विकलांगों की क्षमताओं और चुनौतियों पर एक शोधपरक आलेख।
भारत जैसे विकासशील देशों में विकलांगों के लिए स्तरीय बीमा सुविधा नहीं है। जो बीमा होता भी है, उसमें विकलांगता की स्थिति में एक मुश्त राशि ही मिल पाती है जो कि इलाज आदि में खर्च हो जाती है। यदि कुछ राशि बचती भी है तो बढ़ती मुद्रास्फीति के कारण उसका तेजी से अवमूल्यन हो जाता है तथा विकलांग व्यक्ति को वास्तविक राहत बहुत कम मिल पाती है।
कब आएंगे विकलांगों के अच्छे दिन ?
-विनोद कुमार मिश्र
विकलांग जनों में तमाम छिपे हुए कौशल, प्रतिभाएँ, रुचियाँ व अनुभव होते हैं जो किसी भी संगठन या समाज की विविधताओं, साधनों की उपलब्धता तथा सृजनात्मक ऊर्जा को बढ़ा सकते हैं। ये विकलांगजन अपनी शारीरिक अक्षमता के कारण अक्सर अपने कार्यों को भिन्न तरीकों से करते हैं पर उनके परिणाम औरों के समकक्ष ही नहीं, कई बार बेहतर व सराहनीय होते हैं।
कल्प व शिनॉय (2012) ने हार्वर्ड बिजिनेस रिव्यू के सितंबर 2012 अंक में लिखा है कि गीतांजलि जेम्स नामक कंपनी ने जब विकलांगों को बड़े पैमाने पर रोजगार दिया, तो पाया कि विकलांगों में नौकरी छोड़ने की दर मात्र एक प्रतिशत थी, जबकि अन्य कर्मियों में यह दर 15-20 प्रतिशत तक थी। विकलांग कर्मियों की समग्र उत्पादकता अन्य की अपेक्षा 20 प्रतिशत अधिक थी। गैरहाजिरी मात्र 2 प्रतिशत थी जबकि अन्य में यह 18 प्रतिशत तक थी। इस प्रयोग के कारण कंपनी का कार्य वातावरण काफी हद तक सुधर गया।
यही कारण है कि आज अनेक कंपनियाँ विकलांग कर्मियों को न केवल बड़ी संख्या में रोजगार दे रही हैं, वरन उनकी क्षमताओं को अपने व्यवसाय मॉडल का प्रमुख आधार बना रही हैं। अनेक गुणवत्ता आधारित व सॉफ्टवेयर कंपनियाँ अनेक पदों पर केवल विकलांगों को ही रख रही हैं और जिन कार्यों में अत्यधिक शुद्धता व ध्यान केन्द्रण की आवश्यकता होती हैं वहाँ ये असाधारण रूप से सफल भी हो रहे हैं।
राष्ट्र को लाभ:
यद्यपि वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में विकलांगता पीड़ितों की संख्या कुल जनसंख्या का मात्र 2.21 प्रतिशत है पर अन्य सर्वेक्षणों के अनुसार यह 5-6 प्रतिशत से कम नहीं है। पर इस बड़ी आबादी का मात्र एक प्रतिशत ही खुले बाजार के माध्यम से रोजगार प्राप्त कर पाता है। शेष या तो आरक्षण आधारित सरकारी नौकरियों में जाता है या बेरोजगार रह जाता है। दूसरी ओर निजी क्षेत्र कुशल व प्रशिक्षित कर्मियों के अभाव का रोना रोता रहता है।
भारी नुकसान:
विकलांगजनों के बेरोजगार रह जाने या उचित रोजगार में न लग पाने से क्षति केवल विकलांगों को ही नहीं वरन पूरे राष्ट्र को होती है। देश उनकी उत्पादन क्षमताओं से वंचित रह जाता है तथा विकलांगों के लिए कल्याण योजनाओं व पेंशन आदि पर भारी खर्च करता है। साथ ही विकलांगजनों के परिवारजनों का निजी कैरियर भी बाधित होता है। अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के अनुमानों के अनुसार यह नुकसान अनेक देशों में जी.डी.पी. का 3 से 7 प्रतिशत तक है। विश्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार यह 1.71 से 2.23 ट्रिलियन डॉलर तक है जो कि जी.डी.पी. का 5-7 प्रतिशत तक है।
उचित तरीके:
