई इस मजाक को बर्दाश्त करते हुए आपके आर्टिकल का टाईटल बदल लेना क्योंकि इसके मजमून का दिल से कोई लेना देना नहीं है और हाँ वो गाने के बोल भी हटाइए प्लीज !
"वैसे सब कुछ ख़त्म हो जाने के बाद भी हम मुस्करा रहे हैं यही आपके आर्टिकल की कामयाबी है !"
:: एक बात और प्रिय अरविन्द मिश्र जी से कहियेगा गोरे कुछ भी कहें ! अंधे पहले की तरह अपना रास्ता ढूंढ ही लेंगे ! वैसे भी 'कोई' प्यार के पहले अँधा हो या बाद में क्या फर्क पड़ता है ?
रोचक पोस्ट है.वैज्ञानिकों के प्रयोग भी निराले हैं.
जवाब देंहटाएंपहली नज़र का प्यार[?.. प्यार नहीं सिर्फ आकर्षण होता है.
waah adbhut jankaari
जवाब देंहटाएंजाकिर भाई, वैज्ञानिक शोध और प्रयोगों के नाम पर यह ज़रूरी नहीं की हर बार काम की बात ही निकले, अक्सर तो बेसिरपैर और नोन्सेन्स ही सामने आता है.
जवाब देंहटाएंवैज्ञानिकों के एक बहुत बड़ी बिरादरी ऐसी ही चीज़ें करके अपना टाइमपास करती है और लोग उनके निष्कर्षों को हाथोंहाथ लेते हैं.
'लेकिन इस परीक्षण के दौरान शोधकर्ता यह समझने में अस्मर्थ रहे कि कोई व्यक्ति किसी को देखकर इतना फिदा क्यों हो जाता है' - इसे केवल दिल जानता है.
जवाब देंहटाएंअच्छा लगा आप का शोध लव एट फर्स्ट साईट ।
जवाब देंहटाएंशोध के लिये धन्यवाद ।
जबकि तथ्य यह है कि प्यार होने के लिए दिल नहीं दिमाग जिम्मेदार होता है।
जवाब देंहटाएं-----
हाजमोला की जरूरत है।
भाई वाह बहुत खूब ....अच्छा लेख लगा
जवाब देंहटाएंइस प्रकार के वैज्ञानिक शोध सिर्फ बेसिरपैर की बकवास से ज्यादा कुछ नहीं हैं।
जवाब देंहटाएंअभी कुछ दिनों पहले किसी समाचार पत्र में पढा था कि ब्रिटेन में वैज्ञानिकों नें एक शोध किया है कि जो व्यक्ति ज्यादा गप्पें हाँकता है उसे ह्रदयाधात जैसी बीमारी का सामना नहीं करना पडता ओर वो एक सामान्य व्यक्ति की अपेक्षा अधिक आयु तक जीवित रहता है। यानि कि गप्पे हाँकिए ओर मृ्त्यु पर विजय पाईये:)
वाह बहुत खूब! बहुत बढ़िया लगा!
जवाब देंहटाएंbada hi majedar post
जवाब देंहटाएंYani vigyan ab prem mein bhi ghuspaith karne laga !
जवाब देंहटाएंरोचक जानकारी | "अपना ऍफ़ ऍफ़ ए तो कुछ ज्यादा ही सक्रिय है :)"
जवाब देंहटाएंपर अरविन्द जी ने जो प्रश्न पूछा है, वो भी विचारने लायक है | शायद आवाज़ का भी "ऍफ़ ऍफ़ ए" से कोई लेना देना हो?
जब किसी बात पर, अक्सर ही, द्वन्द्व होता है वह मस्तिष्क में आपस में होता है या दिल-दिमाग में जैसा कहा जाता है।
जवाब देंहटाएंवास्तव में विग्यान यह पता नहीं कर पाया कि आत्मा या आत्म,स्व,सेल्फ़ कहां स्थित है-मस्तिष्क में या दिल या डी एन ए, जीन में-वही भावानुभूतियों को अनुभव करता है।
----दर्शन व योग शास्त्र के अनुसार ,आत्म या ईश्वर-अंश -ह्रदय-कमल में स्थित है। विग्यान के अनुसार भी जीवन की स्वयं-शक्ति(ओटोमेटिसिटी) ह्रदय(दिल) में ही होती है, दिमाग में नहीं। मस्तिष्क के बिना दिल स्वयं की शक्ति से धडकता रहता है,दिल के बिना मस्तिष्क नहीं।
अतः प्यार की भावना व अन्य भावनायें दिल में ही होसकती हैं, मस्तिष्क में नहीं। कविता,साहित्य,कथायें,जनष्रुतियां आदि में तथ्य युगों के अनुभव,ग्यान,व आकलन के बाद ही प्रयोग होते हैं । अतः वत्स जी की बात में दम है।