CV Raman Inventions and Discoveries in Hindi.
चंद्रशेखर वेंकट रामन की जीवनी C V Raman Biography in Hindi
आज हम आपके लिए चंद्रशेखर वेंकट रामन की जीवनी C V Raman Biography in Hindi लाए हैं। डॉ0 चन्द्रशेखर वेंकट रामन मुख्य् रूप से सी.वी. रामन के नाम से जाने जाते हैं। वे प्रथम भारतीय एवं प्रथम एशियाई वैज्ञानिक हैं, जिन्हें विज्ञान का पहला नोबेल पुरस्कार मिला। एक तरह से देखा जाए, तो वे एकमात्र भारतीय वैज्ञानिक भी हैं, जिन्हें नोबेल पुरस्कार मिला, क्योंकि उनके अतिरिक्त भारतीय मूल के जिन दो वैज्ञानिकों (हरगोविंद खुराना एवं सुब्रह्मण्यम चंद्रशेखर) को नोबेल पुरस्कार मिला है, उन्होंने अमेरिकी नागरिकता ग्रहण कर ली थी। आइए चंद्रशेखर वेंकट रामन की जीवनी C V Raman Biography in Hindi के बारे में विस्तार से जानते हैं।
वेंकट रामन का जन्म 7 नवम्बर 1888 को तमिलनाडु में कावेरी नदी के किनारे पर तिरूचिरापल्ली (तत्कालीन त्रिचनापली) के पास थीरूवानायकवल नामक ग्राम में हुआ। रामन के पिता का नाम चंद्रशेखर अय्यर तथा माँ का नाम पार्वती अम्मल था। था। उनके पिता त्रिचनापल्लीं में अध्या पक थे। बाद में वे विशाखापट्टनम (तत्कालीन विजगापट्टनम) के श्रीमती ए.वी. नरसिम्हाउ राव कॉलेज में गणित और भौतिक विज्ञान के अध्यानपक नियुक्त हुए।
रामन की आरम्भिक पढ़ाई विजगापट्टनम में ही हुई। उन्हों ने अपनी मैट्रिकुलेशन परीक्षा 11 वर्ष की आयु में सम्मािनपूर्वक उत्तीर्ण की। 13 वर्ष की आयु में उन्हों ने एफ.ए. (इण्टरमीडिएट के समकक्ष) की परीक्षा पास की। एफ.ए. की परीक्षा पास करने के बाद रामन को विज्ञान में रूचि जागी, तब उन्होंरने विज्ञान विषय सहित प्रेसिडेंसी कॉलेज, चेन्नई (Schools in Chennai) में दाख़िला लिया। उनकी कम आयु के कारण अंग्रेजी के प्रोफेसर इलियट उन्हेंन देखकर अचम्भित रह गये थे।
चंद्रशेखर वेंकट रामन की उपलब्धियां C V Raman Achievements in Hindi
सी वी रामन की जीवनी C V Raman Biography in Hindi का रोचक पक्ष उनकी पढाई के दौरान ही शुरू हो गया था। रामन ने बी.ए. की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्ती्र्ण की। उस वर्ष पूरे विश्वईविद्यालय में प्रथम आने वाले वे इकलौते विद्यार्थी थे। उन्हें इस सफलता के लिए कॉलेज ने भौतिक विज्ञान का ‘अरणी स्वर्ण पदक’ प्रदान किया। इससे पूरे कॉलेज में रामन की धाक जम गयी। एम.ए. के दौरान रामन घन्टों अपने परीक्षणों में व्यस्त रहते। इस कारण अक्सर वे कई कक्षाओं में भी अनुपस्थित हो जाते। धीरे-धीरे कॉलेज के प्राचार्य तक यह बात पहुँची। प्राचार्य रामन की प्रतिभा से परिचित थे, इसलिए उन्होंने रामन की अन्वेषण के प्रति अभिरूचि को देखते हुए उनके कक्षा में नियमित रूप से आने के नियम को शिथिल कर दिया। रामन ने इस सुविधा का फायदा उठाते हुए उस दौरान अनेक शोध किए, जिनमें नाद-शास्त्र सम्बंधी प्रयोग प्रमुख था।