विकलांगता से यदि उचित तरीकों से निपटा जाए तभी विकलांगों के अच्छे दिन आ सकते हैं। पश्चिम में हर व्यक्ति विकलांगता के प्रति सजग रहता है। इस कारण वहाँ हर व्यक्ति को एक ऐसी बीमा सुरक्षा उपलब्ध होती है जिसके अंतर्गत किसी बीमारी या दुर्घटना के कारण उत्पन्न स्थिति के पूरे उपचार का दायित्व बीमा कंपनी का होता है। साथ ही बीमा कंपनी सहायक युक्ति जैसे कृत्रिम अंग, व्हील चैयर आदि भी उपलब्ध कराती है ताकि व्यक्ति की पूर्व स्थिति जैसे गतिशीलता यथा संभव बाहल हो जाए। यदि विकलांगता गंभीर होती है और व्यक्ति कुछ या अधिक समय के लिए अपना कार्य या रोजगार करने में असमर्थ हो जाता है तो उस अवधि में बीमा कंपनी उसे मासिक वृत्ति या राहत राशि प्रदान करती है जो कि व्यक्ति की विकलांगता से पूर्व आय (जिसका बीमा कराया गया था) का सामान्यतः आधा होती है।
उपरोक्त राहत राशि का बोझ अधिक होती है और इस कारण बीमा कंपनी श्रेष्ठतम इलाज व उत्कृष्टतम सहायक युक्ति उपलब्ध कराती है। इस कारण पश्चिम में सहायक युक्तियों पर गहनतम अनुसंधान होता है और लगातार नवीनतम प्रौद्योगिकियों पर आधारित युक्तियाँ बाजार में आती रहती हैं। साथ ही व्यक्ति की पूर्वस्थिति बहाल करने की पूरी ईमानदारी से कोशिश होती है जिसका प्रत्यक्ष लाभ व्यक्ति, उसके परिवार व पूरे राष्ट्र को होता है। सबसे बड़ी बात यह है कि यह सब एक अधिकार के रूप में होता है ओर किसी भी स्तर पर कोई दयाभाव उत्पन्न नहीं होता है।
दूसरी ओर भारत जैसे विकासशील देशों में उपरोक्त प्रकार की बीमा सुविधा नहीं है। जो बीमा होता भी है, उसमें विकलांगता की स्थिति में एक मुश्त राशि ही मिल पाती है जो कि इलाज आदि में खर्च हो जाती है। यदि कुछ राशि बचती भी है तो बढ़ती मुद्रास्फीति के कारण उसका तेजी से अवमूल्यन हो जाता है तथा विकलांग व्यक्ति को वास्तविक राहत बहुत कम मिल पाती है।
उपरोक्त व्यवस्था के अनेक प्रभाव हैं। भारत में सहायक युक्तियों के निर्माण व विवरण हेतु जैसा सशक्त ढांचा नहीं है जैसा कि पश्चिम में बीमा कंपनियों के कारण उत्पन्न हुआ है। यद्यपि भारत में भी एडिप योजना के अंतर्गत सहायक युक्तियाँ उपलब्ध कराई जाती हैं पर इस योजना में बहुत गरीब लोगों को या उन लोगों को जो कम आय का प्रमाण पत्र बनवा पाते हैं, ही सहायक युक्तियाँ मिल पाती हैं और शेष को बाजार से खरीदनी पड़ती हैं। इन सहायक युक्तियों की गुणवत्ता बहुत घटिया होती है तथा ये बहुत पुरानी प्रौद्योगिकी के आधार पर बनाई जाती है।
एक अन्य कुप्रभाव यह है कि भारत में विकलांगों के लिए जो कुछ भी होता है वह दयाभाव से ही होता है। औद्योगिक दुर्घटना के मामले में क्षतिपूर्ति प्रदान की जाती है पर इसके लिए आय सीमा बहुत कम है। कार्मिक क्षतिपूर्ति कानून 1923 संशोधन 1996 के अंतर्गत आय सीमा मात्र आठ हजार रुपये मासिक है जबकि ई.एस.आई. कानून 1948 के अंतर्गत यह मात्र दस हजार रुपये मासिक है। इस कारण क्षतिपूर्ति राशि अधिकतम साढ़े दस लाख रुपये ही होती है जो कि इलाज आदि में खर्च हो जाती है। सहायक युक्ति लगातार पूर्व स्थिति लाने का प्रावधान किसी कानून में नहीं है। यदि कम आयु का या अधिक पढ़ा-लिखा, कौशल युक्ति विकलांग होता है तो नुकसान भयंकर होता है। यदि विकलांगता गंभीर हो और व्यक्ति रोजगार के लायक न रह जाए तो वह शीघ्र ही गरीबी रेखा के नीचे आ जाता है तथा यदि वह परिवार का एक मात्र कमाने वाला सदस्य है तो पूरा परिवार भुखमरी के कगार पर पहुंच जाता है।
शर्मनाक पेंशन राशि:
दिल्ली में विकलांगता पेंशन राशि अधिकतम अर्थात 1500 रुपये मासिक है। अन्य राज्यों में तो यह 400-800 रुपये मासिक ही है। इसके लिए व्यक्ति को काफी भागदौड़ करनी पड़ती है और थोड़ा बहुत खर्च भी करना पड़ता है। उपरोक्त राशि सभी प्रकार के विकलांगों को एक समान मिलती है। जबकि अन्य देशों जैसे रूस में विकलांगता पेंशन के रूप में सम्मानजनक राशि दी जाती है, जोकि अलग-अलग गंभीरता की विकलांगता के अनुरूप होती है। अल्प विकलांगता की स्थिति में यह न्यूनतम मजदूरी की आधी होती है जबकि गंभीर विकलांगता की स्थिति में यह न्यूनतम मजदूरी की ढाई गुनी होती है।
उपरोक्त व्यवस्था से विकलांगों को उनकी विकलांगता के अनुरूप इतनी सहायता मिलती है कि वे सम्मानजनक ढंग से अपना जीवनयापन कर सकें। साथ ही सरकार पर यह दबाव भी होता है कि उचित उपचार या सहायक युक्ति के प्रयोग से विकलांगता की गंभीरता को कम किया जाय। इसके लिए उचित आधारभूत ढांचा उत्पन्न किया जाता है। अतः मौलिक सोच में परिवर्तन आवश्यक है।
कौशल विकास भी आवश्यक:
जैसा कि पहले भी चर्चा की जा चुकी है कि अनेक मामलों में विकलांग कर्मी अन्य कर्मियों से बेहतर सिद्ध होते हैं और हो भी चुके हैं। साथ ही आजकल कौशल युक्त कर्मियों की भारी आवश्यकता है। विकलांगता के कारण कई बार व्यक्ति वर्तमान व्यवसाय के योग्य नहीं रह जाता है। नए व्यवसाय के लिए उसे नवीन प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है जैसे सिपाही से क्लर्क बनना। पर नए प्रशिक्षण के लिए न्यूनतम दृष्टि, श्रवण क्षमता या गतिशीलता आवश्यक होती है। इसके लिए उचित सहायक युक्ति का प्रयोग अनिवार्य होता है।
कानूनों व कल्याण कार्यक्रमों का उचित उपयोग:
यद्यपि अंतर्राष्ट्रीय दबाव में देश में विकलांगों के हितार्थ अनेक कानून उपलब्ध हैं। अनेक कल्याणकारी योजनाओं में विकलांगों के लिए अलग से प्रावधान व राशि का आवंटन भी किया जाता है। पर इनका पूरा उपयोग नहीं हो पाता है। उदाहरण के तौर पर मनरेगा में लाभ लेने के लिए व्यक्ति को बैंक या डाकखाने में खाता खुलवाना पड़ता है। साथ ही कार्य स्थल तक पहुंचना भी पड़ता है। पर उचित सहायक युक्तियों के अभाव में ऐसा नहीं हो पाता है और आवंटित राशि अप्रयुक्त पड़ी रह जाती है। ऐसी सभी योजनाओं जैसे इंदिरा आवास योजना, स्वर्ण जयंती ग्रामीण स्वरोजगार योजना आदि में हो रहा है।
अतः अच्छे दिन तभी माने जाएंगे जब समाज के सबसे कमजोर वर्ग जिसमें सभी जातियों, धर्मों, संप्रदायों के लोग आते हैं, के अच्छे दिन आएँ। इसके लिए मौलिक सोच में परिवर्तन आवश्यक है तथा सहायक युक्तियों का सशक्त ढांचा खड़ा करना भी जरूरी है।
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लेखक परिचय:
विनोद कुमार मिश्र एक चर्चित लेखक हैं और विज्ञान संचार के साथ-साथ विकलांगों के विभिन्न पहलुओं पर लेखन करते रहे हैं। आपकी विज्ञान संचार विषयक डेढ़ दर्जन, वैज्ञानिकों की जीवनी से सम्बंधित एक दर्जन तथा विकलांगों पर केंद्रित एक दर्जन् से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।
आपके शोध प्रबंध पर आधारित पुस्तक ‘‘विज्ञान पर विकलांगता की विजय’’ को स्वास्थ्य विज्ञान संबंधी पुस्तकों के लिए आई.सी.एम.आर. द्वारा प्रथम पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। आपसे जी-102 ईस्टर्न गेट्स, सेक्टर-4, वसुंधरा, गाजियाबाद के पते तथा निम्न ईमेल आईडी के द्वारा सम्पर्क किया जा सकता है-
Pahli bar kisi ne itnee gambheerta se likha hai viklangon pe. Kaash aap ki tarah aur log bhi sochte.
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