क्या आपको 02 अप्रैल 1984 की याद है, जब भारतीय वायुसेना के पायलट स्क्वाड्रन राकेश शर्मा ने भारतीय ...
क्या आपको 02 अप्रैल 1984 की याद है, जब भारतीय वायुसेना के पायलट स्क्वाड्रन राकेश शर्मा ने भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन इसरो और सोवियत इंटर कॉक्मोस के संयुक्त अंतरिक्ष मिशन के तहत सोयुज टी-11 अंतरिक्ष यान के द्वारा सैल्युट-7 अंतरिक्ष स्टेशन की यात्रा की थी। कॉस्मोनट-रिसर्चर के रूप में उस यात्रा में शामिल राकेश शर्मा से उस समय जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उनसे पूछा था कि अंतरिक्ष से भारत कैसा दिखता है, तो उन्होंने अपने जवाब में कहा था- सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्ताँ हमारा।

भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम को यहाँ तक पहुँचाने में जिस शख्स का महत्वपूर्ण योगदान है, उसका नाम है डॉ0 विक्रम साराभाई। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान कमेटी के चेयरमैन रहे साराभाई ने कॉस्मिक किरणों मे समय के साथ होने वाले परिवर्तन पर अनुसंधान किया और इस नतीजे पर पहुँचे कि मौसमी प्रभाव कॉस्मिक किरणों के परिवर्तनों के लिए पूर्णरूप से उत्तरदायी नहीं होते हैं तथा इनका सम्बंध सौर सक्रियता में होने वाले परिवर्तनों से होता है। अपने इन्हीं तमाम कार्यों के द्वारा वे भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के पितामह के रूप में जाने जाते हैं। उन्हें थुम्बा में प्रथम राकेट प्रमोचन स्टेशन ‘टर्ल्स’, अंतरिक्ष विज्ञान और तकनीकी केन्द्र एवं प्रथम प्रायोगिक उपग्रह संचार भू-केन्द्र, (इस्केस, अहमदाबाद) की स्थापना का श्रेय भी जाता है।
भारत के विभिन्न अंतरिक्ष कार्यक्रमों और उनसे जुड़े महत्वपूर्ण घटनाक्रमों तथा व्यक्तित्वों से परिचित कराती पुस्तक है ‘भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम’, जिसे आईक्ट द्वारा मध्य प्रदेश विज्ञान एवं तकनीकी परिषद की अनुसृजन परियाजना के अन्तर्गत प्रकाशित किया गया है। इस रोचक पुस्तक के लेखक हैं काली शंकर एवं राकेश शुक्ला।
काली शंकर भारत में सम्पन्न विभिन्न उपग्रह संचार परियोजनाओं-साईट, स्टेप, एप्पल, स्टेशनर, इन्सैट से जुड़े रहे हैं तथा उपग्रह संचार प्रणाली के अनेक तंत्रों और उपतंत्रों के डिजाइन और विकास के क्षेत्र में काम करने के लिए जाने जाते हैं। इसके अतिरिक्त काली शंकर विज्ञान संचार के क्षेत्र के एक महत्वपूर्ण हस्ताक्षर हैं और इसरो के डिस्टिंग्विश्ड अचीवमेंट अवार्ड, उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान के सम्पूर्णानन्द पुरस्कार, राजभाषा विभाग के इंदिरा गांधी राजभाषा पुरस्कार, रक्षा मंत्राल के राजभाषा पुरस्कार एवं प्रौद्योगिकी विभाग के डॉ0 मेघनाद साहा अवार्ड से सम्मानित हैं। काली शंकर की प्रमुख प्रकाशित पुस्तकें हैं: अंतरिक्ष स्टेशनों का युग, अंतरिक्ष में मानव, अंतरिक्ष में भारत, अंतरिक्ष यात्रा के रोमांचक पहलू, रॉकेट विज्ञान के मूल सिद्धांत, अंतरिक्ष अन्वेषण का स्वर्ण युग, अन्तर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन अल्फा, अंतरिक्ष में जीवन।
