अपने बच्चे किसे प्यारे नहीं होते? अगर उन्हें ज़रा सी खरोंच भी लग जाए, तो माँ-बाप परेशान हो उठते हैं। लेकिन आप उन माँ-बाप के दर्द का ...
अपने बच्चे किसे प्यारे नहीं होते? अगर उन्हें ज़रा सी खरोंच भी लग जाए, तो माँ-बाप परेशान हो उठते हैं। लेकिन आप उन माँ-बाप के दर्द का अंदाज़ा लगाइए, जिनके जिगर के दोनों टुकड़े अंधविश्वास की भेंट चढ़ गये हों? सोचिए उनपर क्या बीती होगी?
यह घटना लखनऊ के बंथरा थाना क्षेत्र के किशुनपुर कौडिया ग्राम की है, जहाँ 2 नवम्बर को रजाकी के इकलौते पुत्र रोहित को साँप ने काट लिया था। आम भारतीयों की तरह उसने भी शायद प्रेमचन्द् की मन्त्र कहानी पढ़ रखी थी, जिसमें कहानी का नायक साँप के काटे हुए ज़हर को अपने मन्त्र से ठीक कर देता है। सो रजाकी ने भी अपने लड़के के ज़हर को दूर करने के लिए ओझा की शरण ली। लेकिन जब एक ओझा से जब बात नहीं बनी, तो उसने दूसरे झांड़-फूँक करने वाले को पकड़ा। और जब वहाँ भी बात नहीं बनी, तो वह मेडिकल कॉलेज भागा। लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। डाक्टर ने रजाकी से कहा कि अगर तुम पहले हमारे पास आए होते, तो यह एन्टीवेनम से ठीक हो जाता। लिहाजा रजाकी के पास अपनी छाती पीटने के सिवा और कोई रास्ता नहीं था।
अगस्त माह में भी रजाकी अपनी लड़की को सांप के काटने पर इसी प्रकार उसे मौत के मुँह में ढ़केल चुका था। पर उसकी आँखों पर पड़ा अंधविश्वास का पर्दा इतना गहरा था कि बेटी की मौत के बाद भी वह नहीं उतरा था। पर बेटे का झटका उसे बहुत गहरा लगा है। अब वह कहता फिर रहा है कि यदि झाड़ फूँक की जगह दोनों बच्चों का इलाज कराया होता, तो वे जरूर बच जाते। पर अब पछताए होत क्या, जब चिडिया चुग गयी खेत?
सवाल यह है कि रजाकी को अपने दोनों बच्चों को खोने के बाद तो अक्ल आ गयी, लेकिन क्या अन्य लोग इससे सबक सीखेंगे? शायद नहीं, क्योंकि हमारे समाज में अंधविश्वास को इतने सशक्त तरीके से पाला पोसा जाता है कि उन्हें जब तक कोई गहरा झटका नहीं लगता, उनकी आँखें नहीं खुलतीं।
क्या कह रहे हैं आप? मंत्र तो असर करता है भाई।
ज्यादातर लोग इस तरह की घटना पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए यही करेंगे कि रजाकी जिन ओझाओं के पास गया, वे जानकारी नहीं होंगे। उन्हें असली मंत्र नहीं आते होंगे। क्योंकि हम ऐसे कई ओझाओं को जानते हैं, जिन्होंने सांप के काटे हुए व्यक्ति को अपने मंत्रों से ठीक कर दिया था।
नहीं जनाब, आप बिलकुल गलत कह रहे हैं। दरअसल किसी भी मंत्र अथवा दुआ में सांप के जहर को मारने की शक्ति नहीं होती। इसके पीछे कारण सिर्फ इतना है कि जिन लोगों का नाम आप मंत्र से जीवित हो उठने वाले व्यक्तियों के रूप में बताने वाले हैं, उन्हें जहरीले सांपों ने काटा ही नहीं था। शायद आपको पता नहीं, पर यह सत्य है कि हमारे देश में ज़मीन पर पाये जाने वाले सांपों में से सिर्फ 2 प्रतिशत ही जहरीले होते हैं। बाकी के सांप जब किसी को काटते हैं, तो चाहे उन्हें ओझा के पास ले जाया जाए अथवा नहीं, उन्हें कुछ नहीं होना होता है। ऐसे व्यक्तियों की तबियत जो खराब भी होती है, वह सांप के मनोवैज्ञानिक प्रभाव के कारण होती है, जिसे आमतौर से लोग जहर का असर समझ लेते हैं।
करे कोई, भरे कोई?
