पुरूष नसबंदी के बारे में जानकारी प्रदान करने वाला उपयोगी लेख।
भारतीय समाज की बुनावट कुछ इस तरह की है कि यहाँ पर यदि किसी पर एक बार कोई लाँछन लग जाए, तो फिर उससे उबरने के लिए लाखों पापड़ बेलने पड़ते हैं, फिर चाहे वह कोई व्यक्ति हो, समाज हो अथवा तकनीक। और इसका साक्षात प्रमाण है भारत सरकार की पुरूष नसबंदी योजना।
जनसंख्या नियंत्रण को लेकर हमारे यहाँ जो भी पहल हुई है, उसमें पुरूष नसबंदी सबसे आसान और सुरक्षित तरीका माना जाता है। इस प्रक्रिया में शुक्राणु (वीर्य) नली, जोकि एक ओर वृषण (अण्डकोष) से तथा दूसरी ओर पेशाब नली (लिंग) से जुड़ी होती है, को बीच में बाँध कर अवरोधित कर दिया जाता है।
इसके साथ ही शुक्राणु नली को दबा कर उसमें मौजूद शुक्राणुओं को निकाला जाता रहा है। शुक्राणु नली अवरोधित कर देने के कारण शुक्राणु वृषण से निकल कर पेशाब नली तक नहीं पहुंच पाते हैं और सम्भोग की क्रिया सुरक्षित बनी रहती है। लेकिन इस प्रक्रिया में एक कमी यह थी कि शुक्राणु नली को अवरोधित करने के समय कभी-कभी पेशाब नली की ओर कुछ शुक्राणु बच जाते थे, जो लगभग 6 माह तक सक्रिय रहते हैं। ये बचे हुए शुक्राणु सम्भोग के दौरान गर्भधान की प्रक्रिया सम्पन्न कर देते थे।
इसके साथ ही शुक्राणु नली को दबा कर उसमें मौजूद शुक्राणुओं को निकाला जाता रहा है। शुक्राणु नली अवरोधित कर देने के कारण शुक्राणु वृषण से निकल कर पेशाब नली तक नहीं पहुंच पाते हैं और सम्भोग की क्रिया सुरक्षित बनी रहती है। लेकिन इस प्रक्रिया में एक कमी यह थी कि शुक्राणु नली को अवरोधित करने के समय कभी-कभी पेशाब नली की ओर कुछ शुक्राणु बच जाते थे, जो लगभग 6 माह तक सक्रिय रहते हैं। ये बचे हुए शुक्राणु सम्भोग के दौरान गर्भधान की प्रक्रिया सम्पन्न कर देते थे।
हालाँकि इस तरह की घटनाएं सिर्फ 4 प्रतिशत मामलों में ही होती रही है, जिसके लिए इस अच्छी खासी योजना की काफी छीछालेदर होती रही है। इसको लेकर भुक्तभोगी परिवारों में काफी गम्भीर स्थितियाँ उत्पन्न होती रही हैं। खासकर उन जगहों पर, जहाँ सम्बंधित व्यक्ति निचले अथवा पिछड़े तबके से आते हैं, वहाँ पर ऐसी दशा में पीडित स्त्री के चरित्र पर सीधे-सीधे उंगलियाँ उठाई जाती रही हैं। इसके कारण पीडित परिवारों में मारपीट से लेकर तलाक तक की घटनाएं होती रही हैं।
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अपनी इसी कमी के कारण सरकार को इस तरह की घटनाओं के लिए मुआवजे की भी व्यवस्था करनी पड़ी है, जोकि इस नाकामी से होने वाले नुकसान की भरपाई करने में पूरी तरह से अक्षम रहा है। इन्हीं 4 प्रतिशत अपवादों के कारण पुरूष नसबंदी की यह योजना इतनी बदनाम रही है कि समझदार लोग चाहकर भी इसे अपनाने से झिझकते रहे हैं।
लेकिन अब छत्रपति साहूजी महाराज चिकित्सा विश्वविद्यालय, लखनऊ के यूरोलॉजी विभाग ने इस समस्या से उबरने का रास्ता खोज निकाला है। गौरतलब है कि यह विश्वविद्यालय उत्तर प्रदेश और उत्तराखण्ड का बिना चीरा, बिना टाँका पुरूष नसबंदी का सबसे बड़ा केन्द्र है। यूरोलॉजी विभाग के डाक्टरों के अनुसार अब वे शुक्राणु नलिका को शुक्राणुमुक्त करते समय वे एक विशेष रसायन से धो देते हैं, जिससे उसमें मौजूद शुक्राणु पूरी तरह से नष्ट हो जाते हैं। डाक्टरों ने इस तकनीक को डिस्टल वेसल फलशिंग का नाम दिया है। यहाँ पर वर्तमान में इसी तकनीक से पुरूष नसबंदी की जा रही है, जो परीक्षण में पूरी तरह से खरी साबित हुई है।
बिना चीरा, बिना टाँका पुरूष नसबंदी के प्रादेशिक प्रशिक्षक डा. एन.एस. डसीला के अनुसार वे इस तकनीक को सम्पूर्ण देश में अपनाने के लिए भारत सरकार को एक प्रस्ताव भी भेजने जा रहा है, जिससे पुरूष नसबंदी के माथे पर लगे धब्बे को मिटाया जा सके और जनसंख्या नियंत्रण के प्रयासों को गति प्रदान की जा सके।
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मेल पिल्स एक बेहतर विकल्प है -तब तक ऐसे ही झेलिये !
