Importance of Biofertilizer in Agriculture in Hindi
जैविक खादें रासायनिक खादों की तुलना में लागत की दृष्टि से बेहतर होती हैं। इनकी उत्पादन लागत भी कम होती है। जैविक खादें नाइट्रोजन यौगिकीकरण, फॉस्फोरस घुलनशीलता, और कार्बनिक पदार्थों के विघटन जैसी प्राकृतिक प्रक्रियाओं द्वारा मृदा में पोषक तत्वों को बढ़ाती हैं।
जैविक खाद
मृदा एवं पर्यावरण संरक्षण हेतु समय की आवश्यकता
-डॉ0 अरविन्द सिंह
जैविक खाद क्या है?
जैविक खाद वे सूक्ष्म जीव (microorganism) हैं जो मृदा में पोषक तत्वों को बढ़ा कर उसे उर्वर बनाते हैं। प्रकृति में अनेक जीवाणु और नील हरित शैवाल (blue green algae) पाए जाते हैं जो या तो स्वयं या कुछ अन्य जीवों के साथ मिलकर वायुमण्डलीय नाइट्रोजन का यौगिकीकरण (nitrogen fixation) करते हैं (वातावरण में मौजूद गैसीय नाइट्रोजन को अमोनिया में परिवर्तित करते हैं)। इसी प्रकार, प्रकृति में अनेक कवक (fungi) और जीवाणु (bacteria) पाए जाते हैं जिनमें मृदा में बद्ध फॉस्फेट को मुक्त करने की क्षमता होती है। कुछ ऐसे कवक भी होते हैं जो कार्बनिक पदार्थों को तेजी से विघटित करते हैं जिसके फलस्वरूप मृदा को पोषक तत्व प्राप्त होते हैं। अतः जैविक खादें नाइट्रोजन के यौगिकीकरण, फॉस्फेट की घुलनशीलता और शीघ्र पोषक तत्व मुक्त करके मृदा को उपजाऊ बनाती हैं।
जैविक खादों का उपयोग आज समय की आवश्यकता क्यों है?
मृदा की उर्वरा शक्ति को बढ़ाने वाले रासायनिक उर्वरक काफी महंगे होते हैं और इनका उत्पादन अनवीकरणीय पेट्रोलियम फीडस्टॉक से किया जाता है जो धीरे-धीरे कम हो रहा है। रासायनिक खादों का निरंतर उपयोग मृदा के लिए हानिकारक होता है। उदाहरण के लिए, नाइट्रोजनी खाद यूरिया का अत्यधिक उपयोग मृदा की संरचना को नष्ट कर देता है। इस प्रकार मृदा, वायु और जल जैसे अपरदनकारी कारकों से क्षरण के प्रति संवेदनशील हो जाती है। रासायनिक खादें सतह और भूमिगत जल प्रदूषण के लिए भी उत्तरदायी होती हैं।
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इसके अतिरिक्त, नाइट्रोजनी खादों के प्रयोग से फसलों पर रोग और नाशिजीवों के प्रकोप की भी संभावना रहती है। रासायनिक खादों के निरंतर प्रयोग से मृदा में ह्यूमस और पोषक तत्वों की कमी हो जाती हैं जिसके परिणामस्वरूप उसमें सूक्ष्म जीव कम पनपते हैं। रासायनिक खादों के अत्यधिक उपयोग के कारण भारतीय मृदाओं में कार्बनिक पदार्थों और नाइट्रोजन की आमतौर पर कमी पाई जाती है। सुपरफॉस्फेट के अत्यधिक उपयोग से पौधों में तांबे (copper) और जस्ते (zinc) की कमी हो जाती है।
उक्त के अतिरिक्त, रासायनिक खादें खाद्य फसलों के पोषक तत्वों की मात्रा को भी बदल देती हैं। नाइट्रोजनी खाद यूरिया के अत्यधिक प्रयोग से खाद्यान्नों में पोटैशियम तत्व की कमी हो जाती है। इसी प्रकार, पोटाश का अत्यधिक प्रयोग करने से पौधों में विटामिन सी और कैरोटीन (carotene) अंश की कमी हो जाती है। नाइट्रेट खाद फसल की पैदावार को तो बढ़ाती है लेकिन ऐसा प्रोटीन की कीमत पर होता है। इसके अतिरिक्त, इससे प्रोटीन के अणुओं में एमिनों अम्लों (amino acids) का संतुलन बिगड़ जाता है जिसके कारण प्रोटीन की गुणवत्ता कम हो जाती है। रासायनिक खादों के उपयोग से बड़े आकार के फल और सब्जियां उत्पन्न होती हैं जिन पर कीटों और अन्य नाशिजीवों का प्रकोप अधिक होता है।
जैविक खादों के क्या लाभ हैं?
