आज भी पुरानी मान्यताओं के चलते गांव में किसी बच्चे के बुखार आने, उसके लगातार रोने, पेट में दर्द होने, खाना न खाने, नींद न आने जैसी सामान्...
आज भी पुरानी मान्यताओं के चलते गांव में किसी बच्चे के बुखार आने, उसके लगातार रोने, पेट में दर्द होने, खाना न खाने, नींद न आने जैसी सामान्य बीमारियों को नजर लगने, जादू-टोना से जोड़कर देखा जाता है, और तो और ग्रामीण अपने पालतू पशुओं की सामान्य बीमारियों, दूध न देने जैसी मामलों में भी अंधविश्वास में पड़ जाते है तथा स्वयं के व अपने पालतू पशुओं के उपचार के लिए झाड़ फूंक, ताबीज बांधने के फेर में समय व धन दोनों नष्ट करते है।
अंधविश्वास एवं मानवाधिकार
लेखक- डा. दिनेश मिश्र
21वीं सदी में प्रवेश कर चुका मानव समाज जहां एक ओर स्वयं को अति आधुनिक मानता है, वहीं दूसरी ओर समाज में आदि काल से तरह-तरह के अंधविश्वास एवं सामाजिक कुरीतियां जड़ जमाये हुए है, जो मानव सभ्यता के आरंभिक चरण में मनुष्य को विभिन्न प्राकृतिक घटनाओं जैसे - सूर्यग्रहण, चन्द्रग्रहण, भूकम्प मनुष्य व पशुओं को होने वाली महामारियों के संबंध में कोई वास्तविक जानकारी नहीं थी और न इन आपदाओं के पूर्वानुमान लगाने, महामारियों से बचाव व नियंत्रण के साधन ज्ञात नहीं थे, इसलिए उन्हें दैवी शक्तियों का प्रकोप माना जाता रहा, जिन्हें शांत करने के लिये विभिन्न प्रकार के अनुष्ठान बनाये गये।
इसी से जादू-टोने की अवधारणा भी बनी जिसमें सभी परेशानियों व बीमारियों का कारण जादू-टोना माना गया, जादू - टोने के आरोप में कितनी ही निर्दोष महिलाएं डायन/टोनही के संदेह में प्रताड़ित होती रही। चमत्कारित शक्तियों की मान्यता बन जाने के कारण सम्पत्ति पाने, सिद्वि प्राप्त करने, संतान प्राप्ति के लोभ में दैवीय शक्ति को प्रसन्न करने के लिए मानव बलि की घटनाएं भी सामने आयी। भूत-प्रेत की मान्यता के कारण, बीमारियों को भी प्रेतबाधा मानकर झाड़ फूंक कर, पिटाई कर भूत भगाने के प्रयास के भी अनेक मामले जानकारी में आये। इस प्रकार अंधविश्वास व कुरीतियां भी मानव अधिकारों के हनन का कारण बनती रहती है।
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आजादी के पहले देश में शिक्षा व चिकित्सा सुविधा का प्रसार बहुत कम था। गाॅंवों, कस्बों में रहने वाले विद्यार्थियों को स्कूल व कालेजों में पढ़ाई करने के लिये मीलों पैदल चल कर जाना पड़ता था, वहीं ग्रामीण अंचल में चिकित्सा सुविधा उपलब्ध न होने से उन्हें मजबूरीवश, झाड़ फूंक करने वाले बैगा, गुनिया के भरोसे रहना पड़ता था। स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता का स्तर भी अपेक्षाकृत कम था। आजादी के बाद इन वर्षो में स्थिति सुधरी जरूर है पर अब भी पुरानी मान्यताओं के चलते गांव में किसी बच्चे के बुखार आने, उसके लगातार रोने, पेट में दर्द होने, खाना न खाने, नींद न आने जैसी सामान्य बीमारियों को नजर लगने, जादू-टोना से जोड़कर देखा जाता है, और तो और ग्रामीण अपने पालतू पशुओं की सामान्य बीमारियों, दूध न देने जैसी मामलों में भी अंधविश्वास में पड़ जाते है तथा स्वयं के व अपने पालतू पशुओं के उपचार के लिए झाड़ फूंक, ताबीज बांधने के फेर में समय व धन दोनों नष्ट करते है।
जब गांव में बैगा अपनी झाड़ फूंक से ग्रामीणों की बीमारी या परेशानी दूर नहीं कर पाता है तब वह समस्या का कारण किसी व्यक्ति द्वारा किये गये जादू-टोने, तंत्र, मंत्र, पर डाल देता है तथा किसी मासूम को दोषी बना दिया जाता है। उसके विरोध में अनेक किस्से कहानियां गढ़ दी जाती है व उसके बाद तरह-तरह की प्रताड़ना का दौर शुरू हो जाता है?