उसी दौरान रामन ने प्रकाश की किरणों के गुणधर्म के बारे में एक खोजपरक निबंध लिखा। उन्होंने उसको अपने भौतिकी के अध्यापक को दिखाया और उनसे सलाह माँगी। अध्यापक महोदय ने उसे अपने पास रख लिया। रामन ने उन्हें एक-दो बार याद भी दिलाया, लेकिन जब इसके बावजूद उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया, तो रामन ने लेख की दूसरी प्रति तैयार की और उसे छपने के लिए द फ़िलासोफ़िकल मैग्ज़ीन The Philosophical Magazine में भेज दिया। कुछ समय बाद वह लेख उस पत्रिका में प्रकाशित हो गया। यह देखकर अध्यापक महोदय उन पर नाराज हुए। लेकिन जब अन्य अध्यापकों ने उनसे यह कहा कि आपके लिए यह गर्व का विषय है कि आपके एक विद्यार्थी का खोजपूर्ण निबंध इंग्लैेण्ड की पत्रिका में प्रकाशित हुआ है, तो वे प्रसन्न हो गये और उनकी नाराजगी दूर हो गयी।
रामन ने सन 1907 में एम.ए. की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। उन्हें भौतिक विज्ञान में कॉलेज की स्थापना से अब तक के सर्वाधिक नम्बर प्राप्त हुए थे। उनकी इस असाधारण प्रतिभा को देखकर सरकार ने उन्हें आगे की पढ़ाई के लिए विदेश जाने हेतु छात्रवृत्ति प्रदान की। इससे रामन बहुत उत्साहित हुए और उन्होंने लंदन जाने का फैसला किया। लेकिन उनकी इस चाहत के बीच उनका स्वास्थ्य आड़े आ गया। डॉक्टर ने कहा कि ये बेहद पतले-दुबले व्यक्ति हैं, इस कारण इंग्लैण्ड की भयानक सर्दी को बर्दाश्त नहीं कर पाएँगे।
विदेश यात्रा बाधित हो जाने के कारण रामन ने अर्थ विभाग की परीक्षा में बैठने का निश्चय किया। उन्होंने इतिहास, संस्कृयत विषयों की कड़ी तैयारी करके वित्तीय सिविल सेवा (FCS) की परीक्षा में प्रथम स्थाइन प्राप्त किया। इस प्रकार 19 वर्ष की आयु में वे कोलकाता में सहायक महालेखापाल_Deputy Accountant General नियुक्त हो गये। नौकरी लगने के कुछ समय बाद ही मद्रास में सामुद्रिक चुंगी विभाग के सुपरिन्टेन्डेन्ट कृष्ण स्वामी अय्यर की पुत्री से उनका विवाह हो गया और उनके दिन मजे में कटने लगे।
चंद्रशेखर वेंकट रामन के शोध कार्य CV Raman Inventions
यह चंद्रशेखर वेंकट रामन की जीवनी C V Raman Biography in Hindi का अहम हिस्सा है। सरकारी सेवा में रामन को सारी सुविधाएँ मौजूद थीं, लेकिन शोध कार्यों से दूर रहने के कारण उनका चित्त प्रसन्न नहीं था। एक दिन कार्यालय जाते समय उनकी नजर इंडियन एसोसिएशन फॉर कल्टिवेशन ऑफ साइंस_Indian Association for the Cultivation of Science के बोर्ड पर पड़ी। रामन अपने को रोक न सके और उसके कार्यालय जा पहुँचे।उस परिषद की स्थापना सन 1876 में डॉ0 महेन्द्र लाल सरकार ने देश में वैज्ञानिक अनुसंधान को बढ़ावा देने के लिए की थी। उस समय महेन्द्र लाल सरकार के पुत्र अमृतलाल सरकार परिषद में अवैतनिक सचिव के रूप में कार्य करते थे। रामन से मिलकर अमृतलाल सरकार बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने रामन की मुलाकात संघ के मंत्री से कराई। मंत्री महोदय ने रामन को वहाँ पर शोध कार्य करने की अनुमति ही प्रदान नहीं की, बल्कि उन्हें विज्ञान परिषद का सदस्य भी बना लिया।
