(सांपों के बारे में आपने बहुत कुछ सुना होगा, पर आमतौर से जो कुछ सुनने में आता है, उसमें से ज़्यादातर बेसिर पैर की ही बातें होती हैं। यही क...
(सांपों के बारे में आपने बहुत कुछ सुना होगा, पर आमतौर से जो कुछ सुनने में आता है, उसमें से ज़्यादातर बेसिर पैर की ही बातें होती हैं। यही काराण है कि सांपो को लेकर हमारे समाज में बहुत सारी गलत फहमियां पायी जाती हैं। इन गलत फहमियों को दूर करने के उद्देशय से यह आलेख प्रस्तुत किया जा रहा है। पहली कड़ी में आपने सर्प दंश और उसके इलाज के लिये उपलब्ध सरकारी अव्यवस्थाओं बारे में। अब आगे पढिये!)
सर्पदंश की घटनाएँ जून माह से जोर पकड़ने लगती हैं! ऐसा सिलसिला शुरू होता है कि शायद ही कोई ऐसा दिन होता हो जब अखबारों में सर्पदंश की कोई घटना सुर्खियों में न हो! इसका एक प्रमुख कारण यही है कि बड़े स्तर पर लोगों को यह पता ही नही है कि सर्पदंश की घटना घटने पर क्या किया जाय! दरअसल इस ओर अभी भी व्यापक तौर पर असरकारी-सरकारी और गैर सरकारी प्रयासों की बड़ी कमी रही है -हमने ऐसी कोई कार्यनीति ही नही बनायी है जिससे भारत में हर वर्ष होने वाली सर्पदंश की ५० हजार मौतों से निजात मिल सके!
हमें सर्पदंश के निवारण प्रबंध के लिए एक कार्यनीति त्रिस्तरीय पंचायती व्यवस्था के कार्य कलापों में समाहित करनी होगी! त्रिस्तरीय पंचायती व्यवस्था का मतलब ग्राम पंचायत स्तर, क्षेत्र पंचायत स्तर और फिर जिला पंचायत स्तर! भारत में आठवीं पञ्च वर्षीय योजना के तहत प्रत्येक गाँव में चीन के "बेयर फूट डाक्टर" डाक्टर के तर्ज पर एक स्वास्थ्य कर्मी की नियुक्ति की गयी थी, जो साधारण से मानदेय पर गाँव वालों को कुछ स्वास्थ्य सम्न्धी सुविधाएँ मुहैया विकास खंड मुख्यालय से समन्वय करके उपलब्ध कराता है! साथ ही लगभग सभी गावों में दाई और महिला /बाल विकास कार्यकत्री में से कोई न कोई सरकारी कर्मचारी भी नियुक्त है! ग्राम स्तर पर क्षेत्र पंचायतों के सहयोग से इन्ही कार्यकर्ताओं को सापों और सर्पदंश के सभी जरूरी और व्यावहारिक पहलुओं के बारे में प्रशिक्षण दिला कर सर्प दंश की वार्षिक त्रासदी पर यथेष्ट नियंत्रण किया जा सकता है -यह काम चीफ मेडिकल ऑफिसर (सी एम् ओ ) से सम्पर्क कर कोई भी एन जी ओ शुरू कर सकती है! ब्लाकों पर खंड विकास अधिकारी /ब्लाक प्रमुख एक दिवसीय गोष्ठी का आयोजन करके सर्प विषयक जानकारी प्रधानों को दे सकते हैं -ब्लाकों पर प्रधानों की मीटिंगें अक्सर होती रहती हैं!
