भाग्‍यवाद और भारतीय मीडिया (Fortune Telling-Indian Media Hype)

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इन दिनों मीडिया, चाहे वह अखबार हो या इलेक्‍ट्रानिक मीडिया, ज्‍योतिष शास्‍त्र को इस तरह से पेश करने में लगा है, मानो वही सब कुछ है। अखबारो...

इन दिनों मीडिया, चाहे वह अखबार हो या इलेक्‍ट्रानिक मीडिया, ज्‍योतिष शास्‍त्र को इस तरह से पेश करने में लगा है, मानो वही सब कुछ है। अखबारों में जहां नए नए विषयों को ज्‍योतिष के सांचे में ढ़ालकर आकर्षक ढ़ंग से प्रस्‍तुत करने का प्रयास किया जा रहा है, वहीं न्‍यूज़ चैनलों में भविष्‍यवक्‍ता खुद को एक दूसरे से बेहतर एक्‍टर साबित करने की होड़ में नज़र आ रहे हैं। इससे पाठक और दर्शक इनकी ओर खिंचे ज़रूर चले आ रहे हैं, लेकिन साथ ही मीडिया की गंभीरता और उसकी भूमिका पर भी सवाल उठ रहे हैं।

यह सच है कि जैसे जैसे समाजों में सम्‍पन्‍नता आती जाती है, वैसे वैसे लोगों में अपने भविष्‍य को लेकर डर भी बढ़ता जाता है। भारतीय समाज में भी यही हो रहा है। सम्‍पन्‍नता के साथ व्‍यक्ति में भविष्‍य के प्रति भय बढ़ा है। जिसके फलस्‍वरूप उसका भाग्‍यवाद में यकीन बढ़ता जा रहा है। वह हर कार्य करने से पहले पंचांग देखने लगा है, मुहुर्त पूछने लगा है ताकि ‘अनुचित’ वक्‍त में काम करने से कहीं उसका भाग्‍य बिदक न जाए। यानी कर्म से उसका विश्‍वास डिगने लगा है। इसी का भयादोहन कथित ज्‍योतिषाचार्य कर रहे हैं। दुर्भाग्‍य की बात यह है कि सभी मीडिया बहती गंगा में हाथ धोने में पीछे नहीं हैं।

कुछ साल पहले तक ग्रह नक्षत्रों के प्रभाव कुप्रभाव की इतनी बातें नहीं होती थीं। केवल सूर्य ग्रहण व चंद्र ग्रहण के समय ही लोग आशंकित रहते थे, लेकिन आज तो आसमान की हर घटना को ज्‍योतिष के चश्‍मे से देखा जाने लगा है। अगर शुक्र धरती के पास आ रहा है, तो उसके अर्थ निकाले जाने लगते हैं। मंगल व बुध के बीच की दूरी कम हो रही है, तो मंगल अमंगल की बातें की जाने लगती हैं। यदि चंद्र ग्रहण या सूर्य ग्रहण हो रहा है, तो विभिन्‍न राशियों पर उसके सकारान्‍तक नकारात्‍मक असर और कथित अनिष्‍टकारी प्रभावों को कम करने के नुस्‍खे बताए जाने लगते हैं। 

अफसोस इस बात का है कि आज मीडिया में नक्षत्रीय घटनाक्रम पर वैज्ञानिक नज़रिए से चर्चा कभी नहीं होती, क्‍योंकि यह माना जाता है कि ऐसी चर्चाओं को लोग पढ़ना या देखना पसंद नहीं करते। इसलिए मीडिया में विज्ञान को उतना स्‍थान नहीं दिया जाता, जितना फलित ज्‍योतिष को दिया जाता है। हद तो तब हो जाती है, जब मीडिया उसी प्रकार की बातें करने लगता है, जिस प्रकार की बातें ग्रहण को लेकर हमारे बुजुर्ग अक्‍सर करते आए हैं। जैसे गर्भवती स्त्रियों के के लिए ग्रहण खतरनाक होता है, ग्रहण के दौरान कुछ भी खाना नहीं चाहिए, खाद्य सामग्री में तुलसी की पत्तियां रखकर उसे अपवित्र होने से बचाया जाना चाहिए, ग्रहण के तत्‍काल बाद स्‍नान करना चाहिए, आदि आदि। यहॉं एक सवाल यह उठता है कि क्‍या मीडिया काम वही पेश करना है जिसे लोग पढ़ना या देखना चाहते हैं या वह जो यथार्थ होता है?

