फली एक ज़वाब अनेक ! मैं तो सकते में था -स्थानिक नामों की झडी लगती जा रही थी और सही हिन्दी नाम उभर ही नही रहा था -तभी सिद्धार्थ जी ने पहेली ...
फली एक ज़वाब अनेक ! मैं तो सकते में था -स्थानिक नामों की झडी लगती जा रही थी और सही हिन्दी नाम उभर ही नही रहा था -तभी सिद्धार्थ जी ने पहेली बूझ कर मुझे राहत दे दी .अब बात दीगर है कि वास्तव में पहेली को वास्तव में किसने बूझा -त्रिपाठीजी ने ख़ुद या श्रीमती त्रिपाठी जी का सहयोग भी इसमे लिया गया ! वे एक कुशल गृहिणी हैं तो पूरी गुन्जायिश है कि उन्होंने केवांच की मासालेदार यम् यम् सब्जी जरूर बना कर त्रिपाठी जी को चखाई होगी ! है तो यह केवांच( म्यूकना प्यूरिएंस )ही जिसका पौधा और फली छूने से खजुली हो जाती है -मगर यह बडे काम का औषधीय पौधा है .
मैंने अभी उसी दिन ही तो इसे ठेले वाले से दुहरे मकसद के चलते लिया था -तस्लीम चित्र पहेली के लिए और फिर सब्जी बनावाकर खाने के लिए .इन दिनों श्रीमती जी घर पर अवांट बवांट चीजें सब्जियों के रूप में ले आने के मेरे नए शगल से परेशान हैं ,पहले भुनभुनाती हैं पर थोड़ा मनुहार पर मान कर अपने पाक कौशल /हुनर को अंजाम दे ही देती हैं और सच मानिए क्या लाजवाब और लजीज सब्जी बनी थी केवाँच की -अवश्य खाईये खावन योगू -यह रसेदार- मसालेदार बनती है !जायकेदार तो है ही ज़रा भी नुकसानदायक नही है !
अब आईये जवाबों पर गौर कर लिया जाय ! पारुल ने अपने पहले जवाब में इसे क्यूथी फली कहा लेकिन संशय में पड़ गयीं और जवाब बदल कर इसे बोकला की फली बताया ! अब समीर जी के लिए खासी मुश्किल हो गयी -उन्होंने फरमाया " हम तो जिसकी कॉपी नकल मारते थे वो खुद ही कन्फ्यूज है, तो हम तो किनारे ही समझे जायें। :)" पर अब चूंकि पारुल जी ने दुबारा लौट कर जवाब दिया था तो फालोवर साहब कहाँ चूकते ,फिर लौटे और बोले ग्वार फली है. यह अन्तिम जवाब था पहेली का ! पर और भी रोचक जवाब पहले भी जल्वाफरोस हो चुके थे -सीमा जी ने मुन्ग्रे और फिर लौट कर इसके वानस्पतिक नाम को बताने को आश्वस्त किया पर मैं उनका इंतज़ार करता रह गया हूँ-वे भूल भी गयीं होंगी या फिर अपनी कविता के साथ और किसी की कविता की हर्फों को दुरुस्त करने में लगीं होंगी -लोकप्रियता जो कुछ न करा दे ! स्मार्ट इंडियन जी की भूल समझी जा सकती हैं -देशी चींजों की याद अब कहाँ होंगी उन्हें लिहाजा केवांच को सेम की फली समझ बैठे !शुभम को भी ये सेम की ही एक प्रजाति लगी ! निर्मला कपिला जी को यह राजमा का फल लगा तो रंजना (रंजू ) जी ने तुक्का मारा ग्वार की फली -वैसे लिखा उन्होंने गंवार है ! अल्पना जी से इस बार चूऊक हो गयी ,उनका जवाब था - Vicia faba [broad bean]