जिला स्तर पर सी एम् ओ सर्पदंश के लिए कुख्यात माहों- जून, जुलाई, अगस्त, सितम्बर के लिए एक आपात सर्प चिकित्सा प्रकोष्ठ योग्य और सर्पदंश के मामलों को डील करने में निपुण चिकित्सकों की देखरेख में स्थापित कर सकते हैं, जहाँ एक मोबाईल सर्प चिकित्सा वैन भी हो और उसे सर्पदंश की खबर मिलने पर फौरन मरीज को लेने निकलने की हिदायत हो! फायर ब्रिगेड तर्ज पर! इस सर्प चिकित्सा आपात कक्ष का नंबर खूब प्रचारित प्रसारित होना चाहिए! अख़बारों के माध्यम से भी! मात्र यही कदम ही सर्पदंश की घटनाओं पर नाटकीय रूप से कमी ला सकता है, क्योंकि सर्पदंश के शिकार को उपयुक्त चिकित्सा स्थल तक पहुँचने में देरी ही ज्यादातर मौतों का कारण होती है!
इसके साथ ही सभी ब्लाक मुख्यालयों के प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों (पी एच सी) के चिकत्सकों को एक पुनश्चर्या (रेफ़्रेशर कोर्से ) भी कराना आवश्यक है, ताकि वे तत्परता से ऐसे मामलों को देख सकें! एंटी वेनम हर पीआपने पिछले अंक में देखा कि किस तरह बनारस में भारतीय भुजंग पर प्रस्तावित सर्पदंश निवारण प्रबंध की जानकारी जिला प्रशासन को दी गयी और यहाँ उसे व्यवहार में ला दिया गया है! मगर आज फिर यहाँ के चोलापुर क्षेत्र में एक बच्चे की सर्पदंश से अकाल मौत हो गयी! सुल्तानीपुर (चोलापुर ) निवासी दस वर्षीय प्रदीप शनिवार की शाम बाग़ में खेल रहा था -सर्प दंश का शिकार हुआ, मंडलीय अस्पताल में भर्ती कराये जाने के बावजूद नही बच सका! जैसा कि जिला प्रशासन ने वादा कर रखा है कि इस तरह की मौतों की जिम्मेदारी तय की जायेगी -देखिये क्या होता है !
मगर दुखद यह है कि जिस त्रासदी से बहुमूल्य मानव जिन्दगी बचाई जा सकती है उस के प्रति हम लापरवाह से हो चले हैं -आज एंटी वेनम सर्प दंश का शर्तिया इलाज है मगर लोगों की अज्ञानता और तंत्र की निष्क्रियता के चलते इसे सर्प दंश के पीड़ित को समय रहते उपलब्ध नही कराया जा पा रहा है! इसके लिए समर्पित इमानदार प्रयास करने होंगें -एन जी ओ और सरकारी चिकत्सकों और हम और आपको भी! कैसे ? आईये एक सच्ची केस हिस्ट्री बताता हूँ-
उन दिनों और यह बात सेवेंटीज की है वह युवक सर्पदंश से हो रही मौतों से बड़ा ही चिंतित रहता था! उसने गावों में अपने इर्द गिर्द ही झांड फूक और "बिरई " लगाने के चक्कर में कई सर्पदंश के पीडितों को दर्दनाक रूप से मरते देखा था! उस युवक की प्रकृति और जीव जंतुओं, पशु पक्षियों में बड़ी रूचि थी! इन विषयों पर वह अपनी जेब खर्च से भी किताबें खरीद लिया करता था! उन्ही दिनों पी जे देवरस की सापों पर लिखी एक बहुत रोचक और प्रमाणित पुस्तक उसके हाथों लग गयी -स्नेक्स ऑफ़ इंडिया, जिसे नॅशनल बुक ट्रस्ट ने प्रकाशित कर थी (यह पुस्तक आज भी उपलब्ध है ,लेखक तो दिवंगत हो गए )! युवक ने पुस्तक को आद्योपांत पढ़ डाला! उसे सर्पदंश के शर्तिया इलाज का सूत्र मिल गया! एंटी वेनम! क्या यह औषधि सचमुच सर्प काटे को मौत से बचा सकती है ? उसने इसे टेस्ट करने की ठान ली ! लेकिन तभी विश्वविद्यालय की परीक्षायें सामने आ गयीं और उसे गाँव से लंबे समय के लिए जाना पड़ा! मगर जाने के पहले उसने अपने ब्लाक के प्राईमरी हेल्थसेंटर के चिकित्सक से सम्पर्क साधा!