अंधविश्वास के कारण प्रताड़ित होने वाली महिलाएं अधिकांश मामलों में गरीब घर की प्रौढ़, विधवा, परित्यक्ता, निःसंतान होती है, जिनके घर पर या तो पारिवारिक सदस्य कम होते है अथवा निर्धन व अकेले होने के कारण वे सामूहिक व सुनियोजित षडयंत्र का प्रतिकार करने में अक्षम होते है। जिसके परिणामस्वरूप किसी निर्दोष महिला को दुव्र्यहार, मारपीट, गाली गलौज, सामाजिक बहिष्कार, गांव से निकलने के दंड का सामना करना पड़ता है। अनेक मामलों में तो प्रताड़ना इतनी क्रूर होती है कि उसकी मृत्यु तक हो जाती है तथा गांव में उसके समान रूप से जीने देने के अधिकार की बात तक नहीं उठती।
अंधविश्वास के चक्रव्यूह में फंसकर व्यक्ति इतना स्व-केन्द्रित व स्वार्थी हो जाता है कि उसे दूसरे व्यक्ति की तकलीफ, पीड़ा महसूस नहीं होती। उसके लिए उसका स्वार्थ सबसे अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है। इसी कारण मानव बलि, पशु बलि की घटनाएं सुनाई पड़ती है। कुछ समय पहले भिलाई के पास रूआबांधा में तांत्रिक सिद्वि प्राप्त करने के लिए दो वर्षीय बच्चे की बलि की घटना की याद अब भी लोगों के मन में ताजी है।
बलि देकर अपनी मंजिल प्राप्त करने के लोभ में पड़ा व्यक्ति संघर्ष करके सफलता प्राप्त करने की बजाय, सरल रास्ता अपनाने का प्रयास करता है पर वह यह भूल जाता है कि किसी निर्दोष प्राणी की जानलेकर सम्पत्ति, सिद्वि, सन्तान नहीं मिलती सिर्फ सजा मिलती है। बलि देकर खजाने, तांत्रिक, सिद्वि व संतान प्राप्त होने के सपने देखने वाले क्रूर हत्या के गुनाहगार बनकर कठोर सजा भुगतते हैं वहीं वे किसी मानव के मौलिक अधिकार का निर्ममता से हनन कर देते है।
बलि देकर अपनी मंजिल प्राप्त करने के लोभ में पड़ा व्यक्ति संघर्ष करके सफलता प्राप्त करने की बजाय, सरल रास्ता अपनाने का प्रयास करता है पर वह यह भूल जाता है कि किसी निर्दोष प्राणी की जानलेकर सम्पत्ति, सिद्वि, सन्तान नहीं मिलती सिर्फ सजा मिलती है। बलि देकर खजाने, तांत्रिक, सिद्वि व संतान प्राप्त होने के सपने देखने वाले क्रूर हत्या के गुनाहगार बनकर कठोर सजा भुगतते हैं वहीं वे किसी मानव के मौलिक अधिकार का निर्ममता से हनन कर देते है।
अंधविश्वास के कारण किसी व्यक्ति के सामान्य अधिकार का हनन होने के एक महत्वपूर्ण उदाहरण हमें मनो रोगियों के मामले में स्पष्ट दिखायी देते है। जिसमें मानसिक रूप से बीमार व्यक्तियों को भूत-प्रेत बाधाग्रस्त मानकर उन्हें (किसी मानसिक चिकित्सालय में उपचार करने की बजाय) जंजीरों से जकड़कर किसी झाड़ फूंक करने वाले केन्द्र में डाल दिया जाता है तथा उन्हें प्रेत बाधा उतारने के नाम पर डंडे, चाबुक, से मारा पीटा जाता है, मिर्च की धूनी दी जाती है। कभी जिसमें वे गंभीर रूप से घायल हो जाते है, जबकि उनका सही मानसिक उपचार कराया जावे तो वे स्वस्थ होकर समाज हेतु उपयोगी सिद्व हो सकते है।
हमारे पास अनेक ऐसे भी मामले आते रहे हैं जिसमें कथित तांत्रिकों ने तंत्र-मंत्र से उपचार के बहाने अनेक युवतियों का शारीरिक, मानसिक शोषण किया। आश्चर्य तो यह भी थी अंधविश्वास में फंसे उन पीड़ितों के पालको ने भी कोई आपत्ति न की। जब शोषण हद से बाहर हो गया तब शिकायते हुई व मामलों का पर्दाफाश हुआ। सामाजिक कुरीतियो, जातिभेद की बुराईयों, बाल विवाह, अस्पृश्यता, सतीप्रथा के मामलों में भी बहुत सारे व्यक्तियों के मानव अधिकारों का हनन होता है पर अधिकांश खबरें बाहर नहीं आ पाती, जातिप्रथा के कारण हुए प्रताड़ना अनेक मामलों में हमने देखा है कि अंर्तजातीय विवाह के कारण कुछ दम्पत्तियों को तो अपने गांव में आजीवन दिक्कतें उठानी पड़ी, उन्हें भेदभाव, बहिष्कार का सामना करना पड़ा, यहां तक पति या पत्नि में से किसी एक की मृत्यु होने के बाद भी उन्हें सामाजिक पंचायतों ने गांव में अंतिम, संस्कार तक की अनुमति नहीं दी।
