“हिमालय में मौजूद ग्लेशियर 50 फीट प्रतिवर्ष की दर से पीछे हट रहे हैं और यह स्थिति 1970 से, जब से वायुमण्डल की गर्माहट में तेजी रिकार्ड ...
“हिमालय में मौजूद ग्लेशियर 50 फीट प्रतिवर्ष की दर से पीछे हट रहे हैं और यह स्थिति 1970 से, जब से वायुमण्डल की गर्माहट में तेजी रिकार्ड की गई है, बराबर बनी हुई है। 1998 में डोक्रियानी बर्नाक ग्लेशियर में 20.1 मीटर की कमी आई जबकि उस वर्ष सर्दियाँ प्रचण्ड थीं। गंगोत्री ग्लेशियर 30 मीटर प्रतिवर्ष की दर से पीछे हट रहा है। बास्पा ग्लेशियर से सर्दियों में निकलने वाले बहाव में 1966 से 75 प्रतिशत वृद्धि हुई है और सर्दियों में स्थानीय तापमान भी बढ़ा है जो सर्दियों में ग्लेशियर के पिघलने की बढ़ोत्तरी को प्रदर्शित करता है। वैज्ञानिकों का मत है कि इस दर से पिघलने पर समस्त मध्य और पूर्वी ग्लेशियर 2035 तक समाप्त हो जायेंगे।” (गर्माती धरती और स्वास्थ्य, पृष्ठ-48)

श्री अलोख मुखर्जी जलवायु परिवर्तन का मानव के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव, जैव विविधता में परिवर्तन और उच्च हिमालय की पारिस्थितिकी से सम्बंधित पर्यावरणीय खतरों के प्रबंधन की रणनीतियों पर कार्य कर रहे हैं और अपने उन्हीं अनुभवों को उन्होंने प्रस्तुत पुस्तक के रूप में सहेजने का कार्य किया है।
“पृथ्वी गृह” सम्बंधी श्रृंखला के अन्तर्गत विज्ञान प्रसार द्वारा प्रकाशित इस पुस्तक में लेखक ने पर्यावरणीय परिवर्तनों के कारण सम्पूर्ण विश्व और खासकर भारतीय परिप्रेक्ष्य में पैदा होने वाली बीमारियों का विस्तार से वर्णन किया है। इन खतरों के बारे में बताते हुए वे कहते हैं कि एशिया-प्रशान्त क्षेत्र में हर वर्ष मलेरिया और डेंगू जैसे रोगों साहित अन्य रोग और दस्त एवं तापघात जैसी स्थितियों के कारण 77 हजार लोग मौत का ग्रास बन जाते हैं। भारत में मलेरिया एक बड़ी चिन्ता का विषय है। यहाँ हर पाँच से सात वर्षों में मलेरिया की महामारी फैल जाती है। अगर हम मच्छरों द्वारा फैलने वाले रोगों की ही बात करें, तो चिकनगुन्या ज्वर, जो पिछले कुछ वर्षों में भारत में तेजी से उभरा है, के साथ डेंगू जैसे रोग जी का जंजाल साबित होते रहे हैं। और आने वाले दिनों में सिर्फ यही रोग ही हमारे लिए भयंकर समस्या का कारण बनने जा रहे हैं।
चाहे वह सौर पराबैंगनी विकिरण का मानव स्वास्थ्य पर पड़ने वाला संभावित प्रभाव हो अथवा मौसम सम्बंधी बदलावों के कारण सूखा और बाढ़ जैसी स्थितियों से उपजने वाली महामारियाँ, आलोक मुखर्जी ने अपनी पुस्तक में इनका विस्तार से लेखा-जोखा प्रस्तुत किया है। चूंकि इस तरह की सामग्री हिन्दी में पहली बार प्रकाशित हुई है, इसलिए यह पुस्तक विशेष महत्व की हो जाती है। न सिर्फ विज्ञान के विद्यार्थियों, वरन पर्यावरण प्रेमियों, स्वास्थ्य चेतना के लिए कार्यरत स्वयंसेवियों और आम पाठकों के लिए बहुत उपयोगी बन पड़ी है।
विज्ञान प्रसार द्वारा प्रकाशित इस लोकोपयोगी पुस्तक का हिन्दी अनुवाद हेमंत पंत द्वारा किया गया है, जबकि हिन्दी सम्पादन बी0के0 त्यागी एवं नवनीत कुमार गुप्ता द्वारा सम्पन्न हुआ है। ग्लासी पेपर पर प्रकाशित और रंगीन चित्रो से सुसज्जित यह पुस्तक सुबोध महंती और मनीष मोहन गोरे के पर्यवेक्षण में प्रकाशित हुई है, जिसके लिए वे निश्चय ही बधाई के पात्र हैं। हमें आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि साहित्य जगत में यह पुस्तक न सिर्फ सराही जाएगी, वरन लोकोपयोगी विज्ञान साहित्य के इतिहास में एक मील का पत्थर साबित होगी।
पुस्तक- गर्माती धरती और स्वास्थ्य
लेखक- आलोक मुखर्जी
फोन- 0120 2404430, 35 मूल्य- 110 रूपये