Quality Control Article in India in Hindi
आजकल भारत के प्रधानमंत्री पूरे विश्व में घूम-घूम कर ‘मेक इन इन्डिया’ का नारा दे रहे हैं। लेकिन क्या वास्तव में यह नारा एक आंदोलन का रूप ले सकता है। अगर हां, तो कैसे? बता रहे हैं वरिष्ठ लेखक विनोद कुमार मिश्र।
-विनोद कुमार मिश्र
भारत के प्रधानमंत्री देश दर देश जा जाकर ‘मेक इन इन्डिया’ आंदोलन का आहवान कर रहे हैं, जिसके अंतर्गत विदेशी उद्योगपतियों से अनुरोध किया जा रहा है कि वे भारत में अपनी प्रोद्योगिकी लायें तथा पूंजी निवेश करते हुए ऐसे उद्यम लगाऐं जिनमें भारत में मिलने वाली कच्ची सामग्री तथा जनशक्ति का उपयोग हो। अपेक्षा यह की जा रही है कि भारत में मिलने वाले कच्चे माल का भारत में ही उपयोग हो तथा भारतीयों को बेहतर रोजगार मिलें। वैश्वीकरण के इस युग में हर देश ऐसा करना चाहता है पर इसके लिए अतिरिक्त प्रयासों की आवश्यकता है।
आज के युग में वही उद्यम सफल हो पाता है जिसके उत्पाद की गुणवत्ता विश्वस्तर की हो तथा मूल्य समतुल्य उत्पादों की तुलना में कम या समकक्ष हो। यह कार्य देखने सुनने में सरल व सहज लगता है पर इसके लिए ऊपर से नीचे तक व्यापक प्रयास करने पड़ते हैं।
गुणवत्ता अब किसी एक व्यक्ति या व्यक्तियों के छोटे समूह का कार्य नहीं है। यह एक स्तर या एक चरण का भी कार्य नहीं है। इसके लिए एक नई संस्कृति का निर्माण करना पड़ता है जिसमें शीर्ष स्तर से लेकर सबसे निचले स्तर की भागीदारी अनिवार्य है। इस कारण गुणवत्ता अब एक पूर्ण प्रबन्धन विषय कहलाता है।
इसी प्रकार प्रतिस्पर्धा में बने रहने के लिए यह अनिवार्य है कि हर स्तर पर होने वाले हर प्रकार नुकसान को रोका या कम किया जाय। यह कार्य भी अनेक स्तरों पर कई चरणों में ही संभव है।
हिंदी की अनिवार्यता:
गुणवत्ता में मौलिक व अनवरत सुधारों के लिए प्रथम पंक्ति के कर्मियों, परिचालकों व तकनीशियनों को पूर्ण गुणवत्ता प्रबन्धन में सम्मिलित करना अनिवार्य है। इसका कारण यह है कि इन कर्मियों को अपने काम व उसमें आने वाले अवरोधों आदि के बारे में सर्वाधिक ज्ञान होता है। जो बातें वे बता सकते हैं वे ज्ञानी सलाहकार भी नहीं बता पाते।
इस उददेश्य के लिए आजकल विभिन्न विनिर्माण कंपनियों में गुणवत्ता सर्किल का गठन किया जाता है। इसके अंतर्गत 6-8 कर्मी मिलकर अपने कार्यक्षेत्र के विभिन्न कार्यों के बारे में चर्चा करते हैं तथा इसमें उभरने वाली समस्याओं (गुणवत्ता संबंधी) पर विचार-विमर्श करते हैं। इससे अक्सर मौलिक सुधार उभरकर सामने आते है। यदि इनका क्रियान्वयन किया जाय तो उत्पाद की गुणवत्ता में भारी सुधार होता है।
यही हाल प्रतिस्पर्धा का है। विभिन्न स्तरों पर होने वाले नुकसानों को तभी सफलतापूर्वक रोका जा सकता है, जब निचले स्तर की भी पूरी भागीदारी हो। यह वर्ग नुकसान की पहले पहचान और फिर दूर या कम करने में सहायक होता है।