रामन को सुबह कार्यालय जाने के पहले और शाम को कार्यालय से लौटने के बाद जो समय मिलता, उसे वे प्रयोगशाला में बिताते। हालाँकि परिषद की प्रयोगशाला में कोई विशेष सुविधाएँ उपलब्ध नहीं थीं, फिरभी रामन ने यहाँ पर अनेक महत्वपूर्ण अनुसंधान किये। यहाँ पर किये गये अनुसंधान के आधार पर रामन ने 30 शोधपत्र लिखे, जो नेचर Nature Magazine, दि फ़िलासोफ़िकल मैग्ज़ीन The Philosophical Magazine और फ़िज़िक्स रिव्यू Physics Review जैसी अन्तंर्राष्ट्रीय पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए।
सन 1909 में रामन का तबादला कोलकाता से रंगून हो गया। वहाँ पर आसपास कोई प्रयोगशाला नहीं थी। एक दिन उन्हें पता चला कि रंगून से कुछ दूरी पर स्थित एक स्कूल में कुछ शोध उपकरण आए हैं। यह सुनकर रामन इतने बचैन हो गये कि रात में पत्नी को बिना बताए ही स्कूल चले गये और उन उपकरणों को देखकर वे सुबह होने से पहले लौट भी आए। उसी दौरान रामन के पिता का निधन हो गया। उनका मन वहाँ पर पहले से ही नहीं लग रहा था, इसलिए वे 06 माह की छुट्टी लेकर मद्रास चले गये। छुट्टियाँ पूरी होते-होते उनका तबादला रंगून से नागपुर हो गया। नागपुर में उन्होंने अपनी स्व्यं की प्रयोगशाला बनाई और वहाँ पर शोध कार्य करने लगे। सन 1911 में रामन की नियुक्ति एकाउंटेंट जनरल Accountant General के पद पर हुई और उन्हेंं कोलकाता भेज दिया गया। इससे वे पुन: विज्ञान परिषद की प्रयोगशाला में पहुँच गये और अपने अतिरिक्त समय को प्रयोगों में लगाने लगे।
सन 1914 में सर तारकनाथ पालित, डॉ0 रासबिहारी घोष और सर आशुतोष मुखर्जी ने मिलकर कोलकाता में साइंस कॉलेज की स्थापना की। कॉलेज के प्राचार्य पद के लिए वेंकट रामन ही सुयोग्य व्यक्ति थे। वेंकट रामन को जब यह बुलावा मिला, तो वे अपनी आलीशान नौकरी छोड़ कर कॉलेज के प्राचार्य बनने के लिए सहर्ष तैयार हो गये। लेकिन उन दिनों नियम यह था कि कॉलेज का प्राचार्य बनने के लिए यूरोप के किसी विश्वविद्यालय की पढ़ाई अनिवार्य थी। इस अड़चन से कॉलेज के संस्थापक ही नहीं रामन भी खिन्न हुए। लेकिन बाद में किसी तरह से प्रयत्न करके कॉलेज के संस्थापक यह बाधा दूर करवाने में सफल हो गये। इस प्रकार जुलाई 1917 में वेंकट रामन ने 29 वर्ष की आयु में साइंस कॉलेज के पालित प्रोफेसर के रूप में कार्यभार संभाला।
कॉलेज में आचार्य बनने के बाद भी वेंकट रामन विज्ञान परिषद से जुड़े रहे और अपने शोधकार्य करते रहे। सन 1919 में अमृतलाल सरकार की मृत्यु के बाद हुए विज्ञान परिषद के चुनाव में रामन को उसका अवैतनिक सचिव भी चुना गया। वे इस पद पर 1933 तक रहे और विज्ञान को अपनी सेवाएँ देते रहे।
चंद्रशेखर वेंकट रामन का रामन प्रभाव Raman Effect in Hindi
एक बार रामन अपने छात्रों के साथ प्रकाश सम्बंधी प्रयोग कर रहे थे। उन्होंने प्रकाश की एक किरण को एक छोटे से छेद से गुजारने के बाद बेंजीन के द्रव पर डाला। दूसरे सिरे पर उन्होंने जब डायरेक्ट विजन स्पेक्ट्रोस्कोेप Direct Vision Spectroscope द्वारा उस प्रकाश को देखा, तो उसमें कुछ असाधारण सी रेखाएँ भी नजर आईं। उसी दौरान शिकागो विश्वविद्यालय के ए.एच. कॉम्प्टन A H Compton ने एक्स्-रे किरणों को किसी खास सामग्री से गुजार कर विशेष रेखाओं के देखे जाने की बात कही थी (Compton effect)। कॉम्प्टन को इस खोजे के लिए नोबेल पुरस्कार भी मिला था। रामन को महसूस हुआ कि कुछ ऐसा ही उनके प्रयोग में भी हो रहा है।