चूंकि वह युवक उस क्षेत्र के एक प्रतिष्ठित परिवार का था डाक्टर ने उसे पूरा तवज्जो दिया और साँपों से हो रही अकाल मौतों के प्रति उस युवक की संवेदना से वह भी विचलित और प्रभावित हुए बिना नहीं रह सका! युवक ने उससे वादा लिया कि इस बार किसी सर्पदंश के रोगी को हम यथासंभव मरने नही देंगें! और एंटी वेनम की पर्याप्त वयवस्था पहले ही कर लेने की हिदायत और उस डाक्टर से वचन लेकर युवक विश्वविद्यालय गया -डेढ़ दो महीने तक चलने वाली परीक्षा पूरी करके घर आ गया! ग्रीश्मावकाश शुरू हो गया था! तभी एक दिन---
जब भरी दुपहरी वह युवक आराम कर रहा था -घर से बाहर अचानक शोर सा हुआ! उसकी छठीं इंद्रिय ने बता दिया कि सांप काटने का ही मामला है! पहले भी इसी तरह का शोर तब होता था जब किसी को सांप काट लेता था! जैसे उस युवक के पैरों में स्प्रिंग सा लग गया हो -वह फौरन उछल कर दरवाजे खोलता घर के सामने आ गया! सामने का दृश्य दारुण था- एक ६ वर्ष के बच्चे को लिए एक औरत और पीछे दीन हीन सा व्यक्ति और पीछे आती भीड़! युवक ने भीड़ को पहले डांट कर हटाया और फौरन बच्चे को चेक किया! ओह यह तो कोबरा की बाईट थी! बच्चा अपनी नानी के यहाँ आया था! मटके में गुड निकालने को हाथ डाला ही था कि वहां पहले से ही बैठे कोबरा ने उसकी हथेली में काट खाया था! युवक को कोबरा बाईट पहचानने में तनिक भी देर नहीं लगी -क्योंकि हथेली काफी सूज चली थी! समय कम था! एक एक पल कीमती था!
युवक ने कहा कि तुंरत बच्चे को लेकर ब्लाक पर पहुँचो और वह वहां सायकिल से खुद पहुँच रहा है! तब आवागमन के साधन उतने अच्छे नहीं थे! पगडंडियों के सहारे युवक ने डेढ़ मील का रास्ता उस दिन २ मिनट में पूरा कर लिया जिसे पहले वह ५-१० मिनट में पूरा करता था! जून का यही महीना, चिलचिलाती धूप और पंछुआं के थपेडे कुछ भी अवरोध नहीं बन सके! डाकटर साहब मध्यान्ह अवकाश में उनीदे हो रहे थे! हांफते हुए युवक ने कहा डाक्टर साहब इम्तिहान की घडी आ गयी! कोबरा का काटा एक बच्चा बस पहुँचने ही वाला है! तारीफ़ करनी होगी डाक्टर की! मानों उसने पहले से ही एक्सर्सायिज कर रखी होबच्चे को आते आते एंटी वेनम का डिस्टिल्ड वाटर में घोल तैयार हो चुका था -ड्रिप की! तैयारी हो चुकी थी -कोरामिन इंजेक्शन ड्रिप के साथ और दूसरे हाथ में इन्ट्रावेनस के जरिये एंटी वेनम चढाने की तैयारी होते होते बच्चा आ पहुंचा था -उसकी जबान लडखडा उठी थी, मतलब, जीवन और मौत के बीच फासला बहुत कम रह गया था !
युवक के अनुसार वह दृश्य वह कभी भूल नहीं सकेगा! काबिले तारीफ तत्परता के साथ एक हाथ में एंटी वेनम ड्रिप के सहारे और दूसरे में सैलायिन कोरामिन के साथ शुरू हो गया! साथ ही साथ घाव को चीर कर थोडा खून निकाल कर पट्टी भी -डाकटर अपने कम्पाउन्डर के साथ मानों रोबोट सरीखा काम में जुटा रहा! युवक अपलक देखे जा रहा था! अचानक बच्चा तेजी से कांपा! लगा चला बसा! मगर नहीं, कंपकपियाँ आती रहीं दवाओं का चढ़ना जारी रहा! वह बच गया था! रात में रोक कर दूसरे दिन हंसते खेलते बच्चे को वापस किया गया -जबकि उसका बचना मुश्किल था!
