क्या विलुप्त हो जाएगी डॉल्फिन?

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डॉल्फिन के बारे विस्तार से बताता एक शोध आलेख।

ऐसा माना जाता है कि धरती पर डॉल्फिन का उद्भव करीब दो करोड़ वर्ष पहले हुआ और अन्य स्तनधारियों की तरह डॉल्फिन ने भी लाखों वर्ष पूर्व जल से जमीन में बसने की कोशिश की। लेकिन धरती का वातावरण डॉल्फिन को रास नहीं आया और फिर उसने वापिस पानी में ही बसने का मन बनाया। हालांकि यह जीव लाखों वर्षों से मानव की हमसफर रही है। लेकिन आज जीव के अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है।
राष्ट्रीय जलीय जीव- गंगा की डॉल्फिन

-नवनीत कुमार गुप्ता

हमारी पृथ्वी पर अनेक अनोखे जीव-जंतु हैं जो इस धरती की समृद्ध जैव विविधता का हिस्सा हैं। जीवन की विविधता पृथ्वी पर सभी दूर देखेने को मिलती है। चाहे जल हो या थल जीवन की किलकारियां सभी दूर गूंज रही हैं। जीवों के कुछ रूप सदियों से मानव के साथी रहे हैं। मानव का एक ऐसा ही हमसफर जीव है डॉल्फिन। जल में रहने वाली डॉल्फिन मनमौजी जीव है, जो कभी बरसात की रिमझिम फुहारों से प्रसन्न हो उठती है तो कभी जोर से बिजली चमकनें ओर बादल गरजने पर खड़ी होकर बार-बार पानी में उछलती हुई सुहाने मौसम का मजा लेती है।

Indian Dolphin
ऐसा माना जाता है कि धरती पर डॉल्फिन का उद्भव करीब दो करोड़ वर्ष पहले हुआ और अन्य स्तनधारियों की तरह डॉल्फिन ने भी लाखों वर्ष पूर्व जल से जमीन में बसने की कोशिश की। लेकिन धरती का वातावरण डॉल्फिन को रास नहीं आया और फिर उसने वापिस पानी में ही बसने का मन बनाया। हालांकि यह जीव लाखों वर्षों से मानव की हमसफर रही है। लेकिन आज जीव के अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार ने वर्ष 2009 में गंगा व अन्य भारतीय नदियों में पाए जाने वाली गांगेय डॉल्फिन को ‘राष्ट्रीय जलीय जीव’ घोषित किया गया। भारत में इसे सोंस नाम से भी जाना जाता है। इसे के ‘गंगा का बाघ’ के नाम से भी कहा जाता है।

डॉल्फिन एक सामाजिक प्राणी:
डॉल्फिन, मानव की भांति सामाजिक प्राणी है। इस जीव का गर्भधारण काल दस महीनों का होता है। डॉल्फिन एक बार मंे एक ही बच्चे को जन्म देती है। प्रसव के कुछ दिन पहले से गर्भवती डॉल्फिन की देखभाल के लिए पांच-छह मादा डॉल्फिन उसके आसपास रहती हैं। प्रसव के पूरे समय जो लगभग दो घंटे का होता है उस समय डॉल्फिनों का एक समूह, मां और नवजात डॉल्फिन की मदद को तैयार रहती है। बच्चे के जन्म के समय डॉल्फिनों का समूह मानव की भांति प्रसन्न होकर उत्सव मनाती हैं।

चुंकि डॉल्फिन में मछलियों की भांति श्वसन प्रणाली नहीं होती है इसलिए उन्हें सांस लेने के लिए जल की सतह पर आना पड़ता है। इसी कारण प्रसव के बाद नवजात शिशु को शुद्ध हवा की आपुर्ति के लिए अन्य डॉल्फिन उसे जल सतह पर लाती है। मानव की भांति मादा डॉल्फिन भी बच्चों का लालन-पालन बड़े प्यार से करती है। डॉल्फिन के बच्चे एक साल तक स्तनपान करते हैं। इस दौरान डॉल्फिन बच्चे को जीवन यापन के लिए शिकार करने और तैराकी में निपुण बनाती हैं।