भाग्‍यवादी होना सबसे आसान है और इसीलिए जब भाग्‍य की बातें की जाती हैं, तो उसमें रस आना स्‍वाभाविक है। मीडिया के लिए भी ऐसी बातें प्रकाशित या प्रसारित करना आसान होता है, जिनकी पुष्टि नहीं की जानी है। ज्‍योतिष ऐसा ही विषय है, जिससे सम्‍बंधित जानकारी पेश करने से पहले उसकी किसी भी प्रकार की जांच पड़ताल करने की ज़रूरत नहीं होती है और न ही बाद में इस बात का संज्ञान लिया जाना ज़रूरी समझा जाता है कि जो भविष्‍यवाणियॉं की गयी थीं, वे कितनी सच निकलीं। तो क्‍या मीडिया का दायित्‍व ज्‍योतिष सम्‍बंधी अधकचरी सामग्री पेश करने के बजाय यह नहीं होना चाहिए कि वह ग्रह नक्षत्रों को लेकर वैज्ञानिक नज़रिया पेश करे। लोगों में भाग्‍यवाद के वायरस छोड़ने के बजाए कर्मवादी बनने की प्रेरणा दे।

यह धारणा गलत है कि पाठक या दर्शक विज्ञान सम्‍ब्‍ंधी बातों को पढ़ने या देखने में रूचि नहीं लेते हैं। जेनेवा में हुए बिग बैंग थ्‍योरी के प्रयोग से सम्‍बंधित खबरे सबसे ज्‍यादा देखी और पढ़ी गयीं। दरअसल, पाठक व दर्शक की रूचि भी उन खबरों या सामग्री में बनती जाती है, जो अक्‍सर पेश की जाती है। अगर कोई खबर दिखाई ही नहीं जाएगी, तो भला उसमें पाठकों या दर्शकों की दिलचस्‍पी जागृत होगी भी कैसे। इसलिए सवाल रूचि अरूचि का नहीं है। तो मीडिया को क्‍या करना चाहिए?

ज्‍यातिष महज भविष्‍य की भाग्‍य आधारित कल्‍पना है, जबकि विज्ञान कर्मवाद पर आधारित वास्‍तविकता है। मनुष्‍य के कदम कदम पर विज्ञान मौजूद है, लेकिन विडम्‍बना यह है कि इसे पेश नहीं किया जा रहा है। यहां विज्ञान को पेश करने से मतलब महज विज्ञान सम्‍बंधी खबरों को पेश करना भर नहीं है। वास्‍तव में ज़रूरत वैज्ञानिक नज़रिए की है, जिसका सख्‍त अभाव नज़र आता है। यह मान लिया जाता है कि वैज्ञानिक नज़रिए से केवल विज्ञान सम्‍बंधी कार्य करने वाले लोग, जैसे वैज्ञानिक, विज्ञान विषय पढ़ाने वाले प्रोफेसर व शिक्षक और विज्ञान के शोधार्थी, का ही सरोकार है, आम जनता से इनका काई लेना देना नहीं है। चूंकि मीडिया खुद क आम जनता के निकट होने का एहसास दिलाने का प्रयास करना चाहता है, इसलिए विज्ञान की वह जानबूढकर उपेक्षा कर देता है।

सच तो यह है कि यदि आम जनता में भी वैज्ञानिक नज़रिए का विकास हो जाए, तो देश के सामने मौजूद कई सामाजिक समस्‍याओं का समाधान अपने आप हो जाएगा। वैज्ञानिक नज़रिए का मतलब धर्म से विमुख होना या भाग्‍य को पूरी तरह से नकारना भी नहीं है। कई वैज्ञानिक धार्मिक क्रिया कलापों के साथ भी वैसे ही जुड़े रहते हैं, जैसे विज्ञान के साथ। इससे उनकी जिंदगी में कोई विरोधाभाष पैदा नहीं होता है। ज़रूरत इसी वैज्ञानिक नज़रिए को उभारने की है। मीडिया, खासकर इलेक्‍ट्रानिक मीडिया का प्रभाव जग जाहिर है। मीडिया को इपने इसी प्रभाव व ताकत का इस्‍तेमाल लोगों में वैज्ञानिक नज़रिया विकसित करने व कर्मवादी बनने के लिए प्रेरित करने में करना चाहिए, न कि भविष्‍य वक्‍ताओं को पेश करके कूप मण्‍डूक बनने में।
-J. Aklecha
(साभार- एन0सी0एस0टी0सी0 कम्‍यूनिकेशन, दिसम्‍बर 2008)
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COMMENTS