मीत ने तो इसे अरहर की फली तक कह दिया -भले बने हो नाथ मगर दाद दूँगा स्पोर्टिंग स्पिरिट का कि उन्होंने पहेली में भाग लिया -दैट्स लायिक ए गुड समारिटन ! ताऊ ने तो हद ही कर दी बोले -मिश्रा जी मन्नै तो ये शहतूत दिखै सै.मान गए ताऊ ! फिर धीरे से बोले मसूर -लेकिन बिचारे के मुंह मसूर की दाल मयस्सर नहीं हो पायी ! चलिए अगली बार ताऊ ! कविता वाचकनवी जी ने अमलतास की फली कहा और इस बार बच्चों के बहकावे में आ गईं ! राज भाटिया साहब भी इन दिनों ख़ुद एक बड़े पहेली तीसमारखां तो बने हुए हैं और लोगों को तमाम सब्जी पहेलियाँ थोक के भाव बुझाए जा रहे हैं मगर ख़ुद इसे सोयाबीन कहते भये है .वे ठीक ही सोचते हैं कि जब तक पहेली बूझने में समय जाया करेंगें तब तक ख़ुद ही नही नई पहेली पूंछ लेंगें ! देव ने मुन्ग्रे की फली कहा और मैं संशय में हूँ कि यही जवाब और लोगों का भी है तो कहीं पंजाब -हरियाणा में केवांच को ही तो मुन्ग्रे नही कहा जाता ! कौन बतायेगा ?? ममता जी ने यह कह कर पल्ला या पल्लू जो कुछ भी हो झाड़ लिया -"कल सही जवाब यहाँ पर ही देख लेंगे । :)"अभिषेक ओझा जी फ्रेंच बीन ,उड़द और मूंग के ही बीच उलझे रह गए और तभी समीर जी ने वक्त समाप्ती की घोषणा कर दी !
सभी को हार्दिक शुक्रिया -सिद्धार्थ जी औरश्रीमती त्रिपाठी जी को बराबर बराबर की बधाई ! तस्वेदानियाँ !
मैंने अभी उसी दिन ही तो इसे ठेले वाले से दुहरे मकसद के चलते लिया था -तस्लीम चित्र पहेली के लिए और फिर सब्जी बनावाकर खाने के लिए .इन दिनों श्रीमती जी घर पर अवांट बवांट चीजें सब्जियों के रूप में ले आने के मेरे नए शगल से परेशान हैं ,पहले भुनभुनाती हैं पर थोड़ा मनुहार पर मान कर अपने पाक कौशल /हुनर को अंजाम दे ही देती हैं और सच मानिए क्या लाजवाब और लजीज सब्जी बनी थी केवाँच की -अवश्य खाईये खावन योगू -यह रसेदार- मसालेदार बनती है !जायकेदार तो है ही ज़रा भी नुकसानदायक नही है !
अब आईये जवाबों पर गौर कर लिया जाय ! पारुल ने अपने पहले जवाब में इसे क्यूथी फली कहा लेकिन संशय में पड़ गयीं और जवाब बदल कर इसे बोकला की फली बताया ! अब समीर जी के लिए खासी मुश्किल हो गयी -उन्होंने फरमाया " हम तो जिसकी कॉपी नकल मारते थे वो खुद ही कन्फ्यूज है, तो हम तो किनारे ही समझे जायें। :)" पर अब चूंकि पारुल जी ने दुबारा लौट कर जवाब दिया था तो फालोवर साहब कहाँ चूकते ,फिर लौटे और बोले ग्वार फली है. यह अन्तिम जवाब था पहेली का ! पर और भी रोचक जवाब पहले भी जल्वाफरोस हो चुके थे -सीमा जी ने मुन्ग्रे और फिर लौट कर इसके वानस्पतिक नाम को बताने को आश्वस्त किया पर मैं उनका इंतज़ार करता रह गया हूँ-वे भूल भी गयीं होंगी या फिर अपनी कविता के साथ और किसी की कविता की हर्फों को दुरुस्त करने में लगीं होंगी -लोकप्रियता जो कुछ न करा दे ! स्मार्ट इंडियन जी की भूल समझी जा सकती हैं -देशी चींजों की याद अब कहाँ होंगी उन्हें लिहाजा केवांच को सेम की फली समझ बैठे !शुभम को भी ये सेम की ही एक प्रजाति लगी ! निर्मला कपिला जी को यह राजमा का फल लगा तो रंजना (रंजू ) जी ने तुक्का मारा ग्वार की फली -वैसे लिखा उन्होंने गंवार है ! अल्पना जी से इस बार चूऊक हो गयी ,उनका जवाब था - Vicia faba [broad bean]