यह सर्पदंश चिकित्सा का एक बेहतरीन समयबद्ध प्रबन्धन था जो कारगर हुआ था! आज भी उस ब्लाक में सांप से मौते कमतर होती गयीं हैं जबकि न वह युवक अब वहां है और न वे चिकित्सक, मगर श्रेष्ठ परम्पराएं अपना खुद अनुसरण करती हैं!
सर्पदंश की घटनाएँ जून माह से जोर पकड़ने लगती हैं! ऐसा सिलसिला शुरू होता है कि शायद ही कोई ऐसा दिन होता हो जब अखबारों में सर्पदंश की कोई घटना सुर्खियों में न हो! इसका एक प्रमुख कारण यही है कि बड़े स्तर पर लोगों को यह पता ही नही है कि सर्पदंश की घटना घटने पर क्या किया जाय! दरअसल इस ओर अभी भी व्यापक तौर पर असरकारी-सरकारी और गैर सरकारी प्रयासों की बड़ी कमी रही है -हमने ऐसी कोई कार्यनीति ही नही बनायी है जिससे भारत में हर वर्ष होने वाली सर्पदंश की ५० हजार मौतों से निजात मिल सके!
हमें सर्पदंश के निवारण प्रबंध के लिए एक कार्यनीति त्रिस्तरीय पंचायती व्यवस्था के कार्य कलापों में समाहित करनी होगी! त्रिस्तरीय पंचायती व्यवस्था का मतलब ग्राम पंचायत स्तर, क्षेत्र पंचायत स्तर और फिर जिला पंचायत स्तर! भारत में आठवीं पञ्च वर्षीय योजना के तहत प्रत्येक गाँव में चीन के "बेयर फूट डाक्टर" डाक्टर के तर्ज पर एक स्वास्थ्य कर्मी की नियुक्ति की गयी थी, जो साधारण से मानदेय पर गाँव वालों को कुछ स्वास्थ्य सम्न्धी सुविधाएँ मुहैया विकास खंड मुख्यालय से समन्वय करके उपलब्ध कराता है! साथ ही लगभग सभी गावों में दाई और महिला /बाल विकास कार्यकत्री में से कोई न कोई सरकारी कर्मचारी भी नियुक्त है! ग्राम स्तर पर क्षेत्र पंचायतों के सहयोग से इन्ही कार्यकर्ताओं को सापों और सर्पदंश के सभी जरूरी और व्यावहारिक पहलुओं के बारे में प्रशिक्षण दिला कर सर्प दंश की वार्षिक त्रासदी पर यथेष्ट नियंत्रण किया जा सकता है -यह काम चीफ मेडिकल ऑफिसर (सी एम् ओ ) से सम्पर्क कर कोई भी एन जी ओ शुरू कर सकती है! ब्लाकों पर खंड विकास अधिकारी /ब्लाक प्रमुख एक दिवसीय गोष्ठी का आयोजन करके सर्प विषयक जानकारी प्रधानों को दे सकते हैं -ब्लाकों पर प्रधानों की मीटिंगें अक्सर होती रहती हैं!
जिला स्तर पर सी एम् ओ सर्पदंश के लिए कुख्यात माहों- जून, जुलाई, अगस्त, सितम्बर के लिए एक आपात सर्प चिकित्सा प्रकोष्ठ योग्य और सर्पदंश के मामलों को डील करने में निपुण चिकित्सकों की देखरेख में स्थापित कर सकते हैं, जहाँ एक मोबाईल सर्प चिकित्सा वैन भी हो और उसे सर्पदंश की खबर मिलने पर फौरन मरीज को लेने निकलने की हिदायत हो! फायर ब्रिगेड तर्ज पर! इस सर्प चिकित्सा आपात कक्ष का नंबर खूब प्रचारित प्रसारित होना चाहिए! अख़बारों के माध्यम से भी! मात्र यही कदम ही सर्पदंश की घटनाओं पर नाटकीय रूप से कमी ला सकता है, क्योंकि सर्पदंश के शिकार को उपयुक्त चिकित्सा स्थल तक पहुँचने में देरी ही ज्यादातर मौतों का कारण होती है!