BLOGGER: 23
  1. आपकी यह पोस्ट सही मे दिल को छू गयी...............बहुत ही सटीक सवाल भी किये है जो बिल्कुल लाज़मी भी है.................ऐसे ही सही मुद्दो को उठाते रहे ...........मै सही मे आपका शुक्रगुजार हुँ.

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  2. इकक्स्वीं शताब्दी मे भी हम ऐसी बातें सोचते है,
    यह सही नही है,
    बढ़िया लेख आपका..बढ़िया .धन्यवाद.

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  3. बहुत ही बढि़या एवं ज्ञानवर्धक जानकारी आभार्

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  4. बहुत ही विचारणिय आलेख.

    रामराम.

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  5. जनता में वैज्ञानिक नजरिए का विकास कैसे हो .. वैज्ञानिकों को उनके हर 'क्‍यूं' का जवाब देना होगा .. 'किसी के उपर इतनी विपत्तियां क्‍यूं आती है' .. 'कोई जीवनभर सुखी क्‍यों रह पाता है' .. 'मेहनत के बावजूद किसी को सफलता अधिक क्‍यूं मिलती है' .. 'किसी को बिना मेहनत के सबकुछ क्‍यों हासिल हो जाता है'.. 'कोई दिनभर मेहनत कर दो वक्‍त की रोटी ही जुटा पाता है' .. ऐसे बहुत सारे प्रश्‍न हैं जनता के पास .. जिसका जवाब दिए बिना वैज्ञानिक जनता का विश्‍वास नहीं जीत सकते .. ज्‍योतिषियों ने इसका जवाब देकर जनता को विश्‍वास में लिया है।
    पर वैज्ञानिकों को इतनी चिंता करने की भी आवश्‍यकता नहीं .. एक ज्‍योतिष के महत्‍व के बढने से अन्‍य का महत्‍व समाप्‍त भी तो नहीं हो जाता है .. बीमारी होने पर छोटे छोटे स्‍तर के भी लोग डाक्‍टर के पास ही जाते हैं .. झंझटों से घिरने पर वकील के पास ही और अन्‍य कार्यों के लिए उन‍के विशेषज्ञों के पास .. वैज्ञानिक स्‍वीकारते हैं कि आम जनता में भी वैज्ञानिक नज़रिए का विकास हो जाए .. तो देश के सामने मौजूद कई सामाजिक समस्‍याओं का समाधान अपने आप हो जाएगा .. संगठन में बडी ताकत होती है .. करोडों की जनसंख्‍या एक एक काम करे तो करोडो काम एक साथ हो जाएंगे .. पर वैज्ञानिकों को एक रूपरेखा तो बनानी ही होगी .. मीडिया के पास समाज की मानसिकता को परिवर्तित करने की पूरी ताकत हो गयी है .. उसका सहारा लेकर वैज्ञानिक लोकप्रिय कार्यक्रमों द्वारा जनता को जागरूक बनाते हुए आज की समस्‍याओं को सुलझाने के लिए ठोस कार्यक्रम रखें तो क्‍या जनता उसे नहीं सुनेगी ?

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  6. मैं ज्योतिष को तुक्का शास्त्र मानता आया हूँ, और आज भी इस पर कायम हूँ.

    सम्‍पन्‍नता के साथ व्‍यक्ति में भविष्‍य के प्रति भय बढ़ा है। ऐसा नहीं है. सम्पन्न हो न हो, भविष्य के प्रति चिंता स्वभाविक है. और वैज्ञानिक दृष्टिकोण का अभाव ज्योतिष की शरण में ले जाता है.