पुस्तक के सह लेखक राकेश शुक्ला हैदराबाद स्थित अंतरिक्ष विभाग, भारत सरकार के संगठन एड्रिन में वैज्ञानिक के पद पर कार्यरत हैं और ‘आँकड़ा सुरक्षा’ के क्षेत्र से सम्बद्ध हैं। इंस्टीट्यूशन ऑफ इलेक्ट्रानिक्स एण्ड टेलीकम्यूनिकेशन इंजीनियर्स तथा क्रिप्टोग्रॉफिकल सोसाइटी ऑफ इंडिया के आजीवन सदस्य राकेश शुक्ला हिन्दी में अंग्रेजी में विज्ञान संचार के लिए जाने जाते हैं और आईसेक्ट, भोपाल, राजभाषा विभाग, केन्द्रीय सचिवालय हिन्दी परिषद, अंतरिक्ष विभाग एवं रक्षा मंत्रालय द्वारा पुरस्कृत हो चुके हैं।
लेखकद्वय द्वारा लिखी गयी इस पुस्तक में भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम को विस्तार से समझाया गया है। पुस्तक की उपयोगिता को समझने के लिए उसकी विषय वस्तु ही काफी है। आलोच्य पुस्तक में कुल 16 अध्याय हैं। ये निम्नानुसार हैं: 1. भारत में अंतरिक्ष कार्यक्रमों का प्रारम्भ, 2. भारत के इन्सैट संत्र के उपग्रह, 3. भारत के सुदूर संवेदन उपग्रह, 4. भारत में सम्पन्न विश्व का सबसे विशाल जनसंचार परीक्षण-साईट, 5. भारत के अंतरिक्ष प्रमोचन यान, 6. भारत का प्रथम चंद्र मिशन ‘चंद्रयान-1’, 7. भारत का नेविगेशन तंत्र, 8. भारतीय उपग्रह एडूसैट के द्वारा सुदूर शिक्षण को बढ़ावा, 9. टेलीमेडिसिन के क्षेत्र में भारत की प्रगति, 10. भारत में उपग्रह आधारित खोज एवं बचाव सेवा, 11. देश के विकास में अंतरिक्ष तकनीकों का उपयोग, 12. भारत में अंतरिक्ष विज्ञान के अन्य कार्यक्रम, 13. भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के सम्पन्न हो चुके दो महत्वपूर्ण और प्रशंसनीय मिशन, 14. भारत के अंतरिक्ष केन्द्र, 15. भारत के अंतरिक्ष यात्री, 16. भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के संस्थापक डॉ0 विक्रम साराभाई।
सरल एवं प्रवाहपूर्ण भाषा शैली में लिखी गयी यह पुस्तक विज्ञान के विद्यार्थियों ही नहीं उन सभी पाठकों के लिए उपयोगी है, जो भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम की उपलब्धियों को जानना और समझना चाहते हैं। पुस्तक अपनी महत्वपूर्ण विषय सामग्री ही नहीं आकर्षक प्रस्तुतिकरण और उचित मूल्य के कारण भी आकर्षित करती है। यह पुस्तक हिन्दी में विज्ञान की स्तरीय पुस्तकों के अभाव को दूर करती है और अधिक मूल्य का रोना रोने वाले आलोचकों के मुँह पर लगाम भी लगाती है।
पुस्तक: भारत का अन्तरिक्ष कार्यक्रम,
लेखक- काली शंकर, राकेश शुक्ला,
श्रृंखला सम्पादक: संतोष चौबे,
प्रकाशक: आईसेक्ट, स्कोप कैंपस, एन.एच.12, मिसरोद के पास, होशंगाबाद रोड, भोपाल-26, फोन: 0755-3293214-16, ईमेल: aisect_bpl@sancharnet.in, बेबसाईट: www.aisect.org
पृष्ठ: 190
मूल्य: 100 रूपये।
बगैर किसी शोर-शराबे के,भारतीय वैज्ञानिको ने जो कर दिखाया है,वह कैसे हमारे विकास ही नहीं अस्तित्व के लिए भी ज़रूरी है,यही जानने ज़रूर पढूंगा यह किताब।
जवाब देंहटाएंमहत्वपूर्ण जानकारी देती इस पुस्तक के बारे में बताने का धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंये सफ़र तो चलता रहेगा।
जवाब देंहटाएंजब से Spectrum का Science & Technology सप्लीमेंट पढ़ना छोड़ा है पता ही नहीं था कि हम आज इतने आगे निकल आए हैं. धन्यवाद :)
जवाब देंहटाएंरजनीश, आप आइसेक्ट द्वारा प्रकाशित उल्लेखनीय पुस्तकों की सिलसिलेवार समीक्षा देकर एक महत्वपूर्ण कार्य कर रहे हैं | आपको शुभकामनाएं और धन्यवाद | मैं आपके इस प्रयास की सूचना श्री संतोष चौबे, प्रमुख, आइसेक्ट, भोपाल को देना चाहूँगा |
जवाब देंहटाएंमनीष मोहन गोरे
मनीष भाई, शुक्रिया।
जवाब देंहटाएंवैसे मैं सोच रहा था कि जब सारी किताबों के बारे में लिख जाए, तब बताऊं।