जी हाँ, ये सत्य है। हमारे समाज में अंधविश्वास को महिमा मंडित करने वालों में बड़े नामी और प्रतिष्ष्ठित लोग शामिल होते हैं। इनमें टीवी मार्का बाबा, ज्यातिषी, तंत्र-मंत्री और समाज के सम्मानित और प्रतिष्ठित लोग शामिल होते हैं। और अनजाने में ही सही प्रेमचंद जैसे साहित्यकार भी अंधविश्वास को बढ़ावा देते पाए जाते हैं। लेकिन ज्यादातर मामलों में भुक्तभोगी बनते हैं निरक्षर और गरीब लोग। क्योंकि ऐसे लोगों के मन में यह भी होता है कि जो काम बिना पैसों के हो सकता है, उसके लिए डॉक्टर को फीस क्यों दी जाए?
तो फिर रास्ता क्या है?
ऐसे में इस अंधविश्वास के जान को कैसे तोड़ा जाए? कैसे रजाकी जैसे लोगों के बच्चों की गोद सूनी होने से बचाया जाए? सवाल यदि कहीं आपके हृदय को छू जाए, तो जवाब जरूर दें।
अब पता नहीं मंत्रों का प्रभाव कितना रह गया है इस वक्त । इलाज ही बेहतर उपाय है बचने का ।
जवाब देंहटाएंZakir bhai bahut achjchha lekh likha aapne, lekinis mamle se Premchand ka koi lena dena nahin lagta na hi koi 'mantra' kahani se prabhavit hokar ye jhaadfoonk karta hai... ye to unke man me saalon se in tantramantron ke liye basi aastha hoti hai jo unhen galat raaste pe le jati hai..
जवाब देंहटाएंaur agar aap Premchand ji ki jagah hote to aap bhi yahi karte kyonki sahitya samaj ka aaina hota hai ye to aap jante hi hain, sathy hi jis waqt ye kahani likhi gayi us waqt hamare yahan to antivenum drugs nahin hi the
is liye Premchand ka naam is mamle se jodne ka prashn hi nahin uthta... :)
Jai Hind...
शर्म आती है जब आज के युग में लोग बच्चों की जान के साथ खिलवाड़ करते हैं। आज भी टीवी पर ऐसे कार्यक्रम आते हैं। कुछ समय पहले तक तबस्सुम जी एक नकली डॉक्टर को लोगों के सामने ऐसे ला रही थीं जैसे उसने अमृत की खोज कर ली हो।
जवाब देंहटाएंघुघूती बासूती
बहुत दुःख हुआ ये जान कर कि एक बच्चा खोने के बावजूद आँख नहीं खुली और दूजा बच्चा भी अन्धविश्वास की भेन्ट चढ़ गया उस गरीब का................
जवाब देंहटाएंलेकिन कोई क्या करे भी तो क्या करे ?
आपने बहुत ही करूँ कथा का वर्णन किया ....मन भारी हो गया
शिक्षा, शिक्षा और शिक्षा... लोगों को शिक्षित करके।
जवाब देंहटाएंbilkul sahi kahaa hai aapne sanp sabhi jahrile nahi hotey yahi kaaraan hai ki kuchh log!! bach jaate unme bhi deshi dawaiyaan dee jaati hai kore mantra hi nahi hotey! deshi ghee pilaakar !!agar mantro me shakti hoti to binaa kuchh desi dawa ke sirf mantroo se theek ho jaatey jagoo !!! bhaiyonn jaagOO
जवाब देंहटाएंआपन े बिलकुल सही कहा, कोई मंत्र नही होता सांप का जहर उतारने वाला, जब कोई मंत्र पढता है तो शायद वो वाला सांप जहरीला ना हो , ओर लोग भी सुनी सुनाई बातो को बडा चढा कर इस लोगो की खुब तारीफ़ करते है, ओर बहुत से लोग इन की बातो मे आ कर फ़ंस जाते है
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ज़ाकिर अली ‘रजनीश’ जी,
बहुत सही और विचारणीय तथ्य की ओर ध्यान दिलाया आपने।
प्रेमचंद की उस कहानी के साथ प्रकाशक को इस डिस्क्लेमर जैसा कुछ जरूर लिखना चाहिये कि "इस कहानी में बताया वृतांत काल्पनिक है। जहरीले सांप के काटने पर मंत्र से उपचार नहीं किया जा सकता है, रोगी का हित चाहते हैं तो उसे अस्पताल ले जायें। मंत्र पर ऐसी स्थिति में विश्वास करना रोगी के लिये प्राणघातक सिद्ध होगा।"
आईये इसके लिये मुहिम चलायें।
सत्य है अंधविश्वास से ना जाने दुनिया क्या क्या खो रही है ये तो खोने के बाद ही पता चलता है, इस विषय में जागरूकता बेहद जरूरी है, तभी ऐसी समस्याओ से निपटा जा सकता है, दिल को दुख देने वाली घटना है ये......