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  7. मैं ज्योतिष को तुक्का शास्त्र मानता आया हूँ, और आज भी इस पर कायम हूँ.

    सम्‍पन्‍नता के साथ व्‍यक्ति में भविष्‍य के प्रति भय बढ़ा है। ऐसा नहीं है. सम्पन्न हो न हो, भविष्य के प्रति चिंता स्वभाविक है. और वैज्ञानिक दृष्टिकोण का अभाव ज्योतिष की शरण में ले जाता है.

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  8. जनता की मांग पर कार्यक्रम बनाये जाने के दावे पुराने पड़ चुके हैं. लगता है कि मीडिया को संचालित करने वाली ताकतें भी यही चाहती हैं कि जनता जागरूक न होकर, भाग्य और उपभोक्तावादी चक्रव्यूह में फंसी रहे.

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  9. बेनामी7/01/2009 3:17 pm

    जाकिर बाबू, ज्योतिष शास्त्र पर कार्यक्रम सिर्फ हिंदी मीडिया में रहते है, पूरे मीडिया को इसमें शामिल न करें.

    दूसरी बात, हिंदी मीडिया आज मूर्खों की धरमशाला बन रहा है. आप इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के लोगों की भाषा देखिये, उनका सामान्य ज्ञान देखिये, आपको वह सारे जोकर लगने लगेंगे.

    हिंदी मीडिया भ्रष्टाचार की दलदल में जा चुका है. ऐसा पहले कभी नहीं हुआ. अभी संपन्न आम चुनाव में उ. प्र. के सबसे बड़े अख़बार नें करोडो रुपये रिश्वत में नेताओं से लिए, और उनकी झूठ मूठ की हवा बाँधी, मजे की बात यह की साथ ही उसने मतदाता जागरण अभियान भी चलाया.

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  10. मीडिया को कुछ तो चाहिये, ओर इन की बात सिर्फ़ बेवकु ही मानते है, एक समझ दार कभी नही मानेगा.
    धन्यवाद इस सुंदर जानकारी के लिये

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  11. आज पढा लिखा तबका भी इसी चक्कर में पडा है ,मीडिया का क्या, जब ग्राहक मौजूद है तो वह क्यों न परोसे .एक सर्वेक्षण के अनुसार सदैव टाप पर बने रहने की मानव की ख्वाहिश भी इसके लिए जिम्मेदार है .जो भी हो यह लम्बे समय तक चलने वाली बहस है लेकिन आपने बहुत बढ़िया प्रस्तुत किया है ,आपको बधाई .

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  12. भाग्यवाद सड़ियल व्यवस्था को जीवन दान देता है और मीडिया उस का सेवक है।

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  13. सचमुच जबरदस्त ! मीडिया का नैतिक पतन स्पष्ट है जब वह किसी खास पार्टी को जिताने की मुहीम में लग जाय !
    जितनी प्रतिगामी बाते हैं मीडिया उन सब का पोषण कर रहा है -वह आज का रावण है !

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  14. व्‍यवस्‍था के संकट उबरने के साथ ही समाज में भाग्‍यवाद-अंधविश्‍वास आदि का प्रसार तेज कर दिया जाता है, और आज के दौर में मीडिया इसमें अहम भूमिका निभा रहा है।

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  15. @शमीम भाई, तुम तो मेरे पीछे हाथ धोकर पडे रहते हो। ये लेख मेरा नहीं, J. Aklecha का लिखा हुआ है। कम से कम टिप्‍पणी करने से पहले पूरा लेख पढ तो लिया करो।