संसार के अनेक देशों में विज्ञान सहित विभिन्न विषयों की प्रारंभिक पढ़ाई उनकी अपनी भाषा में होती है। केवल उच्च शिक्षा के दौरान लोग दूसरी भाषा का अध्ययन करते हैं। ऐसे में प्रथम पंक्ति के कर्मियों को यदि उनकी अपनी भाषा में ही प्रशिक्षण दिया जाय तथा उनकी बैठकों जैसे गुणवत्ता सर्किलों के कार्यवृत्तों का विवरण उनकी अपनी भाषा में हो तो न केवल पूर्ण गुणवत्ता प्रबंधन का क्रियान्वयन प्रभावी होता है वरन नुकसान रोककर तथा कार्य को व्यवस्थित करके प्रतिस्पर्धा में टिके रहना भी संभव हो जाता है। इससे एक नई कार्यसंस्कृति का निर्माण होता है जिसमें कर्मी अपने आपको नौकर न मानकर पूरे कार्य में भागीदार मानने लगता है। इससे सभी एक धरातल पर आ जाते हैं तथा फिर खुले बाजार में ऊँची उड़ान भरना संभव हो जाता है।
सेंट्रल इलैक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड में सफल प्रयोग:
सौर फोटो वोल्टाइक ऊर्जा के क्षेत्र में बडे़ पैमाने पर उत्पादन प्रारंभ करते समय यह सोचा गया कि कंपनी के सौर मॉडयूल न केवल उच्च गुणवत्ता युक्त हों तथा उनसे प्राप्त होने वाली ऊर्जा की मात्रा 20-25 वर्ष तक एक जैसी ही बनी रहे। साथ ही यह भी विचार किया गया कि इनका मूल्य कम से कम हो ताकि ये आम व्यक्ति की पहुँच में रहें तथा इनसे प्राप्त ऊर्जा का मूल्य परंपरागत स्रोतों जैसे कोयला आदि से मिलने वाली ऊर्जा के समतुल्य हो।
इन सभी के लिए अनेक जापानी सिद्धांतों के आधार पर प्रथम पंक्ति के कर्मियों की भागीदारी हेतु गुणवत्ता सर्किल, कायजेन आदि प्रारंभ किये गये विभिन्न प्रकार के नुकसानों को रोकने के विभिन्न जापानी विधियों का आरंभ किया गया, जिसमें तिहरे ‘एम’ , पांच ‘एस’ सम्मिलित थे। गुणवत्ता संबंधी समस्याओं के हल के लिए 7 क्यू0सी0 टूल (औजारों) का प्रयोग प्रारंभ किया गया।
पूरी कार्य प्रणाली को समझाने के लिए चित्र युक्त हिंदी में विवरणिका का प्रयोग किया गया ताकि हर स्तर/चरण के कर्मी को ज्ञात हो कि इससे पूर्व स्तर/चरण का कर्मी क्या कर रहा है तथा अगले स्तर के कर्मी को क्या करना है ताकि सामंजस्य में अधिकाधिक वृद्धि हो।
साथ ही गुणवत्ता सर्किल, कायजेन प्रयासों आदि के कार्यवृत्त हिंदी में तैयार होने लगे। प्रारंभ में शब्द विशेष को समझाने एवं भाव व्यक्त करने आदि में कठिनाई आई पर धीरे-धीरे सब कुछ सहज होता चला गया।
इससे विभिन्न स्तरों के मध्य संवाद में आने वाले अवरोध छंटते चले गये तथा सभी स्तर के कर्मी अपने आपको सशक्त समझने लगे। यह सब कंपनी के आर्थिक रुप से सशक्त होने के अतिरिक्त था। ‘मेक इन इंडिया’ अभियान की सफलता हेतु उपरोक्त प्रयासों की पुनरावृत्ति अनिवार्य है।
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लेखक परिचय:
विनोद कुमार मिश्र एक चर्चित लेखक हैं और विज्ञान संचार के साथ-साथ विकलांगों के विभिन्न पहलुओं पर लेखन करते रहे हैं। आपकी विज्ञान संचार विषयक डेढ़ दर्जन, वैज्ञानिकों की जीवनी से सम्बंधित एक दर्जन तथा विकलांगों पर केंद्रित एक दर्जन् से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।
आपके शोध प्रबंध पर आधारित पुस्तक ‘‘विज्ञान पर विकलांगता की विजय’’ को स्वास्थ्य विज्ञान संबंधी पुस्तकों के लिए आई.सी.एम.आर. द्वारा प्रथम पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। आपसे जी-102 ईस्टर्न गेट्स, सेक्टर-4, वसुंधरा, गाजियाबाद के पते तथा निम्न ईमेल आईडी के द्वारा सम्पर्क किया जा सकता है-
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