Complete Lunar Eclipse Coverage in Hindi
आकाशीय रंगमंच पर सुपर ब्ल्यू मून का हुआ दीदार
-नवनीत कुमार गुप्ता
इस साल के पहले पूर्ण चंद्रग्रहण को देखने के लिए विज्ञान प्रसार ने नई दिल्ली स्थित विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के प्रौद्योगिकी भवन में विशेष व्यवस्था की थी। विज्ञान प्रसार के वैज्ञानिक डा. अरविंद सी. रानाडे के मार्गदर्शन में तीन विशेष दूरबीनों के माध्यम से इस अनोखी घटना को देखा गया। विज्ञान प्रसार से श्री विपिन, श्री चंद्रपाल सिंह आदि स्रोत व्यक्तियों ने जनमानस को दूरबीनों के द्वारा इस नजारे से रूबरू कराया।
इस अवसर पर केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी और पृथ्वी विज्ञान मंत्री डा. हर्षवर्धन भी उपस्थित थे। उन्होंने चंद्रग्रहण देखने आए छात्र समूह को संबोधित भी किया। इस अवसर पर उपस्थित विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के सचिव प्रोफेसर आशुतोष शर्मा ने चंद्रग्रहण के वैज्ञानिक पक्ष से अवगत कराया। विज्ञान प्रसार के निदेशक महोदय ने इस घटना का आनंद उठाने का सुझाव देते हुए ऐसी घटनाओं के माध्यम से प्रकृति के रहस्यों को समझने के बारे में बताया।
अक्सर खगोलीय घटनाएं रोमांचक और विस्मयकारी होती हैं। इसलिए अनेक लोग ऐसी घटनाओं को दैवीय मान कर कथिक अंधविश्वासों पर यकीन करने लगते हैं। लेकिन आज विज्ञान ने ऐसी घटनाओं की सच्चाई हमारे सामने ला दी है। यही कारण है कि अब ऐसे लोगों की संख्या निरंतर बढ़ रही है जो खगोलीय घटनाओं का आनंद लेने को उत्सुक रहते हैं।
31 जनवरी, 2018 ऐसे उत्साही लोगों के लिए खास दिन रहा। इस दिन 2018 का पहला पूर्ण चंद्रग्रहण देखने को मिला। इस घटना को खगोलविज्ञानियों ने अंग्रेजी में ‘सुपर ब्लू मून’ कहा।
असल में पूर्ण चंद्रग्रहण, सुपर मून और ब्लू मून समेत तीन खगोलीय घटनाओं को समन्वित रूप से ‘सुपर ब्लू मून’ कहा जाता है। ग्रेगोरियन कैलेंडर के एक ही महीने में जब दो बार पूर्णिमा आती है तो सुपर ब्लू मून होने की संभावना अधिक होती है।
अपनी कक्षा में चक्कर लगाते हुए एक समय ऐसा आता है जब पूर्णिमा के दिन चंद्रमा धरती के सबसे करीब होता है। ऐसे में तुलनात्मक रूप से चंद्रमा का आकार बड़ा और रंग काफी चमकदार दिखाई पड़ता है। उस दौरान चंद्रमा के बड़े आकार के कारण उसे ‘सुपर मून’ की संज्ञा दी जाती है। सुपर मून के दिन चंद्रमा सामान्य से 14 प्रतिशत बड़ा दिखाई देता है। इस दिन इसकी चमक भी 30 प्रतिशत अधिक दिखाई देती है। हालांकि, नंगी आंखों से इस अंतर का अंदाजा लगा पाना आसान नहीं होता है।''
ग्रेगोरियन कैलेंडर के एक ही महीने में दूसरी बार ‘सुपर मून’ की घटना आए तो उसे ‘ब्लू मून’ कहा जाता है। वैसे यहां यह स्पष्ट है कि इसका संबंध चंद्रमा के रंग से बिल्कुल नहीं है। वास्तव में पाश्चात्य देशों में ‘ब्लू’ को विशिष्टता का पर्याय माना गया है। यही कारण था कि चांद के विशिष्ट रूप के कारण ही उसे ‘ब्लू’ नाम से संबोधित किया गया है। ब्लू मून के दिन चंद्र ग्रहण भी हो तो इसे ‘सुपर ब्लू मून ग्रहण’ कहते हैं।
31 जनवरी को भारतीय समय के अनुसार छह बजकर 22 मिनट से सात बजकर 38 मिनट के बीच यह खगोलीय घटना घटना घटित हुई। यह अनोठा संयोग था जो कई वर्षों के अंतराल पर देखने को मिला। विज्ञान-प्रेमियों के लिए यह दिन बेहद खास रहा क्योंकि उन्हें चांद के खास स्वरूप की झलक देखने को मिली।
इस घटनाक्रम की एक विशेषता यह रही कि चंद्रग्रहण के बावजूद चांद पूरी तरह काला दिखाई देने के बजाय तांबे के रंग जैसा दिखाई दिया। इसमें धरती के पारदर्शी वातावरण की भूमिका रही। असल में चंद्रग्रहण के दौरान सूर्य और चांद के बीच में धरती के होने से चांद पर प्रकाश नहीं पहुंच पाता। इस दौरान सूर्य के प्रकाश में मौजूद विभिन्न रंग इस पारदर्शी वातावरण में बिखर जाते हैं, जबकि लाल रंग पूरी तरह बिखर नहीं पाता और चांद तक पहुंच जाता है। ब्लू मून के दौरान इसी लाल रंग के कारण चांद का रंग तांबे जैसा दिखाई देता है।
खगोल वैज्ञानिकों के अनुसार यह एक सामान्य खगोलीय घटना है। पृथ्वी की परिक्रमा करते हुए चंद्रमा अपना एक चक्कर 27.3 दिन में पूरा करता है। लेकिन दो क्रमागत पूर्णिमाओं के बीच 29.5 दिनों का अंतर होता है। दो पूर्णिमाओं के बीच यह अंतर होने का कारण चंद्रमा की कक्षा का अंडाकार या दीर्घ-वृत्ताकार होना है। एक महीने में आमतौर पर 28, 30 या फिर 31 दिन होते हैं। ऐसे में एक ही महीने में दो बार पूर्णिमा होने की संभावना भी कम ही होती है। इसलिए सुपर मून भी कई वर्षों के बाद होता है।
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