    ह ह हा।

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  16. प्रकाश गोविन्‍द जी ,
    आपको मेरी टिप्‍पणी अच्‍छी नहीं लगी , इसका मुझे दुख है .. पर आप मुझपर कोई इल्‍जाम न लगाएं .. मैने कई बार लिखा है कि मै ज्‍योतिष का सिर्फ अध्‍ययन मनन ही करती हूं .. दुकानदारी नहीं कर रही हूं .. और कोई ऐसा इरादा भी नहीं है मेरा .. ब्‍लाग जगत के ही बहुत सारे लोगों ने मुझसे संपर्क किया .. मैने किसी से पैसों की कोई बात नहीं की .. आपके अनुसार सिक्‍का संयोग से दस में से किसी एक को मिल सकता है .. पर प्रकृति के किसी नियम के अनुसार सिक्‍के को किसी एक को मिलना तय होता है .. कोई तेज दौडकर भी उस सिक्‍के को नहीं पा सकता और कोई औसत दौड में ही उस सिक्‍के को प्राप्‍त कर सकता है .. ग्रहों का मनुष्‍य , पृथ्‍वी और हर जड चेतन पर प्रभाव पडता है .. मेरे ब्‍लाग पर तिथियुक्‍त भविष्‍यवाणियों का लागातार सही होते जाना इसका प्रमाण है .. तिथि के साथ आप तुक्‍का लगा ही नहीं सकते .. समय आने पर 'गत्‍यात्‍मक ज्‍योतिष' की प्रामाणिकता को मैं अवश्‍य साबित करके दिखला दूंगी .. आज अर्थप्रधान होने के कारण ‍नैतिक मूल्‍यों का पतन हुआ है .. समाज के सामने हर क्षेत्र को सुधारने की चुनौती है .. आप सिर्फ ज्‍योतिष और मीडिया की ही बात क्‍यों कर रहें हैं ?

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  17. Aankhe kholene wala alekh hai ye...bashrte ki log iske baare mai gambhirta se sochen

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  18. आपकी बात से मै पूरी तरह सहमत हूं। दर असल आज का मीडिया एक दूकान हो गया है । उसे जनता की भलाई दूर तक नहीं दिखती केवल अपना फायदा दिखता है. जागरण अभियान जारी रखिये। हरिशंकर राढी

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  19. बहुत ही ख़ूबसूरत लेख लिखा है आपने जो दिल को छू गई और अच्छी जानकारी देने के लिए बधाई! आपका हर एक लेख बहुत ही पसंद है मुझे! लिखते रहिये!

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  20. बेनामी7/03/2009 10:03 am

    अर्ज किया है,

    वो बात सारे फ़साने में जिसका ज़िक्र न था,
    वो बात उनको बहुत नागवार गुजरी है.

    आदाब.

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  21. बेहतरीन लेख आज २१वीं सदी लोग ऐसी बातों पर विश्वाश करते हैं वो भी पढ़े लिखे समझदार लोग ओरों की तो बात ही छोड़ दीजिये .

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वैज्ञानिक चेतना को समर्पित इस यज्ञ में आपकी आहुति (टिप्पणी) के लिए अग्रिम धन्यवाद। आशा है आपका यह स्नेहभाव सदैव बना रहेगा।