इसके साथ ही सभी ब्लाक मुख्यालयों के प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों (पी एच सी) के चिकत्सकों को एक पुनश्चर्या (रेफ़्रेशर कोर्से ) भी कराना आवश्यक है, ताकि वे तत्परता से ऐसे मामलों को देख सकें! एंटी वेनम हर पीआपने पिछले अंक में देखा कि किस तरह बनारस में भारतीय भुजंग पर प्रस्तावित सर्पदंश निवारण प्रबंध की जानकारी जिला प्रशासन को दी गयी और यहाँ उसे व्यवहार में ला दिया गया है! मगर आज फिर यहाँ के चोलापुर क्षेत्र में एक बच्चे की सर्पदंश से अकाल मौत हो गयी! सुल्तानीपुर (चोलापुर ) निवासी दस वर्षीय प्रदीप शनिवार की शाम बाग़ में खेल रहा था -सर्प दंश का शिकार हुआ, मंडलीय अस्पताल में भर्ती कराये जाने के बावजूद नही बच सका! जैसा कि जिला प्रशासन ने वादा कर रखा है कि इस तरह की मौतों की जिम्मेदारी तय की जायेगी -देखिये क्या होता है !
मगर दुखद यह है कि जिस त्रासदी से बहुमूल्य मानव जिन्दगी बचाई जा सकती है उस के प्रति हम लापरवाह से हो चले हैं -आज एंटी वेनम सर्प दंश का शर्तिया इलाज है मगर लोगों की अज्ञानता और तंत्र की निष्क्रियता के चलते इसे सर्प दंश के पीड़ित को समय रहते उपलब्ध नही कराया जा पा रहा है! इसके लिए समर्पित इमानदार प्रयास करने होंगें -एन जी ओ और सरकारी चिकत्सकों और हम और आपको भी! कैसे ? आईये एक सच्ची केस हिस्ट्री बताता हूँ-
उन दिनों और यह बात सेवेंटीज की है वह युवक सर्पदंश से हो रही मौतों से बड़ा ही चिंतित रहता था! उसने गावों में अपने इर्द गिर्द ही झांड फूक और "बिरई " लगाने के चक्कर में कई सर्पदंश के पीडितों को दर्दनाक रूप से मरते देखा था! उस युवक की प्रकृति और जीव जंतुओं, पशु पक्षियों में बड़ी रूचि थी! इन विषयों पर वह अपनी जेब खर्च से भी किताबें खरीद लिया करता था! उन्ही दिनों पी जे देवरस की सापों पर लिखी एक बहुत रोचक और प्रमाणित पुस्तक उसके हाथों लग गयी -स्नेक्स ऑफ़ इंडिया, जिसे नॅशनल बुक ट्रस्ट ने प्रकाशित कर थी (यह पुस्तक आज भी उपलब्ध है ,लेखक तो दिवंगत हो गए )! युवक ने पुस्तक को आद्योपांत पढ़ डाला! उसे सर्पदंश के शर्तिया इलाज का सूत्र मिल गया! एंटी वेनम! क्या यह औषधि सचमुच सर्प काटे को मौत से बचा सकती है ? उसने इसे टेस्ट करने की ठान ली ! लेकिन तभी विश्वविद्यालय की परीक्षायें सामने आ गयीं और उसे गाँव से लंबे समय के लिए जाना पड़ा! मगर जाने के पहले उसने अपने ब्लाक के प्राईमरी हेल्थसेंटर के चिकित्सक से सम्पर्क साधा!