जैविक खादें रासायनिक खादों की तुलना में लागत की दृष्टि से बेहतर होती हैं। इनकी उत्पादन लागत भी कम होती है। जैविक खादें नाइट्रोजन यौगिकीकरण, फॉस्फोरस घुलनशीलता, और कार्बनिक पदार्थों के विघटन जैसी प्राकृतिक प्रक्रियाओं द्वारा मृदा में पोषक तत्वों को बढ़ाती हैं।
जैविक खादें जड़ों पर आक्रमण करने वाले रोगाणुओं से पौधों को संरक्षण प्रदान करती हैं।
जैविक खादें मृदा के पोषक चक्र को पुनः स्थापित करती हैं और जैव पदार्थों का निर्माण करती हैं।
जैविक खादें विकास को बढ़ावा देने वाले पदार्थों का संश्लेषण करके पौधों के विकास में योगदान देते हैं।
जैविक खादें कितने प्रकार की होती हैं?
जैविक खादों को तीन श्रेणियों में बांटा गया है: नाइट्रोजनी जैविक खाद, फॉस्फेटी जैविक खाद एवं सेल्यूलोलिटिक जैविक खाद।
1. नाइट्रोजनी जैविक खाद: नाइट्रोजनी जैविक खाद वे जैविक खाद होती है जो मृदा में नाइट्रोजन की मात्रा को बढ़ाती है। प्रकृति में कई ऐसे जीवाणु और नील हरित शैवाल हैं जो वायुमण्डलीय नाइट्रोजन का यौगिकीकरण करते हैं। राइजोबियम (Rhizobium), एज़ोटोबैक्टर (Azotobacter), बेजरिंकिया (Beijrinkia), क्लॉस्ट्रिडियम (Clostridium), रोडोस्पाइरिलम (Rhodospirillum), हर्बास्पाइरिलम (Herbaspirillum) और एज़ोस्पाइरिलम (Azospirillum) नाइट्रोजन यौगिकीकरण करने वाले कुछ महत्वपूर्ण जीवाणु हैं। राइज़ोबियम जीवाणु दलहनी वनस्पतियों की जड़ों में सहजीवी रूप में रहकर वायुमण्डलीय नाइट्रोजन का यौगिकीकरण करते हैं।
एज़ोटोबैक्टर, बेजरिंकिया, क्लॉस्ट्रिडियम तथा रोडोस्पाइरिलम गैर सहजीवी नाइट्रोजन यौगिकीकरण जीवाणु हैं क्योंकि वे वायुमण्डलीय नाइट्रोजन को मृदा में मुक्त अवस्था में यौगिकीकरण करते हैं। हर्बोस्पाइरिलम तथा एज़ोस्पाइरिलम सहजीवी नाइट्रोजन यौगिकीकरण जीवाणु हैं क्योंकि वे पौधों की जड़ों में रहते हैं और वायुमण्डलीय नाइट्रोजन का यौगिकीकरण करते हैं। ये दोनों जीवाणु उष्ण्णकटिबंधीय घासों और फसलों, जैसे मक्का और ज्वार के जड़ क्षेत्र (rhizosphere) में निवास करते हैं।
नास्टॉक (Nostoc), ऐनाबीना (Anabaena), ऑलोसाइरा (Aulosira), सिलेंड्रोस्परमम (Cylinderospermum), ग्लिोइयोट्रिकिया (Gloeotrichia), ग्लयोकेप्सा (Gloeocapsa), कैलोथ्रिक्स (Calothrix), टालिपोथ्रिक्स (Tolypothrix) और साइटोनीमा (Scytonema) वे प्रमुख नील हरित शैवाल हैं जो वायुमण्डलीय नाइट्रोजन का यौगिकीकरण करते हैं। नील हरित शैवालों द्वारा यौगिकीकृत नाइट्रोजन की मात्रा 15 से 45 किलोग्राम नाइट्रोजन प्रति हैक्टेयर होती है। नील हरित शैवाल के विकास हेतु जमीन में मौजूद 2 से 10 से0मी0 जल की आवश्यकता होती है तथा वे 7 से 8 के पीएच रेंज में अच्छी तरह से पनपते हैं।
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नील हरित शैवाल ऐनाबीना भी एक जलीय फर्न एज़ोला (Azolla pinnata) के साथ सहजीवी रूप में रहता हैं और नाइट्रोजन का यौगिकीकरण करता है। इसलिए एज़ोला पिन्नेटा का उपयोग जैविक खाद के रूप में धान के फसल में किया जाता है। एज़ोला पिन्नेटा की एक मोटी परत 30 से 40 किलोग्राम नाइट्रोजन की आपूर्ति प्रति हैक्टेयर की दर से करती है। एज़ोला पिन्नेटा की सामान्य वृद्धि 20 से 30 डिग्री सेल्सियस तापमान के बीच सामान्य वृद्धि होती है। वर्षा ऋतु में इसका बेहतर विकास होता है।