समझाईश के बाद भी जब सामाजिक पंचायतें राजी नहीं हुई तो हमें परिजन की इच्छानुसार दूसरे गांव में अंतिम संस्कार कराना पड़ा। इज्जत के नाम पर हो रहे आॅनर किलिंग के मामले तो आज जग जाहिर है जिसमें किसी वयस्क व्यक्ति के मनपसंद विवाह करने पर पंचायतें को अपनी नाक इतनी नीची लगने लगी कि उन्होंने अपने कथित सम्मान की रक्षा के लिए आॅनर किलिंग का रास्ता अपनाया व नव दंपत्तियों की हत्या कर दी, जबकि यही पंचायतें समाज में फैली बुराईयों जैेसे - दहेज प्रथा, भ्रष्टाचार, जातिभेद, दलित प्रताड़ना के मामले का मुॅंह नहीं खोलती थी। निर्दोषो के मानव अधिकारों की रक्षा करने के लिए कभी आगे नहीं आती।
पिछले पन्द्रह वर्षो से हम ग्रामीण क्षेत्रों में विभिन्न अंधविश्वासो, सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ अभियान चलाने के लिए गांवों में सभाएं लेते हैं। जन जागरूकता के कार्यक्रम आयोजित करते है। जादू-टोने के संदेह में होने वाली महिला प्रताड़ना के विरोध में ‘‘कोई नारी टोनही नहीं अभियान’’ चला रहे है। जिन स्थानों पर टोनही/डायन के संदेह में प्रताड़ना की घटनाएं होती हे वहां जाकर उन महिलाओं, उनके परिजनों से मिलते है उन्हें सांत्वना देते है, उनसे चर्चा करते है आवश्यक उपचार का प्रबंध करते है। हजार से अधिक गांवों में सभाएं लेने के दौरान अनेक प्रताड़ित महिलाओं व उनके परिजनों से मेरी चर्चा हुई, उनके दुख सुने कि कैसे अनेक बरसो से उस मांव में सबके साथ रहने व सुख-दुख में भागीदार बनकर जिंदगी गुजारने के बाद कैसे वे कुछ संदेहों व बैगाओं के कारण पूरे गांव के लिए मनहूस घोषित कर दी गई, उन्हें तरह-तरह से प्रताडित किया गया जब उन्होंने चिल्लाकर अपने बेगुनाह होने की दुहाई दी तब भी उनकी बात नहीं सुनी गई। समाज में उनके समान रूप से जीने के अधिकारों का केसा हनन हुआ कैसे बर्ताव हुए बताते हुए उनकी आंखें डबडबा जाती है, गला भर जाता है, आवाज रूंध जाती है, उनके आंसू उनकी निर्दोषिता बयान करते हैं प्रदेश में अनेक मामलों को लेकर मैं मानव अधिकार आयोग के पास पहुंचा, लिखित जानकारी दी, कार्यवाहियां भी हुई है।
अंधविश्वास व कुरीतियों, सामाजिक विषमताओं के कारण हनन होने वाले मानव अधिकारों के सूची में और भी बहुत सारे मामले हैं पर आवश्यकता है आम लोगों को उनके अधिकारों के संबंध में बताने की, उनको जागरूक करने, उनके अधिकारों के संरक्षण के लिए माहौल बनाने की ताकि किसी भी व्यक्ति के मौलिक अधिकारों का हनन न हो। सभी व्यक्ति मानव होने के नाते अपनी सभी अधिकारों का उपयोग कर समानता का जीवन जी सके।
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aaj k yug me aisi dharnaye..dilo dimag ko jhanjhor k nrakh deta h...
जवाब देंहटाएंkripya mujhe join kare..@radheylalmodi.blogspot.in
atyant mahatvapoorn bat, badhayi.
जवाब देंहटाएंGood article!
जवाब देंहटाएंes duniya me har ek chies ensan ki banai hue hai.
जवाब देंहटाएंensan esi bato ko bana sakta hai to mita bhi sakth hai.
eske liye jarurat hai to sirf ek acchi soch ki............