Ramalingaswami Fellowship Information in Hindi
वैज्ञानिकों को स्वदेश बुलाती रामलिंगास्वामी पुन:प्रवेश फैलोशिप योजना
-नवनीत कुमार गुप्ता
जैवप्रौद्योगिकी विभाग द्वारा नई दिल्ली में 15 से 17 फरवरी के दौरान रामलिंगास्वामी पुन: प्रवेश फैलोशिप (Ramalingaswami Fellowship) धारकों की आठवीं बैठक का आयोजन किया। इस कार्यक्रम का उद्घाटन 15 फरवरी को जैवप्रौद्योगिकी विभाग (Department of Biotechnology) और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (Department of Science and Technology) के सचिव प्रो आशुतोष शर्मा (Prof Ashutosh Sharma) ने अशोक होटल के बैंक्वेट हॉल में किया।
इस अवसर पर उद्घाटन भाषण में बोलते हुए प्रो आशुतोष शर्मा ने रामलिंगास्वामी पुन: प्रवेश फैलोशिप और रामानुजन फैलोशिप जैसे फैलोशिप कार्यक्रमों की सफलता पर खुशी व्यक्त करते हुए कहा कि “पहले जैविक समस्या को हल करने के लिए विज्ञान के अन्य क्षेत्रों की मदद ली जाती थी लेकिन वर्तमान में जैव प्रौद्योगिकी द्वारा विज्ञान के कई अन्य क्षेत्रों की समस्या को हल किया जा रहा है।”
इस अवसर पर जैव प्रौद्योगिकी विभाग के पूर्व सचिव डा एम के भान ने कहा कि “रामलिंगस्वामी फैलोशिप विज्ञान और नवाचार के क्षेत्र में काफी सफल रही है।” कार्यक्रम के अंतिम दिन, 17 फरवरी को विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी एवं पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के केन्द्रीय मंत्री डॉ हर्षवर्धन (Dr Harshvardhan) भी कार्यक्रम में उपस्थित थे। उन्होंने फैलोशिप धारकों से उनके शोध कार्यों पर विचार—विमर्श भीकिया।
इस अवसर पर उन्होंने कहा ''70 साल की आजादी के बाद भी भारत में कई बुनियादी समस्या बनी हुई है। यह दयनीय है कि देश कुपोषण और एनीमिया जैसी कुछ बुनियादी समस्याओं को दूर नहीं कर सका। हालांकि उन्होंने कहा कि भारतीय वैज्ञानिकों में देश की सभी अनसुलझी समस्याओं को हल करने की क्षमता है। जब मैं हैदराबाद, मैसूर, आदि प्रयोगशालाओं में जाता हूं, तो वह पोषण संबंधी बहुत सारे शोध कार्यों को देखता हूं, तब सोचता हूं कि क्यों अब भी देश में पोषण संबंधी समस्याएं व्याप्त हैं। प्रयोगशालाओं में बहुत अधिक पौष्टिक खाद्य पदार्थ विकसित किए गए हैं, फिर भी देश में कुपोषण और एनीमिया की समस्या चिंतनीय है। ''
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इस फैलोशिप की प्रशंसा करते हुए उन्होंने कहा कि ''विज्ञान और प्रौद्योगिकी के विभिन्न क्षेत्रों में अनुसंधान के लिए फैलोशिप को स्वीकार करते हुए बड़ी संख्या में वैज्ञानिक भारत लौट आए हैं। उन्होंने कहा कि 290 वैज्ञानिक रामलिंगास्वामी पुन: प्रवेश फैलोशिप के तहत वापस आ चुके हैं और भारत में शोध कार्यभार संभाला रहे हैं और इसमें से कुछ सफलता प्राप्त कर चुके हैं। यह एक बहुत ही