अधिकतर कम उम्र की डॉल्फिन तट के समीप आकर झुंड में खेलती हैं। डॉल्फिन का बच्चा घूम-फिर कर अपनी मां की सीटी की आवाज को पहचान कर उसके पास आ जाता है। अपने संपूर्ण जीवनकाल जो तीस वर्ष तक हो सकता है में अधिकतर डॉल्फिन अपने पूरे परिवार या केवल माता-पिता के साथ रहते है। डॉल्फिन आपस में एक-दूसरे की मदद करती है। एक डॉल्फिन अन्य डॉल्फिन के भाषा संकेतों को समझ आपस में बोलकर संचार स्थापित करती हैं।

डॉल्फिन 5 फुट से 18 फुट तक की लंबी हो सकती है। इसका निचला हिस्सा सफेद और पार्श्व भाग काला होता है। इसका मुंह पक्षियों की चोंच की भांति होता है। डॉल्फिन के शरीर पर बाल नही होने के कारण यह अपने शरीर का तापमान स्थिर रखनें में असमर्थ होने के कारण से प्रवास यात्राएं करती है। डॉल्फिन के सामान्य तैरने की गति 35 से 65 किलोमीटर प्रति घंटे होती है लेकिन गुस्से में यह अधिक तेज करीब 90 किलोमीटर प्रति घंटे की गति से तैरती हुई बिना रूके करीब 113 किलोमीटर तक यात्रा कर सकती है। डॉल्फिन को समुद्र में जहाजों के साथ मीलों तक तैराकी का विशेष शौक होता है। डॉल्फिन जल में करीब 300 मीटर गहरा गोता लगा सकती है। जब यह गोता लगाती है तो इसकी ह्द्रयगति आधी रह जाती है, ताकि ऑक्सीजन की जरूरत कम पड़नें से यह अधिक गहराई तक गोता लगा सके। यह कुशल तैराक जीव 5 से 6 मिनट तक जल के अन्दर रह सकता है ।

डॉल्फिन की एक विशेषता तरह-तरह की आवाज निकालना है। प्रकृति ने डॉल्फिन के कंठ को अनोखा बनाया है जिससे यह विभिन्न प्रकार की करीब 600 आवाजें निकाल सकती है। डॉल्फिन सीटी बजा सकने वाली एकमात्र स्तनपायी जलीय जीव है। यह म्याऊं-म्याऊं भी कर सकती है तो मुर्गे की तरह कुकडू-कू भी। डॉल्फिन द्वारा तरह-तरह की अवाजें निकाल सकने के कारण इसे ‘आवाजों का पिटारा‘ भी कहा जाता है। मादा डॉल्फिन का आकार नर डॉल्फिन की तुलना में अधिक होता है।

चतुर जीव:
डॉल्फिन का चरणबद्ध रूप से सीखने की प्रवृत्ति इसको सभी जलचरों में सर्वाधिक बुद्धिमान जीव बनाती है। इसका मनुष्यों के साथ विशेष रूप से बच्चों के प्रति विशेष लगाव होता है। डॉल्फिन को इंसानों के साथ खेलना अच्छा लगता है। काफी समय से डॉल्फिन मनोरंजन का साधन रही है। यह प्रशिक्षण से विभिन्न प्रकार के खेल भी दिखाती है। डॉल्फिन कभी गेंद को अपनी नाक पर उछालती है तो कभी पानी में लबीं छलांग लगाने के अतिरिक्त यह रिंग में से भी निकल सकती है। प्रशिक्षण से डॉल्फिन तरह-तरह के करतब करती है लेकिन हां अगर डॉल्फिन गुस्से में है तो यह कोई करतब नहीं दिखाती।