2. फॉस्फेटी जैविक खाद: ये वो जैविक खाद है जो मृदा में बद्ध फॉस्फेट को घुलनशील बना कर पौधों को उपलब्ध कराती है। फॉस्फेट को घुलनशील बनाने वाले कई कवक, जैसे ऐकॉलोस्पोरा (Acaulospora), जाइगास्पोरा (Gigaspora), एंडोगोन (Endogone, ग्लोमस (Glomus), स्केरोसिस्टिस (Sclerocystis), ऐमेनिटा (Amanita), बोलिटस (Boletus) आदि पौधों की जड़ों के साथ सहजीवन बिताते हैं तथा पौधों के लिए फॉस्फेट की आपूर्ति करते हैं। पौधों की जड़ों के साथ कवक के इस सहजीवन को कवक मूल संबंध (mycorrhizal association) कहा जाता है। आंतरिक कवकमूल (endomycorrhiza) और बाह्य कवकमूल (ectomycorrhiza) कवकमूल के दो अलग-अलग प्रकार हैं।
आंतरिक कवकमूल संबंध में कवक साथी पौधों की जड़ों में गहराई तक प्रवेश कर लेता है। इस प्रकार का कवकमूल संबंध आमतौर से फसलों के पौधों में पाया जाता है। आंतरिक कवकमूल दलहनी फसलों में गांठों की संख्या को बढ़ाता है जिससे पैदावार में वृद्धि होती है। ऐकॉलोस्पोरा (Acaulospora), एंडोगोन (Endogone), ग्लोमस (Glomus), जाइगास्पोरा (Gigaspora), स्केरोसिस्टिस (Sclerocystis) आदि वे कवक हैं जो आंतरिक कवकमूल संबंध बनाते हैं।
बाह्य कवकमूल संबंध में कवक साथी पौधों की जड़ों की सतह तक ही सीमित रहते हैं। ये आमतौर पर चीड़ एवं देवदार जैसी वन वृक्षों की प्रजातियों में पाए जाते हैं। ऐमेनिटा तथा बोलिटस वाह्य कवकमूल कवकों के उदाहरण हैं।
कवकों के अतिरिक्त स्वतन्त्र रूप से रहने वाले कुछ जीवाणु जैसे बैसिलस सब्टिलिस (Bacillus subtilis), स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस (Pseudomonas fluorescens) , एवं स्यूडोमोनास प्यूटिडा (Pseudomonas putida) भी हैं जो फॉस्फेट को घुलनशील बनाकर उसे पौधों को उपलब्ध कराते हैं।
3. सेल्यूलोलिटिक जैविक खाद: सेल्यूलोलिटिक जैविक खाद वह जैविक खाद है जो जैविक पदार्थों का तेजी से विघटन करके मृदा में पोषक तत्वों को मुक्त करती है। एस्पर्जिलस (Aspergillus), ट्राइकोडर्मा (Trichoderma), पेनिसिलियम (Penicillium) आदि कवक इस प्रकार के जैविक खाद के उदाहरण हैं।
निष्कर्ष:
रासायनिक खादों का प्रयोग पर्यावरण की गुणवत्ता और मृदा की उर्वरा शक्ति को कम करता है। इसके अतिरिक्त, रासायनिक खादें खाद्यान्नों की पोषणीय गुणवत्ता को भी कम कर देती हैं अतः मृदा की उर्वरता, पर्यावरण की गुणवत्ता और पोषकों से भरपूर खाद्यान्नों के उत्पादन के लिए जैविक खादों का उपयोग आज समय की सबसे बड़ी आवश्यकता है।
डॉ. अरविंद सिंह वनस्पति विज्ञान विषय से एम.एस-सी. और पी-एच.डी. हैं। इनकी विशेषज्ञता का क्षेत्र पारिस्थितिक विज्ञान है। यह एक समर्पित शोधकर्ता हैं और राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर की शोध पत्रिकाओं में अब तक इनके चार दर्जन से अधिक शोध पत्र प्रकाशित हो चुके हैं। खनन गतिविधियों से अव्यवस्थित भूमि का पुनरूत्थान इनके शोध का प्रमुख विषय है। इन्होंने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय मुख्य परिसर, वाराणसी की संवहनीय वनस्पतियों पर भी अनुसंधान किया है। इनके अतिरिक्त यह एक सक्रिय विज्ञान लेखक भी हैं और अब तक इनके 10 दर्जन से अधिक विज्ञान सम्बन्धी लेख राष्ट्रीय स्तर की विभिन्न पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं। आपके अंग्रेज़ी में लिखे विज्ञान विषयक आलेख TechGape पर पढ़े जा सकते हैं। आपसे निम्न ईमेल आईडी पर संपर्क किया जा सकता है-
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