मीत ने तो इसे अरहर की फली तक कह दिया -भले बने हो नाथ मगर दाद दूँगा स्पोर्टिंग स्पिरिट का कि उन्होंने पहेली में भाग लिया -दैट्स लायिक ए गुड समारिटन ! ताऊ ने तो हद ही कर दी बोले -मिश्रा जी मन्नै तो ये शहतूत दिखै सै.मान गए ताऊ ! फिर धीरे से बोले मसूर -लेकिन बिचारे के मुंह मसूर की दाल मयस्सर नहीं हो पायी ! चलिए अगली बार ताऊ ! कविता वाचकनवी जी ने अमलतास की फली कहा और इस बार बच्चों के बहकावे में आ गईं ! राज भाटिया साहब भी इन दिनों ख़ुद एक बड़े पहेली तीसमारखां तो बने हुए हैं और लोगों को तमाम सब्जी पहेलियाँ थोक के भाव बुझाए जा रहे हैं मगर ख़ुद इसे सोयाबीन कहते भये है .वे ठीक ही सोचते हैं कि जब तक पहेली बूझने में समय जाया करेंगें तब तक ख़ुद ही नही नई पहेली पूंछ लेंगें ! देव ने मुन्ग्रे की फली कहा और मैं संशय में हूँ कि यही जवाब और लोगों का भी है तो कहीं पंजाब -हरियाणा में केवांच को ही तो मुन्ग्रे नही कहा जाता ! कौन बतायेगा ?? ममता जी ने यह कह कर पल्ला या पल्लू जो कुछ भी हो झाड़ लिया -"कल सही जवाब यहाँ पर ही देख लेंगे । :)"अभिषेक ओझा जी फ्रेंच बीन ,उड़द और मूंग के ही बीच उलझे रह गए और तभी समीर जी ने वक्त समाप्ती की घोषणा कर दी !
सभी को हार्दिक शुक्रिया -सिद्धार्थ जी औरश्रीमती त्रिपाठी जी को बराबर बराबर की बधाई ! तस्वेदानियाँ !
पहेली बहुत स्वादिष्ट लगी. अगली बार बनारस में कोई सेमिनार कराएं तो इस फली की सब्जी का इंतजाम पक्का रखें वो भी भाभी जी के हाथ की!
जवाब देंहटाएंहमें आभास हो गया था और हिन्दी नाम भी मालूम था. परंतु दिग्भ्रमित हुए क्योंकि हमने जो फलियाँ बेल पर देखी थी उनपर रेशमी बालों का आवरण था जब कि चित्र में बॉल वाल थे ही नहीं, एकदम सपाट. हमें यह भी नहीं मालूम था कि इसकी सब्जी भी बनाई जाती है. आभार.
जवाब देंहटाएंबधाई जी.
जवाब देंहटाएंSiddharth ji ko sapataneek badhayi. ab aapne iski svadcharcha kar di hai, to khane ka jugad kaun karega? yah bhi winner se ghoshna karvaya karein.
जवाब देंहटाएंharyan, Punjab mein jise moongre ki phali kaha jata hai, vah ek dum alag cheej hoti hai, thodi theekhi kasaili ka mishran type. vah bilkul alag hoti hai is se, even shape bhi mel nahin khata.
सिद्धार्थ जी को बहुत बहुत बधाई.
जवाब देंहटाएं" सिद्धार्थ जी को बहुत बहुत बधाई. @ अरविन्द जी भूले तो नही थे ...मगर कोशिश के बावजूद
जवाब देंहटाएंवानस्पतिक नाम नही खोज पाए....पहले सोचा अल्पना जी का ही जवाब नक़ल कर ले हा हा हा हा हा मगर फ़िर सोचा अगर उनका भी सही नही हुआ तो???????????? मगर जज्बा कायम है होसला भी बुलंद है और उसी जोश के साथ अगली पहेली में भाग लेंगे.."
Regards
-एक ही दिन में तीन पहेलियाँ पूछी गयीं एक साथ!मैं तो ताऊ जी की पहेली में ही काफी समय नेट पर दे चुकी थी क्यों की वहां मार्क्स मिलते है.और देर होने पर position को खतरा भी है.
जवाब देंहटाएंइस लिए बाकि पहेलियों के लिए पुख्ता तफ्तीश करने का समय नहीं रहा...यह तो हुई अपने बचाव में दलील.
-वैसे अगर आप ब्रोड बीन की कोई भी तस्वीर देख लें यह हुबहू वैसे ही दिखाती है.