जवाब देंहटाएंपुरुष के पास सौ बहने है स्त्री के चरित्र पर लांछन लगाने के लिये । इस तकनीक की जानकारी के लिये धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंजहां प्यार ओर विशवास हो वहां ऎसी ऒछी बाते कोई नही सोचता, गन्दी ऒरत या मर्द जोभी हो उन के चरित्र का पहले ही पता चल जाता है, ऎसे बहाने सिर्फ़ जान छुडाने के लिये किये जाते है
जवाब देंहटाएंवाह जाकिर जी, सही कहा आपने. मैं जो कहना चाहता tha शरद जी ने कह दिया.. साधुवाद..
जवाब देंहटाएंजाकिर भाई अपने उस ब्लाग का पता भेजिये जिसमें खाड़ी देशों में जाने वालों की सही दुर्दशा चित्रित थी
जवाब देंहटाएंतकनीक के लिए विकसित करने वाले बधाई के पात्र हैं। लेकिन लांछनों का कारण तकनीक का असफल होना नहीं अपितु हमारे समाज का ढांचा है उसे बदलने की और तेजी से कदम उठाने होंगे।
जवाब देंहटाएंशरद जी, राज भटिया जी और दिनेश जी से सहमत हूँ.
जवाब देंहटाएंsharadje se sahmat
जवाब देंहटाएंआशा है इससे जनसंख्या नियंत्रण के प्रयासों को बल मिलेगा।
जवाब देंहटाएंzakir ji
जवाब देंहटाएंhamaarey samaaj mae jab tak barabri ki baat nahin lagu hogii koi bhi taknik fail hogi kyuki charitr kaa thekaa stri kaa haen
रजनीशजी,
जवाब देंहटाएंबहुत ही सटीक और विचारोत्तेजक विषय पर जानकारी और samyochit टिपण्णी के लिए शुक्रिया...
आप ने ठीक कहा इससे जनसँख्या प्रयासों को बल तो मिलेगा लेकिन मेल पिल्स एक बेहतर विकल्प है
जवाब देंहटाएंसभी सही जवाब आ गए इसलिए मैं सही जवाब नहीं दूंगा कम से कम एक गलत जवाब भी होना चाहिए !!!
जवाब देंहटाएंNahi dete to bhi chalta bhai galati karanevalo ki kami nahi
हटाएंजानकारी के लिए धन्यवाद. मैं नहीं जानता था कि नसबंदी के बाद कहीं अन्य भी शुक्राणु कुछ मात्रा में बचे रह जाते हैं
जवाब देंहटाएंGood article.
जवाब देंहटाएंGood article
जवाब देंहटाएंमैं एक शादीशुदा इंसान हूँ. मैं नसबंदी करना चहता हू. क्या सही है.
जवाब देंहटाएंबिलकुल सही है।
हटाएंAapan hi to Hindustani hai jinke upar pura hidustan garv karata hai
हटाएंYukti chahe jo bhi apnayen ham sabhi Bharat vashiyon ko baddhti population ko rokne ke liye jaroor dhiyan dene ki jarurat hai.
जवाब देंहटाएंThanks
kya hum nasbadhi fir se open kar sakte hai agar hum chahen to?
जवाब देंहटाएंक्या नसबंदी के अलावा कोई और रास्ता नही है पुरुष के लिए ताकि वो कुछ समय के बाद फिर से सेक्स कर सके और संतान पैदा भी कर सके।
जवाब देंहटाएंNasbandi ke liye karna padega
जवाब देंहटाएंKya purush nashbadhi karaane se sex power km Hoti h
जवाब देंहटाएंमेरे दो बच्चे हैं मैंने अभी 10 दिन पहले ही नसबंदी करवाई है अब मैं बिल्कुल स्वस्थ महसूस कर रहा हूं
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