चूंकि वह युवक उस क्षेत्र के एक प्रतिष्ठित परिवार का था डाक्टर ने उसे पूरा तवज्जो दिया और साँपों से हो रही अकाल मौतों के प्रति उस युवक की संवेदना से वह भी विचलित और प्रभावित हुए बिना नहीं रह सका! युवक ने उससे वादा लिया कि इस बार किसी सर्पदंश के रोगी को हम यथासंभव मरने नही देंगें! और एंटी वेनम की पर्याप्त वयवस्था पहले ही कर लेने की हिदायत और उस डाक्टर से वचन लेकर युवक विश्वविद्यालय गया -डेढ़ दो महीने तक चलने वाली परीक्षा पूरी करके घर आ गया! ग्रीश्मावकाश शुरू हो गया था! तभी एक दिन---
जब भरी दुपहरी वह युवक आराम कर रहा था -घर से बाहर अचानक शोर सा हुआ! उसकी छठीं इंद्रिय ने बता दिया कि सांप काटने का ही मामला है! पहले भी इसी तरह का शोर तब होता था जब किसी को सांप काट लेता था! जैसे उस युवक के पैरों में स्प्रिंग सा लग गया हो -वह फौरन उछल कर दरवाजे खोलता घर के सामने आ गया! सामने का दृश्य दारुण था- एक ६ वर्ष के बच्चे को लिए एक औरत और पीछे दीन हीन सा व्यक्ति और पीछे आती भीड़! युवक ने भीड़ को पहले डांट कर हटाया और फौरन बच्चे को चेक किया! ओह यह तो कोबरा की बाईट थी! बच्चा अपनी नानी के यहाँ आया था! मटके में गुड निकालने को हाथ डाला ही था कि वहां पहले से ही बैठे कोबरा ने उसकी हथेली में काट खाया था! युवक को कोबरा बाईट पहचानने में तनिक भी देर नहीं लगी -क्योंकि हथेली काफी सूज चली थी! समय कम था! एक एक पल कीमती था!
युवक ने कहा कि तुंरत बच्चे को लेकर ब्लाक पर पहुँचो और वह वहां सायकिल से खुद पहुँच रहा है! तब आवागमन के साधन उतने अच्छे नहीं थे! पगडंडियों के सहारे युवक ने डेढ़ मील का रास्ता उस दिन २ मिनट में पूरा कर लिया जिसे पहले वह ५-१० मिनट में पूरा करता था! जून का यही महीना, चिलचिलाती धूप और पंछुआं के थपेडे कुछ भी अवरोध नहीं बन सके! डाकटर साहब मध्यान्ह अवकाश में उनीदे हो रहे थे! हांफते हुए युवक ने कहा डाक्टर साहब इम्तिहान की घडी आ गयी! कोबरा का काटा एक बच्चा बस पहुँचने ही वाला है! तारीफ़ करनी होगी डाक्टर की! मानों उसने पहले से ही एक्सर्सायिज कर रखी होबच्चे को आते आते एंटी वेनम का डिस्टिल्ड वाटर में घोल तैयार हो चुका था -ड्रिप की! तैयारी हो चुकी थी -कोरामिन इंजेक्शन ड्रिप के साथ और दूसरे हाथ में इन्ट्रावेनस के जरिये एंटी वेनम चढाने की तैयारी होते होते बच्चा आ पहुंचा था -उसकी जबान लडखडा उठी थी, मतलब, जीवन और मौत के बीच फासला बहुत कम रह गया था !
युवक के अनुसार वह दृश्य वह कभी भूल नहीं सकेगा! काबिले तारीफ तत्परता के साथ एक हाथ में एंटी वेनम ड्रिप के सहारे और दूसरे में सैलायिन कोरामिन के साथ शुरू हो गया! साथ ही साथ घाव को चीर कर थोडा खून निकाल कर पट्टी भी -डाकटर अपने कम्पाउन्डर के साथ मानों रोबोट सरीखा काम में जुटा रहा! युवक अपलक देखे जा रहा था! अचानक बच्चा तेजी से कांपा! लगा चला बसा! मगर नहीं, कंपकपियाँ आती रहीं दवाओं का चढ़ना जारी रहा! वह बच गया था! रात में रोक कर दूसरे दिन हंसते खेलते बच्चे को वापस किया गया -जबकि उसका बचना मुश्किल था!