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अंतरिक्ष युद्ध,1,अंतर्राष्‍ट्रीय ब्‍लॉगर सम्‍मेलन,1,अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी ब्लॉगर सम्मेलन-2012,1,अतिथि लेखक,2,अन्‍तर्राष्‍ट्रीय सम्‍मेलन,1,आजीवन सदस्यता विजेता,1,आटिज्‍म,1,आदिम जनजाति,1,इंदिरा गांधी नेशनल ओपन यूनिवर्सिटी,1,इग्‍नू,1,इच्छा मृत्यु,1,इलेक्ट्रानिकी आपके लिए,1,इलैक्ट्रिक करेंट,1,ईको फ्रैंडली पटाखे,1,एंटी वेनम,2,एक्सोलोटल लार्वा,1,एड्स अनुदान,1,एड्स का खेल,1,एन सी एस टी सी,1,कवक,1,किंग जार्ज मेडिकल कॉलेज,1,कृत्रिम मांस,1,कृत्रिम वर्षा,1,कैलाश वाजपेयी,1,कोबरा,1,कौमार्य की चाहत,1,क्‍लाउड सीडिंग,1,क्षेत्रीय भाषाओं में विज्ञान कथा लेखन,9,खगोल विज्ञान,2,खाद्य पदार्थों की तासीर,1,खाप पंचायत,1,गुफा मानव,1,ग्रीन हाउस गैस,1,चित्र पहेली,201,चीतल,1,चोलानाईकल,1,जन भागीदारी,4,जनसंख्‍या और खाद्यान्‍न समस्‍या,1,जहाँ डॉक्टर न हो,1,जितेन्‍द्र चौधरी जीतू,1,जी0 एम0 फ़सलें,1,जीवन की खोज,1,जेनेटिक फसलों के दुष्‍प्रभाव,1,जॉय एडम्सन,1,ज्योतिर्विज्ञान,1,ज्योतिष,1,ज्योतिष और विज्ञान,1,ठण्‍ड का आनंद,1,डॉ0 मनोज पटैरिया,1,तस्‍लीम विज्ञान गौरव सम्‍मान,1,द लिविंग फ्लेम,1,दकियानूसी सोच,1,दि इंटरप्रिटेशन ऑफ ड्रीम्स,1,दिल और दिमाग,1,दिव्य शक्ति,1,दुआ-तावीज,2,दैनिक जागरण,1,धुम्रपान निषेध,1,नई पहल,1,नारायण बारेठ,1,नारीवाद,3,निस्‍केयर,1,पटाखों से जलने पर क्‍या करें,1,पर्यावरण और हम,8,पीपुल्‍स समाचार,1,पुनर्जन्म,1,पृथ्‍वी दिवस,1,प्‍यार और मस्तिष्‍क,1,प्रकृति और हम,12,प्रदूषण,1,प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड,1,प्‍लांट हेल्‍थ क्‍लीनिक,1,प्लाज्मा,1,प्लेटलेटस,1,बचपन,1,बलात्‍कार और समाज,1,बाल साहित्‍य में नवलेखन,2,बाल सुरक्षा,1,बी0 प्रेमानन्‍द,4,बीबीसी,1,बैक्‍टीरिया,1,बॉडी स्कैनर,1,ब्रह्माण्‍ड में जीवन,1,ब्लॉग चर्चा,4,ब्‍लॉग्‍स इन मीडिया,1,भारत के महान वैज्ञानिक हरगोविंद खुराना,1,भारत डोगरा,1,भारत सरकार छात्रवृत्ति योजना,1,मंत्रों की अलौकिक शक्ति,1,मनु स्मृति,1,मनोज कुमार पाण्‍डेय,1,मलेरिया की औषधि,1,महाभारत,1,महामहिम राज्‍यपाल जी श्री राम नरेश यादव,1,महाविस्फोट,1,मानवजनित प्रदूषण,1,मिलावटी खून,1,मेरा पन्‍ना,1,युग दधीचि,1,यौन उत्पीड़न,1,यौन शिक्षा,1,यौन शोषण,1,रंगों की फुहार,1,रक्त,1,राष्ट्रीय पक्षी मोर,1,रूहानी ताकत,1,रेड-व्हाइट ब्लड सेल्स,1,लाइट हाउस,1,लोकार्पण समारोह,1,विज्ञान कथा,1,विज्ञान दिवस,2,विज्ञान संचार,1,विश्व एड्स दिवस,1,विषाणु,1,वैज्ञानिक मनोवृत्ति,1,शाकाहार/मांसाहार,1,शिवम मिश्र,1,संदीप,1,सगोत्र विवाह के फायदे,1,सत्य साईं बाबा,1,समगोत्री विवाह,1,समाचार पत्रों में ब्‍लॉगर सम्‍मेलन,1,समाज और हम,14,समुद्र मंथन,1,सर्प दंश,2,सर्प संसार,1,सर्वबाधा निवारण यंत्र,1,सर्वाधिक प्रदूशित शहर,1,सल्फाइड,1,सांप,1,सांप झाड़ने का मंत्र,1,साइंस ब्‍लॉगिंग कार्यशाला,10,साइक्लिंग का महत्‍व,1,सामाजिक चेतना,1,सुरक्षित दीपावली,1,सूत्रकृमि,1,सूर्य ग्रहण,1,स्‍कूल,1,स्टार वार,1,स्टीरॉयड,1,स्‍वाइन फ्लू,2,स्वास्थ्य चेतना,15,हठयोग,1,होलिका दहन,1,‍होली की मस्‍ती,1,Abhishap,4,abraham t kovoor,7,Agriculture,8,AISECT,11,Ank Vidhya,1,antibiotics,1,antivenom,3,apj,1,arshia science fiction,2,AS,26,ASDR,8,B. 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