खुशमिजाज जलीय जीव:
डॉल्फिन सभी समुद्रों में मिलती है लेकिन भूमध्यसागरीय समुद्र में इनकी संख्या सर्वाधिक है। पूरे विश्व में डॉल्फिन की 40 प्रजातियां पाई जाती है जिनमें से मीठे पानी की डॉल्फिन प्रजातियों की संख्या चार है। भारत की सोंस भी मीठे पानी की प्रसिद्ध डॉल्फिन प्रजाति है जो यहॉं की नदियों में पाई जाने वाली डॉल्फिन प्रजातियों में प्रमुख है। डॉल्फिन की इस प्रजाति का सोंस इसके द्वारा सांस लेने और छोड़ने के क्रम में निकलने वाली एक विशेष ध्वनि पर रखा गया है। सोंस का प्रथम वैज्ञानिक अध्ययन सन 1879 में जॅान एंडरसन ने किया। लेकिन मुख्य रूप से सोंस संरक्षण के कार्यां में 1972 से तेजी आई और तब से इस विलक्षण जलीय जीव को वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972 द्वारा संरक्षित जीवों की श्रेणी में रखा गया।

सोंस की बनावट समुद्री डॉल्फिन से अलग होती है। भारत में पाई जाने वाली सोंस के छोटे दांत होने के कारण अधिकतर यह अपने भोजन को निगलती है। प्रकृति ने इसे विशिष्ट श्रवण शक्ति प्रदान की है। डॉल्फिन की अद्भुत श्रवण शक्ति इसके जीवन यापन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। ये दूर से आती ध्वनि तंरगों को पहचान लेती है। यह पानी में 24 किलोमीटर का दूरी तक की ध्वनियों को सुनने की अद्भुत क्षमता रखती है। डॉल्फिन का आवाज को सुनकर पहचानने का विलक्षण गुण उन्हें भोजन की दिशा की सूचना देता है। सोंस का मुख्य भोजन वह छोटी मछलियां होती है जो पानी में उगने वाली घास या खरपतवार को खाती है । नदी पारितंत्र में छोटी मछलियों की संख्या सीमित रहने से जलीय वनस्पतियों की पर्याप्ता से पानी में ऑक्सीजन की उचित मात्रा पाई जाती है। इस प्रकार सोंस जलीय पारिस्थितिकी तंत्र को स्वस्थ रखने में अहम भूमिका अदा करती है।

कहीं विलुप्त न हो जाए डॉल्फिन:
भारत में डॉल्फिन का शिकार, दुर्घटना और उसके आवास से की जा रही छेड़छाड़ इस जीव के अस्तित्व पर प्रश्नचिन्ह लगाए हुए है। डॉल्फिन स्वच्छ व शांत जल क्षेत्र को पसन्द करने वाला प्राणी है। लेकिन मशीनीकृत नावों जैसी मानवीय गतिविधियों से नदी में बढ़ रहा शोर इनके स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डाल रहें हैं। डॉल्फिन के आवास क्षेत्रों से की जा रही छेड़छाड़ जैसे बांधों का निर्माण और मछली पालन से डॉल्फिन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। बढ़ती सैन्य गतिविधियां, तेल और गैस शोध कार्य से समुद्र में फैलते ध्वनि प्रदुषण से डॉल्फिन भी अछुती नहीं रही है। जलवायु परिवर्तन से डॉल्फिन की रोग प्रतिरोधक क्षमता में कमी होने से इनकी संख्या लगातार कम होने वाली है। जल में बढ़ता रासायनिक प्रदुषण इनकी कार्यकुशलता पर असर डाल रहा है।

भारत में नदियों में बढ़ते प्रदूषण से डॉल्फिनों की संख्या में लगातार कमी आ रही है। जहां दो दशक पूर्व भारत में इनकी संख्या 5000 के आसपास थी वहीं वर्तमान में यह संख्या घटकर करीब डेढ-दो हजार रह गई है। ब्रहमपुत्र नदी में भी जहां 1993 में प्रति सौ किलोमीटर में औसत 45 डॉल्फिन पाई जाती थी वहीं यह संख्या 1997 में घटकर 36 रह जाना इस अनोखे जीव की संख्या में तेजी से कमी की सूचना देता है। भारत में नदी की गहराई कम होने और नदी जल में उर्वरकों व रसायनों की अत्यधिक मात्रा मिलने से भी डॉल्फिन के अस्तित्व पर खतरा मंडराने लगा है।