वैसे बोकले की फली भी ऐसी सी होती है--कहीं इस का दूसरा नाम बोकला तो नहीं??
- मुन्गरे की फलियाँ मूली के पौधे पर होती हैं.मूली का सर काट कर आप उसे उगा देन तो उस पर जो पौधा आयेगा उस पर यह फलियाँ आती हैं.और मूली की तरह तीखी होती हैं.
आलू के साथ मिला कर बनाई जाती है.
बाकि आप जो हिन्दी में नाम'कवांच' बता रहे हैं कभी पहले सुना नहीं..नई जानकारी रही इस बार.
कहने का अर्थ है मुंगरे की फलियाँ मूली की फलियाँ है-
जवाब देंहटाएंआप मूली न ukhaden लगी रहने दें तो भी मूली पकने पर उस पर आजाएंगी.
-श्रीमती और श्री सिद्दार्थ जी को ढेर सारी बधाई.
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंविज्ञान कथा लेखन कार्यशाला में 4 दिनों तक बुलंदशहर में फंसे रहने के बाद आज ही लोटा हूं। इस बात की खुशी है कि देर से ही सही पहेली बूझ ली गयी है।
जवाब देंहटाएंसिद्धार्थ भाई को पहेली बूझने की बहुत बहुत बधाई। साथ ही मैं अरविंद जी बात से सहमत हूं और आधी बधाई भाभी जी के लिए भी भेज रहा हूं। सिद्धार्थ जी, आपको कोई आपत्ति तो नहीं है न।
लो हमने तो इस का नाम ही पहली बार सुना .:) हम गंवार [ग्वार ]ख़ुद ही बन गए :)खैर जीतने वालो को बधाई .
जवाब देंहटाएंविजेताओं को बधाई...
जवाब देंहटाएंजल्द ही माँ से बनवा कर खाऊँगा इसे...
मीत
सबसे पहले तो सिद्धार्थ जी को विजेता बनने पर बधाई.............
जवाब देंहटाएंमिश्रा जी, आपकी ओर भाटिया जी की पहेलियां पारिवारिक तनाव का कारण बनती जा रही हैं.
पहले जो आदमी अपनी धर्मपत्नि के हाथों बनी सादी दाल रोटी खाकर परम संतोष की सांस लेता था, अब वो बन्दा सुबह सुबह तरह तरह की सब्जियों के दर्शन कर के सारा दिन उसके काल्पनिक स्वाद में खोया रहता है और शाम को घर पहुंच कर जब खाने में दाल देखता है तो लुगाई से क्लेश करता है कि मैं तो आज फ्लानी सब्जी खाऊंगा. जब कि पत्नि भी सोचती है कि जानबूझ कर नखरे कर रहा है"मुआ! जरूर कहीं बाहर से खाकर आया होगा"
अब अगर कहीं महिला मोर्चे वालियों को पता चल् गया कि बंदो को बिगाडने में आप लोगों का हाथ है तो फिर समझो आप लोगों की खैर नहीं.
हमने तो ये नाम कभी सुना ही नहीं कहाँ से जवाब दे पाते :(
जवाब देंहटाएंअरविन्द जी,
जवाब देंहटाएंएक और खुजली वाली सब्जी है. मेरे घर में तो कान कहलाती है. पता नहीं और जगह क्या कहते हैं.
मैं तो मीनू जी से सहमत हूं जी...
जवाब देंहटाएंशाम से ही नेट सम्पर्क कटा रहा। मुझे जीतने की खबर और बधाई कविता जी ने फोन पर दे दी थी। आप सभी का तहे दिल से शुक्रिया।
जवाब देंहटाएंयह धन्यवाद इसलिए भी दे रहा हूँ कि आगे पता नहीं ऐसा मौका दुबारा मिले कि नहीं। वरना केवाँच को पहेली के रूप में देखकर मुझे थोड़ी हैरत हुई थी क्योंकि हम इसे खूब खाते रहे हैं। यह पौधा मेरे गाँव के घर पर खूब फल देता है। इधर दो-तीन दिन पहले ही सब्जी मण्डी में इसे देख कर आया था।
मेरे साथ मेरी धर्मपत्नी को भी याद रखने का धन्यवाद। देर रात में नेट जुड़ा है इसलिए यहाँ देरी से आ पाया।