यह सर्पदंश चिकित्सा का एक बेहतरीन समयबद्ध प्रबन्धन था जो कारगर हुआ था! आज भी उस ब्लाक में सांप से मौते कमतर होती गयीं हैं जबकि न वह युवक अब वहां है और न वे चिकित्सक, मगर श्रेष्ठ परम्पराएं अपना खुद अनुसरण करती हैं!
-डा0 अरविंद मिश्र
Kaash jhaad foonk men fanse logon ke dimaag men ye baat baaith paatee.
जवाब देंहटाएंIs vishay ko isse rochak dhang se nahee bataayaa ja sakta. Jaankaaree ke liye aabhaar.
Dear Doctor Sahib,
जवाब देंहटाएंFirst, Happy birthday to our beloved elder brother Zakir.
2. Now your informative article. Our Politicians and Bureaucrats don't have vision to take initiative in the field of health care, education or employment. Unfortunately, it is still a distant dream.
anti venum serum se reaction bhee bahut jabardast hota hai is liye ise kabil doctor se hee lagavana hota hai ise external use me bhi jakham par jahan snake ne kata hota hai vahan bhee ise use kiya jata hai vaise is se bahut see jaane bach jati hain
जवाब देंहटाएंzakir sahib ko hamari taraf se bhee janam din kee bahut bahut badhaai aabhaar
सर्पदंश के बारे मे बहुत ही अच्छी जानकारी दी है आपने.आभार.
जवाब देंहटाएंजन्मदिन की शुभकामनायें.
जवाब देंहटाएंबेहद रोचक जानकारी और बेहद उम्दा कहानी |
जवाब देंहटाएंपढ़ते हुए लग रहा था मनो ये सब प्रत्यक्ष घट रहा है |
मुझे तो लगा था कि अंत में होगा, "वो युवक था डा0 अरविन्द मिश्र", फिर सोचा 70s की बात है तो कोई और होगा | :)
जो भी है, अच्छा लेख | धन्यवाद |
मुझे आभास हो रहा है कि 'भारतीय भुजंग' की सर्पदंश पर आयी लेखमाला का दुहराव हो रहा है.
जवाब देंहटाएंमहत्वपूर्ण जानकारी. आभार. आपको जनम दिन पर शुभकामनायें.
जवाब देंहटाएंआपको जन्मदिन की बहुत बहुत बधाई और ढेर सारी शुभकामनायें! बहुत ही रोचक पोस्ट! अत्यन्त सुंदर कहानी! शानदार!
जवाब देंहटाएंArvind ji, bahur hi rochak post hai, Bhale hi aapne us yuvak ka naam naheen khola hai, par mujhe vishwaas hai ki wah aap hi hain.
जवाब देंहटाएं@Shamim Bhai, Nirmala ji, Chandan ji, Subramaniyam ji Aur Babli ji, Janmadin ki shubhkaamnaaon ke liye HARDIK AABHAAR.
Sarp dansh ke baare men aisee hi prerna jagane ki aavashyakta kai.
जवाब देंहटाएंNice Post.
जवाब देंहटाएंबहुत दिनो बाद एक उम्दा पोस्ट पढ्ने को मिली है
जवाब देंहटाएंएंटी वेनम के बारे मे अच्छी जानकारी मिली पर क्या वास्तव मे एंटी वेनम सर्प दंश का शर्तिया इलाज है ?
हेम पान्डे जी, अर्विन्द कोई कहीं से नया थोडे ही ले आयेंगे, ये सारे लेख तो टेकनी कल लेखों से ही बनते हैं, महत्व जानकारी को विस्तार देने व जन सामान्य में फ़ैलाने का है। लोग सीधे अस्पताल जायें इधर-उधर न भट्कें। समय का फ़ेक्टर सबसे महत्व का है।
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