रामन ने महसूस किया कि प्रकाश की किरण वास्तव में कणों (फोटोन्स) की धारा की तरह व्यवहार कर रही हैं।
उन्होंने देखा कि किसी द्रव पर प्रकाश की किरण डालने पर प्रकाश में उपस्थित फोटोन्स द्रव के अणुओं पर वैसे ही आघात करते थे जैसे एक क्रिकेट का बॉल फुटबॉल पर करता है। क्रिकेट का बॉल जब फुटबॉल से टकराता है, तो वह कितनी ही गति से क्यों न उससे टकराए, लेकिन वह फुटबॉल को थोड़ा-सा ही हिला पाता है। इस प्रक्रिया में क्रिकेट का बॉल अपनी कुछ ऊर्जा फुटबाल को दे देता है और स्व यं दूसरी ओर उछल कर गिर जाता है। रामन ने देखा कि इसी तरह फोटोन्स अपनी कुछ ऊर्जा छोड़ देते हैं और छितरे प्रकाश के स्पेक्ट्रम में कई बिन्दुओं पर दिखाई देते हैं। जबकि अन्य फोटोन्स अपने रास्ते से हट जाते हैं। वे न तो इस प्रक्रिया में ऊर्जा ग्रहण करते हैं और न ही छोड़ते हैं। इसलिए वे स्पेक्ट्रम में अपनी सामान्य स्थिति में दिखाई देते हैं।
उन्होंने देखा कि किसी द्रव पर प्रकाश की किरण डालने पर प्रकाश में उपस्थित फोटोन्स द्रव के अणुओं पर वैसे ही आघात करते थे जैसे एक क्रिकेट का बॉल फुटबॉल पर करता है। क्रिकेट का बॉल जब फुटबॉल से टकराता है, तो वह कितनी ही गति से क्यों न उससे टकराए, लेकिन वह फुटबॉल को थोड़ा-सा ही हिला पाता है। इस प्रक्रिया में क्रिकेट का बॉल अपनी कुछ ऊर्जा फुटबाल को दे देता है और स्व यं दूसरी ओर उछल कर गिर जाता है। रामन ने देखा कि इसी तरह फोटोन्स अपनी कुछ ऊर्जा छोड़ देते हैं और छितरे प्रकाश के स्पेक्ट्रम में कई बिन्दुओं पर दिखाई देते हैं। जबकि अन्य फोटोन्स अपने रास्ते से हट जाते हैं। वे न तो इस प्रक्रिया में ऊर्जा ग्रहण करते हैं और न ही छोड़ते हैं। इसलिए वे स्पेक्ट्रम में अपनी सामान्य स्थिति में दिखाई देते हैं।
फोटोन्स में ऊर्जा की आई हुई यह कमी और इसके परिणामस्वरूप स्पेक्ट्रम में कुछ असाधारण रेखाओं का उत्पडन्नो होना ही रामन प्रभाव Raman effect कहलाता है। फोटोन्स द्वारा खोई जाने वाली ऊर्जा की मात्रा उस द्रव रसायन के अणुओं की प्रकृति पर निर्भर करती है। यही कारण है कि भिन्न-भिन्न प्रकार के अणु फोटोन्स के साथ मिलकर अलग-अलग प्रकार की क्रिया करते हैं और इस दौरान ऊर्जा की मात्रा में कमी भी अलग-अलग होती है। रामन ने बताया कि स्प्रेाट्रम में दिखने वाली असाधारण रेखाओं के फोटोन्स की ऊर्जा में होने वाली कमी को माप कर पदार्थ की आंतरिक अणु संरचना का पता लगाया जा सकता है।
रामन की यह महत्वपूर्ण खोज 28 फरवरी 1928 को सम्पन्न् हुई, जिसकी परिणति तक पहुँचने में उन्हें सात वर्ष का समय लगा था। उन्होंने जब अपनी यह खोज दुनिया के सामने रखी, तो उसे प्रतिष्ठित विज्ञान पत्रिका ‘नेचर’ ने अपने आगामी अंक में प्रकाशित किया। उनकी इस महत्वपूर्ण खोज के लिए उन्हें भौतिकी का नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया। ‘रामन प्रभाव’ की महत्वपूर्ण खोज के प्रति अपना सम्मांन जताने के लिए भारत वर्ष में 28 फरवरी का दिन राष्ट्रीय विज्ञान दिवस National Science Day के रूप में मनाया जाता है।
रामन रिसर्च इंस्टीट्यूट की स्थापना:
सन 1933 में डॉ0 रामन बंगलुरु के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंसेज़_Indian Institute of Sciences के संचालक नियुक्त हुए। उन्होंने 1948 तक इस जिम्मेदारी का निवर्हन किया। सन 1948 में उन्होंने बंगलुरू में रामन रिसर्च इंस्टीट्यूट Raman Research Institute की स्थापना की। इस संस्थान की स्थापना में उन्होंने अपनी सारी जमा पूँजी लगा दी। यह संस्थाून आगे नियमित रूप से चलता रहे, इसके लिए उन्होंंने लोगों से दान माँगा एवं कुछ उद्योग भी स्थापित किये, जिससे उनसे होने वाली आय नियमित रूप से संस्थाीन को मिलती रहे।
रामन हमेशा प्रयोगों के प्रति समर्पित रहे। उन्होंने एक क्षण के लिए भी आराम नहीं किया। यही कारण है कि ‘रामन प्रभाव’ की खोज करने के बाद भी उन्होंने अनेक महत्व पूर्ण आविष्कार किये। उन्होंने आँख के पीछे के पर्दे रेटिना पर दृश्य अंकित होने की प्रक्रिया की खोज की। उन्होंने हीरे और गुलाब से सम्बंधित भी कई महत्वपूर्ण जानकारियाँ दीं। इस कर्मठ वैज्ञानिक का निधन 82 वर्ष की आयु में 21 नवम्बर, 1970 को हुआ।
चंद्रशेखर वेंकट रामन का नोबेल पुरस्कार CV Raman Nobel Prize
चंद्रशेखर वेंकट रामन को उनके अतुलनीय कार्यों के लिए समय-समय पर अनेक महत्वपूर्ण पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। सन 1914 में रॉयल सोयायटी, लंदन ने उन्हें अपना फेलो चुना। उनकी अमूल्य् सेवाओं के लिए सन 1922 में कोलकाता विश्वविद्यालय ने उन्हें डी.एस-सी. की मानद उपाधि प्रदान की। वे सन 1929 में मद्रास में होने वाली भारतीय विज्ञान काँग्रेस के अध्यक्ष चुने गये। ब्रिटिश सरकार ने उनकी योग्यताओं के लिए उन्हेंं सन 1929 में ‘सर’ की उपाधि प्रदान की।उनके महत्वपूर्ण अनुसंधान ‘रामन प्रभाव’ के लिए उन्हें सन 1930 में भौतिक विज्ञान का नोबेल पुरस्का्र प्रदान किया गया। सन 1941 में रामन को अमेरिका का प्रसिद्ध फ्रैंकलिन पुरस्कार प्राप्त हुआ। सन 1954 में भारत सरकार ने उन्हें अपने सर्वोच्च सम्मान ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया। इसके अतिरिक्ता सन 1958 में सोवियत रूस ने अपने प्रतिष्ठित सम्मान ‘लेनिन शान्ति पुरस्का्र’ से सम्मानित किया। इसके अतिरिक्त देश एवं विदेश के अनेक विश्व विद्यालयों ने उन्हें डी.एस-सी. और पी-एच.डी. की उपाधियाँ प्रदान कीं।
वेंकट रामन एक कुशल वक्ता थे और कला तथा संगीत में भी उन्हें समान अभिरूचि थी। वे एक परिश्रमी और सरल स्वभाव के व्याक्ति थे। इसका पता इस बात से भी चलता है कि जब देश के प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू ने उनके सामने 'भारत के उपराष्ट्रपति' पद का प्रस्ताव रखा, तो उन्होंने बड़ी विनम्रता से उसे अस्वीकार कर दिया था। सचमुच उनके जैसे वैज्ञानिक धरती पर कभी-कभी ही जन्म लेते हैं।
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('भारत के महान वैज्ञानिक' पुस्तक के अंश, अन्यत्र उपयोग हेतु लिखित अनुमति आवश्यक)
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बहुत अच्छी जानकारीयुक्त पोस्ट
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