प्रतिष्ठित कार्यक्रम है जिसमें हम विदेशी विश्वविद्यालयों से युवा लोगों को भारत आने के लिए आमंत्रित कर रहे हैं जिससे वो देश की सेवा कर सकें। इस फैलोशिप के तहत पिछले कुछ वर्षों में विभिन्न वैज्ञानिक संगठनों और विश्वविद्यालयों में कार्यतर वैज्ञानिकों ने शोध पत्र तैयार किए हैं, 53 प्रौद्योगिकीयां विकसित की हैं और 33 पेटेंट (Patent) एवं दो स्टार्ट-अप्स (Startups) लगाए हैं। इस फैलोशिप के तहत किए गए कार्यों में कैंसर का पता लगाने, स्पेक्ट्रोमेट्री द्वारा कीटनाशक का पता लगाने, मधुमेह का निदान, ग्लिमा विरोधीदवा के विकास, स्तन कैंसर के निदान से संबंधित प्रौद्योगिकी आदि का विकास किया गया है।''
इस कार्यक्रम में फैलोशिप प्राप्त वैज्ञानिकों के कार्यों पर विचार—विमर्श किया गया। असल में इस कार्यक्रम ने फैलोशिप प्राप्त सभी वैज्ञानिकों को ऐसा मंच प्रदान किया जहां वह अभिनव विचारों के साथ बातचीत, चर्चा और विनिमय कर सकें।
रामलिंगास्वामी पुन: प्रवेश फैलोशिप का आरंभ 2006—2007 से किया गया था । इस फैलोशिप का उद्देश्य देश के बाहर कार्यरत भारतीय वैज्ञानिकों को प्रोत्साहित करना था, ताकि वो अपने शोध कार्य को जारी रखते हुए वापिस स्वदेश लौट सकें और यहां विज्ञान और प्रौद्योगिकी के विकास में अपना योगदान दें सकें। इस फैलोशिप योजना को अब तक का सफर कामयाब कहा जा सकता है जिसके अंतर्गत पिछले दस वर्षों के दौरान भारत सरकार को 1492 आवेदन प्राप्त हुअ और इनमें से 396 को फैलोशिप की पेशकश की गयी। इनमें से 283 वैज्ञानिकों ने भारतीय शोध प्रयोगशालाओं में कार्य किया। आज यह फैलोशिप एक प्रसिद्ध योजना का रूप ले चुकी है। इसके अंतर्गत अनेक राष्ट्रीय विषयों पर शोध कार्य किया गया है।
केंद्रीय विज्ञान एवं प्रोधौगिकी मंत्रालय के जैव प्रौद्योगिकी विभाग की रामलिंगास्वामी री-एंट्री फेलोशिप के तहत फेलोशिप कार्यक्रम में शोधकर्ताओं को वैज्ञानिक-डी स्तर का पद दिया जाता है। इसके अलावा हर महीने 1,00,000 रूपए का वजीफा और 8,500 रूपए आवास भत्ता मिलता है। प्रत्येक वर्ष 75 चयनित वैज्ञानिकों को यह फैलोशिप प्रदान की जाती है।
-लेखक परिचय-
नवनीत कुमार गुप्ता पिछले दस वर्षों से पत्र-पत्रिकाओं, आकाशवाणी एवं दूरदर्शन आदि जनसंचार के विभिन्न माध्यमों द्वारा वैज्ञानिक दृष्टिकोण और पर्यावरण संरक्षण जागरूकता के लिए प्रयासरत हैं। आपकी विज्ञान संचार विषयक लगभग एक दर्जन पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं तथा इन पर गृह मंत्रालय के ‘राजीव गांधी ज्ञान विज्ञान मौलिक पुस्तक लेखन पुरस्कार' सहित अनेक पुरस्कार एवं सम्मान प्राप्त हो चुके हैं। आप विज्ञान संचार के क्षेत्र में कार्यरत संस्था ‘विज्ञान प्रसार’ से सम्बंद्ध हैं। आपसे निम्न मेल आईडी पर संपर्क किया जा सकता है:
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