जवाब देंहटाएंregards
shocking incident.
जवाब देंहटाएंyour message should be spread all around.
m.h.
Baat to apne bilkul sahi likhi hai...per logo ko shikshit kiya jana bhi bahut jaruri hai...
जवाब देंहटाएंअन्धविश्वास इंसानों का अपना ज़हर है !
जवाब देंहटाएंअरे पढ़े लिखे लोगों को भी ये समझाना आसान नहीं... !
जवाब देंहटाएं@ हिमांशु - “इलाज ही बेहतर उपाय है बचने का”
जवाब देंहटाएंबेहतर उपाय नहीं बन्धु, एकमात्र उपाय है बचने का। यदि जहरीले साँप ने काट लिया है तो कोई झाड़ फूँक नहीम काम करने वाली। इलाज जितना जल्दी शुरू होगा बचने की सम्भावना उतनी ज्यादा होगी।
जाकिर भाई, साँप काटने पर तत्काल क्या करना चाहिए इसपर डॉ. अरविन्द जी ने शायद कुछ लिखा था। उसका लिंक भी दे देते तो अच्छा होता। बल्कि एक नयी समग्र पोस्ट भी इस मामले पर अपेक्षित है।
Sahi Baat.....wah
जवाब देंहटाएंSahi Baat.....wah
जवाब देंहटाएं... PRABHAAVSHAALI ABHIVYAKTI !!!!
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंji mera naam Ramesh rawal hai.main apake blog ka naga chahata hoo.me apaki kush bato se sahamat hoo. or kush nahi bhi hoo.es saap vale mamle main me apase sahamat hoo kunki muze bhi apaki tarah lagata hai ki esa koi mantra nahi hota.lekin meri maa(mother)muze kaha karati hai ki unke pitagi saap,bichu ke jahar ko mantrose thik karate the.or ye meri maa ne apani ankhose dekha hai.or me apako bata doo.ki marathi main "pudhari" namak news pepar aata hai wo aapako www.pudhari.com par milega vaha "diwali ank" milega usame "keneth adarson"namak british lekhak ne bataya hai ki unke bharat ke service ke daramyan unone kush aise logonse mile jo adabhoot chamatkar(?)kar sakate the.
जवाब देंहटाएंप्रेमचन्द की कहानी शिक्षित लोग पढ़े हैं और उसका अर्थ अंधविश्वास फैलाना नही बल्कि कुछ और था. आपने कहानी का मूल भाव नही समझा. "झाड़ फूक" जैसा प्रचलित वाकया वैसा नही था जैसा आजकल है. जंगल, खेत हमारे आवासीय जरूरत के चलते सुरक्षित रहे नही तो फिर उन औषधियों का क्या जो उस दौर के "झाड़-फूँक" करने वालों के पास हुआ करती थी. रजवाड़ा चला गया इसका यह मतलब नही कि उस दौर में राजा नही हुआ करते थे.
जवाब देंहटाएंविज्ञान का चस्का इतना नही होना चाहिए कि अपने अतीत को कोसने लगे. विज्ञान आज की जरूरत है. आज के लोग वैज्ञानिक भाषा समझते हैं. लेकिन... शायद आप भी यह बात जानते हों कि आज भी विज्ञान शिक्षितों तक ही सीमित है. क्योंकि अशिक्षितों को विज्ञान समझ में नही आता. उन्हें वही समझ में आता है जो उन्हें सदियों तक समझाया गया है. अर्थात एक पत्थर पर अटूट श्रद्धा!! जिसे हम लोग अन्धविश्वास की संज्ञा देते हैं..
गीता पाल से सहमत हूँ और प्रवीण शाह से जरा सा असहमत...