रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून। पानी गये न ऊबरे मोती मानुष चून। रहीमदास के इस दोहे से जीवन में पानी की महत्ता बखूबी समझी जा सकती है...
रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून। पानी गये न ऊबरे मोती मानुष चून।
रहीमदास के इस दोहे से जीवन में पानी की महत्ता बखूबी समझी जा सकती है, जिसमें कहा गया है कि बिना पानी के न तो मोती का कोई वजूद रह सकता है, न मानुष अर्थात मनुष्य का और न ही चूने का। पानी सिर्फ भौतिक आवश्यकतओं के लिए ही नहीं, प्यास बुझाने के लिए भी आवश्यक होता है। लेकिन कभी कभी ऐसा भी होताह है कि कोई जल में रह कर भी प्यासा रह जाता है। यह बात आम आदमी की सोच से परे भले ही हो, लेकिन यह एक सत्य है।और जल में रहकर प्यासे रहने वाली हस्ती है मैंग्रोव।

इन पौधों को पानी की हर बूंद से नमक को अलग करने के लिए अतिरिक्त ऊर्जा खर्च करनी पड़ती है। इसीलिए ये अपने पानी को बहुत सोच समझ कर खर्च करते हैं। इन पौधों में रेगिस्तानी पौधों की तरह जल संरक्षण की योग्यता पायी जाती है। वाष्पोत्सर्जन द्वारा पानी के उत्सर्जन को रोकने के लिए इन पौधों में मोटी चिकनी पत्तियाँ होती हैं। इन पत्तियों की सतह पर पाये जाने वाले रोम छिद्र पत्ती के चारों ओर वायु की एक परत को बनाए रखते हैं। इसीलिए कहा जाता है कि ये पौधे पानी में रहकर भी प्यासे रहते हैं।
मैंग्रोव पौधों की जड़ें पानी से नमक को अलग करने के मामले में बेहद कार्यकुशल होती हैं। इस छन्नीकरण की प्रक्रिया के बाद भी पौधों में जो नमक चला जाता है, उसके निकालने के लिए पौधों में एक विशिष्ट प्रणाली पाई जाती है। कुछ पौधे इस नमक को पुरानी पत्तियों में जमा कर देते हैं, जो कुछ समय के बाद गिर जाती हैं, तो कुछ पौधे अपनी विशेष ग्रन्थियों के द्वारा नमक को छोटी छोटी बूंदों के रूप में उत्सर्जित करती रहती हैं। इन पौधों से निकलने वाले इस नमक मिश्रित पानी के कारण ये पौधे रोते हुए भी प्रतीत होते हैं।
मैंग्रोव वनों की तलछट में भारी धातु तत्वों को पानी से सोख कर रखने की क्षमता होती है। यही कारण है कि ये तटीच क्षेत्रों में भारी धातुओं से होने वाले प्रदूषण को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ये पौधे सूर्य की तीव्र किरणों तथा पराबैंगनी-बी किरणों से बचाव में सक्षम होते हैं तथा वायु में मौजूद कार्बन डाई आक्साइड को अधिक मात्रा में सोखने के कारण ग्रीन हाउस प्रभाव को नियंत्रित करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इसके अतिरिक्त समुद्री तटों की मिट्टी की कटान रोकने तथा समुद्री चक्रवातों को रोकने की भी इनके भीतर अद्भुत क्षमता पाई जाती है। मैंग्रोव पौधे मनुष्यों के स्वास्थ्य की दृष्टि से भी लाभदायक होते हैं। इनकी अनेक प्रजातियाँ सर्पदंश, चर्मरोग, पेचिश, मूत्र रोग, रक्त विकार तथा गर्भ निरोधक हेतु उपयोग में लाई जाती हैं।
‘मैंग्रोव-ज्वारीय वन’ को पढ़कर इन पौधों के बारे में ऐसी ही बहुत सारी उपयोगी बातें जानी जा सकती हैं। इस उपयोगी पुस्तक के लेखक हैं- डा0 आर0 पनिरसिलवम। डा0 पनिरसिलवम वर्तमान में अन्नामलाई विश्वविद्यालय में वनस्पति विज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष हैं और वातावरणिक, क्रियाविज्ञान तथा जैव विविधता जैसे विषयों के विशेषज्ञ के रूप में जाने जाते हैं। विज्ञान प्रसार द्वारा प्रकाशित उनकी यह पुस्तक मैंग्रोव वनों के इन्साइक्लोपीडिया के रूप में हमारे सामने आई है, जिसके रंगीन चित्र पुस्तक में चार चाँद से लगाते प्रतीत होते हैं। इस महत्वपूर्ण एवं लोकोपयोगी प्रकाशन के लिए विज्ञान प्रसार बधाई का पात्र है।
पुस्तक- मैंग्रोव- ज्वारीय वन
लेखक- डा. आर. पनिरसिलवम
अनुवादक- हेमंत पंत
प्रकाशक- विज्ञान प्रसार, ए-50, इंस्टीटयूशनल एरिया, सेक्टर-62, नोएडा-201307 फोन- 0120-2404430/35
मूल्य- 80 रूपये।
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बढिया जानकारी, सुन्दर समीक्षा.
जवाब देंहटाएंअच्छी जानकारी।
जवाब देंहटाएंअच्छी समीक्षा !
जवाब देंहटाएंअच्छी जान्कारी दी आप ने
जवाब देंहटाएंउपयोगी पुस्तक के बारे में जानकारी।
जवाब देंहटाएंआपने लाजवाब समीक्षा की है इस पुस्तक की ........
जवाब देंहटाएंBadiya jaankari di aapne...badhai...
जवाब देंहटाएंमैंग्रोव का नाम सुना था
जवाब देंहटाएंमगर आज जान पायें हैं इसके बारे में
इस जानकारी के लिये आपका धन्यवाद
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बढिया जानकारी दी
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