डॉल्फिन का शिकार अधिकतर उसके तेल के लिए किया जाता है। अब वैज्ञानिक डॉल्फिन के तेल की रासायनिक संरचना जानने का प्रयत्न करने में लगे हुए हैं ताकि वैकल्पिक तेल के निर्माण से डॉल्फिन का शिकार रूक जाएं। भारत में डॉल्फिन के शिकार पर कानूनी रोक लगी हुई है। हमारे देश में इनके संरक्षण के लिए बिहार राज्य में गंगा नदी में विक्रमशीला डॉल्फिन अभयारण्य बनाया गया है। यह अभयारण्य सुलतानगंज से लेकर कहलगांव तक के 50 किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है।

वैश्विक स्तर पर भी डॉल्फिन के संरक्षण के प्रयास किए जा रहे हैं। इस जीव के संरक्षण के लिए संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूनेप) की सहयोगी संस्था ‘व्हेल और डॉल्फिन संरक्षण सभा’ ने इस बुद्धिमान जीव के प्रति जागरूकता फैलाने और इसके संरक्षण के उद्देशय से वर्ष 2007 को ‘डॉल्फिन वर्ष’ के रूप में मनाया था। सन् 2012 में इस जीव के संरक्षण के लिए ‘मेरी गंगा-मेरी डॉल्फिन‘ नामक अभियान भी चलाया गया था। जिसमें गंगा एवं इसकी सहायक नदियों की करीबन 3000 किलोमीटर अभियान में डॉल्फिन के बारे में सर्वेक्षण करने के साथ स्थानिय निवासियों में इस जीव के संरक्षण के लिए जागरूकता अभियान चलाया गया।

बचाएं इस अनोखे जलीय जीव को:
नदी पारिस्थितिकी तंत्र में जंगल के बाघ के समान शीर्ष पर विघमान होने के कारण स्तनधारी जीव सोंस का संरक्षण आवश्यक है। सोंस की नदी आहार श्रृंखला में महत्वपूर्ण भूमिका होती है। यह हानिकारक कीड़े-मकोड़ों के अंडो को भी खाती है। इस प्रकार सोंस जल को स्वचछ रख कई जलजनित बीमारियों को फेलने से रोकती है। इस अद्भुत जीव की जलीय तंत्र में अहम हेसियत को ध्यान में रखते हुए हमें इसको बचाना के प्रयास में योगदान देना होगा ताकि डॉल्फिन सदियों तक प्रकृति की गोद में खेलती रहे।

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लेखक परिचय: 
नवनीत कुमार गुप्ता पिछले दस वर्षों से पत्र-पत्रिकाओं, आकाशवाणी एवं दूरदर्शन आदि जनसंचार के विभिन्न माध्यमों द्वारा वैज्ञानिक दृष्टिकोण और पर्यावरण संरक्षण जागरूकता के लिए प्रयासरत हैं। आपकी विज्ञान संचार विषयक लगभग एक दर्जन पुस्तकें प्रकाश‍ित हो चुकी हैं तथा इन पर गृह मंत्रालय के ‘राजीव गांधी ज्ञान विज्ञान मौलिक पुस्तक लेखन पुरस्कार' सहित अनेक पुरस्कार एवं सम्मान प्राप्त हो चुके हैं। आप विज्ञान संचार के क्षेत्र में कार्यरत संस्था ‘विज्ञान प्रसार’ से सम्बंद्ध हैं। आपसे निम्न मेल आईडी पर संपर्क किया जा सकता है:


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Scientific World: क्या विलुप्त हो जाएगी डॉल्फिन?
क्या विलुप्त हो जाएगी डॉल्फिन?
डॉल्फिन के बारे विस्तार से बताता एक शोध आलेख।
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